इस ग्रुप के तत्वों को हैलोजन भी कहा जाता है क्यूंकि इस वर्ग के सभी तत्व जब धातुओं के साथ क्रिया करते है तो लवण बनाते है।
हैलोजन शब्द दो ग्रीक भाषा के शब्दों से मिलकर बना हुआ होता है , इसमें हैलो का मतलब होता है लवण और जैनस का अर्थ होता है उत्पन्न करना , अर्थात हैलोजन वे तत्व होते है तो क्रिया करके लवण उत्पन्न करते है।
ये सभी तत्व विषैले और अधातु तत्व होते है , हैलोजन बहुत अधिक क्रियाशील अधातु तत्व होते है।
हालाँकि एस्टेटिन एक रेडियोएक्टिव तत्व होता है और यह अल्प आयु वाला समस्थानिक रखता है यह तत्व ठीक उसी तरह व्यवहार करता है जैसे आयोडीन तत्व व्यवहार करता है लेकिन एस्टेटिन को हैलोजन तत्वों में शामिल करने का कारण यह है कि इस वर्ग के तत्वों के पास सात संयोजी इलेक्ट्रॉन होते है अर्थात इनको केवल एक बाहरी इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता होती है अपना कक्षक पूर्ण करने के लिए।
और इनका यही गुण इन अधातु तत्वों को अन्य सामान्य अधातुओं से अधिक क्रियाशील बनाता है , इसलिए ही कहा जाता है कि इस 17 वें वर्ग के तत्व अति क्रियाशील अधातु तत्व होते है।
इस वर्ग के तत्वों को आवर्त सारणी में उत्कृष्ट गैसों के बाएं तरफ रखा गया है , आवर्त सारणी में इनका क्रम निम्न प्रकार होता है –
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास : इस वर्ग के तत्वों का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2np5 होता है , अत: इस वर्ग के तत्वों के बाहरी कक्षक में सात इलेक्ट्रॉन उपस्थित रहते है।
और जैसा कि हम जानते है कि उत्कृष्ट गैसों का विन्यास हासिल करने के लिए बाह्यतम कोश में आठ इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता होती है और चूँकि उत्कृष्ट गैस के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में तत्व सबसे ज्यादा स्थायी होते है इसलिए तत्वों को स्थायित्व हासिल करने के लिए उत्कृष्ट गैस विन्यास की आवश्यकता होती है और इस वर्ग के तत्वों के बाह्यतम कोश में सात इलेक्ट्रॉन उपस्थित है अत: एक इलेक्ट्रॉन प्राप्त करके ये तत्व उत्कृष्ट गैस इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ग्रहण कर सकते है इसलिए ये तत्व बहुत अधिक क्रियाशील होते है ताकि कैसे भी एक इलेक्ट्रॉन प्राप्त करके उत्कृष्ट गैस विन्यास ग्रहण किया जा सके।
इसलिए इस वर्ग के तत्व या तो एक इलेक्ट्रॉन त्याग करके सहसंयोजक बंध बनाने की कोशिश करते है या एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके आयनिक बंध बनाने की कोशिश करते है।
17 वें वर्ग के तत्वों के परमाण्विक गुण
इस वर्ग के प्रथम फ़्लोरिन की विद्युत ऋणता का मान आवर्त सारणी में सबसे अधिक होता है।
17 वें वर्ग के तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुण
- इस वर्ग के तत्व विभिन्न भौतिक अवस्थाओं में पाए जाते है जैसे फ़्लोरिन और क्लोरिन तत्व गैसीय अवस्था में पाए जाते है जबकि ब्रोमिन तत्व द्रव अवस्था में पाया जाता है और आयोडीन ठोस अवस्था में पाया जता है।
- इस वर्ग के तत्वों का रंग भी कई प्रकार का होता है जैसे फ़्लोरिन तत्व का रंग हल्का पीला होता है जबकि आयोडीन तत्व का रंग काला-बैंगनी होता है।
- इस वर्ग के तत्व क्लोरिन और फ़्लोरिन , दोनों ही पानी में अच्छी तरह विलेय होते है लेकिन ब्रोमिन और आयोडीन , दोनों ही तत्व जल में कम विलेय होते है।
- जब ग्रुप में ऊपर से नीचे अर्थात फ़्लोरिन से आयोडीन तक आने पर क्वथनांक और गलनांक का मान बढ़ता जाता है , अर्थात फ़्लोरिन तत्व का क्वथनांक और गलनांक सबसे कम होता है।
- इस वर्ग के सभी तत्व अच्छे ऑक्सीकारक होते है , इनमे से फ़्लोरिन सबसे अधिक शक्तिशाली ऑक्सीकरण कारक होता है। इस वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर ऑक्सीकारक शक्ति या क्षमता का मान कम होता जाता है।
- सभी हैलोजन हाइड्रोजन के साथ क्रिया करते है , जब कोई हैलोजन तत्व हाइड्रोजन के साथ क्रिया करता है तो क्रिया के फलस्वरूप अम्लीय हाइड्रोजन हैलाइड बनाते है , हाइड्रोजन के प्रति हैलोजन की बंधुता इस वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर बढती जाती है।
- जब हैलोजन ऑक्सीजन के साथ क्रिया करते है तो क्रिया के फलस्वरूप ऑक्साइड बनाते है , हालांकि यह देखा गया है कि हैलोजन का ऑक्सीजन के साथ क्रिया करके बने ऑक्साइड स्थायी या स्थिर नही रहते है , फ़्लोरिन दो OF2, O2F2 ऑक्साइड बनाता है , ये ऑक्सीजन फ्लुओरीन कहलाते है और फ्लुओरिन ऑक्साइड नहीं कहलाते है क्यूंकि फ्लुओरिन ऑक्सीजन की अपेक्षा अधिक विद्युत ऋणता होती है।
- जैसा कि हमने शुरू में ही पढ़ लिया था कि 17 वें वर्ग के तत्व बहुत अधिक क्रियाशील होते है इसलिए इस वर्ग के तत्व धातुओं के साथ भी क्रिया करते है। इस वर्ग के तत्व धातुओं के साथ तेजी से क्रिया करके धातु हैलाइड बना लेते है , जैसे सोडियम , क्लोरिन गैस के साथ क्रिया करके सोडियम क्लोराइड बनाता है यह क्रिया निम्न प्रकार संपन्न होती है –
2Na(s) + Cl2(g) → 2NaCl(s)