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शहतूत का रेशमी कीड़ा क्या है | रेशम कीट का नामांकित चित्र , जीवन चक्र का चित्र के लार्वा का नाम क्या है

रेशम कीट का नामांकित चित्र , जीवन चक्र का चित्र के लार्वा का नाम क्या है ?

 शहतूत का रेशमी कीड़ा
रेशम की जन्मकथा शहतूत का रेशमी कीड़ा (आकृति ६०) बहुत ही उपयुक्त रेशम की कीट है। इसकी इल्लियों से रेशम पैदा होता है। जन्मकथा जिस द्रव से रेशम बनता है वह दो रेशमदायी ग्रंथियों से रसता है। इन ग्रंथियों के खुले हिस्से इल्ली के निचले ओंठ में होते हैं। ग्रंथियों से निकला हुआ द्रव हवा के संपर्क में आते ही फौरन सख्त हो जाता है। यही रेशम का धागा है।


इल्ली रेशमी धागे को बुनकर कोए का रूप देती है। ग्रंथियों के खुले छेद वह किमी ठोस पदार्थ पर टिकाकर वहां धागे का पहला सिरा चिपका देती है। फिर वह अपना सिर बुनाई की सूई की तरह हिलाती जाती है और क्रमशः अपने चारों ओर रेशम के धागे की दीवाल-सी बना लेती है। आखिर कोआ बनकर तैयार होता है जिसमें इल्ली प्यूपा में परिवर्दि्धत होती है।
कोए का निर्माण इल्ली की सहज प्रवृत्ति से होता है और वह कई दिन जारी रहता है। इस अवधि में इल्ली सात-आठ सौ मीटर और कभी कभी तो तीन हजार मीटर तक धागा देती है।
प्यूपा के लिए कोमा विभिन्न प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाये रखनेवाले संरक्षक साधन का काम देता है। मनुष्य के लिए वह रेशमी कपड़े के उत्पादन में कच्चे माल का काम देता है । प्यूपा को गरम भाप से मरवा डालते हैं और कोनों को सुखाकर रेशमी मिलों में खोल देते हैं। मरे हुए कोए आम तौर पर फार्मों के फरदार जानवरों को खिलाये जाते हैं।
रेशमी कीड़ों का संवर्द्धन
चीन रेशमी कीड़े की जन्मभूमि है। वहां रेशम के शलभ को हजारों वर्षों से एक घरेलू कीट के रूप में पालते आये हैं।
रेशमी कीड़ों का पालन-संवर्द्धन उन प्रदेशों में किया जाता है जहां शहतूत के पेड़ उगते हों। इन पेड़ों की पत्तियां रेशमी कीड़ों का भोजन है।
इल्लियां खास इमारतों में , और कभी कभी घरों और शेडों में पाली जाती हैं। वसंत ऋतु में टारपुलीन की ताकों वाले खास स्टैंडों या उभड़ी हुई पटियों वाली मेजों पर कागज फैलाया जाता है और रेशमी कीड़ों के अंडे इन कागजों पर फैला दिये जाते हैं। अंडों के सेये जाने पर जब इल्लियां पैदा होती हैं तो उन्हें पहले शहतूत की पत्तियों के टुकड़े और बाद में पूरी पत्तियां खिलायी जाती हैं। स्टैंडों को साफ करते समय इल्लियों को टहनियों और पत्तियों के सहारे वहां से हटाया जाता है। ध्यान रहे कि इल्लियों को हाथ से नहीं छूना चाहिए।
इल्लियां जल्दी जल्दी बड़ी होती हैं और कई बार उनका निर्मोचन होता है। हर निर्मोचन के पहले ये निश्चेष्ट हो जाती हैं और कुछ खाती नहीं। रेशमी कीट-पालकों के शब्दों में, वे ‘सो जाती है‘ं।
डिंभों के दिखाई देने के लगभग एक महीने बाद सूखी टहनियों के गुच्छे या कोप्राधारी स्टैंडों पर रख दिये जाते हैं । वयस्क इल्लियां टहनियों पर चढ़कर वहां अपने कोए बुन लेती हैं जो शीघ्र ही प्यूपा में परिवर्तित होते हैं।
नियमतः अंडे विशेष संवर्द्धन केंद्रों में पैदा किये जाते हैं। यहां प्यूपा मारे नहीं जाते बल्कि उन्हें शलभों में परिवर्दि्धत होने दिया जाता है। जिनमें से वयस्क कीट निकलते हैं वे कोए रेशम उत्पादन के काम में नहीं आते। ये शलभ शायद ही उड़ सकते हैं – गुलामी की जिंदगी काटते हुए उनके पुरखों की शरीर-रचना में जो हेरफेर हुआ उसी का यह परिणाम है। शलभ बहुत बड़ी संख्या में अंडे देते हैं जो संवर्द्धन केंद्रों द्वारा कोलखोजों में भेज दिये जाते हैं।
चीनी बलूत के रेशमी कीड़े (रंगीन चित्र ८) का भी रेशम-उत्पादन की दृष्टि से पालन किया जाता है। इसकी इल्लियां बलूत की पत्तियां खाकर रहती हैं और टसर नामक वढ़िया रेशम देती हैं। रूस के केंद्रीय प्रदेशों में इस रेशमी कीड़े का संवर्द्धन किया जा सकता है।
प्रश्न- १. शहतूत के रेशमी कीड़े का परिवर्द्धन कैसे होता है? २. कोए प्राप्त करने के लिए इल्लियों को कैसे पाला जाता है?
व्यावहारिक अभ्यास – १. यदि तुम्हारे इलाके में रेशमी कीड़ों का संवर्द्धन किया जाता हो तो संवर्द्धन केन्द्र से कुछ अंडे और शहतूत के रेशमी कीड़े के पालन के संबंध में आवश्यक सूचना प्राप्त कर लो। गरमियों में इल्लियों का पालन करो। शहतूत के रेशमी कीड़े का परिवर्द्धन दिखानेवाला एक संग्रह तैयार करो। २. यदि तुम उत्तर में रहते हों तो चीनी बलूत के रेशमी कीड़े के कोए या अंडे प्राप्त कर लो। इनकी इल्लियों को बलूत और बर्च दोनों पेड़ों की पत्तियां खिलाकर देखो। शलभों के परिवर्द्धन का निरीक्षण करो और उसके संबंध में एक संग्रह तैयार करो।
 मधुमक्खी परिवार का जीवन
मधुमक्खी कुल मधुमक्खी-घरों में मधुमक्खियां परिवारों में रहती हैं। इनमें से लंबे , संकुचित उदरवाली सबसे बड़ी मधुमक्खी रानी (आकृति ६१) कहलाती है। यह अंडे देती है। परिवार में नर भी होते हैं। इन मध्यम आकार की मधुमक्खियों के सिर के एकदम ऊपर दो बड़ी बड़ी आंखें होती हैं । ये इतनी पास पास होती हैं कि एक दूसरी को छूती ही हैं।
परिवार में मजदूर मधुमक्खियों की ही भरमार रहती है जिनकी संख्या ५०,००० या इससे भी अधिक होती है। इनका आकार रानी मक्खी से छोटा होता है और वे अपरिवर्दि्धत मादा होती हैं। मजदूर मधुमक्खियां डिंभों की देखभाल करती हैं, उन्हें खिलाती हैं, छत्ते बनाती हैं, सारे परिवार के लिए खाना ले आती हैं और मधुमक्खी-घर की रक्षा करती हैं।
मधुमक्खियों का परिवर्द्धन मोम के छत्ते की जांच करने से पता चलता है कि उसके छःकोने खाने एक आकार के नहीं होते। सबसे छोटे खाने मजदूर मक्खियों के होते हैं और बड़े – नरों के। बलूत के फल की शक्लवाले सबसे बड़े खानों में रानी मक्खियों का परिवर्द्धन होता है। रानी असेचित अंडे नरों के खानों में और संमेचित अंडे दूसरे खानों में देती है । जो खाने बच्चों के पालन के काम में नहीं आते उनमें भोजन (शहद और पुष्प-पराग ) का भंडार रहता है।
खानों में अंडों से सफेद डिंभ निकलते हैं जिनके पैर नहीं होते। सभी डिंभों को उनके जीवन के प्रारंभिक दिनों में एक बहुत ही पोषक पदार्थ खिलाया जाता है जो मजदूर मक्खियों की विशेष ग्रंथियों से चूता है । बाद में छोटे और मध्यम आकार के खानों में पलनेवाले डिंभों को पराग और शहद खिलाना शुरू होता है। रानीवाले खाने में स्थित डिंभ को उपर्युक्त तरल पदार्थ भरपेट मिलता रहता है। यह डिंभ जल्दी जल्दी बढ़ता है, उसका आकार दूसरे डिंभों से बड़ा होता है और फिर वह प्यूपा में परिवर्तित होता है। इस प्रकार खानों के आकार और डिंभों के आहार के अनुसार संसेचित अंडे परिवर्दि्धत होकर या तो मजदूर मक्खियां बनते हैं या तो रानी।
अवस्था के साथ मजदूर मधमक्खियों की गतिविधि मे परिवर्तन
रानी का भोजन चुानेवाली ग्रंथियां जवान मधुमक्खियों में अधिक अच्छी तरह काम करती हैं। इसी कारण जवान मजदूर मक्खियां डिंभों के लिए ‘दूध पिलानेवाली दाइयों‘ं का काम देती हैं और मधुमक्खी-घर से बाहर नहीं जातीं। बच्चों को खिलाने के अलावा वे खानों की सफाई करती हैं और संग्राहक-मक्खियों से पुष्प-रस की सप्लाई प्राप्त करती हैं। बाद में मजदूर मक्खियां ‘पहरेदारों की ड्यूटी‘ पर तैनात होती हैं और विभिन्न शत्रुओं से मधुमक्खी-घर की रक्षा करती हैं। मजदूर मक्खी के उदर के पिछले सिरे पर एक पीछे खिंचनेवाला डंक होता है जिसमें बहुत ही कठिन दांतेदार काइटिनीय सूइयां होती हैं। अपना उदर अपने ही नीचे झुकाकर मधुमक्खी दूसरे प्राणियों को डंक मारती है और डंक की ग्रंथि से निकलनेवाला दाहक द्रव घाव में छोड़ देती है।
कुछ और समय बाद मजदूर मक्खियां संग्राहक-मक्खियां बन जाती हैं। वे खेतों, चरागाहों और फलबागों की सैर करने लगती हैं। एक फूल से उड़कर दूसरे फूल के पास जाती हुई वे उसके पुप्प-रस को चूसकर अपनी प्रसिका के एक उभाड़ में अर्थात् मधु-कोष में संगृहीत कर लेती हैं। छत्ते को लौट पाकर वे मधुकोष में संचित पुप्प-रस मोम के खानों में छोड़ देती हैं। यहां पुष्प-रस गाढ़ा बनता हुआ शहद में परिवर्तित होता है। सारे परिवार के लिए यह शर्करामय भोजन का बढ़िया संचय होता है।
संग्राहक-मक्खी मधुदायी पौधों वाले इलाके से जब लौटती है तो बड़ी उत्तेजना में होती है। वह छत्तों का चक्कर काटती रहती है और इस प्रकार अन्य मधुमक्खियों का ध्यान खींच लेती है। जब यह संग्राहिका उड़कर छत्ते से बाहर जाती है तो दूसरी मधुमक्खियां उसके पीछे पीछे उस स्थान तक जाती हैं जहां मधुदायी पौधे पाये गये हों।
पौधे मजदूर मक्खियों को पराग भी देते हैं। यह एक ऐल्ब्यूमेन युक्त भोजन है जिसे मधुमक्खियां अपने जबड़ों से खरोंचकर बटोर लेती हैं और अपनी लार से नम कर देती हैं। अपने शरीर पर पड़े हुए पराग को मधुमक्खियां ब्रशों से साफ कर देती हैं। उनके पिछले पैरों के फैले हुए वृत्तखंडों पर बालों की कतारें होती हैं । यही उनके ब्रश हैं (आकृति ६२)। वे पराग के लड्डू बनाकर टोकरियों अर्थात् पिछले पैरों पर स्थित नन्हे नन्हे गड्ढों में इकट्ठे कर लेती हैं। यहां पराग की गोलियां बनकर तैयार होती हैं जिन्हें वे मधुमक्खी-घर की ओर ले जाती हैं।
मधुमक्खी के उदर की निचली सतह पर बिना बालों के नरम स्थान होते हैं (आकृति ६१ )। ये स्थान जैसे उदर के पास पासवाले वृत्तखंडों के बीच की छोटी छोटी जेबों में स्थित होते हैं। इन स्थानों पर बहुत ही पतली और पोले रंग की परतों के रूप में मोम रसता है धीरे धीरे ये परतें मोटी होती जाती हैं। जब काफी मोम रसता है तो मधुमक्खी उसे अपने पैरों से हटा लेती है। फिर अपने ऊपरी जबड़ों का राजगीर की करनी की तरह उपयोग करते हुए वह इस मोम से छत्ते के खाने बनाने लगती है। आम तौर पर मधुमक्खियों की बड़ी भारी संख्या इस काम में लगी रहती है।
डिभों को खिलाना, मधुमक्खी-घर की रक्षा, पुष्प-रस का संचय, खानों का निर्माण यानी मजदूर मक्खियों के सारे काम सचेतन रूप में होते हुए से लगते हैं। पर वस्तुतः, जैसा कि वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है, वे सहज प्रवृत्तियों के फल होते हैं। सहज प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति अवस्था के साथ मधुमक्खी के शरीर में होनेवाले परिवर्तनों से संबद्ध है।
क्या कीटों में बुद्धि होती है? मधुमक्खियों के जटिल , हेतुपूर्ण बरताव ने वैज्ञानिकों को अक्सर यह मानने को मजबूर किया कि कीट बुद्धिमान् प्राणी होते हैं। काफी समय तक वैज्ञानिक क्षेत्र में चर्चा जारी रही कि मधुमक्खियों में वृद्धि होती है या नहीं ? इस प्रश्न का निश्चित उत्तर पिछली शताब्दी के मध्य में फ्रांसीसी वैज्ञानिक जीन हेनरी फान द्वारा कैलिकोडोम नामक जंगली मधुमक्खियों पर किये गये प्रयोगों से प्राप्त हुआ।
कैलिकोडोम बड़ी मधुमक्खियां होती हैं जिनके गहरे जामुनी रंग के जालीदार पंख होते हैं और मखमली काले रंग का शरीर। वे अपने सीमेंट के खाने मधुमक्खी-घर में नहीं बल्कि सीधे ऐसी खुली चट्टानों पर वनाती हैं जो धूप में काफी तपती हों। उनका निर्माण का सामान पाउडर के रूप में मिट्टी और चूने का एक मिश्रण होता है जिसमें मधुमक्खी की लार की सहायता से नमी आती है। यह हवा के संपर्क में आते ही आते सूख जाता है और खानों की मजबूत सीमेंटदार दीवालों में परिवर्तित होता है। इन्हीं खानों में कैलिकोडोम के डिंभ पलते हैं।
फाब्र का एक प्रयोग इस प्रकार था – इस वैज्ञानिक को ऐसी दो चट्टानें मिलीं जिनपर कैलिकोडोम के घोंसले बने हुए थे। घोंसलों के सीलबंद खानों से शीघ्र ही छोटी छोटी मधुमक्खियां निकलनेवाली थीं। फाब्र ने इनमें से एक घोंसले पर रैपिंग पेपर का एक टुकड़ा इस तरह चिपका दिया कि वह खानों की सीमेंटदार दीवाल से मजबूती से सटा रहे। दूसरे घोंसले पर उसने उसी कागज की एक छोटी-सी टोपी बनाकर चट्टान के आधार से चिपका दी। दोनों मामलों में खानों से निकलनेवाली छोटी मधुमक्खियों को एक दोहरा काम करना था- खाने की सीमेंटदार दीवाल को और फिर कागज की परत को कुतरकर बाहर आना। फर्क इतना ही था कि दूसरे घोंसले के मामले में कागज की आड़ और सीमेंट के बीच कुछ खाली जगह रखी गयी थी।
यह सब करने के बाद फाब्र यह देखता रहा कि दोनों घोंसलों के खानों में से छोटी मधुमक्खियां किस प्रकार बाहर आती हैं। उसने देखा कि हर घोंसले की मधुमक्खियों का बरताव भिन्न रहा। पहले घोंसले की मधुमक्खियां अपने दोहरे आवरण को कुतरकर आसानी से बाहर आयीं, जबकि दूसरे घोंसले की मधुमक्खियां सीमेंट की सख्त दीवाल को कुतरकर तो आसानी से बाहर आयीं पर कागज की पतली-सी आड़ को कुतरकर उसमें से घुस निकलने का उन्होंने प्रयत्न तक नहीं किया। जैसा कि फाब्र का कहना है, वे सब की सब ‘‘रत्ती-भर भी विचार-शक्ति न होने के कारण‘‘ मर गयीं।
फाब्र के इस प्रयोग से और जंगली कैलिकोडोमों तथा अन्य कीटों पर किये गये उनके दूसरे प्रयोगों से यह निश्चयपूर्वक बताना संभव हुआ है कि कीटों का सहज प्रवृत्त बरताव न तो बुद्धिपूर्ण होता है और न सचेतन ही। अन्य प्राणियों की तरह उनमें भी मानवीय बुद्धि का अस्तित्व नहीं माना जा सकता।
प्रश्न – १. मधुमक्खी के परिवार में कितने प्रकार की मक्खियां होती हैं और हर प्रकार की मक्खी क्या क्या काम करती है ? २. मधुमक्खी का परिवर्द्धन कैसे होता है ? ३. कौनसी परिस्थितियों में अंडों से रानी , नर और मजदूर मधुमक्खियां निकलती हैं ? ४. पौधों के परागीकरण और भोजन के संग्रह से मधुमक्खियों की कौनसी विशेषताएं संबद्ध हैं ? ५. क्या कीटों का बरताव सचेतन होता है?
व्यावहारिक अभ्यास – १. गरमियों के मौसम में देखो मधुमक्खियां किस प्रकार पुष्प-रस और पराग इकट्ठा करती हैं। २. मधुदायी पौधों का एक संग्रह बना लो।

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