रासायनिक बलगतिकी एवं उसका कार्यक्षेत्र क्या है (CHEMICAL KINETICS AND ITS SCOPE in hindi)

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रासायनिक बलगतिकी एवं उसका कार्यक्षेत्र (CHEMICAL KINETICS AND ITS SCOPE) रासायनिक बलगतिकी रसायनविज्ञान की वह शाखा है जिसमें विभिन्न अभिक्रियाओं के वेगों का अध्ययन किया जाता है। रसायनविज्ञान में अभिक्रियाओं के वेग और उनको प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण कार्य है। इसके आधार पर यह ज्ञात किया जा सकता है कि कोई अभिक्रिया कितने पदों में सम्पन्न होती है, उसके माध्यमिक उत्पाद क्या हैं और उनका स्थायित्व क्या है, आदि-आदि।

रासायनिक बलगतिकीय अध्ययन से यह भी ज्ञात किया जा सकता है कि किसी रासायनिक अभिक्रिया में बने हुए उत्पाद के प्रकाशिक गुण किस प्रकार के होंगे। बने हुए उत्पाद का विन्यास वही होगा जो क्रियाकारक का है अथवा उससे विपरीत होगा अथवा रैसीमिक मिश्रण प्राप्त होगा; इन सबकी जानकारी रासायनिक बलगतिकी के अध्ययन से मिल जाती है। किसी अभिक्रिया के वेग पर उत्प्रेरक का क्या प्रभाव पड़ेगा, उत्प्रेरक की उपस्थिति में अभिक्रिया की परिस्थितियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, एन्जाइम अभिक्रियाओं को किस प्रकार संचालित करते हैं, कोई अभिक्रिया विशिष्ट (specific) होती है तो कोई वरणात्मक (selective), ये जानकारी भी रासायनिक बलगतिकीय अध्ययन से ही मिलती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि यह एक ऐसा प्रकाश है जिसमें रासायनिक अभिक्रियाएं साफ-साफ दिखायी देती हैं।

अभिक्रिया वेग (Rate of Reaction) एक सामान्य अभिक्रिया को निम्न प्रकार से प्रदर्शित कर सकते हैं

A+ B →C+D

अर्थात् A व B परस्पर क्रिया करके C व D का निर्माण करते हैं अतः जैसे-जैसे अभिक्रिया होती जायेगी क्रियाकारकों (reactants) A तथा B की सान्द्रता कम होती जायेगी और उत्पाद (products) C तथा D की सान्द्रता बढ़ती जायेगी (चित्र 7.1)

समय के साथ किसी अभिक्रिया के क्रियाकारकों अथवा उत्पादों की सान्द्रता में परिवर्तन को अभिक्रिया वेग (reaction rate) अथवा अभिक्रिया की गति (speed of a reaction) कहते हैं।

A अथवा B की सान्द्रता में कमी अभिक्रिया की गति  / समय की अवधि

= C अथवा D की सान्द्रता में / वृद्धि समय की अवधि

अतः उपर्युक्त अभिक्रिया की गति को निम्न में से किसी भी एक पद द्वारा व्यक्त किया जा सकता dCA  /dt – dCB /dt – dCc/ dt dCD /dt जहां dCa एक छोटे समय अन्तराल dt में हुए A का सान्द्रता – dr. dt. dt. dt. में परिवर्तन को दर्शाता है। इसी प्रकार CB, C व CD क्रमशः B.Cव D के समय अन्तराल dt में हुए सान्द्रता में परिवर्तन को दर्शाते हैं। चूंकि अभिकारकों की सान्द्रता समय के साथ घटती जाती है अतः यहां ऋण चिह्न (-) लगता है, जबकि उत्पादों की सान्द्रता समय के साथ बढ़ती जाती है अतः उनमें धन चिह्न (+) लगता है। इन चारों के आंकिक (numerical) मान एक-दूसरे के समान होते हैं। यदि किसी अभिक्रिया के स्टॉइकियोमितीय समीकरण में क्रियाकारकों व उत्पादों के अणुओं की संख्या एक-दूसरे के बराबर नहीं है,

जैसे 2A+B→3C+D

 तो इस अवस्था में भी हम अभिक्रिया के वेग को – dCA /dt – dCB /dt +dCc/dt + dCD /dt द्वारा ही व्यक्त कर सकते हैं लेकिन अभिक्रिया वेग का मान सब स्थितियों में अलग-अलग आयेगा क्योंकि इकाई समय व इकाई आयतन में A की जितनी मात्रा कम होगी, उसी परिस्थिति में B की मात्रा आधी ही कम होगी, अथवा जितनी मात्रा D की बनेगी उसकी तीन गुनी मात्रा C की बनेगी। अतः ऐसी परिस्थितियों में अभिक्रिया वेग का मान निम्न प्रकार होगा

अभिक्रिया वेग  = – 1/2 dCA /dt = – dCB /dt = + 1/3 dCc = +DcD/dt   …. …(1)

अतः एक विस्तृत सामान्य अभिक्रिया के लिए mA + nB pC + qD

अभिक्रिया वेग = अभिक्रिया वेग = – 1/m DcA/dt = – 1/n dCB/dt = 1/p dCC/dt = 1/q dCD/dt

 उदाहरण 7.1. नाइट्रोजन डाइ-ऑक्साइड (NO2) फ्लुओरीन (F2) के साथ क्रिया करके नाइट्रिल फ्लु ओराइड (NO-F) बनाती है।

2NO2(g) + F2(g) → 2NO F(g)

अभिक्रिया के वेग को निम्न रूपों में लिखिए(i) NOLF के बनने का वेग; (ii) NO2 के लुप्त होने का वेग: (iii) F2 के लुप्त होने का वेग। 3 +

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