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रामायण की रचना कब और किसने की थी , रामायण के लेखक कौन थे कब लिखी गयी , भाषा , पद छंद संख्या
रामायण की रचना कब और किसने की थी , रामायण के लेखक कौन थे कब लिखी गयी , भाषा , पद छंद संख्या कितनी है ?
महाभारत और रामायण
इन दो महान रचनाओं को महाकाव्य भी कहा जाता है क्योंकि ये हिन्दू धर्म का पालन करने वाले लोगों की सामूहिक स्मृति का भाग बन गए हैं। दोनों ग्रंथों को युगों में संकलित किया और जोड़ा गया है और हम आज जो देखते हैं वह ऋषियों के साथ ही चारणों या कहानीकारों द्वारा किए गए अनेक प्रेषणों का समामेलन है।
रामायण
रामायण नामक सबसे प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित ग्रंथ आदिकवि या कवियों में प्रथम कहलाने वाले ऋषि वाल्मीकि के द्वारा रचित है। इसी तर्क से रामायण को आदिकाव्य या कविताओं में प्रथम भी कहा जाता है। हालांकि रामायण की तिथि के निर्धारण पर बहुत विवाद है, लेकिन अधिकांश इतिहासकारों का तर्क है कि पहली बार 1500 ईसा पूर्व के आसपास इसे संकलित किया गया था।
इस महाकाव्य में, आदर्श व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत राम की कहानी के माध्यम से, हमें मानव जाति के चार उद्देश्यों (पुरुषार्थों) को प्राप्त करने के विषय में निर्देश दिए गए हैंः
धर्म धर्म या सात्विकता
अर्थ सांसारिक जीवन में (मौद्रिक) उपलब्धियां
काम सांसारिक इच्छाएं पूरा करना
मोक्ष इन इच्छाओं से मुक्ति
रामायण में 24,000 पद हैं और यह काण्ड नामक सात अध्यायों में विभाजित है। इसे महाकाव्य माना जाता है क्योंकि इसमें राम की पत्नी सीता के अपहरण को लेकर भगवान राम और राक्षस राजा रावण के बीच युद्ध का विवरण प्रस्तुत किया गया है। हनुमान, लक्ष्मण, विभीषण, आदि जैसे कई प्रमुख पात्रा हैं जिन्होंने लंका (आधुनिक श्रीलंका), में लड़े गए इस युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसमें राम ने रावण पर विजय प्राप्त की और अपनी पत्नी को वापस लाए। इस सफलता को बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है।
महाभारत
महाभारत के कई संस्करण हैं, लेकिन सबसे लोकप्रिय ‘‘वेद व्यास’’ द्वारा लिखित महाभारत है। इसे संस्कृत में लिखा गया था और प्रारंभ में इसमें 8, 800 छंद थे। इस संस्करण को ‘जय’ या ‘विजय’ की कहानी कहा जाता था। इसके बाद कई कहानियों का संकलन किया गया और इस संग्रह में जोड़ा गया। छंदों की संख्या बढ़कर 24,000 हो गई और प्रारंभिक वैदिक जनजाति के नाम पर इसका नामकरण ‘भारत’ किया गया। वर्तमान रूप में 1,00,000 छंद हैं जो इतिहास पुराण (पौराणिक इतिहास) कहलाने वाले ग्रंथों सहित 10 पर्वों (अध्याय) में विभाजित है।
इसकी कहानी हस्तिनापुर के सिंहासन पर दावा करने के अधिकार को लेकर कौरवों और पांडवों के बीच संघर्ष पर आधारित है। इस कहानी के सूत्राधार भगवान कृष्ण हैं। महाभारत में हिंदुओं के महत्वपूर्ण उपदेशात्मक ग्रंथ यानी भगवद् गीता का भी समावेश है। यह ग्रंथ हिंदू धर्म की दार्शनिक दुविधाओं के लिए संक्षिप्त मार्गदर्शिका की भांति है और यहां तक कि धर्मिक जीवन जीने पर मानव जाति के लिए मार्गदर्शिका की भांति कार्य करता है। इस ग्रंथ में से अधिकांश मनुष्य, योद्धा और राजकुमार के कर्तव्यों के विषय में भगवान कृष्ण और पांडव राजकुमार अर्जुन के बीच संवाद है।
वह अहिंसा बनाम हिंसा, कर्म बनाम अकर्म की समस्या पर और अंत में धर्म के विषय में प्रकाश डालते हैं। यहां तक कि वे धर्म के विभिन्न प्रकारों के बीच भी अंतर करते हैं और चाहते हैं कि अर्जुन और मानव जाति को निष्काम कर्म यानी निःस्वार्थ रूप से परिवार और विश्व के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
उपर्युक्त दोनों महाकाव्य कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में दोहराए गए हैं। इन्हें रंगमंच के साथ ही टेलीविजन पर भी पिफल्माया गया है। ऐसा केवल इसलिए नहीं है क्योंकि इन दोनों कहानियों में सार्वभौमिक अपील है, बल्कि इसलिए क्योंकि ये मानव अस्तित्व की और मानवीय कर्मों की सकारात्मकता की आवश्यकता का सही मार्ग दिखाती हैं।
पुराण
जैसा कि ‘पुराण’ शब्द से पता चलता है, ये ग्रंथ उसके विषय में बात करते हैं ‘जो पुराने को नया बनाता है।’ ये प्राचीन भारतीय पौराणिक ग्रंथ हैं। इनमें ब्रह्मांड के निर्माण के विषय में कथात्माक कहानियां हैं और ब्रह्मांड के कल्पित विनाश तक इसके इतिहास का वर्णन करते हैं। इनमें राजाओं, नायकों, संतों, यक्ष-यक्षिणियों की कहानियां हैं, लेकिन यह दिव्य हिंदू त्रिमूर्ति या त्रयीतीन भगवानोंः ब्रह्मा, विष्णु और महेश पर केंद्रित है।
18 प्रमुख पुराण ;महापुराणद्ध हैं और प्रत्येक पुराण किसी विशेष देवता को प्रमुखता देता है और उनसे संबंधित दार्शनिक और धार्मिक अवधारणाओं की व्याख्या करता है। कुछ अधिक प्रमुख और प्रसिद्ध पुराण हैंः भागवत, ब्रह्मा, वायु, अग्नि, गरुड़, पद्म, विष्णु और मत्स्य। इनमें वैदिकोत्तर भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन के विषय में उपाख्यान हैं और इतिहासकारों को भूगोल, इतिहास और वंशवादी वंशावलियों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।
इन पुराणों को कहानियों के रूप में लिखा गया है जिसमें देवताओं के विषय में मिथकों, किंवदंतियों और उपदेशों का संयोजन है और कहानी लेखन के इस सरल रूप ने इसे सदैव जटिल वेदों को समझ न पाने वाले आम लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय बना दिया।
इसलिए, पुराणों का विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद और वितरण किया गया है। पुराण अपने संदेश का प्रसार करने के लिए दृष्टान्तों और दंतकथाओं का उपयोग करते हैंः
दृष्टान्त लघु कथाएँ जो गद्य या पद्य में हैं, आध्यात्मिक, नैतिक या धार्मिक शिक्षा का वर्णन करती हैं। ये सामान्यतः मानव चरित्र का चित्रांकन करते हैं।
दंतकथाएं लघु कथाएँ जो गद्य या पद्य में हैं, सारगर्भित कहावत या चतुराई भरी कहानी के माध्यम से ‘शिक्षा’ का
वर्णन करती हैं। ये पशुओं, निर्जीव वस्तुओं, पौराणिक प्राणियों, पौधों का चित्रांकन करते हैं जिन्हें मानव सदृश गुण दिए गए हैं।
हम सभी ने कभी न कभी विष्णु शर्मा द्वारा लिखित पंचतंत्रा की कहानियों को सुना होगा। इस प्रबोधक कल्पित दंतकथा में जानवरों के माध्यम से विश्व के विषय में नैतिक शिक्षा और ज्ञान वाली कई कहानियां सम्मिलित हैं। इसी शैली की एक और प्रसिद्ध रचना नारायण पंडित लिखित हितोपदेश है। इसमें भी मनुष्य को ज्ञान प्रदान करने वाले कई अमानवीय और पशु तत्व हैं।
उप-पुराण
आम जनता में पुराण इतने लोकप्रिय थे कि इन्होंने उप-पुराण या लघु पुराण कहलाने वाली एक और उप-शैली को जन्म दिया। लगभग 19 लघु पुराण हैं और पांच प्रमुख विषयों पर आधारित हैं, जैसा कि गुप्त काल के संस्कृत कोशकार अमर सिंह द्वारा बताया गया हैः
सर्ग ब्रह्मांड की रचना
प्रतिसर्ग विनाश और पुनर्निर्माण का आवधिक चक्र
मनवंतर मनु के जीवनकाल की अवधि
वंश (चंद्र और सूर्य) देवताओं और ट्टषियों की सूर्य और चंद्र राजवंशों की वंशावलियां
वंशानुचरित राजाओं का राजवंशीय इतिहास।
शास्त्रीय संस्कृत साहित्य
अधिकांश संस्कृत साहित्य वैदिक और शास्त्रीय श्रेणियों में विभाजित है। दोनों महाकाव्यः महाभारत और रामायण भी शास्त्रीय श्रेणी के अंग हैं, लेकिन उनके धार्मिक महत्व के कारण अलग से उनकी चर्चा की गई है। हिंदू धर्म के निमित्त अपनी केंद्रीय भूमिका से निरपेक्ष, इन महाकाव्यों को संस्कृत काव्य (महाकाव्य), नाटक (शास्त्रीय नाटक) और चिकित्सा, शासन कला, व्याकरण, खगोल विज्ञान, गणित, आदि पर अन्य ग्रंथों का पूर्व कर्सर माना जा सकता है। इस संस्कृत साहित्य का अधिकांश भाग पाणिनी की अष्टाध्यायी में शानदार ढंग से समझाए गए व्याकरण के नियमों से बंधा हुआ है। यह संस्कृत भाषा को बाँधने वाले कठोर नियमों पर ग्रंथ है।
संस्कृत नाटक
नाटक काव्य और गद्य की सबसे लोकप्रिय शैलियों में से एक लोकप्रिय रोमांटिक कहानियां हैं जिनका एकमात्रा उद्देश्य जनता का मनोरंजन करना या लोकरंजन था। इन्हें सामान्यतः कहानियों के रूप में लिखा गया था फिर भी इनमें जीवन पर अद्वितीय दृष्टिकोण दिया गया था। इन्हे सामान्यतः विस्तृत नाटकों के रूप में लिखा गया था। प्रदर्शन, अभिनय, हाव-भाव, मंच निर्देश और अभिनय के संबंध में नियमों का भरत (प्रथम ईसा पूर्व-प्रथम ईस्वी) के नाट्यशास्त्र में वर्णन किया गया है। इस अवधि में लिखे गए प्रमुख नाटक हैंः
कालिदास मालविकाग्निमित्र (मालविका (रानी की दासी) और अग्निमित्र (पुण्यमित्रा शुंग का पुत्रा) की प्रेमकथाद्ध
विक्रमोवर्शीय (विक्रम और उर्वशी की प्रेमकथा)
अभिज्ञान शकुंतलम् (शकुंतला की पहचान)
शूद्रक मृच्छकटिकम् (मिट्टी की छोटी गाड़ी)
वेश्या के साथ युवा ब्राह्मण चारूदत्त का प्रेम प्रसंग।
विशाखादत्त मुद्राराक्षस (राजनीतिक नाटक है और भारत में सत्ता में राजा चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण का वर्णन करता है)
देवी चन्द्र गुप्तम्
भवभूति उत्तर रामचरितम् (राम का परवर्ती जीवन)। इसे 700 ईस्वी में लिखा गया था।
भास स्वप्नवासवदत्ता (स्वप्न में वासवदत्ता), पंचरत्त
हर्षवर्धन रत्नावली (श्रीलंका के राजा की पुत्राी राजकुमारी रत्नावली और राजा उदयन की प्रेम कहानी के (3 संस्कृत नाटकों की संबंध में। इसमें हम पहली बार होली उत्सव का उल्लेख पाते हैं।)
रचना की)
नागानन्द (गरुड़ देवता को साँपों की बलि देने से रोकने के लिए किस प्रकार राजकुमार जीमूतवाहन ने अपना शरीर त्याग दिया था, उसकी कहानी। इस नाटक में एक अनोखा चरित्र नंदी पद्य में भगवान बुद्ध का आह्वान है)
प्रियदर्शिका (उदयन और राजा दृढ़वर्मन की पुत्री प्रियदर्शिका का संयोग)
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