JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: इतिहास

साहित्य की परिभाषा क्या है लिखिए , भारतीय साहित्य किसे कहते हैं , अर्थ विशेषता प्रकार literature definition in hindi

literature definition in hindi साहित्य की परिभाषा क्या है लिखिए , भारतीय साहित्य किसे कहते हैं , अर्थ विशेषता प्रकार ?
भारतीय साहित्य
परिचय
‘साहित्य’ शब्द लैटिन लिटरेचर या ‘अक्षरों से गठित लेखन’ से लिया गया है । यह लेखन के ऐसे किसी भी रूप को दर्शाता है जिसमें कुछ साहित्यिक गुण होता है। इसे विस्तृत रूप से काल्पनिक और गैर-काल्पनिक में वर्गीकृत किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसका कविता और गद्य के बीच वर्गीकरण किया जाता है। इन व्यापक श्रेणियों के भीतर, उपन्यास, लघु कथाओं, नाटक, आदि के बीच अंतर दर्शाया जा सकता है। ग्रीको-रोमन काल के कुछ सबसे लोकप्रिय साहित्यिक महाकाव्य हैं जिन्हें मौखिक रूप से प्रेषित किया जाता था और आगे चलकर जटिल भाषाओं के विकास के साथ ये लिखित रूप से संकलित किए जाने लगे थे।
भाषा के वितरण और प्रचार-प्रसार ने अठारहवीं सदी में मुद्रण प्रौद्योगिकी के विकास के साथ आगे की ओर बड़ा कदम उठाया जिससे अधिक-से-अधिक लोग साहित्य पढ़ने और उसकी सराहना करने लगे। वर्तमान में, इलेक्ट्राॅनिक साहित्य ने केंद्रीय स्थान ग्रहण कर लिया है और अधिक-से-अधिक लोग इसके माध्यम से पढ़ने लगे हैं।

उपदेशात्मक और कथात्मक ग्रथों के बीच अंतर
अंतरबिंदु उपदेशात्मक कथात्मक
ग्रंथ का प्रकार इसे निर्देशक ग्रंथ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह पाठक के बुद्धि-विवेक, चिंतन और आचरण को प्रभावित करने का प्रयास करता है। यह ग्रंथ विषय के संबंध में सभी आवश्यक जानकारियां देता है ताकि कथन में जिस चीज की भी चर्चा हो वह पढ़ने वाले को समझाया जाए या समझ में आ जाए।
उद्देश्य लेखक का उद्देश्य विशेष प्रकार से
सोचने के लिए पढ़ने वाले को मनाना,
पफुसलाना और विवश करना होता है। लेखक का उद्देश्य विषय के संबंध में पढ़ने वाले की रुचि और जिज्ञासा को बढ़ाना और बनाए रखना होता है।
सामान्य प्रयोजन सामान्यतः इसका प्रयोग राजनीतिक या नैतिक समस्याओं के विषय में लिखने के लिए किया जाता है विशेष रूप से उपदेशों और धार्मिक ग्रंथों में। यह गद्य का सबसे सामान्य प्रकार है और मुख्य रूप से कहानी लेखन और उपन्यासों में प्रयोग किया जाता है।

भारत में, चार प्रमुख वाक समूहों का अनुसरण किया जाता है यानी आस्ट्रिक, द्रविड़, चीनी-तिब्बती और भारोपीय। निम्नलिखित परिचर्चा भारोपीय समूह की प्रमुख भाषा संस्कृत साहित्य पर केंद्रित है।

प्राचीन भारत में साहित्य
प्राचीन भारतीय साहित्य आम धारणा की अवज्ञा करता है कि यह वेदों और उपनिषदों सादृश पवित्रा ग्रंथों तक ही सीमित था। प्राकृत में साहित्य की भरमार है। यह धार्मिक लक्ष्यार्थ से असंलग्न यथार्थवाद और नैतिक मूल्यों से भरा है। प्राचीन काल की रचनाओं का सबसे लोकप्रिय समूह वेद हैं। ये धार्मिक अनुष्ठानों के साथ ही दैनिक स्थितियों में उपयोग किए जाने वाले पवित्रा ग्रंथ हैं।
लेकिन साथ ही इस खण्ड में इस अवधि के दौरान प्राचीन काल की दो प्रमुख भाषाओंः संस्कृत और प्राकृत में रचित महाकाव्यों और गीतात्मक रचनाओं का भी समावेश है।

वेद
‘वेद’ शब्द ज्ञान का प्रतीक है और ये ग्रंथ वास्तव में पृथ्वी पर और उससे परे अपने समस्त जीवन का संचालन करने हेतु मनुष्यों को ज्ञान उपलब्ध कराने के विषय में हैं। इन्हें काव्यात्मक शैली में लिखा गया है और इनकी भाषा प्रतीकों और मिथकों से भरी है। प्रारंभ में वेद ब्राह्मण परिवारों की पीढ़ियों द्वारा मौखिक रूप से प्रदान किए जाते थे लेकिन इतिहासकारों द्वारा अनुमान लगाया जाता है कि 1500 ईसा पूर्व-1000 ईसा पूर्व के आसपास इन्हें संकलित किया गया।
हिंदू परंपरा में, इन्हें पवित्र माना जाता है क्योंकि इनकी उत्पत्ति दैवीय हैं जिन्हें सदैव मनुष्यों का मार्गदर्शन करने के लिए देवताओं द्वारा विहित किया गया है। हमारे जीवन पर भी इनका बड़ा प्रभाव है क्योंकि ये ब्रह्मांड और उसके निवासियों को एक बड़े परिवार का हिस्सा मानते हैं तथा ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ का उपदेश देते हैं।
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद चार प्रमुख वेद हैं। इन्हें मुख्य रूप से ट्टषि कहलाने वाले उन वैदिक ऋषियों और कवियों द्वारा लिखा गया है जो ब्रह्मांडीय रहस्यों की कल्पना करते थे और उन्हें संस्कृत कविता के रूप में लिख देते थे। सभी वेदों में यज्ञ (बलि) को प्रमुखता दी गई है। ब्राह्मण, उपनिषद और आरण्यक प्रत्येक वेद के साथ जुड़े हुए हैं।

ऋग्वेद
अन्य चारों में ट्टग्वेद सबसे पुराना वेद है। इसमें 1028 अलग-अलग संस्कृत सूक्त हैं। इसे किसी भी भारोपीय भाषा में पहली व्यापक रचना कहा जाता है जो हमारे अवलोकन के लिए बची हुई है। इतिहासकारों का तर्क है कि इसे 1200-900 ईसा पूर्व के आसपास संकलित किया गया था। इस वेद का ध्यान सांसारिक समृद्धि और प्राकृतिक सुंदरता पर केंद्रित है। यह ग्रंथ अलग-अलग काल और लंबाई के 10 पुस्तकों में संगठित है जिन्हें मंडलों के रूप में जाना जाता है। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक मंडल में कई सूक्त या श्लोक सम्मिलित हैं। ये सामान्यतः यज्ञ के प्रयोजनों के लिए हैं।
अधिकांश श्लोक जीवन, मृत्यु, सृष्टि, बलिदान और दैवीय आनंद या सोम की आकांक्षा पर केंद्रित हैं। समस्त ऋग्वैदिक श्लोक, कई देवताओं विशेष रूप से उनके मुख्य देवता इंद्र को समर्पित हैं। ऋग्वेद में वर्णित अन्य प्रमुख देवता अग्नि (आग के देवता), वरुण (जल के देवता), रुद्र (पवन/तूपफान के देवता), आदित्य (सूर्य देव का एक रूप), वायु (वायु के देवता) तथा अश्विन है। नारी देवियों को भी समर्पित कई श्लोक हैं, जैसे. ऊषा (भोर की देवी), पृथ्वी (पृथ्वी की देवी) और वाक् (भाषा की देवी)।

अथर्ववेद
इस वेद को ब्रह्म वेद के रूप में भी जाना जाता है और इसके लिए क्रमशः अथर्व और अंगिरा नामक दो ऋषियों को श्रेय दिया जाता है। इन दो ट्टषियों के साथ इसके संबंध के कारण, पुराने समय में इसे अथर्वांगिरश भी कहा जाता था। जहां यह मुख्य रूप से मानव समाज की शांति और समृद्धि से संबंधित है और मनुष्य के दैनिक जीवन के सभी पहलुओं को अच्छादित करता है, वहीं यह विशेष रूप से कई रोगों के उपचार पर भी केंद्रित है। इस ग्रंथ को लगभग 99 रोगों के लिए उपचार परामर्श देने के लिए भी जाना जाता है।
पिप्पलद और शौनकीय नामक इस ग्रंथ के दो प्रमुख ग्रंथ (शाखाएं) भी हैं। अधिकांश ग्रंथ चिकित्सा और काले और सपफेद जादू ब्रह्मांड में होने वाले परिवर्तनों पर अटकलों से संबंधित हैं और यहां तक कि गृहस्थ जीवन की दैनिक समस्याओं के मुद्दों को भी स्पर्श करता है।

यजुर्वेद
‘यजु’ शब्द ‘यज्ञ’ का प्रतीक है और यह वेद वैदिक काल में प्रचलित विभिन्न प्रकार के यज्ञों के कर्मकाण्डों और मंत्रों पर केंद्रित है। यर्जुवेद के दो प्रमुख ग्रंथ (संहिताएं) हैंः शुक्ल (श्वेत/शुद्ध) और कृष्ण (काला/अंधेरा)। इन संहिताओं को वाजसनेई संहिता और तैत्तरीय संहिता भी कहा जाता है। यजुर्वेद मुख्य रूप से अनुष्ठानिक वेद है क्योंकि यह यज्ञीय अनुष्ठान करने वाले ट्टषियों/पुजारियों के लिए मार्गदर्शक पुस्तक की भांति कार्य करता है।

सामवेद
सामवेद का नामकरण ‘समन’ (राग) के नाम पर किया गया है और यह राग या गीतों पर केंद्रित है। संपूर्ण ग्रंथ में 1875 श्लोक हैं। इतिहासकारों का तर्क है कि 75 मूल हैं और शेष ट्टग्वेद की शाकल शाखा से लिए गए हैं।
इसमें श्लोक, पृथक् छंद और 16, 000 राग (संगीतात्मक स्वर) और रागनियाँ हैं। इस ग्रंथ की लयबद्ध प्रकृति के कारण इसे ‘गायन पुस्तक’ भी कहा जाता है। इससे हमें पता चलता है कि वैदिक काल में भारतीय संगीत का विकास कैसे हुआ था।

वेदों को पूर्ण रूप से समझने के लिए, वेदांगों या वेद की शाखाओं/वेद के अंगों को पढ़ना आवश्यक है। ये मूल वेद के लिए पूरक की भांति हैं और शिक्षा, निरुक्त (व्युत्पत्ति या शब्द की उत्पत्ति), छंद (संस्कृत व्याकरण में मीट्रिक्स), ज्योतिष, (खगोल विज्ञान) और व्याकरण जैसे विषयों पर केंद्रित हैं।
आगे चलकर, कई लेखकों ने इन विषयों को चुना और उन पर ग्रंथ लिखे, जिन्हें सूत्रा कहा जाता है। इन्हें ऐसे ग्रंथ या नियम निर्देशों के रूप में लिखा गया था जो मानव जाति के विचारों और व्यवहार का नियमन करने वाले सामान्यं नियमों को परिभाषित करते हैं। इस प्रकार के साहित्य का एक सबसे प्रभावशाली उदाहरण संस्कृत व्याकरण के नियमों को परिभाषित करने वाला पाणिनी का अष्टाध्यायी है।

ब्राह्मण
ब्राह्मण हिंदू श्रुति (प्रकट ज्ञान) साहित्य का भाग हैं। प्रत्येक वेद के साथ एक ब्राह्मण संलग्न है जो अनिवार्य रूपेण विशेष वेद पर टिप्पणियों वाले ग्रंथों का संग्रह हैं। ब्राह्मण सामान्यतः किंवदंतियों, तथ्यों, दर्शन और वैदिक अनुष्ठानों की विस्तृत व्याख्या का मिश्रण हैं।
इनमें उचित प्रकार से कर्मकाण्डों का संचालन करने और यज्ञ का विज्ञान उच्चारित करने के विषय में निर्देशों का भी समावेश है। इसके अतिरिक्त इनमें अनुष्ठानों में उपयोग किए जाने वाले पवित्रा शब्दों का प्रतीकात्मक महत्व भी समझाया गया है।
हालांकि इतिहासकार ब्राह्मणों की तिथि निर्धारण को लेकर असहमत हैं, लेकिन सामान्यंतः 900-700 ईसा पूर्व के बीच इनकी रचना और संकलन का अनुमान लगाया जाता है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, प्रत्येक वेद के साथ उसका एक ब्राह्मण है।
ऋग्वेद ऐतरेय ब्राह्मण कौषितकी ब्राह्मण
साम वेद ताण्ड्य महाब्राह्मण सदविंश ब्राह्मण
यजुर्वेद तैत्तरीय ब्राह्मण शतपथ ब्राह्मण
अथर्ववेद गोपथ ब्राह्मण जैमिनीय ब्राह्मण पंचविश ब्राह्मण

आरण्यक
आरण्यक भी वेदों से जुड़े ग्रंथ हैं और विभिन्न दृष्टिकोणों से वेदों में सम्मिलित कर्मकाण्डों और यज्ञों का वर्णन करते है। इन्हें जन्म और मृत्यु के चक्र के साथ-साथ आत्मा की जटिलता के विषय में कर्मकांडीय सूचनाओं का संकलन कहा जाता है। यह तर्क दिया जाता है कि वनों की सीमा के भीतर रहना पसंद करने वाले मुनि कहलाने वाले पवित्र और विद्वान पुरुषों ने इन्हें सिक्खाया था।

उपनिषद
मजेदार बात यह है कि उपनिषद शब्द या उ (पर), प (पैर), नि (नीचे) और स(ष)द (बैठना), यानी शिक्षक के समीप बैठना। इस ग्रंथ का भली-भांति वर्णन करता है। हमारे पास 200 से भी अधिक ज्ञात उपनिषद हैं और शिक्षक सामान्यतः वन में अपने छात्रों को, जब वे उसके सामने बैठे होते थे, मौखिक रूप से इन्हें प्रेषित करते थे। यह परंपरा गुरु-शिष्य परम्परा का अंग थी।
उपनिषद संस्कृत में लिखित ग्रंथ हैं और मुख्य रूप से मठवासी और रहस्यमय अर्थों में वेदों का विवरण देते हैं। चूंकि सामान्यतः ये वेदों के अंतिम भाग हैं, इसलिए इन्हें वेदांत या ‘वेद के अंत’ के रूप में भी जाना जाता है। उपनिषदों को मानव जीवन के विषय में ‘सत्य’ और मानव मुक्ति या मोक्ष की ओर मार्ग दिखालाने वाला कहा जाता है। इनमें मानव जाति के सामने आने वाली अमूर्त और दार्शनिक समस्याओं, विशेष रूप से इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति, मानव जाति की कल्पित उत्पत्ति, जीवन और मृत्यु के चक्र और मनुष्य के भौतिक व आध्यात्मिक अन्वेषण के विषय में बात करना जारी रखा गया है।
उपर्युक्त 200 उपनिषदों में से 108 उपनिषदों के समूह को मुक्तिका सिद्धांत कहा जाता है। इसे महत्वपूर्ण सिद्धांत माना जाता है क्योंकि यह 108 संख्या हिंदू माला में मोतियों की संख्या के बराबर है।
उपनिषदों में प्रतिपादित शिक्षाएं हिंदू धर्म के संस्थापक कर्मकाण्डों का अंग रही हैं।
उपनिषदों और आरण्यक के बीच मात्रा सूक्ष्म भेद हैं जिसे इस प्रकार वर्गीकृत किया जाता हैः
उपनिषद ज्ञान-कांड ज्ञान/आध्यात्मिकता खण्ड
आरण्यक कर्म-कांड कर्मकांडीय कर्म/यज्ञ खण्ड

Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

17 hours ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

4 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

5 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now