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राजस्थान में हरिजन सेवा संघ की स्थापना किसने की और कब हुई | ऑल इंडिया हरिजन सेवक संघ की स्थापना 1932 में किन के द्वारा की गई थी
ऑल इंडिया हरिजन सेवक संघ की स्थापना 1932 में किन के द्वारा की गई थी , राजस्थान में हरिजन सेवा संघ की स्थापना किसने की और कब हुई | अखिल भारतीय अस्पृश्यता निवारण परिषद 1920 ?
प्रश्न : राजस्थान हरिजन सेवा संघ , अजमेर।
उत्तर : 30 सितम्बर 1932 को पण्डित मदनमोहन मालवीय की अध्यक्षता में हिन्दुओं की एक सार्वजनिक बैठक बम्बई में बुलाई गयी। इस बैठक में ‘अखिल भारतीय अस्पृश्यता निवारक संघ’ का गठन किया गया जिसको पूना पैक्ट को क्रियान्वित करने का दायित्व सौंपा गया। घनश्याम दास जी को इस संघ का अध्यक्ष तथा आमृतलाल विठलदास ठक्कर को मंत्री नियुक्त किया गया था। आगे चलकर यह संघ ‘भारतीय हरिजन सेवक संघ’ कहलाया।
प्रश्न : राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के क्रमिक चरणों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
या
आजादी के पूर्व राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। दोनों में ही स्वतंत्रता के लिए संघर्ष एक साथ शुरू हुआ तथा अनेक उतार चढ़ाव के बाद स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम चरण में दोनों घुलमिलकर एक हो गए। राजस्थान में संग्राम का घटनाक्रम इस प्रकार रहा।
1. प्रारंभिक जनाक्रोश और चेतना का विकास : राजस्थान वासियों ने अपनी स्वतंत्रता के लिए पहला संग्राम 1857 के विप्लव के दौरान किया। ब्रिटिश सत्ता के अधिपत्य के साथ ही राजस्थान में शोषण , उत्पीडन और अत्याचारों का कुचक्र चल पड़ा। यही कारण रहा था कि 1857 के विप्लव की शुरुआत होते ही राजस्थान में भी सैनिक छावनियों (नसीराबाद , नीमच आदि) सहित 19 देशी रियासतों और अजमेर मेरवाड़ा में विद्रोह फैला परन्तु अन्य कारणों के अलावा यहाँ के राजाओं के ब्रिटिश समर्थक होने से स्वतंत्रता का यह प्रथम प्रयास सफल नहीं हो सका परन्तु इसने भावी चेतना की पृष्ठभूमि तैयार कर आगे के जनआन्दोलनों को प्रेरित किया।
2. नव चेतना का उदय : प्रारंभिक जनाक्रोश के लगभग दो दशक बाद स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान धर्म और समाज सुधारकों के प्रयासों ने नवचेतना का संचार किया। पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव , समाचार पत्रों और साहित्य की भूमिका , यातायात और संचार के साधनों का विकास ने जनजागृति पैदा की। जनता की निर्बल आर्थिक दशा , शासकों और सामन्तों की अंग्रेज विरोधी भावनाओं और विभिन्न राजनितिक संगठनों और क्रान्तिकारियों के योगदान ने अन्तश्चेतना की चिंगारियों को जागृत कर राजनीति में नव चेतना और राष्ट्रीय भावना का संचार किया फलस्वरूप राजस्थान की जनता स्वतंत्रता संग्राम के लिए पुनः मैदान में आ गयी।
3. कृषक और आदिवासी आन्दोलन : राजस्थान के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में राजनितिक चेतना जागृत करने की दिशा में बिजौलिया जैसे कृषक और भीलादी आदिवासी आंदोलनों ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। आर्थिक शोषण और अत्याचारों और उत्पीड़न के विरुद्ध आन्दोलनों और मोतीलाल तेजावत जैसे अनेक आदिवासी मसीहाओं द्वारा ऐसी जागृति आई जिसने लोगों को अपने राजनितिक अधिकारों के प्रति सजग किया। इन्होने लोक जागरण की अलख जगाने में असाधारण भूमिका निभाई।
4. क्रान्तिकारी आंदोलन : 1905 ईस्वीं में देश को सशस्त्र क्रान्ति द्वारा स्वतंत्र कराने की रासबिहारी बोस की योजना को राजस्थान के चोटी के क्रांतिकारी नेताओं जैसे अर्जुनलाल सेठी , विजयसिंह पथिक , केसरीसिंह बारहठ ने अंजाम दिया। हालाँकि यह योजना सफल न हो सकी परन्तु इनके कार्यो ने राजस्थानी जनमानस के सोते हुए पौरुष को जगा दिया तथा वे स्वतंत्रता संग्राम के लिए उठ खड़े हुए।
5. विभिन्न संगठनों के प्रयास : राजपूताना मध्य भारत सभा , राजस्थान सेवा संघ , अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद जैसे संगठनों के निर्माण से लोगों को संगठित होने और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा मिली।
6. प्रजामण्डलों की स्थापना : कांग्रेस के हरिपुरा (1938 ईस्वीं) निर्णय के बाद राजस्थान में सभी राज्यों में प्रजामण्डल स्थापित हुए। उन्होंने नागरिक अधिकारों की बहाली और उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए स्थानीय नेतृत्व के अधीन अपने सिमित साधनों से निरंकुश राजशाही से लोहा लिया।
7. भारत छोड़ो आन्दोलन और स्वतंत्रता प्राप्ति : भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान प्रजामण्डल आन्दोलन और राष्ट्रीय आन्दोलन घुल मिल गए। अब यह सम्पूर्ण भारत के स्वतंत्रता संग्राम में परिणित हो गया। प्रजामंडल आंदोलन इस निरंकुश राजशाही तथा ब्रिटिश सत्ता का आखिर तक मुकाबला करते रहे। आन्दोलन न केवल उत्तरदायी शासन के लक्ष्य को ही प्राप्त किया वरन आन्दोलन से जन्में भारी जनमत के दबाव से भयभीय होकर अधिकांश राजाओं ने भारतीय संघ में मिलना स्वीकार किया। राजस्थान का स्वतंत्रता संग्राम (प्रजामण्डल आन्दोलन) देश को राजनितिक एकता के सूत्र में बाँधने की दिशा में महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। इस प्रकार राजस्थान के प्रजामण्डल आन्दोलन ने राजाओं को समाप्त किये बिना राज\तंत्र को समाप्त कर दिया।
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