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Categories: Biology

रक्त के थक्का बनने की क्रियाविधि क्या है , Mechanism of blood clotting in hindi

 (2) रक्त के थक्का बनने की क्रियाविधि (Machanism of blood clotting) रकत का थक्का बनना एक जटिल जैव रासायनिक (bio-chemical) प्रक्रिया है। सामान्य परिस्थितियों में रक्त वाहिनियों में रक्त के बहने के लिए प्लाज्मा में हिपैरि (heparin) नामक प्रतिस्कन्धी (anticoagulant) पदार्थ उपस्थित रहता है। थक्का बनने की क्रिया में रुधिर में विलयशील रुधिर प्रोटीन फाइब्रिनोजन (fibrinogen) अविलयशील रेशेदार प्रोटीन (fibrin) परिवर्तित होती हैं रुधिर के थक्का जमने की क्रिया को निम्न 3 पद (steps) में समझाया जाता सकता है।

पद 1. थ्रोम्बोप्लास्टिन का निमुक्त होना (Liberation of thromboplastin )

यह रक्त स्कन्धन की क्रिया में प्रथम पद होता है। शरीर की रक्त वाहिनियों में रुधिर के परिवहन के समय थ्रोम्बोप्लास्टिन अनुपस्थित रहता है। चोटग्रस्त भाग के क्षतिग्रस्त उत्तकों में, थ्रोम्बोप्लास्टिन (thromboplastin) नामक एक लिपोप्रोटीन मुक्त किया जाता है। इसके अतिरिक्त क्षतिग्रस्त रुधिर कोशिकाओ से निकली हुई रुधिर प्लेट्लेट्स) कोशिकाएँ भी विघटित (distintegrate) होकर एक फॉस्फोलिपिड, प्लेट्लेट तत्त्व 3 (platelet factor 3) को मुक्त करती हैं। ये पदार्थ प्लाज्मा में उपस्थित कैल्शियम आयनों (Ca27) तथा कुछ प्लाज्मा प्रोटीन्स से संयोग कर प्रोथोम्बिनेज (prothrombinase) नामक एंजाइम बनाते हैं।

पद 2. प्रोथ्रोम्बिन का थ्रोम्बिन में परिवर्तन (Conversion of prothrombin into thrombin)

प्रोथ्रोम्बिन रुधिर प्लाज्मा में उपस्थित एक निष्क्रिय प्रोटीन होती हैं। यह प्रथम पद से प्राप्त एंजाइम प्रोथ्रोम्बिनेज एवं कैल्शियम आयनों (Cat) की उपस्थिति में सक्रिय थ्रोम्बिन में बदल जाती है।

पद 3. फाइब्रिनोजन का फाइब्रिन में रूपान्तरण (Conversion of fibrinogen into firbin) फाइब्रिनोजन रुधिर में उपस्थित एक विलयशील प्रोटीन होता है । रुधिर स्केन्धन के अन्तिम चरण में थ्रोम्बिन (पद 2 से प्राप्त ) एक एंजाइम की भाँति कार्य करके फाइब्रिनोजन के मोनोमर्स के बहुलीकरण (polymerization) से फाइब्रिन (fibrin) नामक अघुलनशील पॉलीमर अणुओं में बदल देता है। आधुनिक मत के अनुसार प्रारम्भ में फाइब्रिन के अणु घुलनशील होते हैं किन्तु Ca2) तथा फ्राइबिन स्थरीकृत कारक (कारक XIII) की उपस्थिति में यह अघुलनशील महीन सूत्र बनाते हैं जो रुधिर प्लाज्मा से अलग होने पर घन जालिका (dense network) के रूप में घाव पर जमा होने हो जाते हैं। इसी जालिका में रक्त कणिकाएँ अटक जाती है। इस प्रकार चोट पर 2 से 8 मिनिट में रक्त का थक्का जम जाता है। रक्त के घाव से बहने का समय (bleedin tiem) 1 से 3 मिनट का होता है।.

उपरोक्त वर्णित रक्त स्कन्धन की क्रियाविधि को चित्र द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है-

रक्त स्कन्धन (blood coagulation) की क्रिया विधि से निम्न तीन प्रमुख सिद्धान्त प्रचलि है।

(1). बेस्ट और टेलर का सिद्धान्त ( Best and Talor’s theory)

इस सिद्धान्त के अनुसार रक्त स्कन्धन में चार आवश्यक पदार्थ उपस्थित रहते हैं। ये पदार्थ प्रोम्बिन, कैल्शियम, आयन्स, थ्रोम्बोप्लास्टिन एवं फाइब्रिनोजन होते हैं। इस मत के अनुसार क्षतिग्रस्त उत्तकों से थ्रोम्बोप्लास्टिन (थ्रोम्ब्रोकाइनेज ) नामक पदार्थ निकलता है जो Ca2+ की उपस्थिति में प्लाज्मा में उपस्थित निष्क्रिय प्रोथ्रोम्बिन को सक्रिय थ्रोम्बन में बदल देता है। इसके पश्चात् थ्रोम्बिन रक्त प्लाज्मा में उपस्थित घुलनशील फ्राइब्रिनोजनको अघुलनशील फाइब्रिन में बदल देता है। फाइब्रिन एक प्रकार की जालिका बनाता है जिसमें रक्त कणिकाएँ फँस जाती है।

(2) होवेल का सिद्धान्त (Howell’s theory)

इस सिद्धान्त के अनुसार स्तनियों में रक्त स्कन्धन क्रिया निम्न दो चरणों में पूर्ण होती है।

(a) प्रोथ्रोम्बन से थ्रोम्बिन का निर्माण |

(b) फाइब्रिनोजन पर थ्रोम्बिन की क्रिया

इस मत के अनुसार रुधिर वाहिनियों के क्षमिग्रस्त होने पर उत्तकीय कोशिकाएँ सिफेलिन (cephalin) प्रोटीन को बाहर निकालती है। यह प्रोटीन रुधिर में उपस्थित एण्टीथ्रोम्बिन (antithrombin) को निष्क्रिय कर देती है। इसके निष्क्रिय होने पर Ca2+ प्रोथ्रोम्बिन को थ्रोम्बिन में परिवर्तित कर देते है। । अन्त में थ्रोम्बिन, रुधिर प्लाज्मा में उपस्थित घुलनशील फाइब्रिनोजन को अघुलनशील फाइब्रिन में दल देती है। (चित्र 3.8)

(3) फुल्ड एवं स्पाइरो का सिद्धान्त (Flud and Spiro’ theory)

इस सिद्धान्त के अनुसार चोट लगने पर रक्त प्लेट्लेट्स से थ्रोम्बोकाइनेज (thrombokinagey नामक एंजाइम बाहर निकलता है। Cat की उपस्थिति में थ्रोम्ब्रोकाइनेज प्लाज्मा में उपस्थित प्रोथ्रोम्बिन पर क्रिया करके उसे थ्रोम्बिन में बदल देता है। अन्म में थ्रोम्बिन फाइब्रिनोजन पर कि कर उसे अघुलनशील फाइब्रिन में बदल देता है। फाइब्रिन प्रोटीन्स तंतुओं द्वारा उचित जालिका कणिकाएँ फँस थक्का बनाती है । (चित्र 3.9)

 

स्कन्धन का महत्व (Significance of coagulation)

प्रत्येक प्राणी के जीवन काल में रुधिर का स्कन्धन या थक्का (coagulation of blood or _clotting) बनना एक महत्त्वपूर्ण घटना है। यह क्षतिग्रस्त स्थान से रुधिर बाहर निकलना प्रारम्भ हो है। यदि शरीर में आवश्यकता से अधिक मात्रा में रुधिर निकलता है तो व्यक्ति की मृत्यु सकती है। रक्त के थक्के बनने की क्रिया के कारण छोटे-छोटे जख्मों से अत्यधिक रक्त स्त्राव नहीं होता है। इसके महत्त्व को अच्छी प्रकार से उन मनुष्यों में समझा जा सकता है जिनका रुधिर थक्का बनाने में असमर्थ होता है या फिर यह क्रिया इनने धीरे-धीरे होती है कि थोड़ी चोट लगने पर भी घातक रूप से अत्यधिक रक्त बाहर निकलता है। इस रोग को हीमोफिलीया (haemophillia) कहते हैं। यह एक आनुवंशिक रोग है जो X-गुणसूत्र (X-chromosome ) पर स्थित एक अप्रभावी (recessive) जीन द्वारा उत्पन होता है। यह रोग स्त्रियों (females ) की अपेक्षा पुरुषों (males) में अधिक पाया जाता है। इस रोग से ग्रसित रोगियों में स्कन्धन की दर अत्यन्त धीमी होती है। इसके फलस्वरूप मामूली सी चोट या खरोंच लगने पर अत्यधिक रक्त शरीर से बाहर निकल जाता है। रक्त स्त्राव होने पर ऐसे मनुष्यों के बचने की संभावना बहुत कम होती है। ऐसे रोगियों में, रक्त स्त्राव (haemorrhage) को रोकने के लिए एण्टीहीमोफिलिक ग्लोब्यूलिन (AHG) अन्त:क्षेपित (inject) किया जाता है।

हृदयं (Heart)

स्तनियों में हृदय गहरे गुलाबी रंग का त्रिभुजाकार (triangular). या शंक्वाकार (conical), खोखला वं मांसल (muscular) अंग होता है। यह भ्रूण के मीसोडर्म (mesoderm) स्तर से विकसित होता है। हृदय शरीर के वक्ष भाग के मध्यावकाश (mediasterinal space) में फेफड़ों के बीच स्थित होता हैं कशेरुकियों में हृदय का परिमाण भिन्न-भिन्न होता है। पक्षियों में हृदय अन्यंत जन्तुओं की तुलना के अधिक बड़ा होता है। मछलियों में अपेक्षाकृत छोटा हृदय होता है जो सम्पूर्ण शरीर का लगभग 0.2% भाग बनता है। एम्फीबियन्स में हृदय का परिमण लगभग 0.46% होता है जबकि रेप्टाइल्स में यह शरीर का 0.15% भाग बनाता है। वयस्क मनुष्य में हृदय का भार लगभग 300 ग्राम होता है।

हृदय के ऊपर हृदयावरण अर्थात् पेरीकार्डियम (pericardium) नामक पारदर्शी आवरण होता वास्तव में सीलोमिक झिल्ली (coelomic membrance) का ही भाग होता है। हृदयावरण का हृदय से सटा भीतरी भाग एपीकार्डियम (epicardium) तथा बाही भाग परीकार्डियम (pericardium) कहलाता है। इन दोनों स्तरों के मध्य एक लसदार द्रव्य पेरीकार्डियम द्रव्य (pericardial fluid) इस द्रव्य के कार्य निम्नलिखित होते हैं।

(i) हृदय को नम (moist) रखता है।

(ii) हृदय को बाहरी चोटों (external injuiry) या चोटों से बचाता है।

(iii) हृदय स्पंदन के समय उत्पन्न होने वाले घर्षण (friction) के दुष्प्रभाव से बचाता है।

(iv) हृदयावरण से सिकुड़ने की स्थिति में स्पंदन में अवरोध उत्पन्न नहीं होने देता है।

(i) हृदय को बाह्य संरचना (External structure of heart)

स्तनियों में हृदय चार कक्षीय (foru chambered ) होता है। इसके अलगे. चौड़े भाग में आलिन्द (auricles) तथा पिछले संकरे भाग में दो निलय आकार में भिन्न होते हैं। दाहिना निलय (right ventricle) बाँये निलय (left ventricle) से अपेक्षाकृत छोटा होता है क्योंकि निलयों की विभाजन पट्टिका (dividing septum) तिरछी होती है। यह पट्टिका हृदय के अधर तल (ventura) surface) पर एक गहरी साँच (groove) के रूप में दिखलाई पड़ती है इसे इन्टर वेन्ट्रिकुलर सल्कस (inter ventricular sulcus) कहते हैं।

आलिंदों की दीवार पतली एवं कम मांसल (less muscular) होती है। क्योंकि इन्हें रुधिर को पम्प करने की आवश्यकता नहीं होती है। निलयों की दीवार मोटी एवं अधिक मांसल (highly muscular) होती है। इनमें भी बाँये निलय की भित्ति बहुत अधिक पेशीय होती है क्योंकि इसे रुधिर को सम्पूर्ण शरीर में पम्प करना होता है जबक दाँया आलिन्द रुधिर को केवल फेफड़ों तक ही पम्प करता है।

स्तनियों के दानिने आलिंद में दो अग्र महाशिराऐं ( anterior vena cave or pre cavals) एवं एक पश्च महाशिरा (posterior vena cave or post caval) खुलती है। मनुष्य एवं बिल्ली में एक महाशिरा पाई जाती है। ये महाशिराएं शरीर के विभिन्न भागों से अशुद्ध रुधिर (impure or deoxygenenated blood) एकत्रित करके दाँये आलिंद में लेकर आती है। इसी प्रकार बाँयें आलिंद में पल्मोनरी शिराओं (pulmonary viens) द्वारा फुफ्फुस (lungs) से लाया गया शुद्ध रुधिर (pure blood) एकत्रित किया गया जाता है। दाहिने निलय से फुफ्फुस चाप (pulmonary aorta) निकलता है जो अशुद्ध रुधिर को फुफ्फुस में शुद्धिकरण ( purification) के लिये लेकर आते हैं। इसी प्रकार बाँयें निलय में एक कैरोटिको-सिस्टेमिक चाप (cartico-systemic aorta) निकलता है जो शुद्धि रुधिर को सम्पूर्ण शरीर में पम्प करता है।

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