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मेंढक की पेशियां , कंकाल और तंत्रिका तंत्र क्या है ,  मेंढ़क की शरीर-गुहा की इंद्रियां frog body parts and functions

frog body parts and functions in hindi  मेंढक की पेशियां , कंकाल और तंत्रिका तंत्र क्या है ,  मेंढ़क की शरीर-गुहा की इंद्रियां ? 

मेंढ़क को पेशियां , कंकाल और तंत्रिका तंत्र
पेशियां मेंढ़क अपनी टांगों के सहारे जमीन पर और पानी में चलता है। इस कारण इन अंगों में गति उत्पन्न करनेवाली पेशियां मेंढ़क में सुपरिवर्दि्धत होती हैं। पिछली टांगों की पेशियां विशेष सुपरिवर्दि्धत होती हैं। कुछ देशों में (फ्रांस , अमेरिका इत्यादि ) मेंढ़क का मांस भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
कंकाल मेंढ़क और मछली के कंकाल में कुछ समानताएं हैं और कुछ भिन्नताएं भी (आकृति ६१)।
मछली की तरह मेंढ़क में भी शरीर का मुख्य आधार कशेरुक दंड ही है यद्यपि वह छोटा होता है और उसके अंत में लंबा पुच्छ-दंड होता है। यह पुच्छदंड पूंछ के अपरिवर्दि्धत कशेरुकों के समेकन से बनता है। मछली की ही तरह सभी कशेरुकों की मेहराबों से एक नाली बनती है जिसमें रीढ़-रज्जु होती है। मेंढ़क के पसलियां नहीं होतीं। भ्रूण में शुरू शुरू में पसलियां दिखाई देती हैं पर बाद में उनका कशेरुकों के साथ समेकन हो जाता है। खोपड़ी में कपाल और मुंह को घेरे हुए जबड़े होते हैं।
जमीन पर की गति के लिए अनुकूलन के कारण मेंढ़क के अग्रांगों और पश्चांगों का कंकाल अधिक जटिल होता है। पिछली टांग के कंकाल में ऊरु-अस्थि , पिंडली की हड्डी और बहुत-सी पादास्थियां होती हैं। अग्रपाद में बाहु, अग्रबाहु और हाथ शामिल हैं। अंगों को अंस-मेखला और श्रोणि-मेखला से आधार मिलता है।
तंत्रिका-तंत्र मेंढ़क के तंत्रिका तंत्र में मस्तिष्क , रीढ़-रज्जु और इनसे निकलनेवाली शाखा रूप तंत्रिकाएं शामिल हैं। मस्तिष्क के हिस्से मछली के से ही होते हैं -अग्रमस्तिष्क , अंन्तात्र, मध्य मस्तिष्क , अनुमस्तिष्क और मेडयूला आवलंगेटा (प्राकृति ६२ )।
मस्तिष्क के अन्य भागों की अपेक्षा मेंढ़क का अग्रमस्तिष्क मछली की तुलना में कहीं अधिक परिवर्दि्धत होता है। दूसरी ओर अनुमस्तिष्क बहुत ही छोटा होता है। यह मेड्यूला पावलंगेटा के ऊपर एक मेंड की शकल में होता है। प्राणियों की सिट गतियों को नियंत्रित करनेवाले अनुमस्तिप्क के कम परिवर्द्धन के कारण ही मेंड़क की गति सीमित प्रकारों की होती है। वह छलांग लगाता हुया कि आगे की ओर चल सकता है, मछली की तरह इधर-उधर मुड़ नहीं सकता।
मस्तिष्क और रीढ़-रज्जु का महत्त्व दिखाने की दृष्टि से मेंढ़क पर प्रयोग करना आमान है। यदि हम मेंडक का मस्तिष्क हटा दें या नष्ट कर दें तो भी वह फौरन मना नहीं पर मस्तिष्क से संबंधित प्रतिवर्ती क्रियाओं के अभाव में उसका बरताव एकदम बदल जायेगा। मेंढ़क को पीठ के बल रख दिया जाये तो वह उलटकर पेट के बल नहीं हो सकता। यदि हम उसे मत्स्यालय में रख दें तो वह तैरता नहीं बल्कि तल में जाकर गतिहीन पड़ा रहता है। स्पष्ट है कि मस्तिष्क की गतिविधि का जटिल गति-क्षमता से संबंध है। ऐसे मेंढ़क में संवेदन-क्षमता नष्ट नहीं होती। यदि हम उसकी टांग में चिकोटी काटें तो वह उसे झटकाता है। पर यदि हम उसकी रीढ़-रज्जु को नष्ट कर दें तो वह उद्दीपनों का उत्तर नहीं देता – हम उसकी टांग में चिकोटी काट सकते हैं , चाहे उसपर तेजाब डाल सकते हैं – पर वह न हिलता है न डुलता है। स्पष्टतया इन उद्दीपनों का उत्तर देनेवाली प्रतिवर्ती क्रियाएं रीढ़-रज्जु पर निर्भर हैं।
वर्णित प्रयोगों से स्पष्ट होता है कि अत्यंत जटिल प्रतिवर्ती क्रियाएं मस्तिष्क से संबद्ध हैं।
मछली की तरह मेंढ़क का बरताव भी आनुवंशिक अनियमित प्रतिवर्ती क्रियाओं का बना रहता है। पर उसमें नियमित या अर्जित प्रतिवर्ती क्रियाएं भी परिवर्दि्धत हो सकती हैं।
प्रश्न – १. मेंढ़क और मछली के कंकालों में क्या अंतर है ? २. मेंढक के अग्रांगों और पश्चांगों के कंकाल में कौनसी हड्डियां होती हैं ? ३. मेंढ़क और मछली के मस्तिष्क की संरचना में कौनसी समानताएं हैं और कौनसी भिन्नताएं? ४. मेंढ़क के मस्तिष्क का महत्त्व स्पष्ट करने के लिए कौनसे प्रयोग किये जा सकते हैं ?
 मेंढ़क की शरीर-गुहा की इंद्रियां
पचनेंद्रियां मेंढक द्वारा पकड़ा गया शिकार मुख-गुहा से गले और ग्रसिका के द्वारा जठर में पहुंचता है। जठर में से भोजन आंत में जाता है जो पाचक तंत्र का अंतिम भाग है (आकृति ६३)।
जठर की दीवालों में से पाचक रन रसता है। यहीं से पाचन-क्रिया प्रारंभ होती है। यह प्रांत के शुरुग्राती हिस्से में जारी रहती है जहां यकृत् मे पित्त और अग्न्याशय से रस टपकता है। प्रांत का शुरुवाती और वीच का हिस्सा पतली प्रांत कहलाता है और वह रक्त-वाहिनियों के जाल मे आवृत रहता है। तरल पचे हुए पदार्थ रक्त-वाहिनियों की दीवालों से रक्त में अवशोपित होते हैं। भोजन के अनपचे अवशेप मोटी और छोटी प्रांत में इकट्ठे होते हैं और वहां से गुदा के जरिये उनका उत्सर्जन होता है।
गुरदे और जननेंद्रियों की वाहिकाएं भी प्रांत के पिछले सिरे में खुलती हैं। इसी कारण उसे अवस्कर कहते हैं।
श्वसनेंद्रियां मेंढक फुफ्फुसों और अपनी त्वचा की सहायता से सांस लेता है। फुफ्फुस शरीर-गुहा के आगेवाले हिस्से में होते हैं (प्राकृति ६३)।
यदि हम जिंदा मेंढ़क को उस समय देखें जब उसका मुंह बंद हो तो हमें उसकी मुख-गुहा का निचला हिस्सा उठता और गिरता दिखाई देगा। जब वह गिरता है, मुख-गुहा फैलती है और खुले नासा-द्वारों से आनेवाली हवा से भर जाती है। जब उक्त हिस्सा उठता है तो नासा-द्वार वैल्वों द्वारा अंदर की ओर से बंद हो जाते हैं और हवा फुफ्फुसों में ठेली जाती है।
विच्छेदित मेंढ़क के स्वरयंत्र में तिनका या शीशे की छोटी-सी नलिका डालकर उसके जरिये उसके फुफ्फूसों में हवा भर दी जा सकती है। फुफ्फुस दो थैलियों के रूप में होते हैं जिनकी पतली दीवाले बड़ी कोशिकाओं की बनी रहती हैं और जिनमें रक्त वाहिनियों का सघन जाल फैला हुआ होता है।
फुफ्फुसों की छोटी-सी अंदरूनी सतह रक्त को काफी ऑक्सीजन नहीं पहुंचा सकती। मेंढक की एक और श्वसनेंद्रिय है उसकी त्वचा , जिसमें रक्त-वाहिनियों का विशाल जाल फैला हुआ होता है। इन वाहिनियों की दीवालों के जरिये ऑक्सीजन रक्त में प्रवेश करता है। त्वचा द्वारा सांस लेने की क्षमता के कारण मेंढ़क काफी देर तक पानी के नीचे रह सकता है। यदि त्वचा सूख जाये तो मेंढ़क मर जायेगा क्योंकि ऑक्सीजन केवल गीली त्वचा में से ही पैठ पाता है।
रक्त-परिवहन की इंद्रियां फुफ्फुसों के परिवर्द्धन के कारण मॅड़क की रक्त-परिवहन इंद्रियों की संरचना मछलियों की अपेक्षा अधिक जटिल होती है। हृदय के दो नहीं बल्कि तीन कक्ष होते हैं – निलय और दो अलिंद – दायां और बायां (आकृति ६३)। रक्त शरीर में मछली की तरह एक परिवहन-वृत्त में नहीं बल्कि दो वृत्तों में बहता रहता है (आकृति ६४ )।
प्रधान वृत्त में रक्त निलय से धमनियों के जरिये शरीर की सभी इंद्रियों तक पहुंचता है। यहां केशिकाओं में रक्त ऑक्सीजन और पोपक पदार्थ देकर कारवन डाइ-आक्साइड लेता है और शिराओं के जरिये दायें अलिंद में लौट आता है।
अप्रधान या फुफ्फुस वृत्त में रक्त निलय से फुफ्फुसों और त्वचा में पहुंचता है। यहां से ऑक्सीजन समृद्ध रक्त बायें अलिंद में लौट आता है।
इस प्रकार अलिंदों में भिन्न प्रकार का रक्त रहता है-बायें अलिंद में ऑक्सीजन परिपूर्ण रक्त रहता है जबकि दायें में उससे खाली रक्त। निलय में मिश्रित रक्त रहता है क्योंकि उसमें वह दोनों अलिंदों से आता है। शरीर की सभी इंद्रियों में पहुंचनेवाला रक्त भी मिश्रित होता है।
उत्सर्जन इंद्रियां शरीर-गुहा में रीढ़ के दोनों ओर स्थित दो लंबे-से गुरदे मेंढ़क की उत्सर्जन इंद्रियां हैं (आकृति ६३)। हर गुरदे से एक एक मूत्रवाहिनी निकलती है जो आंत के पिछले भाग में पहुंचती है।
मेंढ़क में उपापचय मंदा होता है और न के बराबर उष्णता उत्पन्न होती है। शरीर का तापमान परिवर्तनशील होता है और आसपास की हवा या पानी के तापमान पर निर्भर करता है। जाड़ों की शुन्यात में मेंढ़क मांद में डेरा डालकर सुषुप्तावस्था में लीन हो जाता है।
प्रश्न – १. मेंढक की पचनेंद्रियों की संरचना का वर्णन करो। मेंढक की कौनसी इंद्रिय अवस्कर कहलाती है ? ३. मेंढ़क किस प्रकार और क्रिन इंद्रियों की सहायता से सांस लेता है ? ४. मछली की अपेक्षा मेंढक की रक्त-परिवह्न इंद्रियों की संरचना में हमें कौनसी जटिलताएं दिखाई देती हैं ?

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