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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का महत्व क्या है , भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की स्थापना कब हुई

पढ़िए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का महत्व क्या है , भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की स्थापना कब हुई ?

किसी जमाने में राजा और महाराजा कलाकारों, कवियों, लेखकों एवं शिल्पकारों के संरक्षक हुआ करते थे। वर्तमान लोकतांत्रिक गणराज्य के उदय के साथ ही राजाओं का शासन लुप्त हो गया और संस्कृति के संरक्षण व पोषण की जवाबदेही सरकार पर आ गई। केंद्र और राज्य सरकारें कला, नाटक, संगीत व पत्रों से संबंधित राष्ट्रीय व प्रांतीय अकादमियों के माध्यम से कला व संस्कृति की उन्नति में लगी हुई हैं। वर्तमान समय में गिजी उपक्रम भी सांस्कृतिक गतिविधियों और कलाकारों के उत्थान को लेकर खासे उत्साहित हैं। इस संदर्भ में बिरला अकादमियों, आई.टी.सी. और सी.एम.सी. के कार्य उल्लेखनीय हैं। सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के अपने प्रयासों के तहत् सरकार ने कई संस्थानों की रचना की है या उन्हें प्रायोजित किया है।
सरकारी संस्थान
किसी भी राष्ट्र के विकास एजेंडे में संस्कृति एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। संस्कृति मंत्रालय का अधिदेश प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का परिरक्षण एवं संरक्षण तथा देश में मूर्त तथा अमूर्त दोनों तरह की कला एवं संस्कृति के संवर्द्धन के इर्द-गिर्द घूमता है। प्रशासनिक ढांचे में मंत्रालय के विभिन्न ब्यूरो और विभाग हैं जिसके मुखिया सचिव होते हैं। इसके दो संबद्ध कार्यालय, छह अधीनस्थ कार्यालय और 33 स्वायत्त संगठन हैं जो सरकार द्वारा पूर्ण वित्तपोषित हैं। संस्कृति मंत्रालय विरासत और संस्कृति के संरक्षण, विकास और संवर्द्धन पर कार्य करता है। इनमें प्रमुख हैं मूर्त, विरासत, अमूर्त और ज्ञान तथा संस्कृति। इसके अतिरिक्त, मंत्रालय गांधीजी की विरासत, प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं की स्मृति तथा महान व्यक्तियों की जन्मशती मनाने की जिम्मेदारी भी निभाता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभागः सन् 1861 में स्थापित यह संस्थान पुरातात्विक शोध गतिविधियों के क्षेत्र में अग्रणी है। यह बड़े पैमाने पर प्रागैतिहासिक व इतर पुरातन स्थानों के अन्वेषण और उत्खनन संबंधी कार्यक्रम चलाता है। इसके अलावा स्थापत्यिक सर्वेक्षण, स्मारकों के इर्द-गिर्द प्राकृतिक सौंदर्यीकरण, उनका संरक्षण व रासायनिक बचाव, मूर्तियां व संग्रहालय की वस्तुयें, शिलालेख संबंधी खोज, पुरातन स्थानों के समीप बने पुरातत्वीय संग्रहालयों का रख-रखाव, शिलालेखीय तथा पुरातत्वीय आवधिकों का प्रकाशन भी यह करता है।
हाल के उत्खननों में प्रमुख है हर्ष का टीला। हरियाणा के थानेसर में स्थित इस स्थान से कुषाण काल से मध्यकाल तक सांस्कृतिक तारतम्य के सूत्र मिले हैं। महाराष्ट्र के आदम क्षेत्र में सातवाहन काल से प्रारंभिक क्रिस्तान युग तक के अवशेष मिले हैं। गुजरात में धोलाविरा से हड़प्पा काल के दौरान नगर नियोजन के प्रमाण मिले हैं। उड़ीसा (वर्तमान में ओडिशा) के ललितागिरी में उत्तर-गुप्त काल के बुद्धकालीन भग्नावशेष मिले हैं। उड़ीसा में ही बाराबटी में मध्यकालीन संरचनात्मक अवशेष मिले हैं। पंजाब के संघोल में आद्य-ऐतिहासिक काल से गुप्तकाल तक सांस्कृतिक साम्य होने के प्रमाणों के साथ कुषाण युग के संरचनात्मक अवशेष मिले हैं। कर्नाटक के गुदनापुर में पूर्व-मध्य काल का एक मंडप और बिहार के कोल्हुआ में गुप्त और गुप्तोत्तर काल के अवशेष मिले हैं।
भारतीय पुरात्वत सर्वेक्षण की विज्ञान शाखा मुख्यतः देश भर में संग्रहालयों तथा उत्खनित वस्तुओं का रासायनिक परिरक्षण करने के अलावा 3593 संरक्षित स्मारकों का रासायनिक संरक्षण और परिरक्षण उपचार करने के लिए उत्तरदायी है।
हमारे समक्ष वास्तविक चुनौती संरक्षण के आवश्यक उपायों की योजना बनाना है जिससे कि इन निर्मित सांस्कृतिक विरासत और हमारी सभ्यता के अनूठे प्रतीकों को जहां तक सम्भव हो उनमें कम से कम हस्तक्षेप करने और उनके मूल रूप की प्रमाणिकता में किसी प्रकार का परिवर्तन अथवा संशोधन किए बिना आने वाली शताब्दियों के लिए बना, रखा जा सके । हमारी सांस्कृतिक विरासत का स्थायित्व और समुचित संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए संरक्षण विकल्पों में वैज्ञानिक अनुसंधान को अधिक बढ़ावा देने की आवश्यकता है जो आरंभिक अन्वेषण पर आधारित हो जिसमें वस्तुओं के भौतिक स्वरूप (संघटक सामग्री, वास्तुशिल्पी विशेषताएं, उत्पादन तकनीकें, क्षरण की स्थिति) और वे कारक जो क्षरण करते हैं या क्षरण कर सकते थे, शामिल हैं। दूसरे शब्दों में जैसा कि चिकित्सा अध्ययन के मामले में है संरक्षण थैरेपी का क्षेत्र सही पहचान पर आधारित होता है।
संग्रहालयः भारत में संग्रहालय की अवधारणा अति प्राचीन काल में देखी जा सकती है जिसमें चित्र-शाला (चित्र-दीर्घा) का उल्लेख मिलता है। किंतु भारत में संग्रहालय का दौर यूरोप में इसी प्रकार के विकास के बाद प्रारंभ हुआ। पुरातत्व विषय अवशेषों को संग्रहित करने की सबसे पहले 1796 ई. में आवश्यकता महसूस की गई जब बंगाल की एशियाटिक सोसायटी ने पुरातत्वीय, नृजातीय, भूवैज्ञानिक, प्राणि-विज्ञान दृष्टि से महत्व रखने वाले विशाल संग्रह को एक जगह पर एकत्र करने की आवश्यकता महसूस की। किंतु उनके द्वारा पहला संग्रहालय 1814 में प्रारंभ किया गया। इस एशियाटिक सोसायटी संग्रहालय के नाभिक से ही बाद में भारतीय संग्रहालय, कोलकाता का जन्म हुआ। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में भी, इसके प्रथम महानिदेशक एलेक्जेंडर कनिंघम के समय से प्रारंभ किए गए विभिन्न खोजी अन्वेषणों के कारण विशाल मात्रा में पुरातत्व विषयक अवशेष एकत्रित किए गए। स्थल संग्रहालयों का सृजन सर जाॅन मार्शल के आने के बाद हुआ, जिन्होंने सारनाथ (1904), आगरा (1906), अजमेर (1908), दिल्ली किला (1909), बीजापुर (1912), नालंदा (1917) तथा सांची (1919) जैसे स्थानीय संग्रहालयों की स्थापना करना प्रारंभ किया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक पूर्व महानिदेशक हरग्रीव्स द्वारा स्थल-संग्रहालयों की अवधारणा की बड़ी अच्छी तरह से व्याख्या की गई हैः
‘भारत सरकार की यह नीति रही है कि प्राचीन स्थलों से प्राप्त किए गए छोटे और ला-लेजा सकने योग्य पुरावशेषों को उन खंडहरों के निकट संपर्क में रखा जाए जिससे वे संबंधित हैं ताकि उनके स्वाभाविक वातावरण में उनका अध्ययन किया जा सके और स्थानांतरित हो जागे के कारण उन पर से ध्यान हट नहीं जाए।’ माॅर्टिन व्हीलर द्वारा 1946 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) में एक पृथक् संग्रहालय शाखा का सृजन किया गया। आजादी के बाद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में स्थल-संग्रहालयों के विकास में बहुत तेजी आई। वर्तमान में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रणाधीन 41 स्थल संग्रहालय हैं।
राष्ट्रीय स्मारक तथा पुरावशेष मिशनः भारत के पास प्रागैतिहासिक समय से निर्मित विरासत, पुरातत्वीय स्थलों तथा अवशेषों के रूप में असाधारण रूप से मूल्यवान, विस्तृत तथा विविध सांस्कृतिक विरासत हैं। बड़ी संख्या में स्मारक ही उत्साहवर्धक हैं तथा ये सांस्कृतिक विचार तथा विकास दोनों के प्रतीक हैं। अब ऐसा प्रतीत होता है कि भारत की विरासत को संस्थापित करना इसके विद्यमान होने में शासित प्रक्रिया तथा किस तरह यह विरासत लोगों से संबंधित है, के अतीत के हमारे ज्ञान, समझ तथा शायद रुचि में कुछ मूलभूत कमी हुई है जो सांस्कृतिक रूपों में व्यक्त इसके आविर्भाव औद्योगिक वृद्धि के युग में तेजी से बदल रही जीवन शैली में अपनी पारम्परिक महत्ता को खो रहे हैं। तथापि, डाटाबेस के रूप में ऐसा कोई व्यापक रिकार्ड नहीं है जहां इस प्रकार के पुरातात्विक संसाधनों को निर्मित विरासतों, स्थलों तथा पुरावशेषों के रूप में सन्दर्भित किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप हमारे देश में सीमित, Ûैर-नवीकरणीय तथा गैर-प्रतिवर्ती संसाधन भावी पीढ़ियों के लिए कोई रिकार्ड रखे बिना तेजी से विलुप्त हो रहे हैं। अतः इस प्रकार के संसाधनों के उपयुक्त सर्वेक्षण की तुरन्त आवश्यकता है और इसके आधार पर एक उपयुक्त पुरातात्विक विरासत संसाधन प्रबंधन तथा नीति तैयार की जा सकती है।
उपरोक्त के परिप्रेक्ष्य में, भारत के माननीय प्रधानमंत्री ने वर्ष 2003 में स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय मूर्त विरासत मिशन स्थापित करने की घोषणा की थी। तदनुसार 19 मार्च 2007 को राष्ट्रीय स्मारक तथा पुरावशेष मिशन की स्थापना की गई।
इ केंद्रीय पुरातत्व पुस्तकालय की स्ािापना 1902 में की गई थी। यह राष्ट्रीय अभिलेखागार संगठन, जनपथ, नई दिल्ली की दूसरी मंजिल पर स्थित है। इस पुस्तकालय में लगभग 1,00,000 पुस्तकों का संग्रह है जिसमें पुस्तकें तथा जर्नल्स शामिल हैं।
इस पुस्तकालय में विभिन्न विषयों पर पुस्तकें तथा पत्रिका,ं हैं जैसे कि इतिहास, पुरातत्व, मानव विज्ञान, वास्तुकला, कला, पुरालेख तथा मुद्रा विज्ञान, भारतविद्या साहित्य, भूविज्ञान आदि।
पुस्तकालय में दुर्लभ पुस्तकें, प्लेट, मूल आरेख आदि भी हैं। पुस्तकों को डिवेली डेसीमल सिस्टम के अनुसार वर्गीकृत किया गया है।
प्रारंभिक प्रकृति के अनुसंधानों के लिए उनकी शैक्षणिक तथा तकनीकी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रत्येक मंडल तथा शाखा कार्यालयों में पुस्तकालय है।
जिन स्मारकों का रासायनिक संरक्षण हुआ है उनमें अमृतपुर का अमृतेस्वरा मंदिर, कर्नाटक में बनवासी का महादेश्वर मंदिर और तमिलनाडु में महाबलीपुरम् स्थित शोर मंदिर शामिल हैं। इस निस्तारण अभियान का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बाघ गुफाओं के भित्ति चित्रों को फाइबर ग्लास और लोचदार प्लास्टिक की मदद से नवीनीकृत करना है। कम्पूचिया के अंकोर वाट में पुरातत्व विभाग का सर्वेक्षण कार्य जारी है।
विभाग, पुरातन स्मारक व पुरातत्वीय स्थान अवशेष अधिनियम 1958 और पुरातत्व व कला कोष अधिनियम 1972 के क्रियान्वयन के क्षेत्र में भी सक्रिय है। सौ वर्ष पुरानी कोई भी वस्तु (पांडुलिपि, दस्तावेजों की दशा में 75 वर्ष) जिससे पुरातत्वीय या कलात्मक अभिरुचि जुड़ी हो बिना भारतीय पुरातत्व विभाग की अनुमति के निर्यात नहीं की जा सकती। अधिनियम के तहत् ‘कला कोष’ को अंग घोषित कुछ ख्यातिनाम कलाकारों के कार्य को निर्यात करने के लिये भी अनुमति लेनी होगी। इसी तरह पुरातत्वीय वस्तुओं का व्यापार भी विभाग से कानूनन लाइसेंसजदा व्यक्ति ही कर सकता है। 1958 के अधिनियम के तहत केंद्र द्वारा संरक्षित स्मारकों व संग्रहालयों के फिल्मांकन और चित्रांकन हेतु भी अनुमति लेना जरूरी है। इसी तरह पुरातत्व विभाग के महानिदेशक की अनुमति के बिना भारत में कहीं भी उत्खनन कार्य नहीं किया जा सकता।
एएसआई निम्न इकाइयों द्वारा विभिन्न गतिविधियां करती हैंः
अंतर्जलीय पुरातत्व विंगः भारत के पास 7,516 कि.मी. लंबी तटरेखा, 1197 द्वीप समूह और 1,55,889 वग्र कि.मी. समुद्री क्षेत्र और 2,013,410 वग्र कि.मी. विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र है। देश का विस्तृत जल क्षेत्र अंतर्जलीय सांस्कृतिक विरासत में धनी है। अंतर्जलीय पुरातत्व के महत्व का अनुभव टप् पंचवर्षीय योजना में प्रारंभ किया गया। भारत में अंतर्जलीय पुरातत्व की शुरुआत 1981 में हुई। देश में तट से दूर अन्वेषण ने इस विषय को पर्याप्त लोकप्रिय बना दिया। 2001 ई. में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएस आई) में अंतर्जलीय पुरातत्व विज्ञान विंग (यूएडब्ल्यू) की स्थापना इस विषय के विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
अपनी स्थापना से यूएडब्यू अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में अंतर्जलीय पुरातात्विक अध्य्यन में सक्रियता से जुड़ा हुआ है। यूएडब्ल्यू निम्नलिखित कार्यों में संलग्न हैः अंतर्जलीय स्थलों और प्राचीन पोत अवशेषों का प्रलेखन। व्यावसायिक पुरातत्वविदों, युवा अनुसंधानकर्ताओं और छात्रों को प्रशिक्षण। विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श करने और जागरूकता पैदा करने हेतु संगोष्ठियों का आयोजन तथा अंतर्जलीय संस्कृति विरासत की रक्षा।
यूएडब्ल्यू अंतर्जलीय सांस्कृतिक विरासत के अध्ययन और रक्षा के लिए अन्य सरकारी संगठनों के साथ सहयोग करता है। भारतीय नौसेना से सहयोग एक बड़ी सफलता रही है। सांस्कृतिक विरासत की ओर लक्षित अंतर्जलीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और अंतर्जलीय कार्यकलापों का विधायन यूएडब्ल्यू की मुख्य चिंता रही है। यूनेस्को द्वारा 2001 में ‘‘अंतर्जलीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा पर सम्मेलन’’ का आयोजन अंतर्जलीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और प्रबंधन के बारे में भूमंडलीय चिंता को प्रदर्शित करता है। यूएडब्ल्यू ने अंतर्जलीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और परिरक्षण के लिए कदम उठाया है।