हिंदी माध्यम नोट्स
प्रमुख वाद्ययंत्र और उनके वादक ? भारत के प्रमुख वाद्य यंत्र और उनके वादक ट्रिक नाम क्या है लिखिए
भारत के प्रमुख वाद्य यंत्र और उनके वादक ट्रिक नाम क्या है लिखिए ?
प्रमुख वाद्ययंत्र एवं वादक
ऽ वीणा – रमेश प्रेम, असद अली, एस-बालचंदन, कल्याण कृष्ण भगवतार, ब्रह्मस्वरूप सिंह आदि।
ऽ तबला – जाकिर हुसैन, लतीफ खां, फय्याज खां, सुखविंदर सिंह, गुदई महाराजा, पं. सामता प्रसाद, अल्ला रखा आदि।
ऽ सरोद – उस्ताद अली अकबर खां, उस्ताद अजमल अली खां, चन्दन राय, ब्रज नारायण, अशोक कुमार राय, उस्ताद अलाउद्दीन खां आदि।
ऽ शहनाई – उस्ताद बिस्मिल्ला खां, शैलेश भागवत, जगन्नाथ भोलानाथ, प्रसन्नता हरि सिंह आदि।
ऽ सितार – विलायत खां, मणिलाल नाग, पं. रविशंकर, शाहिद परवेज, देवव्रत चैधरी, निखिल बनर्जी, शुजाद हुसैन, जया विश्वास, बुद्धादित्य मुखर्जी, निशात खां आदि।
ऽ वायलिन – श्रीमति एन. राजम, शिशिर कनाधर चैधरी, गोविन्द जोग, आर.पी. शास्त्री, गोविन्द स्वामी पिल्लै, लाल गुड़ी जयरामन, टी.एन. कृष्ण, बाल मुरली कृष्णन आदि।
ऽ पखावज – ब्रजरमण लाल, गोपाल दास, तेज प्रकाश तुलसी, इन्द्रलाल राणा, प्रेम बल्लभ आदि।
ऽ मृदंग – पालधर रघु, ठाकुर भीकम सिंह आदि।
ऽ सुंदरी – पं. सिद्धराम जाधव।
ऽ गिटार – केशव तलेगांवकर, ब्रजभूषण काबरा, विश्वमोहन भट्ट, श्रीकृष्ण नलिनी मजूमदार आदि।
ऽ संतुर – भजन सोपोरी, शिवकुमार शर्मा, तरुण भट्टाचार्य आदि।
ऽ जल तरंग – जगदीश मोहन, घासीराम बिर्मल, रामस्वरूप प्रभाकर आदि।
ऽ बांसुरी – हरी प्रसाद चैरसिया, पन्नालाल घोष, प्रकाश सक्सेना, विजय राघव राय, रघुनाथ सेठ आदि।
ऽ सारंगी – पं. रामनारायणजी, ध्रुव घोष, सावरी खान, इन्द्रलाल, अरुणा काले, अरुणा घोष आदि।
ऽ हारमोनियम – महमूद धारपुरी, वासन्ती मापसेकर, अप्पा जलगांवाकर, रविंद्र तालेगांवकर आदि।
ऽ रूद्रवीणा – असद अली खां, उस्ताद सादिक अली खां आदि।
ऽ नादस्वरम् – तिरुस्वामी पिल्लई।
ऽ इमराज – अलाउद्दीन खां।
ऽ सुरबहार – श्रीमति अन्नपूर्णा देवी, इमरत खां।
ऽ नादस्वरम – नीरुस्वामी पिल्लई।
क्षेत्रीय संगीत
भारत के नृत्यों में उपरोक्त प्रमुख प्राचीन नृत्य शैलियों के अलावा और भी नृत्य हैं। देश के विभिन्न भागों में स्थानीय परिस्थितियों में कई ऐसी नत्य शैलियां है जो मन को मोह सकती हैं और जिन्हें कठोर अनुशासन में विकसित किया गया है तथा जिनका कलात्मक मूल्य है। देश के विभिन्न क्षेत्रों से सांस्कृतिक परम्पराएं भारत के प्रादेशिक क्षेत्रीय संगीत की समृद्ध विविधता को परिलक्षित करती हैं। प्रत्येक क्षेत्र की अपनी विशेष शैली है।
जनजातीय और लोक संगीत उस तरीके से नहीं सिखाया जाता है जिस तरीके से भारतीय शास्त्रीय संगीत सिखाया जाता है। प्रशिक्षण की कोई औपचारिक अवधि नहीं है। छात्र अपना पूरा जीवन संगीत सीखने में अर्पित करने में समर्थ होते हैं।
ग्रामीण जीवन का अर्थशास्त्र इस प्रकार की बात के लिए अनुमति नहीं देता। संगीत अभ्यासकर्ताओं को शिकार करने की अथवा अपने चुने हुए किसी भी प्रकार का जीविका उपार्जन कार्य करने की इजाजत है।
गावों में संगीत बाल्यावस्था से ही सीखा जाता है और इसे अनेक सार्वजनिक कार्यकलापों में समाहित किया जाता है जिससे ग्रामवासियों को अभ्यास करने और अपनी दक्षताओं को बढ़ाने में सहायता मिलती है।
संगीत जीवन के अनेक पहलुओं से बना एक संघटक है, जैसे विवाह, सगाई एवं जन्मोत्सव आदि अवसरों के लिए अनेक गीत हैं। पौधरोपण और फसल कटाई पर भी बहत से गीत हैं। इन कार्यकलापों में ग्रामवासी अपनी आशाओं आंकाक्षाओं के गीत गाते हैं।
संगीत वाद्य प्रायः शास्त्रीय संगीत में पाए जाने वाले वाद्यों से भिन्न हैं। यद्यपि तबला जैसे वाद्य यंत्र कभी-कभी अपरिष्ठत ढोल, जैसे डफ, ढोलक अथवा नाल से अधिक पसंद किए जाते हैं। सितार और सरोद, जो शास्त्रीय संगीत में अत्यंत सामान हैं, लोक संगीत में उनका अभाव होता है। प्रायः ऐसे वाद्य यंत्र जैसे कि एकतार, दोतार, रंबाब और सन्तूर, किसी के पास भी हो सकते हैं। उन्हें प्रायः इन्हीं नामों से नहीं पुकारा जाता है, किन्तु उन्हें उनकी स्थानीय बोली के अनुसार नाम दिया ही सकता है। ऐसे भी वाद्य हैं जिनका प्रयोग केवल विशेष क्षेत्रों में विशेष लोक शैलियों में किया जाता है। ये वाद्य असंख्य हैं।
शास्त्रीय संगीत वाद्य कलाकारों द्वारा तैयार किए जाते हैं जिनका कार्य केवल संगीत वाद्य निर्मित करना है। इसके विपरीत लोक वाद्यों को सामान्यतः खुद संगीतकारों द्वारा विनिर्मित किया जाता है।
सामान्यतः यह देखा जाता है कि लोक वाद्य यंत्र आसानी से उपलब्ध सामग्री से ही बनाये जाते हैं। कुछ सांगीतिक बाठा यत्रों को बनाने में आसानी से उपलब्ध चर्म, बांस, नारियल खोल और बर्तनों आदि का प्रयोग भी किया जाता है।
छाऊ नृत्य
ऐसा एक नृत्य है मयूर गंज और सराय कला का श्छाऊ नृत्य श् यह श्मुखौटों वाले नृत्य श् के नाम से प्रसिद्ध है (सराय कला में मुखौटे प्रयुक्त होते हैं किंतु मयूर भंज में नहीं) और प्रचीन काल से विद्यमान है। परंपरा में अनुसार, यह समुह नृत्य है जिसमें पुरूषों का दल भाग लेता है। वास्तव में यह नृत्य चैत्र मास में चार रातों के वार्षिक कार्यक्रम में होता है, जो शिवजी और मां शक्ति की पूजा से संबद्ध मेले के समापन पर किया जाता है। संगीत की लय पर थिरकते हुए एक या दो व्यक्ति या फिर कोई दल नृत्य करता है और नृत्य-नाठक अपनी ही विशेष शैले में प्रस्तुत किए जाते हैं, जो नृत्य के अन्य रूपों से भिन्न होती है। नर्तक को गाना नहीं पड़ता और उसकी सारी शक्ति सजीव और अर्थपूर्ण भाव व्यक्त करने में लगती है। नगाड़े, मृदंग, ढोल और झांझ के स्वर इस नृत्य के लिए संगीत का काम करते हैं। खूब सजावटी तड़क-भड़क वाले रंग-बिरंगे परिधान इस नृत्य के सौंदर्य में, वृद्धि करते हैं। महाकाव्यों और पौराणिक गाथाओं, ऐतिहासिक घटनाओं और वास्तविक जीवन के दृश्यों को बड़े कौशल के साथ, प्रस्तुत किया जाता है।
रसिया गीत, उत्तर प्रदेश
बृज जो भगवान कृष्ण की आदिकाल से ही मनोहरी लीलाओं की पवित्र भूमि है, रसिया गीत गायन की समृद्ध परम्परा के लिए प्रसिद्ध है। यह किसी विशेष त्योहार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि लोगों के दैनिक जीवन और दिन-प्रतिदिन के कामकाज में भी रचा-बसा हैं। श्रसियाश् शब्द रास (भावावेश) शब्द से लिया गया है क्योंकि रसिया का अर्थ रास अथवा भावावेश से है। यह गायक के व्यक्तित्व और साथ ही गीत की प्रकृति को परिलक्षित करता है।
पंखिड़ा, राजस्थान
यह गीत खेतों में काम करते समय राजस्थान के काश्तकारों द्वारा गाया जाता है। काश्तकार श्अलगोजाश् और श्मंजीराश् बजाकर गाते और बात करते हैं। श्पंखिड़ाश् शब्द का शाब्दिक अर्थ श्प्रेमश् है।
लोटिया, राजस्थान
श्लोटियाश् त्योहार के दौरान चैत्र मास में गाया जाता है। स्त्रियां, तालाबों और कुओं से पानी से भरे श्लोटे (पानी भरने का एक बर्तन) और कलश (पूजा के दौरान पानी भरने के लिए शुभ समझा जाने वाला एक बर्तन) लाती हैं। वे उन्हें फूलों से सजाती हैं और घर आती हैं। पंडवानी, छत्तीसगढ़
पंडवानी में, महाभारत से एक या दो घटनाओं को चुन कर कथा के रूप में निष्पादित किया जाता है। मुख्य गायक पूरे निष्पादन के दौरान सतत रूप से बैठा रहता है और सशक्त गायन व सांकेतिक भंगिमाओं के साथ एक के बाद एक सभी चरित्रों की भाव-भंगिमाओं का अभिनय करता है।
शकुनाखार, मंगलगीत, कुमाऊँ
हिमालय की पहाडियों में शुभ अवसरों पर असंख्य गीत गाए जाते हैं। शकुनाखर, शिशु स्नान, बाल जन्म, छठी (बच्चे के जन्म से छठे दिन किया जाने वाला एक संस्कार), गणेश पूजा आदि के धार्मिक समारोहों के दौरान गाया जाता है। ये गीत केवल महिलाओं द्वारा बिना किसी वाद्य यंत्र के गाए जाते हैं।
प्रत्येक शुभ अवसर पर शकुनाखर में अच्छे स्वास्थ्य और लम्बे जीवन की प्रार्थना की जाती है।
बारहमास, कुमाऊँ
कुमाऊँ के इस आंचलिक संगीत में वर्ष के बारह महीनों का वर्णन प्रत्येक माह की विशेषताओं के साथ किया जाता है। एक गीत में घुघुती चिडिया चैत मास की शरुआत का संकेत देती है। एक लड़की अपनी ससुराल में चिडिया से न बोलने के लिए कहती है क्योंकि वह अपनी मां (आईजा) की याद से दुरूखी है और दुख महसूस कर रही है।
मन्डोक, गोवा
गोवाई प्रादेशिक संगीत, भारतीय उपमहाद्वीप के पारम्पजरिक संगीत का भण्डार है। श्मन्डोंश् गोवाई संगीत की परिशद्ध रचना एक धामी लय हैं और पुर्तगाली शासन के दौरन प्रेम, दुख और गोवा में सामजिक अन्यायय और राजनीतिक विरोध से संबंधित एक छंद बद्ध संरचना है। आल्हान, उत्तर प्रदेश
बुन्देलखण्ड की एक विशिष्ट गाथा, शैली आल्हा में देखने को मिलती है जिसमें आल्हा और ऊदल, दो बहादुर भाइयों के साहसिक कारनामों का उल्लेख किया जाता है, जिन्होंने महोबा के राजा परमल की सेवा की थी। यह न केवल बन्देलखण्ड का एक सर्वाधिक लोकप्रिय संगीत है बल्कि देश में अन्यत्र भी लोकप्रिय है।
आल्हा, सामन्ती बहादुरी की गाथाओं से भरा है, जो सामान्य आदमी को प्रभावित करता है। इसमें समाज में उस समय में विद्यमान नैतिकता, बहादुरी और कुलीनता के उच्च सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला गया है।
होरी, उत्तर प्रदेश
होरी का इतिहास, इसका विकास और परम्परा काफी प्राचीन है। यह श्राधा-कृष्णश् के प्रेम प्रसंगों पर आधारित है। होरी गायन मूलतः केवल होली त्यो हार के साथ जुड़ा है। बसन्त ऋतु के दौरान भारत में होरी के गीत गाने और होली मनाने की परम्पारा प्राचीनकाल से जारी है……….श्बृज में हरि होरी मचाईश्…………..।
सोहर, उत्तर प्रदेश
सामजिक समारोह समय-समय पर, भिन्न-भिन्न संस्कृतियों को परस्पर जोडने का एक महत्त्वपूर्ण कारक हैं। उत्तर भारत में परिवार में पुत्र जन्मोत्सव में श्सोहरश् गायन की एक उत्साही परम्परा है। इसने मुस्लिम संस्कृति को प्रभावित किया है तथा उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में रहने वाले मुस्लिम परिवार श्सोहर गीतश् गाकर पैसा भी कमाते हैं। श्सोहर गीतश् निरूसंदेह दो संस्कृतियों को मिलाने वाले गीत हैं।
छकरी, कश्मीर
छकरी एक समूह गीत है जो कश्मीर के लोक संगीत की एक सर्वाधिक लोकप्रिय शैली है। यह नूत (मिट्टी का बर्तन), रबाब, सारंगी आरैर तुम्बाकनरी (ऊँची गर्दन वाला मिट्टी का एक बर्तन), के साथ गाया जाता है।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…