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Physiology of Digestion in hindi , पाचन की कार्यिकी क्या है , खाद्य पदार्थ (Food stuffs) की परिभाषा किसे कहते हैं

पढ़िए Physiology of Digestion in hindi , पाचन की कार्यिकी क्या है , खाद्य पदार्थ (Food stuffs) की परिभाषा किसे कहते हैं ?

पाचन की कार्यिकी (Physiology of Digestion)

खाद्य पदार्थ (Food stuffs )

प्रत्येक जीवित तंत्र (living system) को ऊर्जा (energy) प्राप्ति हेतु ऑक्सीजन एवं जल के अतिरिक्त भोजन की निरन्तर आवश्कयता होती है। ऊर्जा प्राप्ति के अतिरिक्त भोजन शरीर के ताप-नियमन (temperature regulation), वृद्धि (growth) एवं कोशिकीय ऊत्तकों की मरम्मत (tissue repair) हेतु आवश्यक होता है। अनेक पौधे (plants) अपने भोजन को सरल रासायनिक पदार्थों द्वारा स्वयं (self) संश्लेषित (synthesis) करते हैं जबकि जन्तु अपना भोजन वातावरण से प्राणी अथवा वनस्पति भोज्य पदार्थ के रूप में प्राप्त करते हैं। इस प्रकार भोजन एक ऐसा आवश्यक (essential ) पदार्थ है जो शारीरिक उत्तकों द्वारा अवशोषित करने पर जीव को बिना हानि पहुँचाये ऊर्जा प्राप्ति, वृद्धि ऊत्तकीय मरम्मत तथा जैविक क्रियाओं के नियमन हेतु विभिन्न घटक उपलब्ध कराता है। भोजन के महत्त्व को निम्न प्रकार से समझाया जा सकता

  1. यह ऊर्जा प्राप्ति के लिये एक ईंधन (fuel) की तरह कार्य करता है।
  2. यह जीवद्रव्य (protoplasm) के निर्माण का कार्य करता है ।
  3. यह शरीर को स्वस्थ बनाये रखने हेतु आवश्यक होता है।
  4. यह कोशिका एवं ऊत्तकों की मरम्मत का कार्य करता है।
  5. यह शारीरिक वृद्धि (body growth) हेतु आवश्यक पदार्थ जैसे हॉरमोन्स (hormones) एवं एन्जाइम्स (enzymes ) हेतु पूर्ववर्ती पदार्थ (precursor) प्रदान करता है ।
  6. यह शरीर को कम मात्रा में कुछ आवश्यक तत्त्व (essential elements) जैसे विटामिन (vitamins) देता है। ये तत्त्व शरीर के विभिन्न अंगों को प्रभावित करते हैं।

भोजन के प्रमुख स्रोत गेहूं (wheat), चावल (rice), माँस (meat ), मक्खन (butter), दुध (milk), , फल ( fruits) एवं हरी सब्जियाँ (green vegetables) इत्यादि होते हैं।

भोजन की प्रकृति (Nature of food stuff)

भोज्य पदार्थों (food stuffs ) की रासायनिक प्रकृति के आधार पर इन्हें कार्बनिक (organic) तथा अकार्बनिक (inorganic) पदार्थों के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं। कार्बनिक पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट्स (carbohydrates) प्रोटीन (proteins), लिपिड (lipids) एवं विटामिन (vitamins) तथा अकार्बनिक पदार्थों में खनिज लवण (mineral salt) एवं जल (water) आते हैं। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित प्रकार से हैं।

(I) कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates)

ऊर्जा उत्पत्ति के स्रोतों में प्रमुख स्थान कार्बोहाइड्रेट्स का है। एक सामान्य व्यक्ति के भोजन में लगभग 55 से 65 प्रतिशत तक ऊर्जा कार्बोहाइड्रेट्स से मिलती है। पौधे अपना भोजन कार्बोहाइड्रेट्स के रूप में स्वयं जल और कार्बन-डाईऑक्साइड (CO2) की सहायता से सूर्य को किरणों (sun light) की उपस्थिति में बना सकते हैं। ऊर्जा की मांग की पूर्ति हेतु कार्बोहाइड्रेट्स सबसे सस्ता एवं सरल होता है।

कार्बोहाइड्रेट्स सामान्यतया कार्बन (C). हाइड्रोजन (१) एवं ऑक्सीजन (O) के बने होते हैं। इनमें कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का अनुपात 1: 2: 1 होता है। कार्बोहाइड्रेट्स पॉलीहाइड्रॉक्सी ऐल्कोहल (polyhdroxy alcohols) के एल्डीहाइड्स (aldehydes) अथवा कीटोन (ketone) के व्युत्पन्न (derivatives) होते हैं। पॉलीहाइड्रॉक्सी कीटोन्स को कीटोजेज (ketoses) को कहा जाता है। कार्बोहाइड्रेट्स का मूलानुपाती सूत्र (empirical formula) C (H2O), होता है।

कार्बोहाइड्रेट्स के प्रमुख स्रोत (main sources) शर्करा एवं स्टार्च के रूप में गन्ना (sugarcane). चुकन्दर, चावल, गेहूं, चना और आलू (potato) होता है। सभी कार्बोहाइड्रेट्स शरीर में पाचन के पश्चात् ग्लूकेस (glucose) में बदल जाते हैं। इसी ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से ऊर्जा मिलती है। कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण (Classification of carbohydrates)

(i) मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharides) : इन्हें सरल शर्करा (simple suger) के नाम से भी जाना जाता है। इनमें केवल एक सैकेराइड (saccharide) अणु होता है। इनमें तीन से लगभग दस कार्बन के परमाणु होते हैं तथा इनका जल अपघटन नहीं होता है। कार्बन परमाणुओं की संख्या के आधार पर मोनासैकेराइड्स को ट्रायोजेज (उदा. ग्लिसरेल्डिहाइड एवं डाइहाइड्रॉक्सी एसीटोन). ट्रेटोसेज (उदा. इरिथ्रूलोस एवं आदि), पेन्टोसेज (उदा. राइबोस, डिऑक्सीराइबोज, जायलोज, आरबीनोज, जाइल्यूलोज, रिब्यूलोस आदि) एवं हैक्सोज ( उदाहरण ग्लुकोज, फ्रक्टोस… गैलेक्टोस एवं मैनोज आदि) में वर्गीकृत किया जाता है। ग्लूकोज कोशिकाओं के अन्दर श्वसन द्वारा ऊर्जा (energy) मुक्त करता है।

(ii) ऑलिगोसैकेराइड्स (Oligosaccharides) : दो से दस तक मोनोसैकेराइड इकाईयों में बने कार्बोहाइड्रेट्स को ऑलिगोसैकेराइड्स कहा जाता हैं। इनमें विभिन्न मोनोसैकेराइड्स के अणु एक दूसरे से ग्लाइकोसाइड बंधा (glycoside bond) द्वारा जुड़े रहते हैं। ऑलिगोसैकेराइड्स में उपस्थित सैकेराइड अणुओं के आधार पर इन्हें डाइासैकेराइड्स (उदाहरण माल्टोस, लैक्टोज… सुक्रोज, सैलोबायोज, ट्रिहेलोज आदि) ट्राइसैकेराइड्स ( उदाहरण : रैफिनोज, रेबिनोज, रेहमीनोज, मेन्नोट्रायोज आदि ) टेट्रासेकेराइड्स (उदाहरण: स्टेचीओज एवं स्कोरडोज आदि) एवं पेन्टासैकेराइड्स (उदाहरण: वर्बेसकोज आदि) में वर्गीकृत किया जाता है।

  • पॉलीसेकेराइड्स (Polysaccharides) : ये जटिल प्रकार के कार्बोहाइड्रेट्स हैं जिनमें से 10 से अनेक हजार मोनोसेकेराइड्स अणु पाये जाते हैं। इनके जलीय अपघटन से कई मोनोसैकराइड्स के अणु प्राप्त होते हैं। इन्हें (Collion द्वारा दर्शाया जाता है। इन्हें होमोपॉलीसैकेराइड्स (उदाहरण : स्टार्च, ग्लाइकोजन, डैक्सट्रिन, सैल्यूलोज, इन्युलिन आदि) एवं हैटरोपॉलीसेकेराइड्स (उदाहरण: हाइएल्यूटॉनिक अम्ल, कॉण्डइटिन, हिपोरिन, एगार- एगार आदि) में बांटा जाता है

कार्बोहाइड्रेट्स के कार्य (Functions of carbohydrates)

(1) ये जीवद्रव्य (protoplasm) में मूल घटकों एवं अन्य कार्बनिक यौगिकों का कार्बन ढाँचा (carbon skeleton) बनाते हैं।

(2) ये सभी प्राणियों में ऊर्जा के प्रमुख स्रोत होते हैं। ये शरीर में ईंधन (fuel) की तरह कार्य करते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स के एक अणु 4.1 Kcal. ऊर्जा की प्राप्ति होती है। कई कार्बोहाइड्रेट्स जैसे ग्लाइकोजन ऊर्जा के संचित स्रोतों के रूप में देह में पाये जाते हैं।

(3) कार्बोहाइड्रेट्स कोशिका की संजीव एवं निर्जीव रचनाओं के लिये संरचनात्मक पदार्थों (structural materials) के रूप में कार्य करते हैं। (सेल्यूलोज पादप कोशिकाओं में कोशिका (cell wall) का निर्माण करता है।

(II) प्रोटीन्स (Proteins)

ये जीवद्रव्य के अत्यधिक जटिल एवं सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्बनिक यौगिक हैं। ये अंतिकाय (gigantic) आकार, अत्यधिक जटिलता एवं अद्वितीय विभिन्नता वाले अणु होते हैं। इन अणुओं में प्राय: कार्बन (C), हाइड्रोजन (H), ऑक्सीजन (O) एवं नाइट्रोजन (N) होते हैं। कई प्रोटीन्स में फॉस्फोरस (P) सल्फर (S) एवं मेगनीशियम (Mg) इत्यादि भी पाये जाते हैं। (प्रोटीन्स की मौ संरचनात्मक इकाई (structural unit) अमीनों-अम्ल ( amino acid) होती है, अतः ये अमीनों अम्लों के बहुलक (polymer) होते हैं।

प्रत्येक अमीनों अम्ल में एक अमीनों समूह (-NH2) तथा एक कार्बोक्सिल समूह (-COOH) पाया जाता है। अमीनों अम्ल पेप्टाइड बन्धों (peptide bonds) द्वारा एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। सरलतम पेप्टाइड केवल दो अमीनों अम्लों में बना होता है एवं डाइपेप्टाइड ( dipeptide ) कहलाता है। तीन अमीनो अम्लों से बने पेप्टाइड को ट्राइपेप्टाइड (tripeptide ) एवं तीन या अधिक अम्लों से बने पेप्टाइड को बहुपेप्टाइड (polypeptide ) कहा जाता है । बहुपेप्टाइड श्रृंखलाएँ प्रोटीन का निर्माण करती है। सभी सूक्ष्मजीवों (micro-organisms), पादपों (plants) तथा जन्तुओं (animals) में पाई जाने वाली प्रोटीन्स में मुख्यतया 20 प्रकार के अमीनों अम्ल पाये जाते हैं।

सामान्यतया जन्तु प्रोटीन ( animal protein) प्रथम प्रकार के प्रोटीन होते हैं जो दूध, दही, पनीर, अण्डा, माँस, मक्खन एवं मछली से प्राप्त होते हैं। वनस्पति प्रोटीन को द्वितीय श्रेणी का प्रोटीन कहा जाता है तथा ये गेहूं, जौ, चना, सेंम, मटर, सोयाबीन, छिलकों वाली दालों इत्यादि में मिलते हैं।

प्रोटीन्स का वर्गीकरण (Classification of proteins)

संरचना के आधार पर प्रोटीन्स को निम्न 3 श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है-

  • सरल प्रोटीन (Simple proteins) : ये प्रोटीक जल अपघटन पर केवल अमीनो अम्ल बनाते हैं। इसमें सामान्तया एल्ब्यूमिन (albumin), ब्लोब्युलिन (globulin), प्रोटैमीन्स (protamines). हिस्टोन्स (histones) स्कलेरोप्रोटीन्स (scleroproteins) एवं प्रोलोमिन्स (prolamines) आदि आते हैं।

(ii) जटिल अथवा संयुग्मी प्रोटीन्स (Complex or conjugated proteins) : ये. अमीनो अम्ल एवं अन्य किसी पदार्थ (प्रोस्थेटिक समूह) के संयुग्मन से बनते हैं। इन्हें प्रोस्थेटिक समूह के आधार पर न्यूक्लिओप्रोटीन (उदाहरण: हिस्तोन प्रोटैमीन्स आदि), फास्फोप्रोटीन हीमोग्लोबीन कार्बोनिक, लाइपोविटेलिन, (उदाहरण : केसीन, पेप्सिन, फोसवाइटिन आदि), क्रोमोप्रोटीन (उदाहरण : हीमोसाइनिन, एरिथ्रोक्रयोरिन, हीमोइरिथिन आदि), मेटेलोप्रोटीन (उदाहरण : एन्हाड्रेज, टाइरोसिनेज, जेन्थीन ऑक्सीडेज आदि). लाइपोप्रोटीन (उदाहरण : फॉस्फेटिडाइल ग्लेसैरिहाइड आदि) में वर्गीकृत किया जाता है।

(iii) व्युत्पन्न प्रोटीन (Derived proteins) : ये प्रोटीन्स सरल एवं संयुग्मी प्रोटीन्स के जल अपघटन या स्कंधन से प्राप्त होते हैं। इनमें पेप्टोन्स (peptones), मेटाप्रोटीन्स (metaproteins) प्रोट्ओिजेज (proteopses) एवं स्कन्धित प्रोटीन (coagulated proteins) आदि प्रमुख है। प्रोटीन्स के कार्य (Functions of proteins)

(1) ये शरीर की वृद्धि (growth) के लिए आवश्यक पदार्थ होते हैं।

(2) ये कोशिकाओं एवं उनके अंगकों (organelles) की बाहरी सीमा बनाते हैं। कोशिका के चारों ओर प्लाज्मा झिल्ली का आवरण लिपोप्रोटीन (lipoprotein) का बना होता है।

(3) ये शरीर में आवश्यकता पड़ने पर ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। (4) कई प्रोटीन्स हार्मोन्स के रूप में कार्य कर उपापचयी क्रियाओं (metabolic activities) _ को नियंत्रित करते हैं। अधिकांश हार्मोन्स प्रोटीन्स ही होते हैं।

(5) प्रोटीन्स का उच्च रासायनिक विभव होने के कारण ये अनेक पदार्थों के साथ शीघ्रता से प्रतिक्रिया करते हैं। इस प्रकार ये एन्जाइम ( enzymes) की भाँति कार्य करते हैं। (6) प्रोटीन्स शरीर में मिलेनिन (melanin), रोडोप्सिन (rhodopsin) एवं यूरिया (urea) का निर्माण भी करते हैं।

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