JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Biology

पाइला के श्वसन तंत्र का वर्णन कीजिये , respiratory system of pila in hindi parts जलकंकत जलीय श्वसन

पढ़िए पाइला के श्वसन तंत्र का वर्णन कीजिये , respiratory system of pila in hindi parts जलकंकत जलीय श्वसन ?

प्रवसन तन्त्र (Respiratory System)

पाइला  एक उभयचारी प्राणी होता है अतः इसमें जलीय तथा वायवीय दोनों प्रकार का श्वसन नाया जाता है। पाइला में जलीय श्वसन के लिए गिल या जलकंकत (ctenidium) पाया जाता है वायवीय श्वसन के लिए फुफ्फुसी कोष (pulmonary sac) पाया जाता है।

पाइला में निम्न श्वसनांग पाये जाते हैं

  1. जल कंकत या गिल (Ctenidium or gill)
  2. फुफ्फुसी कोष (Pulmonary sac)
  3. नकल पालियां (Nuchal lobes)

जलकंकत या गिल (Ctenidium of gill)

गिल या जलीय क्लोम पाइला का जलीय श्वसनांग होता है। यह क्लोम प्रकोष्ठ में (branchial _chamber) दाहिनी तरफ स्थित होता है तथा पृष्ठ पार्श्व भित्ति से लटका रहता है। वह अक्ष जिसके द्वारा गिल क्लोम प्रकोष्ठ में लटका रहता है, क्लोम अक्ष (ctenidial axis) कहलाता है। गिल एक की के समान एक कंकती (mono pectinate) होता है। अक्ष के समकोण पर कई त्रिभुजाकार पलिकाएँ (lemellae) पायी जाती है। ये एक श्रृंखला में एक दूसरे के समानान्तर लटकी रहती है। प्रत्येक पटलिका (lemellae) अपने चौड़े आधार की सहायता से प्रावार भित्ति से जुड़ी रहती है तथा इनके संकरे सिरे गिल कक्ष में मुक्त रूप से लटके रहते हैं। पटलिकाओं के चौड़े आधार प्रावार के साथ चिपक कर क्लोम अक्ष (ctenidial axis) का निर्माण करते हैं। प्रत्येक पटलिका का दाहिन भाग बायें भाग की अपेक्षा छोटा होता है, इन्हें क्रमशः अभिवाही दिशा (afferent side) एवं अपवाही दिशा (efferent side) कहते हैं (चित्र 8)। सभी पटलिकायें समान आकार की नहीं होती है। मध्य की पटलिकायें बड़ी तथा किनारों की तरफ की पटलिकायें छोटी होती हैं। प्रत्येक पटलिका के अग व पश्च सतहों पर अनुप्रस्थ प्लीट (transverse pleats) पायी जाती हैं। प्रत्येक प्लीट में रुधिर वाहिकाओं की शाखायें पायी जाती हैं।

पाइला में गिल दाहिनी तरफ स्थित होता है परन्तु इसकी रक्त एवं तंत्रिका आपूर्ति देखने से ज्ञात होता है कि यह वास्तव में बांयी तरफ का अंग है जो ऐंठन के दौरान दाहिनी तरफ आ गया है।

पटलिका की औतिकी संरचना

प्रत्येक पटलिका एक खोखली संरचना होती है, जिसमें भीतर एक संकरी गुहा पायी जाती है। इसके दोनों पाश्र्व में उपकला का अस्तर पाया जाता है। उपकला स्तर (epithelial layer) में तीन प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं

  • अपक्ष्माभी स्तम्भाकार कोशिकाएँ (Non ciliated columnlar epithelial cells)

(ii) पक्ष्माभी स्तम्भाकार कोशिकाएँ (Cilated columnar cells) तथा

(iii) ग्रंथिल कोशिकाएँ (Glandular cells)

उपकला स्तर एक पतली आधारी झिल्ली पर चिपकी रहती है तथा इसके नीचे संयोजी ऊतक, केशिकाएँ एवं तिरछी पेशियों के सूत्र ( oblique muscle fibers) पाये जाते हैं। सबसे नीचे प्रावार उपकला पायी जाती है।

फुफ्फुस कोष (Pulmonary sac) ‘जाडला में एक फुफ्फुस कोष होता है तथा यह प्रावार गुहा की छत से फफ्फस कक्ष में लटका हता है। यह एक थैले के समान संरचना होती है। इसकी भित्ति में अनेक रक्त वाहिकाएँ पायी जाती है फुफ्फुस  कोष की पृष्ठ सतह में गहरा वर्णक पाया जाता है जबकि अधर सतह क्रीम रंग का होती है। फुफ्फुस कोष वायु मुख (pneumostome) नामक छिद्र द्वारा, जलेक्षिका (osphradium) के दाहिने किनारे पर, प्रावार गुहा के फुफ्फुस कक्ष (pulmonary chamber) में खुलता है।

नकल पालियां (Nuchal lobes)

पाइला में दो नकल पालियां पाई जाती हैं। ये सिर के दोनों तरफ पाद के ऊपर स्थित होती है। पावार (mantle) की पेशीय एवं अत्यधिक संकुचन शील बहि:वद्धियाँ होती हैं। इनमें बायी नूकल पालि. दाहिनी की अपेक्षा बड़ी होती है। श्वसन क्रिया के दौरान ये नलिकाकार साइफन का निर्माण करती है। बांयी पालि से जल भीतर प्रवेश करता है तथा दाहिनी पालि से बाहर निकलता है।

श्वसन की क्रिया-विधि (Mechanism of respiration)

पाइला में श्वसन जलीय एवं वायुवीय दोनों प्रकार का होता है अतः इनकी कार्यिकी का हम अलग-अलग अध्ययन करेंगे।

जलीय श्वसन (Aquatic respiration)

पाइला में जलीय श्वसन तब होता है तब यह जलाशय के तल में होता है या जलाशय के मध्य तैरता होता है या जलीय वनस्पतियों से चिपका होता है, अर्थात् जब पाइला जल में डूबा रहता है। जल के भीतर पाइला पूर्ण रूप से खोल के बाहर निकला रहता है। दोनों नकल पालियां अधिक लम्बी हो जाती हैं, खास कर बांयी नकल पालि तो गटर समान संरचना बना लेती है। इसी पालि से जल भीतर प्रवेश करता है। भीतर प्रवेश करने वाले जल की रासायनिक जांच जलेक्षिका (ospharadium) द्वारा की जाती है। भीतर आने पर यह जल प्रावार गुहा में होता हुआ एपिटीनिया (epitenia) के ऊपर से गुजरता हुआ गिल कक्ष में प्रवेश करता है। एपिटीनिया (epitenia) वह संरचना है जो गिल कक्ष को शेष प्रावार गुहा से अलग करती है। अब जल सम्पूर्ण गिल पर से होता हुआ दाहिनी नकल पालि द्वारा बाहर निकल जाता है। जब जल गिल पटलिकाओं पर से गुजरता है तो उनकी अग्र व पश्च सतह पर उपस्थित प्लीट जल धारा में अवरोध उत्पन्न करती है जिससे जल कुछ समय वहाँ रुकता है। इसी बीच प्लीट के नीचे उपस्थित रुधिर वाहिकाओं के रक्त तथा जल के बीच गैंसों का आदान-प्रदान हो जाता हैं। जल में घुली हुई ऑक्सीजन रक्त द्वारा ग्रहण कर ली जाती है तथा रक्त में उपस्थित CO2  मुक्त कर दी जाती है। रक्त में उपस्थित, हीमोसाइनिन, श्वसन वर्णक, ऑक्सीजन का वहन करता है। पाइला में श्वसन क्रिया हेतु जल धारा को निरन्तर बनाये रखा जाता है। जल धारा को सतत बनाये रखने में प्रावार गुहा का फर्श बार-बार ऊपर उठता है व नीचे गिरता है तथा गिल की पटलिकाओं में पाये जाने वाले पक्ष्माभी कोशिकाओं के पक्ष्माभों की स्पन्दन क्रिया भी इसमें सहायक होती है।

वायुवीय श्वसन (Aerial respiration)

पाइला में वायवीय श्वसन को फुफ्फुसी या पल्मोनरी श्वसन भी कहते हैं। पाइला, वायुवीय श्वसन जल में रहते हुए जल सतह पर आकर या जमीन पर चलते हुए करता है। जब जल में घली हुई ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है या जल दूषित हो जाता है या सूखे की स्थिति में एक जलाशय को छोड़कर भूमि मार्ग से दूसरे जलाशय की तरफ गमन करता है तब यह वा श्वसन करता है।

जल में रहते हुए जब पाइला वायुवीय श्वसन करता है तब यह अपनी बांयी नकल पालि एक नलिका के समान लम्बा कर जल सतह से बाहर निकाल देता है। इसमें से होकर वाय फ कक्ष (pulmonary chamber) में होती हुई फुफ्फुस कोष में प्रवेश करती है। वायुवीय श्वसन दौरान एपिटिनीया खिंच कर गिल कक्ष को बन्द कर देती है। फुफ्फुस कोष के क्रमिक संकचन फैलाव के कारण बाह्य एवं अन्त:श्वसन क्रियाएँ होती रहती हैं। अन्तः श्वसनं में वायु फफ्फस के में आती है। वहाँ उसकी भित्ति में उपस्थित रक्त वाहिकाओं तथा वायु के बीच गैसों का आदान-पटा हो जाता है। बाह्य श्वसन में co, युक्त वायु को बाहर निकाल दिया जाता है। इस तरह यह क्रिया निरन्तर चलती रहती है।

जमीन पर चलते हुए पाइला सीधे फुफ्फुस कोष द्वारा ही श्वसन करता है श्वसन नलिका का निर्माण नहीं होता है।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now