JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: BiologyBiology

ढोर किसे कहते हैं , उदाहरण क्या है , कृषि क्षेत्र के प्राणी ढोर meaning in hindi डंगर अर्थ हिंदी में

फरदार प्राणियों का शिकार और पालन
फरदार प्राणियों का शिकार बहुत-से स्तनधारियों से हमें फर मिलती है। फरदार प्राणियों की दृष्टि से दनिया में सोवियत संघ का कोई सानी नहीं है। फर पाने की दृष्टि से गिलहरियां, लोमड़ियां, आर्कटिक लोमड़ियां, ओंडाट्रा (प्राकृति १६४) और शश सबसे महत्त्वपूर्ण प्राणी हैं।
सैबलों (प्राकृति १६५), मारटेनों, एरमाइनों, बीवरों (प्राकृति १६६) और प्रोट्टरों से गरम और खूबसूरत फर मिलती है। छछूंदरों और गोफरों की खालों का भी उपयोग फर के उत्पादन में किया जाता है य यह फर- उतनी कीमती और टिकाऊ नहीं होती।
फरदार प्राणियों का शिकार आम तौर पर शरदकालीन निर्मोचन के बाद जाड़ों में किया जाता है। इस समय उनके शरीर पर घने मुलायम रोएं उगे हुए होते हैं।
इन प्राणियों का शिकार विभिन्न साधनों से किया जाता है। इनमें फंदे , कुत्ते और बंदूकें शामिल हैं। सभी प्रकार के शिकार में संबंधित प्राणियों के जीवन और आदतों का अच्छा ज्ञान आवश्यक है।
रूस में रहनेवाली विभिन्न जातियां एक लंबे अरसे से फरदार प्राणियों का शिकार करती आयी हैं। आज भी उत्तर के कुछ प्रदेशों के निवासी मुख्य पेशे के रूप में फरदार प्राणियों का शिकार करते हैं।
क्रांतिपूर्व रूस में शिकार के वहशियाना तरीकों के नतीजे में बीवर और सैबल जैसे अत्यंत मूल्यवान् फरदार प्राणियों का लगभग लोप हो रहा था। सोवियत संघ में योजनाबद्धं सोवियत अर्थ-व्यवस्था के अधीन फरदार प्राणियों की रक्षा के लिए कार्रवाइयां की जाती हैं। शिकार के नियम और अवधि निर्दिष्ट की गयी है। प्राणियों को विष देकर मार डालना या पंगु बना देना मना है। सैबल , ओट्टर और मारटेन जैसे मूल्यवान् और दुर्लभ प्राणियों का शिकार विशेष आज्ञा प्राप्त करके ही किया जा सकता है। बीवर जैसे कुछ प्राणियों के शिकार की तो पूरी मनाही है।
फरदार प्राणियों की रक्षा और फैलाव दुर्लभ प्राणियों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से विशेष रक्षित उपवन संगठित किये गये हैं (वोरोनेज बीवर-उपवन , बर्गुजिन सैबल-उपवन इत्यादि )। इन उपवनों में प्राणियों की रक्षा की जाती है और उनकी आदतों आदि का सर्वांगीण अध्ययन किया जाता है। उपवनों की कृपा से बीवर जैसे फरदार प्राणियों की रक्षा और वृद्धि हो रही है। ऐसे उपवनों के अभाव में यह प्राणी सदा के लिए लुप्त हो जाता।
सोवियत संघ में फरदार प्राणियों का पालन केवल उनके प्राकृतिक वासस्थानों में ही किया जाता हो सो बात नहीं। उनके जीवन के लिए आवश्यक स्थितियां जहां उपलब्ध हैं ऐसे अन्य नये प्रदेशों में भी उनके फैलाव के लिए कदम उठाये जाते हैं।
उदाहरणार्थ , गिलहरियां अब काकेशिया और क्रीमिया के जंगलों में पलती हैं। वहां काफी मात्रा में शंकुल वृक्ष हैं जिनके बीज गिलहरियों का भोजन है। राक्कून पहले केवल आमूर प्रदेश में पाये जाते थे पर अब वे देश के कई अन्य प्रदेशों में एक आम प्राणी बन गये हैं। भूरे शश अब पश्चिमी साइबेरिया में भी फैले हुए हैं जहां पहले उनका बिल्कुल अस्तित्व न था।
कुछ कीमती फरदार प्राणी सोवियत संघ में विदेशों से आयात किये गये हैं। इस प्रकार कुतरनेवाले प्राणी गोंडाट्रा को अमेरिका से लाया गया है।
ओंडाट्रा अपनी आधी जिंदगी पानी में बिताता है। वह किसी भी ऐसी झील या नदी में रह सकता है जिसपर वनस्पतियां उगी हुई हों। यहीं उसे अपना भोजन मिलता है। उसके भोजन में विभिन्न पौधों की जड़ें और डंडियां शामिल हैं। वह मोलस्कों और कीटों को भी खाता है । कुतरनेवाले अन्य सभी प्राणियों की तरह ओंडाटा भी जल्दी जल्दी बच्चे देता है। हर वर्ष दो-तीन बार वह चार से दस तक बच्चे पैदा करता है।
सोवियत संघ में १९२७ में आयात किया गया ओंडाट्रा अब देश के कई प्रदेशों और इलाकों में फैला हुआ है। फर देनेवाले प्राणियों में इसे चैथा स्थान (गिलहरी और लोमड़ी तथा आर्कटिक लोमड़ी के बाद) प्राप्त है।
फरदार प्राणियों के फैलाव और ऋतु-अनुकूलन में उनके जीवन से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान से बड़ी सहायता मिलती है।
फरदार प्राणियों का पालन
अत्यंत मूल्यवान् फरदार प्राणियों का पालन विशेष फार्मों के अधीन किया जाता है। कोलखोजों और राजकीय फार्मों के अपने
विशेष पशु-संवर्द्धन फार्म होते हैं जो रुपहली-काली लोमड़ी , नीली आर्कटिक लोमड़ी और सैबल का संवर्द्धन करते हैं। पशु-पालन की यह नयी शाखा इस समय सफलतापूर्वक विकसित हो रही है। फार्मों पर पाले जानेवाले फरदार प्राणियों की संख्या वर्ष प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है।
फार्मों पर फरदार प्राणियों का संवर्द्धन संभव हुआ इसका बहुत कुछ श्रेय वैज्ञानिकों के कार्य को है। इस प्रकार मास्को स्थित प्राणि-उद्यान के विज्ञान-कर्मियों द्वारा सैबल के जीवन और पोषण के संबंध में विस्तृत अध्ययन किया जाने के बाद ही इस प्राणी का पालन फार्मों पर पहली बार शुरू किया गया। वोरोनेज के रक्षित उपवन में बीवरों को पिंजड़े में रखकर पालने के संबंध में पहली सफलता प्राप्त हुई है।
वैज्ञानिक विभिन्न प्राणियों की खिलाई और उनमें फैले हुए विभिन्न कृमि-जन्य रोगों के इलाज की उचित पद्धतियों का अध्ययन करते हैं। उदाहरणार्थ, एक बात यह सिद्ध की गयी कि फरदार प्राणियों को अस्थि-चूर्ण बहुत अधिक मात्रा में नहीं खिलाना चाहिए क्योंकि उससे उनके बाल कुड़कीले हो जाते हैं और फर का दर्जा गिर जाता है।
पशु-संवर्द्धन फार्म प्राणियों की नयी नस्लों की पैदाइश में भी लगे हुए हैं। उदाहरणार्थ , रुपहली-काली लोमड़ी से हल्के रंग की फरवाली प्लैटिनम लोमड़ी पैदा की गयी है।
फरदार प्राणियों का संवर्द्धन व्यावहारिक कार्य में विज्ञान के महत्त्व का एक बढ़िया उदाहरण है।
प्रश्न – १. सोवियत संघ में कौनसे फरदार प्राणी मिलते हैं ? २. फरदार प्राणियों की रक्षा के लिए सोवियत संघ में कौनसी कार्रवाइयां की जाती हैं ? – ३. रक्षित उपत्नों का महत्त्व क्या है? ४. नये प्रदेशों में फरदार प्राणियों के फैलाव के कौनसे उदाहरण तुम जानते हो? ५. व्यावहारिक दृष्टि से फरदार प्राणियों के पालन में विज्ञान किस प्रकार सहायक है?

कृषि क्षेत्र के प्राणी
ढोर
गाय के संरचनात्मक लक्षण ढोरों में गायें , बैल और भैंसें शामिल हैं। ये समांगुलीय प्राणी हैं और उनके शरीर मोटे-ताजे होते हैं। उनके मजबूत अंगों के अंत में शृंगीय खुरों के साथ दो दो अंगुलियां होती हैं। इसके अलावा ऊपर की ओर टांगों की बगलों में दो दो छोटे खुर होते हैं।
गायें केवल वनस्पति-भोजन खाती हैं। प्राणि-भोजन से यह कम पुष्टिकर होता है और इसलिए विशेषकर गायों जैसे बड़े प्राणियों के लिए बड़ी मात्रा में आवश्यक होता है। गाय की पचनेंद्रियां श्बड़ी मात्रा में वनस्पति-भोजन के शरीरस्थीकरण और पाचन के अनुकूल होती हैं। गाय के मुंह की गहराई में ऊपर और नीचे की ओर दोनों तरफ छः छः चर्वणदंत होते हैं (प्राकृति १६७) । इनकी सहायता से वह घास चबाती है। चर्वण-दंतों की सतहें सपाट होती हैं और उनपर इनैमल की चुनटें होती हैं। सम्मुख दंत और – उन्हीं के समान सुपा-दांत केवल निचले जबड़े में होते हैं। इन दांतों और चर्वण-दंतों के बीच खाली जगह होती है। गाय के उपरले जबड़े में सम्मुख दंत और सुग्रा-दांत नहीं होते। इनके स्थान में सख्त फुलाव होता है। घास की मुट्ठी को निचले दांतों से इस फुलाव पर दबाकर गाय अपनी जीभ से उसको काटती है। इस क्रिया में उसकी जीभ मुंह से बाहर निकलती है।
कटी घास को गाय जल्दी जल्दी निगल लेती है , यहां तक कि उसे अच्छी तरह चबाती भी नहीं। लार से अच्छी तरह तर किया गया भोजन जठर में चला जाता है। जठर की संरचना जटिल होती है (प्राकृति १६८) । उसके चार हिस्से होते हैं – उदर , जाल, बड़ी झिल्ली , छोटी झिल्ली। निगला गया भोजन पहले बड़े-से उदर में पहुंचता है। यहां बहुत-से बैक्टीरिया और इनफुसोरिया होते हैं जिनकी क्रिया से भोजन में परिवर्तन होता है। उदर का आकार काफी बड़ा (इसकी समाई लगभग १८० लिटर या १५ बाल्टियों के बराबर होती है ) होता है जिससे गाय एक समय में बहुत-सी घास खा सकती है। भोजन उदर से जाल में पहुंचता है। जाल की अंदरूनी दीवारें मधुमक्खी के छत्ते जैसी होती हैं।
जठर के पहले दो हिस्से भर लेने के बाद गाय आराम से लेट जाती है। इस समय भोजन अलग अलग चूंटों के रूप में जठर से मुंह में वापस आता रहता है।
यहां चर्वण-दंतों से वह अच्छी तरह चबाया जाता है। चबाते समय गाय का निचला जबड़ा दायें बायें हिलता है (ऊपर-नीचे नहीं)।
अच्छी तरह चबाया गया और लार से तर भोजन अर्द्ध-तरल पदार्थ बन जाता है। निगलने के बाद यह पदार्थ एक नाली से होकर जठर के तीसरे हिस्से में यानी बड़ी झिल्ली में और फिर चैथे हिस्से में यानी छोटी झिल्ली में चला जाता है। छोटी झिल्ली की दीवारों से पाचक रस चूते हैं। गाय की छोटी झिल्ली अन्य स्तनधारियों के जठर के समान होती है, जबकि उसके जठर के पहले तीन हिस्सों से ग्रसिका-सी बनती है।
गाय की तरह जठर की जटिल रचनावाले समांगुलीय स्तनधारी जुगाली करनेवाले प्राणी कहलाते हैं। इनमें गाय-भैंसों के साथ बारहसिंगे और भेड़-बकरियां शामिल हैं।
गाय के जठर के बाद लंबी प्रांत होती है। इसकी दीवारों में पाचक ग्रंथियां होती हैं। इन ग्रंथियों से निकलनेवाले रस तथा पित्त और अग्न्याशयिक रस के प्रभाव से भोजन पूर्णतया पचकर रक्त में अवशोषित किया जाता है।
पचनेंद्रियां जितनी अधिक विकसित , गाय उतना ही अधिक भोजन खाती है और उतनी ही अधिक मात्रा में दूध देती है। अच्छे फार्मों में गायों को बचपन से ही भरपूर घास खाने की आदत डलवायी जाती है। इससे उनकी पचनेंद्रियों का विकास होता है।
गाय का विशेष लक्षण है उसकी अत्यंत सुविकसित स्तन-ग्रंथियां । इनके दो जोड़ों से गाय के थन बनते हैं जिनमें चार चूचियां होती हैं। इन ग्रंथियों में दूध तैयार होता है और चूचियों के अनों पर स्थित छिद्रों से बाहर आता है। बड़ी मात्रा में दूध देनेवाली गायों के सुविकसित थन होते हैं जिनमें बड़ी बड़ी रक्त वाहिनियां पहुंचती हैं। इन वाहिनियों के जरिये उन पोषक पदार्थों सहित रक्त आता है जिनसे दूध तैयार होता है।
गाय के पुरखों के मामले में दूध का उपयोग बछड़े को पिलाने के लिए ही होता था। पालतू गाय भी पहले पहल अपने बछड़े को ही दूध पिलाती है।
आम तौर पर गाय हर बार एक सुविकसित बछड़ा देती है जो लगभग फौरन अपनी मां का अनुसरण करने लगता है। बछड़े के ये गुण गाय के जंगली पुरखों के समय ही विकसित हुए थे क्योंकि तब शत्रुओं से बचने के लिए बछड़ों को वयस्क प्राणियों के साथ ही दौड़ना पड़ता था।
ढोरों के विशिष्ट बाह्य लक्षण उनके सींग हैं। सींग पोले होते हैं और खोपड़ी के हड्डीदार प्रवर्तों पर निकल आते हैं। भेड़ियों जैसे शिकारभक्षी प्राणियों से बचाव करने में सींगों का उपयोग होता है।
ढोरों का मूल जंगली सांड पालतू ढोरों का पुरखा माना जाता है (प्राकृति ढारा का १६६) । यह अभी ३०० वर्ष पहले लुप्त हआ। वह वर्तमान नस्लों में से भूरे उक्रइनी गाय-बैलों से बहुत-कुछ मिलता-जुलता था।
जंगली सांडों को बहुत प्राचीन समय में पालतू बनाया गया था। तब से बीती हुई अनेकानेक शताब्दियों के दौरान मनुष्य के प्रभाव के फलस्वरूप उनमें काफी परिवर्तन हुए।
आज के ढोर कुछ हद तक जंगली सांड से मिलते-जुलते हैं, पर इनके बीच काफी फर्क भी है। सबसे पहले दूध की मात्रा को ही लो। जंगली गायें कितना दूध देती थीं यह ज्ञात नहीं है । पर कुछ भी हो , बछड़े के लिए आवश्यक मात्रा (सालाना लगभग ५००
लिटर) से अधिक दूध वे नहीं देती थीं। आज की पालतू गायें इससे कहीं अधिक दूध देती हैं। स्पष्ट है कि जंगली गायें सिर्फ तीन-चार महीने यानी बछड़े के बड़े होने तक ही दूध देती थीं। आज की गायें बछड़े की पैदाइश के बाद दस महीने दूध देती हैं। जंगली सांडों के वंशधरों का बरताव भी बदल गया है। पालतू गायें प्रकृति से शांत होती हैं और उन्हें पालनेवाले लोगों को अच्छी तरह पहचानती हैं।
मनुष्य ने जंगली प्राणी को केवल साधा ही नहीं बल्कि अपने लिए उपयुक्त बनाने की दृष्टि से उसकी प्रकृति तक बदल डाली।
प्रश्न – १. ढोरों की पचनेंद्रियों की संरचना कैसी होती है? २. ढोर किन प्राणियों से पैदा हुए हैं और उनमें तथा उनके पुरखों में क्या फर्क है ?

Sbistudy

Recent Posts

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

2 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

4 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

6 days ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

6 days ago

elastic collision of two particles in hindi definition formula दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है

दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है elastic collision of two particles in hindi definition…

6 days ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now