जैवतकनीकी विज्ञान के प्रमुख क्षेत्र (Major areas of Biotechnology)
जैवतकनीकी विज्ञान अनेक विज्ञानों के ज्ञान पर आधारित सकल विज्ञान हैं अत: जैव रसायन सूक्ष्मजैविकी, आनुवंशिकी, कोशिका विज्ञान एवं रासायनिक अभियान्त्रिकी आदि के ज्ञान व तकनीकों का अन्योन्य रूप से लाभ अर्जित करने की विज्ञान की महत्वपूर्ण शाखा है। विज्ञान की यह शाखा मनुष्य से अधिक निकटत: जुड़ी है। आधुनिक जगत् की लगभग प्रत्येक समस्या का समाधान जैवतकनीकी द्वारा संभव है।
विश्व की बढ़ती हुई आबादी हेतु रोटी, कपड़ा, मकान, शुद्ध जल, वायु एवं स्वास्थ्य से सम्बन्धित क्षेत्रों में अनुसंधान कार्य किये गये हैं एवं आशातीत सफलता प्राप्त हुई है। इन क्षेत्रों में अनुसंधान के द्वारा नित प्रतिदिन रास्ते खुलते जा रहे हैं। इसके लिये वैज्ञानिकों द्वारा अब तक की गयी उपलब्धियों को आधार बनाकर और आगे कार्य करने की आवश्यकता है।
अधिकांश विकासशील देशों में पुनर्योगज तकनीक अनुसंधान का प्रमुख क्षेत्र बन गयी है। इसके अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों का उल्लेख आगे सारणी में किया जा रहा है। इस प्रकार अनेक उपयोगी उत्पाद प्राप्त किये जा रहे हैं जिनका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जा रहा है। पुनर्योगज, तकनीकी, नाइट्रोजन का स्थिरीकरण, जैविक ऊर्जा, किण्वक, एन्जाइम, इन्टरफेरान, हार्मोन्स, टीके, प्रतिवैविक औषधियों, जैव खाद्य, अनेक प्रकार के रसायन, प्रोटीन्स, एल्कोहाल, एक क्लोनी प्रतिरक्षियाँ, जैव उर्वरक, जैविक कीटनाशक पदार्थ, एलकलोएड्स, रोग विनाशकारी पदार्थ एवं तकनीकें, कोशिका एवं ऊत्तक संवर्धन अपशिष्ट पदार्थों का पुनः चक्रण (recycling) आदि कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यकारी क्षेत्र है जिनमें विश्व के अनेक देशों के वैज्ञानिक एवं कम्पनियाँ प्रयासरत है।
क्र.सं.
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प्रमुख कार्यकारी क्षेत्र | उत्पाद
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1. | पुनर्योगज डी.एन.ए. तकनीक
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अनेक रसायन, एन्जाइम, इन्टरफरान, वृद्धि एवं अन्य हार्मोन्स, टीके, प्रतिजैविक विटामिन्स, अमीनो अम्ल ।
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2. | मनुष्य व पालतू पशुओं में पात्रे निषेचन एवं भ्रूण स्थानान्तरण तकनीक
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संतान रहित जोड़ों में संतान प्राप्ति पालतू लाभदायक पशुओं में अण्ड स्थापना, निषेचन, भ्रूण संवर्धन, दुग्ध उत्पादन आखेट हेतु पशुओं की प्राप्ति ।
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3. | पदार्थ, एवं प्राणी कोशिका संवर्धन
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एक क्लोनी प्रतिरक्षियाँ, एल्केलॉइड्स स्टीराइड्स, इंटरफेरान, पादपों की नयी रोग रहित अधिक फल देने वाली प्रजातियाँ ।
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4. | पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया (PCR)
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विभिन्न क्रियाओं एवं उपयोग हेतु |
5. | जीन्स का पृथक्करण श्रृंखलाकरण एवं जीन संश्लेषण ।
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जीन श्रृंखला की असंख्य कापिया प्राप्त करना, क्लोनित अवस्था में, प्रतिलोमित PCR प्राप्त करना ।
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6. | पादप एवं प्राणि कोशिका संवर्धन। | विधि सतत् ऊत्तक प्राप्ति क्लोनिंग डाइबिड्स की प्राप्ति ।
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7. | ट्रान्सफेक्शन, ट्रान्सजेनिक प्राणियों की प्रति
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स्टेम कोशिकाएं अण्ड स्थानान्तरण तकनीक लक्षित जीन स्थानान्तरण टान्सजेनिक जीव प्राप्ति एवं उपयोग ।
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8. | प्रतिरक्षा विज्ञान |
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हाइक्रिडोमा, मोनाक्लोन्स प्रतिरक्षी प्राप्त करना ।
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9. | आणविक कॉच, प्राणि जीनोम का मापन
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आनुवंशिक मानचित्र प्राप्त कर इनके
विभिन्न उपयोग ।
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10. | जैव तकनीकी एवं औषधियाँ
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टीके, जॉच, जीन उपचार, प्रत्यारोपण आनुवंशिक परामर्श अदालती जाँच। |
11. | कोशिका संवर्धन
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प्रोटोप्लास्ट, पुनरूद्धभवन, कायिक, संकरण एक गुणित प्राप्ति परीक्षण, कायिक संकरण ।
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12. | पादपों में जीन स्थानान्तरण ट्रान्सजेनिक पादपों की प्राप्ति | फसल उन्नयन रोधी पादपं प्राप्ति
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13. | क्लोरोप्लास्ट माइट्रोकान्ड्रिया अभियान्त्रिकी | बाह्य क्लोरोप्लास्ट माइटोकान्ड्रिया का पादपों में निवेश । क्लोरोप्लास्ट मानचित्र प्राप्त कर लाभ अर्जित करना । |
14. | पादपों के जीनोम के मानचित्र प्राप्त करना ।
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इन तकनीकों का मानवहित में प्रयोग ।
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15. | वृद्धि में सूक्ष्मजीवों का उपयोग।
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तकनीक के लाभ एवं अनुप्रयोग । |
16. | नाइट्रोजन स्थिरीकरण
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जैव उर्वरक, जैव खाद्य पदार्थ ।
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17. | जैव ईंधन
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जैव ऊर्जा, हाइड्रोजन, इथेनॉल, मीथेन, ब्यूटेन आदि ।
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18. | किण्वक
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प्रोटीएस, कार्बोहाइड्रेज, बायोसेन्सर कीमोथेरिपिक पदार्थ |
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19. | एन्जाइम
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जैव कीटनाशक, प्रतिजैविक औषधियाँ एल्कोल, एसिटिक एसिड, विटामिन ।
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20. | जैविक पदार्थों का उपचार एवं उपयोग
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आविषालु पदार्थ, अनेक भोज्य पदार्थ एल्कोहाल, जैव ईंधन, एकल कोशीय, प्रोटीन ।
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21. | प्रक्रम अभियांत्रिकी
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जल पुर्नचक्रण, अपशिष्ट उपचार |
22. | जैव तकनीकी एवं वातावरण । | प्रदूषणों की जाँच एवं छुटकारा पाने की | विधियाँ। कृषि भूमि का उपचार, जैव विविधता, ऊर्जा प्राप्ति के प्रयोग ।
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23. | जैव तकनीकों का बौद्धिक ज्ञान का संरक्षण, पेटेन्ट किया जाना, इन पर अधिकार ।
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इस बौद्धिक ज्ञान का मानव उपयोग में ही प्रयोग इन पर अधिकार एवं नियन्त्रण । |
बिन्दु संख्या 1 से 22 तक के क्षेत्रों के वृहत ज्ञान का उपयोग अनेक क्षेत्रों में किया जा रहा है। पूरे विश्व में हरित क्रान्ति से अनेक गुना बड़ी क्रान्ति आ चुकी है। नित नये प्रयोग किये जा रहे हैं। इसे यदि पुरानी कहावत “अलादीन का चिराग हाथ लगना” तो भी इस विज्ञान को कम करके आँका नहीं जाना चाहिये। नये युग के सूत्रपात की यही किरण है जो भविष्य की रूपरेखा तय करने वाली है।
- पुनर्योगंज DNA तकनीक (Recombinant DNA technology): पुनर्योगंज डी.एन.ए. (DNA) निर्माण की विधि का विवरण अध्याय संख्या 21 में किया गया है। किसी एक जीव से एक जीन या DNA के एक अंश को पृथक करने, अन्य वाहक के साथ संयोजित किये जाने की तकनीक द्वारा प्राप्त DNA पुर्नर्योजित DNA कहलाता है। इस पुर्नर्योगज DNA को आनुवंशिक अभियांत्रिकी के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। पुनर्योगन DNA को तथा अन्य जीव में निवेश किये जाने की तकनीक का मानव कल्याण में उपयोग किये जाने के अनेक क्षेत्र खुले हैं। इस विधि से भयानक रोग हिपेटाइटिस का टीका बनाया गया है। जीवाणुओं के नये प्रभेद विकसित कर एन्जाइम पदार्थ प्राप्त किये गये हैं। कैंसर जैसे भयानक रोग के उपचार की खोज जारी है। रोग रोधी पादप, नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले पादप विकसित किये जाने की दिशा में अनुसंधान कार्य किये जा रहे हैं। इस क्रिया का उपयोग कर शिशु के जन्म से पूर्व ही जन्म-जात आनुवंशिक रोग का उपचार संभव हो सकेगा। जीन बैंक तथा DNA क्लोन बैंक बनाये गये हैं जो किसी प्राणी में उपस्थित जीन एवं उससे सम्बन्धित लक्षणों के कार्य की जानकारी उपलब्ध कराते हैं। अनेक विषाण्विक रोगों एवं मलेरिया के विरुद्ध टीके बनाने हेतु अनुसंधान कार्य किये जा रहे हैं। वृद्धि हॉरमोन एवं इन्टरफेरॉन को औद्योगिक स्तर पर प्राप्त करने में सफलता मिल चुकी हैं।
फसलों से अधिक अन्न उत्पादन हेतु जैव उर्वरकों (bio- fertilizers) एवं रासायनिक संश्लेषित उर्वरकों (synthetic fertilizers) को प्राप्त किये जाने हेतु प्रयास किये जा रहे हैं। इस प्रकार प्राप्त उर्वरक मनुष्य एवं अन्य जीवों हेतु हानि रहित होंगे। इस क्रिया से अनेक उद्योग बन्द हो जाएगें जहाँ जीवाश्म ईंधन का उपयोग होता है जो प्रदूषण भी फैलाते हैं। प्रदूषण घटाने एवं अपशिष्ट पदार्थों के उपचार हेतु इस क्रिया का उपयोग किया जा रहा है। कुछ ऐसे प्रभेद शैवाल, कवक एवं जीवाणुओं के विकसित किये गये हैं जो जटिल हानिकारक रासायनिक पदार्थों को सरल अहानिकारक पदार्थों में अपघटित करते हैं। उपयोगी रासायनिक पदार्थों, एल्कोहल, अम्ल, प्रतिजैविक पदार्थों के उत्पादन में इन क्रियाओं का उपयोग किया जा रहा है। सामाजिक वानिकी एवं कम समय में फसल देने वाली जातियों के पादपों का विकास इस क्रिया द्वारा संभव है। ग्रामीण क्षेत्रों में मल-मूत्र जैसे अपशिष्ट पदार्थों, घास-फूस, फसलों के अनुपयोगी भाग भूसा – छिलके आदि से जैव-गैस उत्पादन की दिशा में सफलता मिल गयी है किन्तु और अच्छे विभेद जो अधिक मात्रा में अधिक जैव गैस का उत्पादन करा सके पर अनुसंधान कार्य जारी है। पुनर्योगज DNA तकनीक के विस्तृत विवरण हेतु अध्याय 21 देखें ।
पुनर्योगज DNA तकनीक का उपयोग कर सोमेटोस्टेटिन (somatostatin) इन्टरफेरान, एन्टीहीमोफिलिक कारण VIII के उत्पादन में सफलता मिल चुकी है। इसी प्रकार मानव में होने वाल आनुवंशिक रोग जो डी.एन.ए. विकृति के कारण उत्पन्न होते हैं का पता लगा लिया गया है। ह्यूमन जोनोम प्रोजेक्ट के अन्तर्गत मानव के प्रत्येक गुणसूत्र पर उपस्थित प्रत्येक जीन की संरचना ज्ञात कर ली गयी है। विकृत जीन को देह के भीतर ही ठीक करने की विधि मानव जीन थैरेपी human gene therapy) विकसित की गयी है। वर्तमान में इस क्रिया हेतु लक्ष्य कोशिका (target cell) को प्राणी से पृथक कर पात्रे जीन रूपान्तरण कर पुन: उसी प्राणी में स्थानान्तरित कर दिया। जाता है। बोंयटन (Boynoton) तथा जोहनस्टन (Johnston) ने टंगस्टन से बने प्रक्षेपास्त्र बनाकर इसके आगे डी. एन. ए. स्थानान्तरित कर बायोलिस्टिक मिसाइल (biolistic missiles) बनाये हैं यह DNA माइट्रोकॉन्ड्रिया या क्लोरोप्लास्ट में प्रवेश कर जीव के अंगकों के डी.एन.ए. के साथ जुड़ जाता है।
यहाँ मानव इन्सुलिन (Insulin) उत्पादन की विधि का वर्णन किया जा रहा है। अग्नाशय की लेंगरहेन्स द्वीपसमूह कोशिकाओं का 1916 में एडवर्ड शार्पे – शेफर (Sir Edward Sharpy- Schafer) ने अध्ययन करने के समय इन कोशिकाओं से स्त्रावित होने वाले पदार्थ इन्सुलिन की खोज की। बेन्टिंग एवं बेस्ट (Banting and Best) ने 1921 में इस हार्मोन का कार्य मधुमेह रोग के निवारण हेतु बताया। 1922 में पहली बार एक नौ साल के बालक का उपचार इससे किया गया। 1923 में ऐली-लिली (Eli Lilly) ने इन्सुलिन को प्राणियों के अग्नाशय से निकाल कर उपलब्ध कराया। 100 gm इन्सुलिन प्राप्त करने हेतु 800-1000kg अग्नाशय की आवश्यकता होती थी जो अनेकों प्राणियों के बलिदान से प्राप्त होता था। मधुमेह के रोगियों की संख्या प्राप्त इन्सुलिन की मात्रा की अपेक्षा कई गुना अधिक थी। अतः नई दिशा में अनुसंधान किये गये।
अमेरिका क़ी जेनेटेक (Gentech) कम्पनी ने मानव इन्सुलिन जीवाणुओं से प्राप्त करने की दिशा में कार्य आरम्भ किया।
(i) इन्सुलिन अणु की A व Bश्रृंखला के क्रोड करने वाले 18 व 11 ऑलिगो न्युक्लिओटाइड्स (oligonucleotides) को एकत्रित कर इच्छित जीन का संश्लेषण किया।
(ii) प्रत्येक संश्लेषित जीन को एक प्लाज्मिड से क्लोन किया गया। ई. कोलाई (Ecoli) के विभेद K 12 2 के बीटा – गेलेक्टोसाइडेज (B-galactosidase) जीन के साथ यह क्लोन्ड जीन जोड़ दिया गया है।
(iii) इनसे प्राप्त दोनों पॉलिपेप्टाइड्स को एन्जाइम से पृथक कर शुद्धिकरण हेतु ले जाया गया। इनको जीवाणु से बाहर निकाल कर जोड़कर पूर्ण इन्सुलिन अणु का निर्माण किया गया।
आरम्भ में प्रति जीवाण्विक कोशिका 100,000 इन्सुलिन के प्राप्त किये गये । इन्सुलिन प्राप्ति की इस क्रिया को उपरोक्त चित्र 17.1 के द्वारा दर्शाया गया है।
- पादप एवं प्राणी कोशिका संवर्धन (Plant and animal cell culture) : प्रत्येक जीव प्राकृतिक रूप से एक माध्यम में वृद्धि एवं प्रजनन करता है। उदाहरणतः पादप मृदा में उगता है। इसमें उपस्थित पोषक पदार्थों का उपयोग कर अपना भोजन बनाता है एवं वृद्धि प्रजनन की क्रियाएं करता है। ई. कोलाई जीवाणु आन्त्र कोशिकाओं में रहने वाला परजीवी है तथा मनुष्य स्वयं स्वच्छ वातावरण में रहता है यह अपना भोजन अन्य जीवों से प्राप्त करता है। इसकी दैहिक कोशिकाएं वृद्धि करती है एवं प्रजनन करता है। स्पष्ट है कि जीवों में निरन्तरता बनाये रखने हेतु यह आवश्यक है।
पादप व प्राणी कोशिकाओं का पात्रे (in vitro) संवर्धन कर ऊत्तक, अंग एवं जीव की सम्पूर्ण देह को विकसित कराने की क्रियाएं प्रयोगशाला में की जाती है। इन क्रियाओं का उपयोग कर इच्छित अंग या ऊत्तक निर्माण हेतु किया जा सकता है। इन कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न हार्मोन्स, इन्टरफेरान या एन्जाइम्स को इस विधि से अत्यधिक मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है। मानव कोशिकाओं से प्रतिरक्षीकाय; इन्टरल्यूकिन, इन्टरफेरान जैसे रोग उपचार के तत्त्वों का व्यवसायिक तौर पर उत्पादन किया जाने लगा है। इन तत्त्वों की विश्व में अत्यधिक आवश्यकता है, तो थलेसेमिया, कैन्सर, एड्स B-हिपेटाइटिस व अन्य रोगों व अंग प्रतिरोपण किये गये रोगियों को दिये जाते हैं।
सूक्ष्मजीवों का संवर्धन पर इच्छित उत्पाद प्रोटीन, एन्जाइम, हार्मोन, विटामिन आदि प्राप्त किये जाते हैं। इस विधि से पुनर्योगज विधि से नये सूक्ष्मजीव उत्पन्न किये गये हैं जो प्रदूषकों के निम्नीकरण हेतु उपयोग में लाये जा रहे हैं
कोपलों, अण्ड या भ्रूणीय कोशिकाओं अथवा प्रोटोप्लास्ट से सम्पूर्ण पादप प्राप्त किये जाते हैं। इस पादपों में कोशिका संवर्धन की अत्यन्त महत्वपूर्ण विधि से जिसके द्वारा कोशिकाओं, बीजांकुर प्रकार कम समय व कम स्थान में अनेकों नये पादप विकसित किये जाते हैं। पुनयागज तकनीक से विकसित नयी पादप जातियाँ विकसित की गयी है जिनका संवर्धन कर इन्हें अधिक संख्या मे प्राप्त किया जाता है। प्रोटोप्लास्ट संलयन करा कर भी नयी पादप जातियाँ विकसित की गयी है। उत्परिवर्तन द्वारा विकसित पादपों का संवर्धन प्रयोगशाला में नियंत्रित परिस्थितियों व संश्लेषित माध्यम में किया जाता है ताकि असंक्रमणित शुद्ध पादप प्राप्त किये जा सके। यह एक विस्तृत एवं – जटिल विषय है जिसका विज्ञान का एक अलग शाखा के रूप में अध्ययन किया जाता है। इसका विस्तार से वर्णन अध्याय संख्या 20 में किया गया है।