कृषिनाशक या कीट विरोधी उपाय क्या होते है | फसलों को कीट पतंगों से बचाव हेतु किन-किन कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है

फसलों को कीट पतंगों से बचाव हेतु किन-किन कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है कृषिनाशक या कीट विरोधी उपाय क्या होते है | कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल से होगा ?

कृषिनाशक कीट विरोधी उपाय
मैकनिकल उपाय काकचेफर, टिड्डी, अनाजभक्षी भुनगी और गोभी की तितली के बारे में हमने जो कुछ पढ़ा उससे सुस्पष्ट होता है कि हानिकारक कीटों की जीवन-प्रणाली को समझ लेने से ही उनके विरुद्ध सबसे अच्छे तरीके इस्तेमाल किये जा सकते हैं।
काकचेफर और गोभी की तितली का वर्णन करते समय हमने बतलाया है कि इन कीटों को नष्ट करने का सबसे आसान तरीका है उन्हें इकट्ठा करके मरवा डालना।
कभी कभी बगीचे के विनाशकारी कीट विरोधी उपाय के रूप में पेड़ों के तनों पर एक न सूखनेवाले चिपचिपे द्रव से वृत्ताकार लेप लगा दिया जाता है। तने पर रेंगनेवाले विभिन्न विनाशक कीट आम तौर पर उक्त वृत्त में चिपक जाते हैं। सेब के पेड़ों के तनों में सूखे घास के पूले लपेट दिये जाते हैं (आकृति ५१)। पतझड़ में केंकर-कृमि तितली की इल्लियों जैसे कीट जाड़े में अपने को छिपाये रखने की दृष्टि से इस घास में रेंगकर चले जाते हैं। फिर इस घास को तने से हटाकर जला दिया जाता है जिससे घास के साथ कीट भी स्वाहा हो जाते हैं।
जमीन पर रेंगनेवाले विनाशक कीटों को खत्म करने के लिए विशेष मशीनरी द्वारा ढालू दीवालों और कुओं वाली खाइयां (आकृति ५२) बनायी जाती हैं।
पादचारी टिड्डी या शकरकंदभक्षी वीविल जैसे न उड़नेवाले कीट खाई में गिर जाते हैं. और उसकी ढालू दीवारों पर से चढ़कर ऊपर नहीं पा सकते। खाई से होते हुए वे कुओं में गिर जाते हैं। जब कुत्रों में ढेरों कीट इकट्ठा हो जाते हैं तो उन्हें विशेष औजारों द्वारा कुचल दिया जाता है।
विनाशक कीटों को एकत्रित करना, पेड़ों में सूखे घास के पूले लपेटना , खाइयां खोदना और कीटों को नष्ट करनेवाले ऐसे ही अन्य तरीके मैकनिकल तरीके कहलाते हैं।
विभिन्न विषैले द्रव्यों का उपयोग करना विनाशक कीटों को नष्ट करने का एक रासायनिक साधन है। इन कीटों को सहारा
देनेवाले पेड़-पौधों पर छोटे खेतों में छिड़काव-यंत्र द्वारा और बड़े बड़े क्षेत्रों में हवाई जहाज द्वारा कीटमार दवाओं का छिड़काव किया जाता है। कभी कभी मैकनिकल उपायों के साथ साथ भी रासायनिक दवाओं का उपयोग किया । जाता है। ५२ वी आकृति दिखाती है कि खाई के कुओं में इकट्ठा कीटों को जहर खिलाने की दृष्टि से डी० डी० टी० पाउडर डाला जा रहा है।
कुछ विष घोल के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं। जैसे – पानी मिश्रित केरोसिन, डी० डी० टी० पाउडर, तंबाकू का काढ़ा, टमाटर की पत्तियों का काढ़ा-ये घोल – छिड़काव-यंत्र (आकृति ५३) की सहायता से छिड़के जाते हैं।
खेती की फसलों वाले बड़े बड़े क्षेत्रों में ट्रेक्टर पर रखी पिचकारियों और छिड़काव-यंत्रों का उपयोग किया जाता है। विशाल क्षेत्रों में कृषिनाशक कीटों से छुटकारा पाने के लिए अधिकाधिक मात्रा में हवाई जहाजों का उपयोग किया जाने लगा है। यह सबसे किफायती और असरदार तरीका है (आकृति ५४) ।
बायोलोजिकल उपाय मैकनिकल और बायोलोजिकल उपाय रासायनिक उपायों के अलावा विनाशक कीटों को नष्ट करने में भी अपनाये जाते हैं। पंछियों और परजीवियों जैसे कृषिनाशक कीटों के शत्रुओं को इस काम में लगाया जाता है।
हानिकर कीटों का इचनेउमन के अलावा एक और परजीवी है ट्राइकोग्राम (आकृति ५५)। यह सूक्ष्म कीट कई हानिकर कीटों के अंडों में अपने अंडे देता है। जैसे ही काडलिन का मौसम आता है , सेब के पेड़ की डालों में थैलियां टांग दी जाती हैं। इन थैलियों में अनाजभक्षी शलभ के ऐसे अंडे रखे रहते हैं जिनमें ट्राइकोग्राम ने अपने अंडे डाल दिये हैं। अंडों से निकलनेवाले ट्राइकोग्राम काडलिन के अंडे ढूंढते हैं और उनके अंदर अपने सूक्ष्मतर अंडे डाल देते हैं। ट्राइकोग्राम के डिंभ हानिकर कीट को खा जाते हैं जिनमें वे सेये जाते हैं। इससे हानिकर कीट नष्ट होकर फल-बाग की सुरक्षा होती है।
कृषि-प्राविधिक उपाय हानिकर कीट विरोधी लड़ाई में कृषि-प्राविधिक उपायों का कृषि प्राविधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है।
पौधों के चारों ओर मिट्टी के ढेर लगाना कृषि-प्राविधिक उपायों में से एक है। यह गोभी की मक्खी के खिलाफ खास असरदार है। इस कीट के डिंभ ऊपर ऊपर से सफेद कृमियों-से लगते हैं। ये गोभी की जड़ों के अंदर अंदर चरते हुए उसमें सूराख और सुरंगें बनाकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। पौधे का बढ़ना रुक जाता है और वह नष्ट हो सकता है। यदि गोभी के चारों ओर मिट्टी के ढेर लगाये जायें तो उसमें जड़ों का एक और वृत्त तैयार होता है। इससे हानिकर कीट के डिंभ मर तो नहीं जाते पर पौधा संभल जाता है।
हानिकर कीट विरोधी कृषि-प्राविधिक उपायों में निम्नलिखित बातें शामिल हैंहानिकर कीट जिन्हें खाकर जीते और पलते हैं उन मोथों का नाश , खेतों और सब्जी-बागों की समय पर दुबारा जुताई, संबंधित फसल को हानि पहुंचानेवाले कीटों के परिवर्द्धन के समय के कुछ पहले और कुछ मामलों में कुछ बाद फसल की बुवाई, इत्यादि।
कीटों के शिकार बनने की कम संभावनावाली पौधों की किस्में चुन लेना भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। उदाहरणार्थ सूरजमुखी की एक संरक्षित किस्म तैयार की गयी है जो सूरजमुखी के शलभों का मुकाबिला कर सकती है।
सोवियत संग में कृषिनाशक कीट विरोधी उपाय सोवियत संघ में कृषिनाशक कीट विरोधी कार्रवाइयां अखिल राज्यीय स्तर पर की जाती हैं और उसी के अनुसार उनका आयोजन होता है। हमारे देश में पौध-रक्षा का खयाल रखनेवाली विशेष संस्थाएं हैं। हानिकर कीटों के पलने-पुसने के क्षेत्रों का पूर्व-निरीक्षण अच्छी तरह संगठित किया जाता है। इससे हमें पता चल सकता है कि कौनसे क्षेत्र में ये कीट पैदा हो सकेंगे। कीटमार दवाओं के बड़े पैमाने के उत्पादन और उनके छिड़काव के लिए विस्तृत परिमाण में हवाई जहाजों के प्रयोग के फलस्वरूप कीटों का फैलाव फौरन रोक डालना संभव होता है। कृषि टेकनीक के ऊंचे स्तर और कोलखोजों तथा सोवखोजों के यंत्रीकरण में हानिकर कीटों के नियंत्रण में सहायता मिलती है।
हानिकर कीटों के बिनाग में युवा प्रकृतिप्रेमी अर्थात् पायोनियर और अन्य स्कूली लड़के-लड़कियां सक्रिय भाग लेते हैं। कोलखोजों और राजकीय फार्मों द्वारा बनाये गये विभिन्न काम पूरे करने के फलस्वरूप बहुत-से स्कूली लड़कों-लड़कियों को आर्थिक उपलब्धियों की अखिल संघीय प्रदर्शनी में भाग लेने का अधिकार और सम्मान-पत्र और पुरस्कार दिये जाते हैं।
प्रश्न – १. हानिकर कीटों के नियंत्रण में उनके जीवन की जानकारी का क्या महत्त्व है ? २. सोवियत संघ में हानिकर कीटों के नियंत्रण के लिए कौनसे कदम उठाये जाते हैं ?
व्यावहारिक अभ्यास – १. केमिस्ट की दुकान से कुछ डी० डी० टी० पाउडर खरीदकर हानिकर कीटग्रस्त घरेलू पौधों पर छिड़क दो। इस दवा के प्रभाव का निरीक्षण करो। २. गरमी के मौसम में टमाटर की पत्तियों का काढ़ा तैयार करके पौध-चीचड़ों से ग्रस्त पौधों पर उसके फव्वारे उड़ायो। नोट कर लो उसका क्या प्रभाव पड़ता है। ३. हानिकर कीटों का संग्रह तैयार करो।
 रोग-उत्पादकों के कीट-वाहक
मलेरिया का मच्छर आज हमें ऐसे कई प्राणी मालूम हैं जो किसी न किसी रोग का उत्पादक जन्तु का प्रसार करते हैं। ऐसे एक कीट का उल्लेख पहले हो चुका है। यह है मलेरिया का मच्छर (आकृति ५६)। इसका नीचे उतरने का तरीका साधारण मच्छर से भिन्न होता है। साधारण मच्छर जिस सतह पर बैठता है उससे अपना शरीर समानांतर रखता है। इसके विपरीत मलेरिया का मच्छर सतह से कोण बनाकर बैठता है। सिर उसका झुका हुआ रहता है और शरीर का पिछला सिरा हवा में ऊंचा उठाया हुआ।
मलेरिया का मच्छर ऐसे छिछले पानी की सतह पर अंडे देता है जहां जोरदार लहरें नहीं उठतीं। अंडे सेकर उनमें से डिंभ निकलते हैं। आम तौर पर डिंभ अपने शरीर पानी की सतह से समानांतर रखते हैं और शरीर के पिछले सिरे में स्थित दो श्वासछिद्रों से वायुमण्डलीय हवा अवशोषित करते हैं। डिंभ पानी में तैरनेवाले सूक्ष्म जीवों (बैक्टीरिया , प्रोटोजोआ) को खाकर रहते हैं। वे जल्दी जल्दी बढ़ते हैं और आखिर प्यूपा बन जाते हैं। मच्छर के प्यूपा भी पानी ही में रहते हैं। वे बड़े-से अल्पविराम की शकल में झुके हुए होते हैं। प्यूपा के शरीर के अगले सिरे में दो श्वासनलियां होती हैं जो उनके सिर के पिछले हिस्से में दो कानों की तरह निकली हुई होती हैं। प्यूपा सिर ऊपर उठाये हुए तैरते हैं।
मच्छर के प्यूपा पानी की सतह पर सेये जाते हैं। प्यूपा का काइटिनीय आवरण पीठ की ओर फट जाता है और उससे वयस्क कीट बाहर आता है। फटा हुआ आवरण मच्छर को तैरते हुए लढे का सा काम देता है जिसपर पड़ा रहकर वह सूखता है। सेने के समय पानी के जरा भी हिलने से हजारों मच्छर मर जाते हैं।
साधारण मच्छर भी इसी प्रकार बड़ा होता है। मलेरिया के मच्छर के विपरीत इसके डिंभ पानी की सतह पर समानांतर नहीं, बल्कि कोण बनाये रहते हैं। इसके श्वासछिद्र एक विशेष नली पर होते हैं जो मलेरिया के मच्छर के डिंभ के नहीं होती।
यदि पानी में केरोसिन उंडेला जाये तो पानी से हल्का होने के कारण वह उसकी सतह पर फैल जाता है। डिंभ तथा प्यूपों के श्वासछिद्रों में घुसकर केरोसिन उनका हवा में सांस लेना बंद कर देता है य फलतः वे मर जाते हैं। मलेरिया के मच्छर को नष्ट करने के दूसरे तरीके ५ में बताये गये हैं।
घरेलू मक्खी घरेलू मक्खी (आकृति ५७ ) संक्रामक रोगों को फैलानेवाला एक भयानक प्राणी है। सफेद कृमि की शकल के इसके डिंभ कूड़े-करकट में रहते और परिवर्दि्धत होते हैं। मक्खी यहीं अपने अंडे देती है। प्यूपा में परिवर्तित होने से पहले डिंभ कूड़े-करकट से रेंगकर बाहर आते हैं , जमीन के अंदर घुस जाते हैं और वहीं प्यूपा बन जाते हैं। ध्यान रहे कि प्यूपा अपना आवरण नहीं उतार देते । यह आवरण भूरा और सख्त बन जाता है और प्यूपा को जैसे एक नन्हे-से पीपे में बंद कर लेता है। प्यूपा से निकलनेवाले वयस्क कीट खाने की तलाश में हर जगह उड़कर जाते हैं । पाखानों और कडे-करकट के ढेरों से उड़कर वे खाद्य-पदार्थों पर आ बैठते हैं और उन्हें दूषित कर देते हैं। मक्खियां प्रांत और जठर के रोगों के बैकटीरिया और एस्कराइड के अंडे लाकर मनुष्य के भोजन पर छोड़ देती हैं। अतः मक्खियों का नाश करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। जहां कहीं इनके डिंभ पलते-पुसते हैं उन सभी जगहों में क्लोराइड ऑफ लाइम या डी ० डी० टी० पाउडर का छिड़काव करना चाहिए। जालीदार ढकनों का उपयोग करके अन्न को मक्खियों से बचाये रखना और खाने से पहले साग-सब्जियों को साफ करना जरूरी है। मक्खी-विरोधी सफल उपायों के उदाहरण के रूप में चीनी जनवादी जनतंत्र में की गयी कार्रवाइयों का उल्लेख किया जा सकता है। वहां बिल्कुल सीधे-सादे साधनों से मक्खियों का नामोनिशान मिटाया गया। धात के या धान के सूखे डंठलों के जालीदार फ्लैपर इनमें शामिल थे। ऐसे फ्लैपरों से हवा नहीं चलती जिससे डरकर मक्खियां दूर उड़ जायें। दूसरा एक साधन था नुकीली छड़ियां जिनसे जमीन को खोदकर मक्खियों के डिंभ बाहर निकाले जाते थे। देश की समूची जनता द्वारा उठाये गये इन कदमों के परिणामस्वरूप बड़ी भारी मात्रा में मक्खियों का नाश हुआ , शहर के शहर इन हानिकर प्राणियों से मुक्त हुए।
जूं (आकृति ५८) तो मक्खी से भी ज्यादा खतरनाक है। यह टाइफस नामक भयंकर बीमारी के उत्पादकों के प्रसारकों को रोगग्रस्त आदमी के शरीर से लाकर नीरोग व्यक्ति के शरीर में पहुंचा देती है। जब कोई व्यक्ति जूं से काटे गये स्थान को खुजलाता है तो वह टाइफस के माइक्रोबों से भरी जूं की विष्ठा को अपने शरीर के घाव में रगड़ देता है।
सिर की जूएं मनुष्यों के बालों में रहती हैं। वहीं वे अपने अंडे चिपका देती हैं। रॉ के अंडे लीखें कहलाते हैं। कपड़े की जूंएं कपड़ों की सिलवटों में रहती है और वहीं अंडे देती हैं। अंडे डिंभों में परिवर्दि्धत होते हैं और उनकी गकल वयस्क कीट जैसी ही होती है। जूं अत्यंत बहुप्रसव प्राणी है । एक महीने की अवधि में मादा जूं सैकड़ों की पीढ़ी को जन्म देती है।
जूं त्वचा का परजीवी प्राणी है और इसी कारण उसमें कई ऐसी विशेषताएं विकसित हुई हैं जो मुक्त संचारी प्राणियों में नहीं पायी जातीं। जू के पैरों में बहुत ही मजबूत नखर होते हैं जिनके सहारे वह बालों या कपड़े की सिलवटों से चिपकी रहती है। जूं की मूंड के अंत में अंकुड़ियां होती हैं और मनुष्य का रक्त चूमते समय यह प्राणी इन्हीं के सहारे मनुष्य की त्वचा में चिपका रहता है। जूं के पंख नहीं होते।
जूं से वचके रहने की दृष्टि से निम्नलिखित बातें आवश्यक हैं – नियमित स्नान , साफ बाल , साफ-सुथरे अंदरूनी कपड़े जिनकी सिलवटें गरम इस्तरी द्वारा हटायी गयी हों।
यदि जूंएं दिखाई दें तो ऊपरवाले कपड़ों को कुछ देर गरम हवावाले विशेष कक्ष में रखना चाहिए।
पिस्सू जूं की तरह पिस्सू (आकृति ५६) भी मनुष्य की त्वचा का परजीवी है। इसी कारण उसमें कई विशेषताएं विकसित हुई हैं। उसके मुंहवाले हिस्सों में त्वचा-भेदक अंग होते हैं। पिस्सू जोरदार छलांगें मारते हुए चलती है जिससे उसे नष्ट करना बड़ा मुश्किल होता है। उसका छोटा-सा आकार और काइटिनीय आवरण उसे कुचल जाने से बचाते हैं।
पिस्सू अपने अंडे फर्श की दरारों और कूड़े-करकट के ढेरों में देती है। अंडे डिभों में परिवर्तित होते हैं। इनसे नन्हे नन्हे सफेद कृमि निकलते हैं जिनके पैर नहीं होते। पिस्सू के पूरे परिवर्द्धन में एक महीना लग जाता है।
पिस्सू. प्लेग या ‘काली मौत‘ के माइक्रोब कुतरनेवाले जंतुओं से और विशेषकर घूसों से लेकर मनुष्य के शरीर में पहुंचा देती है।
यह रोग उक्त कीट की विष्ठा या डंक के जरिये फैलता है। मध्य युगों में सबसे ज्यादा लोग इस महामारी के शिकार होते थे। हमारे जमाने में चिकित्सा विज्ञान की उपलब्धियों के फलस्वरूप प्लेग नष्टप्राय हो चुका है। फिर भी संभाव्य महामारियों को रोक डालने की दृष्टि से कुतरनेवाले प्राणियों को मार डालना और पिस्सुओं को नष्ट करना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । पिस्सुओं के नाश के लिए डी ० डी० टी० पाउडर एक बहुत अच्छा साधन है।
महामारी विरोधी उपाय एक जमाना ऐसा था जब लोगों को संक्रामक रोगों के कारण मालूम न थे और वे पूरी तरह अंधविश्वासों के प्रभाव में उपाय रहते थे। मध्य युगों में प्लेग की महामारी का कारण जादू-टोना बताया जाता था और बहुत-से निरपराध लोगों को जादू-टोने के अपराधी मानकर जिंदा जला दिया गया था। मध्य युगों में संक्रामक रोगों का उद्भव सर्वत्र हुआ था।
संक्रामक रोगों के उत्पादकों और उनके वाहक जंतुओं का पता लग जाने के बाद ही इन रोगों के विरुद्ध चल रही लड़ाई में एक नया दौर आया। सांस्कृतिक प्रगति और स्वास्थ्य सेवा के विकास ने रोगों पर मनुष्य की विजय में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। उदाहरणार्थ , विगत महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध-काल में टाइफस जैसे किसी भी भयानक रोग की महामारी का उद्भव नहीं हुआ जबकि पिछले सभी युद्धों के समय ऐसी महामारियां फैली थीं।
प्रश्न – १. कौनसे कीट संक्रामक रोग-उत्पादकों के वाहन का काम देते हैं और कैसे ? २. रोग-वाहकों का मुकाबिला कैसे किया जाता है ?
व्यावहारिक अभ्यास – १. वसंत ऋतु में मच्छरों की पैदाइशवाला पानी ढूंढ लो। ऐसा कुछ पानी शीशे के एक बरतन में डालकर उसका मुंह जाली से बंद कर दो। मच्छरों के सेये जाने का निरीक्षण करो।