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कार्बोहाइड्रेट : संरचना, कार्य, महत्त्व एवं उपापचय (Carbohydrate : Structure, Fucntion, Significance and Metabolism in hindi)
(Carbohydrate : Structure, Fucntion, Significance and Metabolism in hindi) कार्बोहाइड्रेट : संरचना, कार्य, महत्त्व एवं उपापचय
कार्बोहाइड्रेट ऐसे यौगिक होते हैं जो प्रमुख रूप से ऊर्जा के स्रोत होते हैं। शरीर में आवश्यक ऊर्जा का अधिकतर भाग हमें या जीवों में इनसे मिलता है।
कार्बोहाइड्रेट ऐसे यौगिक होते हैं जिनमें कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सजीन होते हैं। इनमें सामान्यता H एवं O का अनुपात 2: 1 होता है। ( जल के समान), परन्तु कुछ पदार्थ जैसे फॉर्मेल्डीहाइड (HCHÓ) एवं एसिटिक अम्ल (CH3COOH) में H एवं O का अनुपात 2: 1 होता है परन्तु ये शर्कराएँ (sugars) नहीं हैं। इसी प्रकार डी-ऑक्सीराइबोज (C5H10O4) एवं रेहमनोज (C6H12O5) शर्कराएँ है परन्तु इनमें H एवं O का अनुपात 2: 1 नहीं होता है।
कार्बोहाइड्रेट्स रासायनिय दृष्टि से पोलीहाइड्रॉक्सी एल्डीहाइड ( – CHO) या पोलीहाइड्रॉक्सी कीटोन (- C = O) होते हैं। समस्त जीवधारियों के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत कार्बोहाइड्रेट्स ही है। सभी प्राणी तथा वे सभी पौधे जो हरे नहीं हैं ( कवक, बैक्टीरिया तथा वाइरस) कार्बोहाइड्रेटों की सप्लाई के लिए हरे पौधों पर निर्भर करते हैं।
ग्लूकोस में एल्डोस समूह ऐल्डोस व कीटोनस
फ्रक्टोस में कीटोन समूह
कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण (Classification of carbohydrates)
संरचना के आधार पर कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण
- मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharides)
- ओलाइगोसैकराइड्स (Oligosaccharides) (ओलीइगोमर)
- पॉलीसैकेराइड्स (Polysacchardes) (पॉलीमर)
- मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharides)
ये सरल शर्कराएँ होती है जिनका आणुभविक (“एम्पिरिकल”) सूत्र Cn (H2O)n होता है।
इनके अणुओं में मौजूदा कार्बन परमाणुओं की संख्या के अनुसार इन्हें वगीकृत किया जाता है।
(i) ट्राइओज (Trioses )- इन शर्कराओं के अणुओं में कार्बन के तीन परमाणु होते हैं।
डाईहाइड्रोक्सीऐसीटोन (कीटोज शर्करा )
उदाहरण- ग्लीसरॉलरीहाइड तथा डाइहाइड्रॉक्सी ऐसिटोन ।
(ii) टेट्रोज (Tetroses)—– इन शर्कराओं के अणुओं में कार्बन के चार परमाणु होते हैं।
उदाहरण – एरिथ्रोस, एरिथ्रोलोस, थ्रिओस एवं थिओलोस आदि ।
(iii) पेंटोज (Pentoses)—– इन शर्कराओं के अणुओं में कार्बन के पाँच परमाणु होते हैं।
उदाहरण- राइबोस, डीऑक्सीरइबोस, राइबुलोस, एरेबिनोस, जाइलोज आदि। (iv) हेक्सोज (Hexoses)- इन शर्कराओं के अणुओं में कार्बन छ: परमाणु होते हैं।
उदाहरण – ग्लूकोज, फ्रक्टोज, गेलेक्टोज तथा मैन्नौज।
(v) हेप्टोज (Heptoses) – इन शर्कराओं के अणुओं में कार्बन के सात परमाणु होते हैं। उदाहरण-सेडोहेप्टुलोज।
मोनोसैकेराइड्स मोनोमर होते हैं अतः उन्हें और आगे सरलतम यौगिकों में नहीं तोड़ा जा सकता अर्थात् उनका जल-अपघटन (hydrolysis) नहीं हो सकता ।
प्रोटोप्लाज्म में सर्वाधिक पाए जाने वाले मोनोसैकेराइड्स पेंटोज और हेक्सोन होते हैं। राइबोज नामक पेंटोज शर्करा राइबोन्यूक्लिइक अम्ल (RNA) में तथा कुछ एंजाइमों, जैसे कि निकोटिनेमाइड ऐडिनीन डाइन्यूक्लिओटाइड (NAD). DNA फॉस्फेट (NADP), ऐडिनोसिन ट्राइफॉस्फेट (ATP) तथा कोएन्जाइम A (Co-A) का महत्वपूर्ण यौगिक होती है।
एक अन्य पेंटोज शर्करा जिसे डिऑक्सीराइबोज कहते हैं, डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (DNA) का महत्वपूर्ण घटक होती है।
राइबुलोज एवं पेंटोज़ शर्करा होती है जो प्रकाश-संश्लेषण क्रियाविधि के लिए आवश्यक होती है। ग्लूकोज कही जाने वाले हेक्सोज शर्करा कोशिका के लिए ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है।
- ओलाइगोसैकराइड्स (Oligosaccharides)
- इनके अणुओं 2 से 10 मोनोसैकेराइड्स (मोनोमर) होते हैं।
- ये मोनोमर ग्लाइकोसिडिक बन्धनों द्वारा एक दूसरे से जुड़े रहते हैं।
- कुछ महत्वपूर्ण ओलाइगोसैकेराइड्स निम्न है :
(i) डाइसैकेराइड्स (Disaccharides)—- इनमें दो मोनोमर होते हैं, जैसे-सुक्रोज, माल्टोज, लैक्टोज तथा ट्रिहेलोज एवं सैलोबायोज आदि
(a) माल्टोज (Maltose)
(i) माल्टोज के जल अपघटन में ग्लूकोज के दो अणु होते हैं।
(ii) माल्टोज प्रकृति में स्वतंत्र रूप से अधिक नहीं पायी जाती, किन्तु फिर भी अंकुरित दालों तथा माल्ट में यह विशेष रूप में मिलती है।
(ii) माल्टोज स्टार्च के एंजाइमिक अम्ल जल अपघटन का एक प्रमुख उत्पाद (product) है।
चित्र 12.2: विभिन्न प्रकार के डाइसैकराइड्
(b) लेक्टोज (Lactose)
(i) लेक्टोज केवल स्तनियों में पायी जाने वाली शर्करा है जिसकी मात्रा दूध में लगभग 5 प्रतिशत होती है। जल अपघटन होने पर यह एक अणु गैलेक्टोज तथा एक अणु ग्लूकोज में विघटित हो जाती है।
(c) सुक्रोज (Sucrose)
वाणिज्य तथा रसोई की सामान्य चीनी है जो व्यावसायिक रूप में यह ईख अथवा चुकन्दर से प्राप्त की जाती है, किन्तु विभिन्न मात्रा में यह बहुत से फलों, पत्तियों, फूल तथा जड़ों आदि में भी पायी जाती है।
सुक्रोज के जल अपघटन (hydrolysis) से एक अणु ग्लूकोज तथा एक अणु फ्रक्टोज प्राप्त होते हैं।
(d) ट्रिहलोज (Trehalose)
ट्रिहलोज कीट हीमोलिम्फ की मुख्या शर्करा है जो पोधौं में यह फफूंद तथी यीस्ट में पायी जाती हैं |
(ii) ट्राइसैकेराइड्स (Trisaccharides) – इनमें तीन मोनोमर होते हैं।
जैसे- रेफिनोज, मैनोट्राइओज, रैबिनोज, नेन्टिऐनोज तथा मेलेजिटोज । (iii) टेट्रासैकेराइड्स (Tetrasaccharides)- इनमें चार मोनोमर होते हैं। जैसे- स्टेकिओज एवं स्कॉरडोज
(iv) पेंटासैकेराइड्स (Pentasaccharides)– इनमें पाँच मोनोमर आते हैं। जैस- वर्बेस्कोज |
- पॉलीसैकेराइड्स (Polysacchardes)
जल अपघटन (hydrolysis) की क्रिया होने पर पौलीसैकेराइड्स के एक अणु से मोनोसैकेराइड्स के 9 अधिक अणु प्राप्त होते हैं । इनका सामान्यसूत्र (C6H10O5)n है।
प्रत्येक पॉलीसैकेराइड की रचना में भाग लेने वाली मोनोसैकेराइड इकाइयों को संयोजित करने वाले वाला बन्ध सदैव एकग्र ग्लाइकोसायडिक बंध (glycosidci bond) होता है।
प्रमुख जैविक महत्त्व वाले पौलीसैकेराइड्स निम्नलिखित है :
(i) सैल्यूलोज (Cellulose) — यह एक महत्त्वपूर्ण पोलीसैकेराइड है जो पौधों की कोशिका – भित्तियों में पाया जाता है। इसका सबसे शुद्ध स्रोत रुई (cotton) है जिससे लगभग 90% सैल्यूलोज होता हैं। यह आयोडीन के साथ कोई रंग नहीं देता तथा साधारण विलयकों में घुलनशील नहीं हैं।
स्तनियों में सैल्यूलोज नामक एंजाइम नहीं होता, इसलिये वे लकड़ी तथा पादप रेशों को पचा सकने में असमर्थ होते हैं। सैल्यूलोज में ग्लूकोज की लगभग 2000 इकाईयाँ एक सीधी श्रृंखला में समायोजित रहती है।
(ii) स्टार्च (Starch)— भोजन में कार्बोहाइड्रेट का यह सबसे अच्छा स्रोत है जो अन्य पदार्थों (cereals), दालों, आलू तथा अनेक तरकारियों में पाया जाता है।
प्राकृतिक स्टार्च पानी में अघुनशील है और आयोडीन के घोल के साथ नीला रंग देता है। स्टार्च का मिश्रण है जो एमाइलेज ( amylose, 15-20%) एवं एमइलोपक्टिन (amylopectin, 80-85%) है।
(iii) ग्लाइकोजन (Glycogen ) – जन्तुओं के शरीर में स्टार्च का प्रतिरूप (counterpart) ग्लाइकोजन है जो यकृत तथा मांसपेशियों में संग्रहित भोजन के रूप में पाया जाता है।
यह एक बहु शाखीय पौलीसेकेराइड है जो पूर्णतया * – D- ग्लूकोज इकाइयों का बना होता है। यह ग्लूकोज इकाइयों एक दूसरे से पहले और चौथे (1 : 4) कार्बन परमाणुओं पर बन्ध द्वारा जुड़ी हैं। शाखा बिन्दुओं पर यह बन्ध पहले और छठे (1 : 6) कार्बन परमाणुओं के मध्य बनता है ।
आवश्यकता पड़ने पर ग्लाइकोजन पुनः ग्लूकोज में टूट जाता है और रक्त में पहुँचकर शरीर में काम आ जाता है। एक स्टार्च है जो फ्रक्टोज में जल अपघटित हो सकता है।
(iv) इन्सुलिन (Insulin)— कुछ पोधों की जड़ों तथा कन्दों (tubers) में पाये जाने वाले यह यह ग्लोमेरुलर निस्यंदर दर (glomerular filtration rate) ज्ञात करने के काम में आता है।
चित्र : 12.6 : ग्लाइकोजन की संरचना
(v) डेक्साट्रिन्स (Dextrins)—- यह वह पदार्थ है जो स्टार्च के जल अपघटन के दौरान बनते हैं। आंशिक रूप में पचे हुए स्टार्च अक्रिस्टलीय (amorphous) होते हैं।
(vi) काइटिन (Chitin) — यह अकशेरुकी (invertebrates) जंतुओं का एक महत्वपूर्ण रचनात्मक पौलीसैकेराइड है जो कीट तथा क्रस्टेशिया के बाह्य कंकाल (exoskeleton) में पाया जाता है।
चित्र 12.7 काइटिन की संरचना में उपस्थित एकल इकाई
यह N-एसिटाइल-डी-ग्लुकोसेमाइन (N-acetyl-D-glycosamine) इकाइयों का बना होता है जो एक दूसरे से 1 : 4 ग्लाइकोसाइडिक बन्धनों द्वारा संयोजित रहती है।
(vii) डेक्स्ट्रान. (Dextran ) – यह यीस्ट (yeast) एवं जीवाणुओं (bacteria) में पाये जाने पॉलिसेकेराइड है।
यह कंवल ग्लूकोज इकाइयों द्वारा बना होता है तथा अतिशाखित (highly branched ) होने के कारण यह ग्लाइकोजन से मिलता-जुलता है। कुछ
जटिल पौलीसैकेराइड्स ( Some complex polysaccharides)
- i) म्यूकोपौलीसैकेराइड्स (Mucopolysaccharides
:
इनमें एमीनों शर्कराएँ तथा यूरेनिक (uranic) अम्ल पाये जाते हैं। इनके उदाहरण निम्नलिखित
(a) हायल्युरौनिक अम्ल (Hyluronic acid ) – यह एक लसलसा (viscous) पौलीसैकेराइड है जो N-एसीटाइल-ग्लूकोसैमाइन तथा ग्लुकुरोनि (glucoronic) अम्ल अवशेषों की श्रृंखला का बना होता
यह अम्ल संयोजी ऊत्तक (connective tissue) में पाया जाता है और एक प्रकार के अन्तरकोशिकीय (intercellular) सीमेन्ट का कार्य करता है।
चित्र 12.8 : हाइएल्यूरॉनिक अम्ल में उपस्थित इकाई
(b) कौन्ड्राइटिन सल्फेट ( Chondroitin sulphate) — यह पौलीसैकेराइड कार्टिलेज में पाया जाता है।
- इसकी रचना हाइएल्युरौनिक एसिड के समान ही होती है, अन्तर केवल इतना होता है कि इसमें एसीटाइल ग्लूकोमाइन के स्थान पर गैलेक्टोसेमाइन सल्फेट (galactosamine sulphate) पाया जाता है।
(c) हिपैरिन (Heparin) — यह एक शक्तिशाली थक्कारोधक (antihrombic) प्यूकोपौलीसैकेराइड है। यह प्रोथ्रोम्बिन का थ्रोम्बिन में बदलने से रोकता है।
इसके फलस्वरूप फाइब्रिनोजेन का फाइब्रिन में परिवर्तन रूक जाता है क्योंकि इस क्रिया के लिये थ्रोम्बिन एक उत्प्रेरक (catalyst) के रूप में आवश्यक होता है।
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