हमारी app डाउनलोड करे और फ्री में पढाई करे
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now
Download our app now हमारी app डाउनलोड करे

राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशें क्या थी 1956 और 1953 , state reorganization commission in hindi

By   January 5, 2023

प्रश्न : राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशें क्या थी 1956 और 1953 , state reorganization commission in hindi ?

स्वातंत्रयोत्तर भारत में राज्यों एवं संघ-शासित प्रदेशों का पुनर्गठनः 1955 में भारत

सब्सक्राइब करे youtube चैनल

26 जनवरी, 1950 को राज्यों के संघ एवं संप्रभुता संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य के रूप में एक नए भारत का जन्म हुआ। यहां प्रत्येक पांच वर्ष में नए आम चुनाव संपन्न होते हैं। भारतीय संविधान में सरकार या शासन का मुख्य प्रारूप ब्रिटिश संसदीय नियमों के अनुसार है। इसमें द्विसदनीय व्यवस्था है, जिसमें लोकसभा संसद का निम्न सदन एवं राज्यसभा संसद का उच्च सदन है। भारतीय संघ में शक्तियों का विभाजन दिल्ली में केंद्र एवं राज्यों (पूर्व के ब्रिटिश प्रांत एवं देशी रियासतें) के मध्य किया गया है। प्रत्येक , राज्य में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत एक राज्यपाल तथा जनता द्वारा निर्वाचित एक मुख्यमंत्री (अप्रत्यक्ष निर्वाचन) होता है। प्रत्येक राज्य की अपनी विधानसभा होती है। 1953 में भारत की मुख्य 14 प्रादेशिक भाषाओं के आधार पर प्रांतों के पुनर्गठन हेतु एक आयोग का गठन किया गया, जिसने 1956 में अपनी सिफारिशें दीं। इन सिफारिशों के आधार पर बड़े प्रांतों का पुनर्गठन किया गया। विधान, विधि एवं प्रतियोगी परीक्षाओं का माध्यम हिन्दी एवं अंग्रेजी दोनों को रखने का निश्चय किया गया।
1953 में, ‘मद्रास‘ के पूर्व प्रांत को तमिलनाडु एवं जहां तेलुगू बोली जाती थी, को आंध्र प्रदेश नामक दो बड़े राज्यों में विभाजित कर दिया गया। नेहरू ने भारत के आंतरिक मानचित्र के पुनअभिकल्पन हेतु एक राज्य पुनर्गठन आयोग नियुक्त किया। इसने 1956 में पारित राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत् दक्षिण भारत की प्रशासनिक सीमाओं का पुनः आरेखन किया। 1960 में ‘बम्बई‘ के पूर्व प्रांत को मराठी भाषी महाराष्ट्र एवं गुजराती भाषी-गुजरात में विभाजित कर दिया गया।
भारत की लगभग 570 देशी रियासतों में से जूनागढ़, हैदराबाद एवं कश्मीर को छोड़कर अन्य सभी ने भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित होने के पक्ष में सहमति दी। बाद में ये तीनों रियासतें 1948 में भारत में सम्मिलित हुईं। प्रारंभ में कश्मीर के महाराजा हरीसिंह स्वतंत्र रहने के पक्ष में थे, किंतु अक्टूबर, 1947 में जब कश्मीर पर पश्तून कबाइलियों ने आक्रमण किया तो वे भारत में सम्मिलित होने के लिए सहमत हो गए। यद्यपि इस आक्रमण में कबाइलियों ने भारत की काफी भूमि पर कब्जा जमा लिया। इसे पाक अधिकृत कश्मीर के नाम से जाना जाता है। बाद में इसे ही नियंत्रण रेखा स्वीकार कर लिए जाने से विवाद उत्पन्न हो गया है। वर्तमान में कश्मीर भारत का उत्तरवर्ती राज्य है, जिसे ‘जम्मू एवं कश्मीर‘ के नाम से जाना जाता है।

ऐतिहासिक महत्व के स्थान

इस भाग में संदर्भ हेतु पहले दो मानचित्र दिए गए हैं, जिससे कि राज्यों, राजधानियों तथा नदियों की अवस्थिति का अध्ययन किया जा सके। इन दो मानचित्रों के पश्चात 19 मानचित्र दिए गए हैं, जिनमें अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम से भारत के ऐतिहासिक स्थलों को दर्शाया गया है। कुल मिलाकर लगभग 300 स्थानों का व्यापक समावेश किया गया है। प्रत्येक मानचित्र में चिन्हित स्थानों के संबंध में संक्षिप्त विवरण दिया गया है। मानचित्रों में चिन्हित ऐतिहासिक स्थलों में ‘प्राचीन काल‘, ‘मध्य काल‘ अथवा ‘आधुनिक काल‘ से संबंधित विभेद नहीं किया गया है क्योंकि परीक्षा में आपको दिए गए स्थानों को दर्शाना होता है, चाहे उनका ऐतिहासिक महत्व किसी भी काल में रहा हो। इसके अतिरिक्त, कुछ स्थान ऐसे हैं जो प्राचीन काल में तो महत्वपूर्ण थे ही बाद के काल में भी उनकी महत्ता यथावत बनी रही। तथापि पुस्तक में दी गई अध्ययन सामग्री में प्रत्येक स्थल के बारे में काल को ध्यान में रखते हुए आवश्यक विवरण दिया गया है, जिससे कि आप स्थान-विशेष एवं उससे संबंधित तथ्यों को सरलता से जोड़ कर देख सकें।

आदमगढ़
(लगभग 22.75° उत्तर, 77.72° पूर्व)
आदमगढ़ की पहाड़ियां मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित हैं। यह स्थल प्रागैतिहासिक शैल आश्रय स्थलों व शैलचित्रों के लिए प्रसिद्ध है। यहां से पाषाणकालीन कलाकृतियां, पुरापाषाणकालीन व मध्यपाषाणकालीन सामग्री खुदाई में मिली हैं। आदमगढ़ उन स्थलों में से एक है जहां पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य मिलते हैं।

अदिचनल्लुर
(8°37‘ उत्तर, 77°52‘ पूर्व)
अदिचनल्लुर (अथवा अधिचनल्लुर) ताम्ब्रपणी नदी के दांये तट पर तमिलनाडु में तिरुनेलवेली शहर से लगभग 24 किलोमीटर दूर तूतीकोरिन जिले (पूर्व में तिरुनेलवेलि नाम से जाना जाने वाला) में स्थित है। (कोरकई, जो कि पूर्ववर्ती पांड्यों की राजधानी थी, अदिचनल्लुर से 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।) अदिचनल्लुर ने सर्वप्रथम तब ध्यान आकर्षित किया जब जर्मनी के डॉ. जगोर ने 1876 में यहां उत्खनन किया। ब्रिटेन के एलेक्जेन्डर रिआ ने 1889 तथा 1905 के बीच इस लौहयुगीन अस्थि कलश कब्रगाह का उत्खनन किया। फ्रांस के लुई लैपीक ने भी 1904 में यहां खुदाई की। रिआ ने यहां उत्खनन में काफी अस्थि कलश निकाले तथा माइसेनिया के सदृश स्वर्ण मुकुट, ताम्र की वस्तुएं, जानवरों के रूपों का चित्रण कर रहे अति सुन्दर ढक्कन वाले कलश, बर्तन के टूटे हुए टुकड़े व लौह की वस्तुएं आदि भी खुदाई में निकाली। भारतीय पुरातात्विक विभाग ने 2003-04 व 2004-05 में पुनः उत्खनन का कार्य आरम्भ किया। 600 वर्ग मी. के क्षेत्रफल में 160 अस्थि कलश पाए गए। अस्थि कलशों में अस्थियों के तिथि निर्धारण से पाया गया कि ये लगभग 3800 वर्ष पहले की हैं। काफी संख्या में अस्थि कलश एक दूसरे के ऊपर रखे थे जिसे ‘द्वि-घट‘ प्रणाली कहा जाता है। त्रिस्तरीय कब्रगाह प्रणाली इंजीनियरिंग का एक चमत्कार है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने लौह युगीन लोगों के आवासीय स्थलों को चिन्हित किया। दुर्ग-प्राचीर तथा कुम्हार की भट्टी का पाया जाना इस बात की पुष्टि करता है कि इस स्थल पर बस्ती थी। तीन ताम्र चूड़ियों के अतिरिक्त, लोहे की वस्तुएं जैसे खंजर, टूटी हुई तलवार, एक अति सुन्दर भाला , तथा कुल्हाड़ी यहां मिली हैं। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) के अनुसार, ऐपलीक (रंगीन टुकड़े को सिल कर डिजाइन बनाना) कथा दृश्य के साथ बर्तन के टूटे हुए टुकड़े एक महत्वपूर्ण खोज है। यहां केले के वृक्ष के समीप खड़ी हुई लंबी व पतली स्त्री चित्रित है।
एक बगुला वृक्ष पर बैठा हुआ दर्शाया गया है जो मछली को अपनी चोंच में पकड़े हुए है। स्त्री के समीप एक हिरण तथा मगरमच्छ भी दर्शाया गया है। एक अस्थि कलश के आंतरिक भाग में अल्पविकसित तमिल ब्राह्मी लिपि उकेरी हुई है। लाल मृदभांड, काले तथा लाल मृदभांड, लाल स्लिप मृदभांड इत्यादि के टूटे हुए टुकड़े काफी मात्रा में प्राप्त हुए हैं।

आगरा (27.18° उत्तर, 78.02° पूर्व)
आगरा यमुना नदी के तट पर उ.प्र. में स्थित है। इस नगर ने 16वीं शताब्दी के पश्चात ऐतिहासिक महत्ता प्राप्त की। लोदी वंश के महान शासक सिकंदर लोदी ने इस स्थान के महत्व को समझते हुए पोया एवं भसीन के गांवों को एकीकृत करके 1504 में इस नगर की स्थापना की। उसने आगरा को अपनी राजधानी बनाया।
1526 में आगरा पर मुगलों ने आधिपत्य स्थापित कर लिया तथा इसे अपनी राजधानी घोषित किया। मुगल शासकों अकबर एवं शाहजहां ने यहां भव्य इमारतों का निर्माण किया। अकबर ने लाल पत्थरों से यहां एक भव्य किला निर्मित करवाया। विश्व के महानतम आश्चर्यों में से एक ताजमहल का निर्माण यहीं शाहजहां ने कराया। जहांगीरी महल एवं मोती मस्जिद यहां की अन्य महत्वपूर्ण इमारतें हैं। वर्तमान समय में ताजमहल को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित कर लिया गया है।
1761 में आगरा पर जाट शासक सूरजमल ने अधिकार कर लिया तथा बाद में यह मराठों के आधिपत्य में आ गया। ब्रिटिश शासन के दौरान आगरा नील उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र बन गया।
आज आगरा एक प्रमुख पर्यटक स्थल है तथा चर्म उत्पादों एवं डीजल इंजन के निर्माण के लिए प्रसिद्ध है। सफेद संगमरमर से निर्मित तथा पीत्रादुरा शैली से सुसज्जित ताजमहल प्रतिवर्ष समस्त विश्व के हजारों पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

अहार
(24.58° उत्तर, 73.68° पूर्व)
अहार राजस्थान के उदयपुर जिले के निकट बनास नदी के तट पर बनास घाटी में अवस्थित है। यहां अहार या बनास सभ्यता के प्राचीनकालीन प्रमाण एंव अवशेष पाए गए हैं। यह एक ताम्रपाषाणिक सभ्यता का स्थल था तथा 1600 ई.पू.-1200 ई.पू. के दौरान प्रसिद्ध रहा।
इस स्थल की महत्वपूर्ण विशेषता प्रस्तर औजारों की पूर्ण अनुपस्थिति है। यहां कुल्हाड़ी एवं ब्लेड भी पाए गए हैं। यद्यपि यहां से तांबे के अनेक महत्वपूर्ण औजार पाए गए हैं।
इस स्थल में घरों का निर्माण प्रस्तर एवं मिट्टी से किया गया था। यहां से मृदभाण्डों के दो चरण प्राप्त होते हैंः
(अ) काले एवं लाल मृदभांडः ये गुलाबी-सफेद रंगों से रंगे हैं तथा (ब) चमकीले लाल मृदभाण्ड, ये रंगपुर से प्राप्त उत्तर-हड़प्पाई मृदभाण्डों से साम्यता रखते हैं। यहां से अभी तक किसी हड़प्पाई स्थल के प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं। इसीलिए बनास संस्कृति के इण्डो-ईरानी संस्कृति के साथ संबंधों के अर्थ में कुछ रोचकता उत्पन्न होती है।
बनास के लाल काले मृदभाण्ड, दोआब एवं अन्य क्षेत्रों के काले-लाल मृदभाण्डों से कई बातों में भिन्नता रखते हैं। ये भिन्नताएं निम्नवत हैंः
ऽ दोआब क्षेत्र के काले-लाल मृदभाण्डों में किसी तरह की चित्रकारी नहीं पाई गई है, जबकि अहार संस्कृति के मृदभाण्डों की काली सतह पर सफेद चित्रकारी है।
ऽ अहार के चित्रित काले-लाल मृदभाण्ड नतोदर किनारों युक्त हैं तथा इनकी सतह खुरदरी हैं, जबकि दोआब क्षेत्र से चिकने मृदभाण्ड पाए गए हैं।
ऽ अहार एवं गिलुंड से स्टैंडयुक्त जो कटोरे, टोंटियां एवं प्याले पाए गए हैं, वैसे दोआब क्षेत्र से प्राप्त नहीं होते हैं।
कालांतर में अहार मेवाड़ की स्थापना करने वाले सिसोदिया शासकों की राजधानी बन गया।