जिगलर नाटा बहुलकीकरण / उपसहसंयोजक ,आण्विक द्रव्यमान ,संश्लेषित , प्राकृतिक रबर 

Ziegler-Natta Polymerization in hindi जिगलर नाटा बहुलकीकरण / उपसहसंयोजक बहुलकीकरण : डाई इन या एल्किनों की वे बहुलकीकरण अभिक्रियाएँ जो कार्ब धात्विक यौगिक द्वारा उत्प्रेरित होती है , उपसहसंयोजक बहुलकीकरण क्रियाविधि कहलाती है।

अभिक्रिया के प्रथम पद में कार्बधात्विक यौगिक एवं एकलक इकाई के संयोग से नयी एकलक इकाई का निर्माण होता है।

जिगलर नाटा उत्प्रेरक एथीन के बहुलकीकरण अभिक्रिया में उत्प्रेरक का कार्य करता है , यह विशिष्ट प्रकार के उपसहसंयोजक उत्प्रेरक होते है जो त्रिविम विशिष्ट होते है।

जिगलर नाटा उत्प्रेरक विषमांगी उत्प्रेरक का उदाहरण है।

इसमें क्रियाशील स्पीशीज TiCl4 होता है।

बहुलको का त्रिविम रसायन

बहुलकों के गुण उनकी संरचना पर निर्भर करते है , सामान्य परिस्थिति में एकलक इकाई के बहुलकीकरण से तीन प्रकार के प्रकाशिक सक्रीय बहुलक बनने की सम्भावना होती है।
1. आइसोटैक्टिक बहुलक : जब बहुलकीकरण उत्पाद में सभी एल्किल समूह C-C श्रृंखला में एक ही ओर होते है तो इस प्रकार के बहुलक का निर्माण होता है अर्थात इनमे दीर्घ श्रृंखला में सभी निकटवर्ती असममित / किरैल C परमाणुओं का विन्यास समान होता है।
2. सिंडियो टैक्टिक / एकान्तर व्यवस्थित बहुलक : जब बहुलीकृत उत्पाद में सभी एल्किल समूह C-श्रृंखला के एकांतर क्रम हो तो इस प्रकार के बहुलक बनते है अर्थात वे बहुलक जिनमे निकटवर्ती असममित c-परमाणुओं पर एल्किन समूह विपरीत दिशा में होते है , सिण्डीयो टैक्टिक बहुलक कहलाते है।
3. एटैक्टिक बहुलक : इस प्रकार के बहुलकों में एल्किल समूह के जुड़ने की निश्चित व्यवस्था या क्रम नहीं होता है।

बहुलको का आण्विक द्रव्यमान

बहुलकीकरण की क्रिया से प्राप्त बहुलक अनेक विभिन्न प्रकार के बहुलक इकाइयों का समूह होता है अत: किसी बहुलक का आण्विक द्रव्यमान ज्ञात करने के लिए उनमे उपस्थित विभिन्न बहुलक अणु के अणुभारो का औसत लिया जाता है।
यह निम्न दो प्रकार का होता है –
1. संख्या औसत अणुभार : इस विधि में बहुलक में उपस्थित विभिन्न अणुओं के अणुभारों का योग करके उसमें कुल अणुओं k संख्या का भाग दिया जाता है।
संख्या औसत अणुभारों को सामान्यत अणु संख्यक गुण जैसे : परासरण दाब मापन आदि द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
2. भार औसत अणुभार : इस विधि में बहुलक में उपस्थित प्रत्येक अणु के कुल अणुभार की उसके अणुभार से गुणा किया जाता है , इस प्रकार सभी बहुलक अणुओं को गुणनफलो का योग किया जाता है और इस योग में बहुलक अणुओं के कुल अणुभार का भाग देने पर भार औसत अणुभार प्राप्त होता है।

संश्लेषित रबर

1. ब्यूना S : यह 1,3 ब्यूटाडाइईन तथा स्टाइरिन के सहबहुलकीकरण से बनता है।
इनका उपयोग वाहनों के टायर , जूते आदि बनाने में किया जाता है।
2. ब्यूना N : यह 1,3 ब्यूटाडाइईन व एक्रिलो नाइट्राइल से बनता है।
इनका उपयोग ऑयल शील , गैसकैट आदि बनाने में किया जाता है।
3. नियोप्रिन रबर : यह 2 क्लोरो 1,3 ब्यूटाडाइईन के बहुलकीकरण से बनता है। नियोप्रिन क्लोरो प्रिन एकलक इकाइयों के सम बहुलकीकरण से बनता है।
4. पॉली वाइनिल क्लोराइड : यह वाइनिल क्लोराइड के सम बहुलकीकरण से बनता है।
5. पॉलीटेट्रा क्लोरो एथिलीन / टेफ़लोन (PTFE) : यह टेट्रा फ्लोरो एथिलीन के बहुलकीकरण से बनता है।
इनका उपयोग स्नेहक के रूप में व विद्युत रोधी उपकरणों के रूप में किया जाता है।
6. नायलॉन 6 : इसका निर्माण केप्रोलेक्टस के बहुलकीकरण से होता है।
प्राकृतिक रबर : इनका संघटन (C5H8)n होता है।
प्राकृतिक रबर आइसोप्रिन का रेखीय बहुलक होता है।
रबर का वल्किनिकरण : प्राकृतिक रबर कम प्रत्यास्थ होता है एवं इसमें जल को प्रतिकर्षित करने की क्षमता कम होती है , इनकी तनन सामर्थ्य कम होती है और यह भंगुर होता है।  इस कारण प्राकृतिक रबर को सल्फर के साथ गर्म किया जाता है जिससे एकलक इकाइयों के मध्य द्विबंध पर सल्फर जुड़ने से व्यवस्था एवं तनन सामर्थ्य बढ़ जाती है इसे रबर का वल्किनिकरण कहते है।