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शून्य कोटि अभिक्रिया की बलगतिकी , शून्य कोटि अभिक्रिया की अवकलित व समाकलित वेग समीकरण
2. ताप का प्रभाव : सामान्यत: ताप बढाने पर रासायनिक अभिक्रिया का वेग बढ़ता है क्योंकि ताप बढ़ाने से अभिकारक अणुओं की गतिज ऊर्जा बढ़ने के कारण इनके मध्य टक्करों की संख्या बढती है और टक्करों की संख्या बढने से सक्रीय अणुओं की संख्या बढती है इसलिए अभिक्रिया वेग बढ़ जाता है।
प्रत्येक 10 डिग्री सेल्सियस ताप वृद्धि से अभिक्रिया का वेग लगभग 2 से 3 गुना बढ़ जाता है।
3. अभिकारको की प्रकृति : यह भी अभिक्रिया वेग को प्रभावित करती है क्योंकि अभिक्रिया के दौरान अभिकारक अणुओं के मध्य पुराने बंध टूटते है एवं नए बन्ध बनते है अत: यदि अभिकारक अणुओं की बंध सामर्थ्य कम हो तो बन्ध आसानी से वियोजित होगा , इसलिए अभिक्रिया वेग अधिक होगा।
जैसे : CO की तुलना में NO की बंध सामर्थ्य कम है अत:
2CO + O2 → 2CO2 (मंद गति से)
4. उत्प्रेरक का प्रभाव : सामान्यत: उत्प्रेरक की उपस्थिति में रासायनिक अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है क्योंकि उत्प्रेरक के कारण अभिक्रिया में सक्रियण ऊर्जा के मान में कमी आ जाती है।
उत्प्रेरक का सक्रियण ऊर्जा पर प्रभाव दर्शाने वाला वक्र निम्न प्रकार है –
5. अभिकारको की सतह का क्षेत्रफल : अभिकारको की सतह का क्षेत्रफल बढ़ने से अभिक्रिया का वेग बढ़ता है इसलिए अभिक्रिया में अभिकारको को महीन चूर्ण के रूप में लेते है।
जैसे : लकड़ी का एक बड़ा टुकड़ा धीमी गति से जलता है लेकिन यदि इसके छोटे छोटे टुकड़े कर दिया जाए तो सतह का क्षेत्रफल बढ़ने के कारण यह तीव्र गति से जलता है।
6. विकिरणों का प्रभाव : विकिरणों की उपस्थिति में अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है। जैसे : H2
व Cl2 के मध्य अभिक्रिया अंधेरे में मंद गति से होती है जबकि सूर्य के प्रकाश में तीव्र गति से होती है।
H2 + Cl2 → 2HCl
शून्य कोटि अभिक्रिया की बलगतिकी
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