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युवा की परिभाषा क्या है | युवा किसे कहते है अवधारणा बताइए आयु कितनी होती है youth in hindi meaning

youth in hindi meaning definition युवा की परिभाषा क्या है | युवा किसे कहते है अवधारणा बताइए आयु कितनी होती है ?

 ‘‘युवा‘‘ एवं ‘‘युवा संस्कृति‘‘ की परिभाषा
आइए, सबसे पहले हम यह जान लें कि युवा शब्द से हमारा क्या अभिप्राय है। यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से इसे एक जैवभौतिक अवस्था (इपवचीलेपबंस ेजंहम) माना जाता है लेकिन सामाजिक समस्या के अध्ययन से युवा शब्द का गहन समाजशास्त्रीय महत्त्व है।

युवा
युवा शब्द तकनीकी रूप में प्रयुक्त नहीं किया जाता है बल्कि यह नियत जनसंख्या के 15-24 वर्ष के आयु-वर्ग के व्यक्तियों की विशेषताओं की श्रृंखला का वर्णन करता है। यह शब्द भ्रमात्मक है। कुछ के विचार में युवा एक जैविक प्रकृति के तत्त्वों द्वारा विशिष्टीकृत अवस्था होती है अर्थात् वे जैवभौतिक परिवर्तन जो बचपन और प्रौढ़ता के बीच मोटे तौर पर 15 और 24 वर्ष के आयु-वर्ग में होते हैं। इसीलिए युवा वर्ग पर किए गए बहुत से अध्ययनों में 15-24 वर्ष की आयु के युवाओं को शामिल किया गया है।

इस प्रकार के वर्गीकरण में अंतर्निहित कमी को महसूस करते हुए जिसके अंतर्गत इस आयु वर्ग को संपूर्ण देश में बहुत-सी जटिल समस्याओं के लिए समानता से नहीं अपनाया जा सकता है, फिर भी समाजशास्त्रियों सहित समाजविज्ञान अधिकतर इस आयु-वर्ग वर्गीकरण पर निर्भर करते हैं। इस इकाई में युवाओं पर चर्चा के लिए 15-24 वर्ष का आयु-वर्ग ही लिया गया है। इस वर्गीकरण के साथ-साथ समाजशास्त्रीय रूप से ‘‘युवा संस्कृति‘‘ की धारणा जुड़ी हुई है। यह एक प्रासंगिक धारणा है। आइए, भारतीय संदर्भ में इसकी जाँच करें।

 युवा संस्कृति
यूरोपीय-अमेरिकन समाजशास्त्रियों, उदाहरणतः बेनेट बर्जर (1963) ने बहुधा युवा संस्कृति के बारे में चर्चा की है। पश्चिमी समाजों में युवा संस्कृति को अभिन्न समझा जाता है और इसी कारण इसे उप-सामाजिक पद्धति माना जाता है जैसा कि अश्वेत संस्कृति, अमेरिकी, मैक्सिकन संस्कृति, आदि परंतु भारत जैसे देश में युवा सामाजिक व्यवस्था के कुछ अन्य तत्वों से बहुत निकटता से जुड़े हुए हैं। इसलिए विदेशी विद्वानों द्वारा प्रस्तुत युवा संस्कृति की धारणा को भारतीय समाजशास्त्री अनिच्छा से स्वीकार करते हैं। युवा वर्ग की चर्चा में हमने युवाओं को भारतीय समाज की ‘‘सामाजिक-जनसांख्यिकीय अथवा सांख्यिकीय श्रेणियों‘‘ के रूप में लिया है।

भारत में युवा वर्ग से संबंधित समाजशास्त्रीय अध्ययनों में कई आयामों को शामिल किया गया है, जैसे -जनसांख्यिकीय, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक। यहाँ पर निवास, शिक्षा और कार्यशील जनसंख्या के संदर्भ में भारतीय युवाओं की जनसांख्यिकीय विशेषताओं की जाँच करना उपयोगी होगी।

उद्देश्य
इस इकाई में हमने भारत में युवा वर्ग के समसामयिक आयामों पर चर्चा की है। इस इकाई को पढ़ने के बाद आपके द्वारा संभव होगा:
ऽ भारत में युवा जनसंख्या की जनसांख्यिकीय स्थिति की व्याख्या करना;
ऽ युवा विद्यार्थी एवं युवा गैर-विद्यार्थी के बीच अंतर करना;
ऽ युवा वर्ग की परंपरागत और परिवर्तनशील मूल्य पद्धति की जाँच करना;
ऽ अलगावित युवाओं की समस्याएँ जानना;
ऽ उन कारकों और समस्याओं का विवेचन करना जिनके कारण छात्र असंतोष होता है; और
ऽ युवाओं के लिए बनाए गए कुछ कार्यक्रमों की चर्चा करना।

प्रस्तावना
भारत में युवा अध्ययन में कई आयामों का विचार अंतर्निहित है। युवा वर्ग को परिमाणात्मक तथा गुणात्मक दोनों तरह से समझा जा सकता है। गुणात्मक विवरण का अभिप्राय सामाजिक-सांस्कृतिक परिवृत्यों पर चर्चा करने से है। परिमाणात्मक शब्द का अभिप्राय जनसंख्या में युवाओं के अनुपात के अनुमानों पर चर्चा करना है, अर्थात् शिक्षा, व्यवसाय, आय, जीवन-स्तर, शहरी-ग्रामीण अंतर जैसे सामाजिक-सांस्कृतिक परिवृतियों की चर्चा करना है। युवाओं पर समाजशास्त्रीय चर्चा भारत में युवाओं के सामाजिक-जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक दृष्टिकोण पर आधारित की जानी चाहिए।

हमने यह इकाई ‘‘युवा‘‘ शब्द की परिभाषा से शुरू की है। इसके बाद हमने युवाओं के जनसांख्यिकीय परिवृतियों अर्थात आयु-लिंग, शहरी-ग्रामीण वितरण, वैवाहिक प्रस्थिति, शैक्षिक उपलब्धि और बेरोजगारी दर पर ध्यान केंद्रित किया है।

परंपरागत मूल्य पद्धति, अलगाव, पहचान संकट से युवाओं के मतभेदों पर संक्षिप्त चर्चा की गई है। उसके बाद छात्र असंतोष के कारणों पर चर्चा है। अंत में हमने युवाओं के भावी कार्यक्रमों पर समाजशास्त्रियों के प्रेक्षणों का उल्लेख किया है।

सारांश

इस इकाई में भारत में युवाओं से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है। हमने युवा शब्द की परिभाषा करने में कठिनाइयों का उल्लेख किया है। यद्यपि इस शब्द की परिभाषा ‘‘आयु वर्ग‘‘ श्रेणी के रूप में की गई है परंतु सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों पर भी बल दिया गया है। इन्हें युवाओं के अध्ययन में पहचान करने वाले मानदंड के रूप में माना गया है। हमने युवाओं के कुछ जनसांख्यिकीय पहलुओं की चर्चा विस्तार से की है, जैसे- आयु-लिंग, शहरी-ग्रामीण वितरण, वैवाहिक प्रस्थिति, शैक्षणिक उपलब्धियाँ और बेरोजगारी दर।

परंपरागत मूल्य पद्धति से युवाओं का विरोध, अलगाव और पहचान संकट पर संक्षेप में चर्चा की गई है। युवाओं की परिस्थिति और समस्याओं की चर्चा कुछ विस्तार से की गई है। अंत में युवाओं के लिए भावी कार्यक्रम पर समाजशास्त्रियों के प्रेक्षणों का उल्लेख भी किया गया है।

शब्दावली
अलगाव (alienation): अन्य लोगों से विमुखता की भावना और विद्यमान प्रतिमानों के बारे में अस्पष्टता।
जनसांख्यिकी (demography): मानव जनसंख्या से संबंधित घटनाओं का अध्ययन। जैसे- जन्म, विवाह और मृत्यु, आप्रवसन और उन्हें प्रभावित करने वाले कारक। इसमें सांख्यिकी भी अंतर्निहित है।
पहचान (identity): जिसका वर्णन किया गया अथवा निश्चय के साथ कहा गया है, उसी के समान स्थिति की मौजूदगी।
लिंग अनुपात (sex ratio): प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या जैसा कि भारत की जनगणना में परिभाषित किया गया है।
मूल्य पद्धति (value system): साझे सांस्कृतिक मानदंड जिनके अनुसार औचित्यनैतिक, सौंदर्यबोध-वस्तुओं की, अभिवृद्धि की, आकांक्षा और आवश्यकताओं की तुलना और निर्धारण किया जा सकता है।
हिंसा (violence): संघर्ष का चरम रूप।
युवा (youth): निर्धारित जनसंख्या में 15-24 वर्ष के आयु वर्ग के व्यक्ति। यह सामाजिक-सांस्कृतिक अथवा सांख्यिकीय श्रेणी है।
युवा संस्कृति (youth culture): वृहत्तर सामाजिक प्रणाली की पहचान योग्य उप-सामाजिक प्रणाली।

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