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Categories: sociology

विश्व अर्थव्यवस्था में सहभागी बनने से भारत को होने वाले लाभों का वर्णन करें world economic in india hindi

world economic in india hindi benefits profits विश्व अर्थव्यवस्था में सहभागी बनने से भारत को होने वाले लाभों का वर्णन करें ?

भूमंडलीकरण के सूचक
भूमंडलीकरण का एक महत्त्वपूर्ण सूचक सकल घरेलू उत्पाद में व्यापार का अनुपात है। एक देश के विदेश व्यापार की मात्रा निर्यात और आयात के कुल मूल्य से मापा जाता हैं। सकल घरेलू उत्पाद में व्यापार का अनुपात निकालने के लिए इस संख्या को ‘‘सकल घरेलू उत्पाद‘‘ से विभाजित कर दिया जाता है। तालिका 4.1 में कुछ चुने हुए देशों का व्यापार/सकल घरेलू उत्पाद अनुपात प्रस्तुत किया गया है। यह ध्यान देने योग्य है कि भारत का व्यापार/सकल घरेलू उत्पाद अनुपात समय के साथ बढ़ा है किंतु यह चीन और श्रीलंका की अपेक्षा काफी कम है। इससे यह पता चलता है कि भारत की अपेक्षा चीन और श्रीलंका विश्व अर्थव्यवस्था के साथ कहीं अधिक अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। भारत अभी भी विश्व अर्थव्यवस्था के प्रभावों के प्रति अपेक्षाकृत कम संवेदनशील है। तालिका 4.2 में अग्रणी निर्यातक और आयातक देशों से संबंधित आँकड़े प्रस्तुत हैं। ध्यान दीजिए कि विश्व में सभी अग्रणी निर्यातक देश अग्रणी आयातक भी हैं। इससे यह पता चलता है कि विश्व अर्थव्यवस्था में देशों के दक्ष निर्यातक बनने के लिए बहुत सी वस्तुओं का आयात करना पड़ता है। किंतु यह जरूरी नहीं कि जो देश आयात कम करते हैं उनका निर्यात निष्पादन भी अच्छा हो । प्रत्येक देश को सफल निर्यातक बनने के लिए कई वस्तुओं की जरूरत होती है जिसके लिए वह विश्व अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है।

तालिका 4.1: चुने हुए देशों का व्यापार/सकल घरेलू उत्पाद अनुपात
देश/समूह 1975-79 1990-94
विश्व 34.7 39.2
विकासशील देश 31.8 42.8
चीन 10.0 35.8
भारत 14.1 21.0
श्रीलंका 68.1 72.5
स्रोतः विश्व बैंक, 1997

तालिका 4.2: विश्व के वाणिज्यिक-वस्तु व्यापार के अग्रणी निर्यातक और आयातक, 1997
(विश्व निर्यात और आयात में प्रतिशत अंश)
निर्यातक अंश आयातक अंश
अमरीका 12.6 अमरीका 16.0
जर्मनी 9.4 जर्मनी 7.8
जापान 7.7 जापान 6.0
फ्रांस 5.3 फ्रांस 4.8
ब्रिटेन 5.2 ब्रिटेन 5.5
चीन 3.3 चीन 2.5
दक्षिण कोरिया – दक्षिण कोरिया 2.6
ताइवान 2.6 ताइवान 2.0
स्रोत: विश्व व्यापार संगठन रिपोर्ट 1998
निम्नलिखत उदाहरण उत्पादन के भूमंडलीकरण की घटना को समझने में सहायक हैं:
क) विकासशील देशों में अवस्थित बहुराष्ट्रीय कंपनियों से सम्बद्ध कंपनियों के उत्पादन का अंश विकासशील देशों के सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ चुका है। वर्ष 1992 में उनका अंश 4.2 प्रतिशत था जो 1995 में बढ़ कर 6.3 प्रतिशत हो गया है।
ख) विश्व व्यापार में मशीन और कल-पुर्जी के क्षेत्र में कल पुर्जों के व्यापार में तेजी से वृद्धि हो रही है। विकासशील देशों ने 1995 में लगभग 100 बिलियन डॉलर मूल्य के इन उत्पादों का निर्यात किया था।
ग) चीन से हाँग काँग के पुनः निर्यात का लगभग 80 प्रतिशत बहिर्गामी प्रसंस्करण प्रबन्धों का परिणाम था। इस व्यवस्था के अन्तर्गत हाँग-काँग की फर्मे चीनी उपक्रमों को उत्पादों के असेम्बली के आदेश देती हैं। तत्पश्चात् वे चीनी उपक्रमों को डिजायन और कलपुर्जे उपलब्ध कराती हैं। चीन द्वारा आपूर्ति की गई तैयार माल हाँग-काँग की फर्म द्वारा निर्यात किया जाता था।

 भूमंडलीकरण के संदर्भ में भारतीय उद्योग
इस भाग में हम उद्योग और विनिर्माण शब्दों का प्रयोग एक ही अर्थ में करेंगे। भारतीय विनिर्माण क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 22 प्रतिशत और भारत के कुल निर्यात में लगभग 75 प्रतिशत का योगदान है। इस रूप में यह भारतीय अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। तथापि, विश्व निर्यात बाजारों में भारत का हिस्सा अत्यंत कम है। नीचे दी गई तालिका 4.3 में विश्व के विनिर्माण निर्यातों में विभिन्न देशों का हिस्सा प्रतिशत में दिखलाया गया है।
तालिका 4.3: विश्व निर्यात में विनिर्माण निर्यात का हिस्सा प्रतिशत में
देश 1980-86 1987-90 1993-96
भारत 0.29 0.4 0.51
चीन उपलब्ध नहीं 1.84 3.74
थाइलैण्ड 0.24 0.5 0.88
मलेशिया 0.54 0.67 1.58
इंडोनेशिया 0.19 0.37 0.73
फिलीपींस 0.17 0.16 0.28
दक्षिण कोरिया 2.11 2.76 3.02
ताइवान 2.19 2.89 2.9
बाजार का आकार
अमरीकी विलियन डाॅलर में 1105 1997 3284
स्रोत: बिजनेस वर्ल्ड, 25 जून, 2001

उपर्युक्त तालिका में हम देख सकते हैं कि भारत के हिस्से में कुछ ही प्रतिशत वृद्धि हुई है। वर्ष 1980-86 के दौरान विनिर्माण निर्यात में यह हिस्सा मात्र 0.29 प्रतिशत था। 1993-96 की अवधि में इसमें वृद्धि हुई और यह 0.51 प्रतिशत हो गया। भारत की अपेक्षा, कई अन्य देशों का कार्य निष्पादन बहुत ही अच्छा रहा। उदाहरण के लिए चीन जिसका 1987-90 के दौरान 1.84 प्रतिशत हिस्सा था, 1993-96 के दौरान बढ़कर यह 3.7 प्रतिशत से अधिक हो गया।

अब हम चुने हुए उत्पादों में भारत के निर्यात निष्पादन पर दृष्टि डालते हैं। हमने उन उत्पादों का चयन किया है जिसका उत्पादन भूमंडलीकृत हो चुका है। इन्हें तालिका 4.4 में दिखाया गया है। स्त्री परिधान को छोड़कर विश्व निर्यात में भारत का हिस्सा अत्यन्त कम है। विश्व निर्यात में भारत का हिस्सा कैसे बढ़ाया जाए? भारतीय औद्योगिक क्षेत्र की शक्तियाँ और कमजोरियाँ क्या हैं? भारत को एक ऐसे आकर्षक स्रोत में कैसे बदला जाए जहाँ से विदेशी कंपनियाँ कल-पुर्जे खरीद कर अपनी जरूरत पूरी करें? आपको औद्योगिक अर्थशास्त्र संबंधी ज्ञान का उपयोग करते हुए इन प्रश्नों पर विचार करना चाहिए।

तालिका 4.4ः चयनित भूमंडलीकृत उत्पादों में भारत का निर्यात हिस्सा
विवरण प्रतिशत हिस्सा
स्त्री परिधान, बुनाई किया हुआ 4.7
पुरुष परिधान 2.8
जूते-चप्पल 1.7
खिलौने 0.3
मोटर पार्ट्स और सहायक उपकरण 0.2
आंतरिक दहन इंजन 0.2
कम्प्यूटर उपकरण 0.03
वॉल्व और ट्रांजिस्टर 0.1
स्रोत: रामास्वामी (2000)

बोध प्रश्न 2
1) उन सूचकों का वर्णन करें जिसे आप भूमंडलीकरण के पैमाना के लिए प्रयोग करेंगे।
2) उन देशों के नाम बताइये जिनका विश्व निर्यात में हिस्सा 1986 में भारत से कम था।
3) वर्ष 1996 में उनका हिस्सा कितना हो गया?

भारत के लिए अवसर और चुनौतियाँ
भारत भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था में सहभागी बनकर लाभ उठा सकता है; जिससे इसे प्रौद्योगिकी, प्रबन्धन विशेषज्ञता और विश्व बाजार उपलब्ध होगा। एक लाभ यह भी है कि भारत का घरेलू बाजार बहुत ही विस्तृत है। इसके साथ ही भारत अपने सस्ते श्रम और बड़ी संख्या में वैज्ञानिक तथा शिक्षित जनशक्ति के कारण भी लाभ की स्थिति में है। यह भारत में विदेशी निवेश को आकृष्ट करता है। तब आप पूछ सकते हैं कि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का प्रवाह भारत की ओर न होकर चीन की ओर क्यों है।

किंतु यहाँ की सबसे बड़ी समस्या आधारभूत संरचना और श्रम की उत्पादकता है। भारतीय औद्योगिक उत्पादकों के लिए उपलब्ध आधारभूत संरचना की गुणवत्ता अत्यधिक घटिया है। विद्युत की आपूर्ति निर्बाध नहीं है तथा इसमें समय-समय पर गड़बड़ी होती रहती है। इससे काम ठप हो जाता है तथा क्षमता का कम उपयोग हो पाता है।

दूसरा, यहाँ पत्तन और सीमा शुल्क प्रक्रियाएँ सुचारू और सरल नहीं हैं। यह देखा गया है कि चीन से किसी उत्पाद के आयात में जहाँ मात्र एक महीना लगता है वहीं भारत से आयात करने मे दो माह से अधिक लग जाता है।

तीसरा, हमें अपने मानव पूँजी आधार में सुधार करने की आवश्यकता है। भारतीय श्रम सस्ता हो सकता है, किंतु साथ ही यह भी सत्य है कि भारतीय श्रम की उत्पादकता भी अन्य देशों की तुलना में कम है।
उत्पादकता में सुधार करने के लिए हमें नया ज्ञान सीखने और अपने श्रमबल को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। भारत में माध्यमिक शिक्षा प्राप्त लोगों की संख्या दक्षिण कोरिया की तुलना में भी बहुत कम है। भारत को मानव पूँजी में अधिक निवेश करने की आवश्यकता है।

विद्युत, परिवहन और संचार सुविधाओं की उपलब्धता निवेश को आकर्षित करते हैं। भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था में सहभागी बनने और सफल होने के लिए दो मूल आवश्यकताएँ हैं – अच्छी आधारभूत संरचना और श्रम की अधिक उत्पादकता। इसके लिए ज्यादा से ज्यादा निवेश की जरूरत होती है।

बोध प्रश्न 3
1) विश्व अर्थव्यवस्था में सहभागी बनने से भारत को होने वाले लाभों का वर्णन करें।
2) आपके विचारानुसार भारत को अधिक विदेशी निवेश आकृष्ट करने के लिए क्या करना चाहिए?

सारांश
इस इकाई से भूमंडलीकरण की अवधारणा स्पष्ट हो जाती है। इस इकाई को पढ़कर हमें जानकारी होती है कि आज अर्थव्यवस्थाएँ कहीं अधिक अन्तर्संबंधित हैं। यह हमें विश्व अर्थव्यवस्थाएँ किस तरह से परस्पर जुड़ी हुई हैं उसकी जानकारी देता है। भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अग्रणी भूमिका निभाती हैं। वे विभिन्न देशों में उत्पादन कराती हैं । भूमंडलीकरण का मुख्य कारण विकसित और विकासशील देशों के बीच उत्पादन की मजदूरी लागत में अंतर है। परिवहन और संचार लागतों में कमी भी भूमंडलीकरण को बढ़ावा देने वाला दूसरा महत्त्वपूर्ण कारक है। भारत में बहुत बड़ा बाजार उपलब्ध होने की कुछ लाभ और हानियाँ हैं। भारत को भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था में सहभागी बन इसका लाभ उठाने के लिए आधारभूत संरचना और मानव पूँजी में निवेश करने की आवश्यकता है।

शब्दावली
भूमंडलीकरण ः विश्व अर्थव्यवस्था के साथ बढ़ती हुई अन्तर्किया।
सकल घरेलू उत्पाद में व्यापार ः सकल घरेलू उत्पाद में निर्यात और आयात के मूल्य का का अनुपात अनुपात।
भूमंडलीकरण के सूचक ः विश्व उत्पादन में विश्व निर्यात का हिस्सा।
मजदूरी लागत और श्रम उत्पादकता ः नियोजित श्रमिकों को भुगतान की गई मजदूरी और प्रति श्रमिक उत्पादन

 कुछ उपयोगी पुस्तकें एवं संदर्भ
किरीट एस. पारिख (सम्पादित), (2000). इंडिया डेवलपमेंट रिपोर्ट 1999-2000, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, नई दिल्ली।
के.वी. रामास्वामी, “एक्सपोर्टिंग इन ए ग्लोबलाइज्ड इकनॉमी‘‘, किरीट पारिख (संपा.), इंडिया डेवलपमेंट रिर्पोट 1999-2000, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, नई दिल्ली।
विश्व बैंक, (1997) साउथ एशियाज इंट्रीग्रेशन इन्टू द वर्ल्ड इकनॉमी।
विश्व व्यापार संगठनय (डब्ल्यू. टी. ओ.) (1998). वार्षिक प्रतिवेदन, वाशिंगटन डी.सी. ।

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