JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

महिलाओं के कार्य क्या है | work of woman in hindi महिला के काम किसे कहते है स्थिति बताइए

work of woman in hindi महिलाओं के कार्य क्या है महिला के काम किसे कहते है स्थिति बताइए ?

सामाजिक प्राधार, सामाजिक प्रक्रियाएँ और महिलाएँ
आइए, इस इकाई में हम उन विभिन्न प्राधारों को समझने की कोशिश करें जो महिलाओं की प्रस्थिति को गौण बनाते हैं और विभिन्न सामाजिक प्रक्रियाओं के माध्यम से इस विभेद को बनाए रखते हैं।

 जाति प्राधार
जाति पदक्रम के विकास में महिलाओं का अधीनीकरण बहुत महत्त्वपूर्ण था, जितनी ऊँची जाति होती थी। महिलाओं पर दबाव उतने ही अधिक थे। यह देखा गया है कि स्त्री लैंगिकता के नियंत्रण पर आधारित लिंग विभाजन का विकास सामाजिक प्राधार निर्माण का अभिन्न भाग था।

यह पूछना प्रासंगिक होगा: स्त्री लैंगिकता पर नियंत्रण की क्या आवश्यकता थी? वह क्या था जो महिलाओं की शक्ति को खतरे में डालता? यह वस्तुतः संसाधनों से किस प्रकार जुड़ा हुआ था? इन प्रश्नों को सुलझाने के लिए जाति-व्यवस्था को समझना आवश्यक है।

अन्य पाठों में आपने जो कुछ पढ़ा होगा, आइए संक्षेप में आपको उसका स्मरण कराएँ। क्षेत्रीय आधार पर हजारों उप-जातियाँ हैं, जो जाति के रूप में जानी जाती है। फिर भी, अखिल भारतीय सामाजिक पदक्रम व्यवस्था वर्ण पदक्रम व्यवस्था पर आधारित है जो कि हिंदू जनसंख्या को चार मुख्य समूहों में विभाजित करती है: सबसे ऊपर ब्राह्मण (पुरोहित वर्ग), उसके बाद क्षत्रिय (योद्धा वर्ग), तब वैश्य (सामान्य वर्ग आमतौर पर व्यापारी और दस्तकार जातियाँ) और सबसे नीचे शूद्र (खेतिहर मजदूर) इनमें से कुछ जाति पदक्रम व्यवस्था से अलग हैं, वे अछूत समझे गए थे। शुचिता-प्रदूषण सिद्धांत, सहभोज और सजातीय विवाह के नियम, जाति-व्यवस्था और जीवन-शैली के लिए प्रतिबद्धता जैसी बातों द्वारा जाति सीमाओं को पूर्णतः बनाए रखती है। धार्मिक प्रस्थिति के स्वरूप में आनुष्ठानिक पवित्रता है परंतु आर्थिक सम्पत्ति और सामाजिक सम्मान इसके साथ-साथ जुड़े होते हैं। अर्थात् उच्च जातियों के पास अधिक सम्पत्ति होती है और निचली जातियाँ सम्पत्तिहीन होती हैं अथवा उनके पास बहुत ही कम सम्पत्ति होती है। पिछले कुछ दशकों में आनुष्ठानिक प्रस्थिति और आर्थिक प्रस्थिति संबंधी परिवर्तन हुए हैं। ‘‘प्रबल जाति‘‘ की अवधारणा इसे सिद्ध करती है। (इस पर ई.एस.ओ.- 14, खंड 5, इकाई 18, पृष्ठ 15 में चर्चा की गई है)।

शुचिता अर्थात् पवित्रता के तीन मुख्य लक्षण हैं: शाकाहार, मद्यत्याग और महिलाओं पर सख्त पाबंदी लगाना। इससे यह संकेत मिलता है कि आनुष्ठानिक पवित्रता काफी हद तक पारिवारिक कार्यों के माध्यम से आती है। महिलाओं पर नियंत्रण के दो प्रमुख पहलू हैं:

1) अचल संपत्ति से महिलाओं को वंचित रखना, अलग रखकर या पर्दे में रखकर उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र से हटाना और घर तक ही सीमित रखना।
2) राजीनामा विवाह, बाल-विवाह, तलाक की मनाही और महिलाओं के लिए बाधित एकल विवाह, जिसके फलस्वरूप सती होना और शिशु अथवा बाल विधवा सहित विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंध द्वारा स्त्रियों पर पुरुषों द्वारा बहुत अधिक नियंत्रण रखा जाता है।

ऊँची जातियों द्वारा आनुष्ठानिक पवित्रता, जैविक शुद्धता जाति की श्रेष्ठता और आर्थिक शक्ति के बनाए रखने के लिए ये प्रतिबंध बहुत कठोरता से लागू किए गए थे। आर्थिक शक्ति में सुधार से उध्र्वगामी प्रस्थिति की गतिशीलता प्राप्त करने का प्रयास करने वाली निचली जातियों के समूह भी महिलाओं की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने वाली उच्च जाति के प्रतिमान अपनाते थे। एम.एन. श्रीनिवास ने इस संबंध को ‘‘संस्कृतीकरण‘‘ के सूचक के रूप में देखा था।

धार्मिक ग्रंथों और पितृसत्तात्मक, पितृवंश परंपरा और पितृस्थानिक परिवार प्रणाली द्वारा जाति प्रथा बनाए रखने के लिए वैचारिक और भौतिक आधार विनियमित होते हैं।

 वर्ग प्राधार और महिलाओं के कार्य
वर्ग की परिभाषा मूलतः संपत्ति अथवा पूंजी अथवा आर्थिक संसाधनों के स्वामित्व द्वारा की जाती है। सरल शब्दों में, पूँजीवादी प्राधार में पदक्रम का निर्धारण मजदूरी संबंध द्वारा किया जाता है – जो व्यक्ति मजदूरी के लिए काम करते हैं और जो व्यक्ति मजदूरी के लिए मजदूरों को काम पर लगाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ जाति प्राधार के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक शक्ति होती है, वहाँ महिलाओं पर नियंत्रण भी ऊँची जाति से निचली जातियों में वर्ग प्राधार के अनुसार भिन्न-भिन्न कोटि में लागू किए जाते हैं। ऊँची जातियों/वर्गों की महिलाएँ घर में ही रहती हैं और घरेलू कामकाज में ही भाग लेती हैं। मध्यम वर्ग की महिलाएं, जिनके पास मध्यम आकार और कम जोत की खेती है, अपने ही खेतों में काम करती हैं और कभी-कभी मजदूरी के लिए भी काम करती हैं। कारीगर परिवारों/वर्गों की महिलाएँ गृह आधारित उत्पादन में योगदान करती हैं। निचली जातियों की महिलाएँ संपत्तिहीन भी होती हैं और मजदूरी करती हैं। वे समाज की सबसे निचली श्रेणी की होती हैं, जहाँ गतिशीलता पर कोई नियंत्रण व प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है।

शहरों में जहाँ कामकाज गैर-कृषि व्यवसाय में परिवर्तित हो जाते हैं (प्रदत्त प्रस्थिति से अर्जित प्रस्थिति की स्थिति) मध्यम वर्ग की ऊँची जातियाँ प्रबल समूह बनाती हैं। इस वर्ग की महिलाएँ इस शताब्दी के दौरान शिक्षा और रोजगार लेने के लिए पृथक्कृत जीवन से उभरी हैं। इसका महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता समाप्त हो गई है। फिर भी, इससे महिलाओं के अधीनीकरण में कोई आमूलभूत परिवर्तन नहीं हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि जाति प्राधार वर्ग प्राधार में विद्यमान लिंग पदक्रम बनाती है। वर्ग प्राधार के अंतर्गत परिवार महिलाओं की शिक्षा और रोजगार से उच्च प्रस्थिति भी प्राप्त करता है। शिक्षित गृहिणी, माता और अर्जक के रूप में महिलाएं परिवार की प्रस्थिति को बनाए रखने और उसको ऊँचा करने की भूमिका निभाती हैं। वैवाहिक कालमों के विज्ञापन इस प्रवृत्ति के पर्याप्त साक्षी हैं। इस संदर्भ में परिवार की चिंता महिलाओं की शिक्षा की किस्म, कोटि और प्रयोजन, रोजगार का स्वरूप और स्तर सीमित रखने तथा यह जरूरत बनाए रखने में है कि महिलाएँ पारिवारिक भूमिका के साथ-साथ रोजगार भी करती रहें।

महिलाओं का अधीनीकरण जाति तथा वर्ग पदक्रम से मजबूती से जुड़ा हुआ है जिसे समझना बहुत जरूरी है। अन्यथा महिलाओं के मुद्दे ठीक से नहीं समझे जा सकेंगे और उन्हें मात्र सांस्कृतिक दुर्घटना और महिलाओं पर अत्याचार की छुट-पुट घटना समझा जाएगा।

बोध प्रश्न
1) जाति प्राधार द्वारा महिलाओं पर क्या नियंत्रण लगाए गए हैं? लगभग सात पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
2) वर्ग प्राधार द्वारा महिलाओं पर क्या प्रतिबंध लगाए गए हैं? लगभग सात पंक्तियों में उत्तर दीजिए।

बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 2
1) जाति प्राधार द्वारा महिलाओं की लैंगिकता और समुदाय के आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र से अलग रखकर, संपत्ति पर अधिकार से वंचित रख कर और विवाह के नियमों का सख्ती से पालन करके किया जाता है। जाति प्राधार आनुष्ठानिक पवित्रता, जैविक शुद्धता (वैध उत्तराधिकारी के जन्म द्वारा) जातीय श्रेष्ठता और आर्थिक शक्ति बनाए रखता है।
2) वर्ग प्राधार जाति प्राधार द्वारा निर्मित लिंग विभाजन के बारे में इतना सख्त नहीं है। परिवार महिलाओं की उपलब्धियों से प्रस्थिति प्राप्त करता हैं। महिलाएँ परिवार की प्रस्थिति को बनाए रखने और ऊँचा उठाने में योगदान करती हैं। लड़कियों को दी गई शिक्षा की किस्म, गुणवत्ता और स्तर पर नियंत्रण है। रोजगार की वरीयता का मूल्यांकन किया जाता है और महिलाओं की दोहरी भूमिका बनाए रखी जाती है। जिससे महिलाओं पर पारिवारिक जिम्मेदारियाँ असाधारण रूप से बढ़ जाती हैं। महिलाएँ (संगठित क्षेत्र में) शिक्षक, टाइपिस्ट, नर्स और डॉक्टर का व्यवसाय इसीलिए अपनाती हैं, कि इन व्यवसायों को उनकी पारिवारिक भूमिका का विस्तार माना जाता है।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

4 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

4 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

2 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

2 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

2 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

2 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now