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work of compression in thermodynamics in hindi Expansion प्रसार कार्य संपीडन कार्य क्या है

प्रसार कार्य संपीडन कार्य क्या है work of compression in thermodynamics in hindi Expansion ?

प्रसार कार्य (Work of Expansion ) ठोसों तथा द्रवों में प्रसार कार्य गैसों की अपेक्षा बहुत कम होता है। अतः प्रसार कार्य की गणना सामान्यतया गैसों के लिये ही की जाती है, इसलिये प्रसार कार्य को दाब आयतन कार्य (Pressure-Volume Work) भी कहते हैं। एक भारहीन, घर्षणहीन पिस्टन लगे सिलिन्डर की कल्पना कीजिये, जिसमें आदर्श गैस की एक निश्चित मात्रा भरी है (चित्र 1.3 ) माना कि गैस का दाब P है। यह दाब पिस्टन को ऊपर की ओर धकेलेगा। पिस्टन को संतुलित करने के लिये माना कि उस पर बाह्य बल F लगाया जाता है। यदि पिस्टन का अनुप्रस्थ काट (cross-section area) A हो तो बाह्य बल

F=P×A ……………(9)

इस अवस्था में प्रतिरोधी दाब (opposing pressure) गैस के दाब के बराबर होता है। अब प्रतिरोधी दाब को अनन्त सूक्ष्म मात्रा dP से कम कर दिया जाता हैं तो पिस्टन अनन्त सूक्ष्म दूरी dl तक ऊपर की ओर सरक जायेगा, अर्थात् गैस को अपने पारिपार्रिक्क पर अनंत सूक्ष्म कार्य dw करना पडेगा। इस कार्य की गणना निम्न प्रकार की जा सकती हैं।

कार्य = प्रतिरोधी बल दूरी

= प्रतिरोधी दाब x क्षेत्रफल x दूरी

W = (P-dP) x Axd/

W = (P-dP)dV…………..(10)

यहाँ dV आयतन में अनन्त सूक्ष्म वृद्धि है। यदि गुणनफल dP x dV को अत्यन्त सूक्ष्म मानते हुये उपेक्षा कर दी जाये अर्थात् नगण्य मान लिया जाए तो

W = PdV …..(11)

यदि प्रसार से पहले गैस का आयतन V तथा प्रसार के बाद आयतन V2 हो तो सम्पूर्ण कार्य की गणना समीकरण ( 11 ) का V1 तथा V2 सीमाओं में समाकलन करके की जा सकती है।

IUPAC परिपाटी के अनुसार प्रसार कार्य (-ve) ऋणात्मक होता है।

दाब तथा आयतन की विभिन्न परिस्थितिओं में सम्पूर्ण कार्य का परिकलन किया जा सकता है।

(a) जब प्रतिरोधी दाब स्थिर हो यदि P का मान स्थिर रहता है तो समीकरण ( 12 ) को निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है-

IUPAC परिपाटी के अनुसार निकाय द्वारा किया गया कार्य ऋणात्मक (-ve) तथा निकाय पर किया गया कार्य धनात्मक (+ve) होता है। अतः प्रसार में किया गया कार्य ऋणात्मक (w) और संपीडन में किया गया कार्य धनात्मक (+w) होता है। सामान्यतः या

(b) जब प्रतिरोधी दाब शून्य हो – यदि P = 0 हो तो प्रसार निर्वात के विरूद्ध कहलायेगा । अर्थात् किया गया कार्य (W) शून्य होगा। इस प्रकार का प्रसार मुक्त प्रसार ( Free Expansion) कहलाता है।

इस प्रकार

W =0

(c) जब गैस का आयतन स्थिर हो (समआयतनिक तंत्र)- यदि अवस्था परिवर्तन में आयतन स्थिर रहता है तो dV = 0 होगा तथा समीकरण (12) के अनुसार

W’ = 0

(d) जब प्रतिरोधी दाब भी परिवर्तित होता हो-जब प्रतिरोधी दाब भी चर (Variable) हो तो कार्य की गणना करने के लिये P तथा V के ज्ञात संबंध की सहायता से P का V में तुल्य मान समीकरण (12) में प्रतिस्थापित करके समाकलन किया जाता है।

कार्य की गणना सिलिन्डर में भरी गैस के P तथा V के मध्य खींचे वक्र (समातापी वक्र) द्वारा भी की जा सकती है।

मानाकि P1V1 तथा P2V2 गैस के प्रसार की प्रारम्भिक तथा अन्तिम अवस्थायें है। यदि PA प्रतिरोधी दाब हो अर्थात् PA = P2 तो प्रसार कार्य चित्र 1.4 (a) में छायांकित भाग के क्षेत्रफल के बराबर

होगा ।

संपीडन में प्रारम्भिक एवं अन्तिम अवस्थायें क्रमश: P2V2 तथा P1V1 में दिखाये गये छायांकित भाग के क्षेत्रफल के बराबर होगा।

संपीडन कार्य (Work of Compression )

संपीडन में पारिपार्शिवक द्वारा गैस (तंत्र) पर कार्य किया जाता है। इसकी गणना भी प्रसार कार्य के अनुसार ही की जाती है। संपीडन में अन्तिम आयतन प्रारम्भिक आयतन से कम होता है। अतः समीकरण (13) के अनुसार प्राप्त कार्य धनात्मक होता है। सम्पीडन कार्य यद्यपि धनात्मक होता है। परन्तु इसका मान संगत प्रसार कार्य की तुलना में बहुत अधिक होता है जो कि चित्र 1.4 से स्पष्ट है।

 अधिकतम कार्य तथा उत्क्रमणीयता (Maximum Work and Reversibility)

यह विदित है कि गैस द्वारा किया गया प्रसार कार्य प्रतिरोधी दाब (PA) पर निर्भर करता है, न कि गैस के दाब (P) पर। यदि प्रतिरोधी दाब शून्य हो ( P = 0) तो प्रसार कार्य (w) भी शून्य होता है। यदि प्रतिरोधी दाब को निरन्तर बढ़ाया जाता है तो कार्य का मान भी निरन्तर बढ़ता जाता है। यदि प्रतिरोधी दाब गैस के दाब के समान हो (P = 0) तो गैस का प्रसार रूक जाता है तथा आयतन परिवर्तन शून्य होता है यदि प्रतिरोधी दाब का मान और अधिक बढ़ाया जाता है (P>P) तो गैस का सम्पीडन प्रारम्भ हो जायेगा और गैस के ऊपर कार्य होने लगेगा।

अतः यह स्पष्ट है कि अधिकतम प्रसार कार्य तब ही संभव है जबकि प्रतिरोधी दाब का मान गैस के दाब से अनन्त सूक्ष्म मात्रा में कम रहे।

PA = P- dP

चूंकि यह परिस्थिति उत्क्रमणीय प्रसार को प्रदर्शित करती है अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अधिकतम कार्य उत्क्रमणीय की परिस्थिति में ही प्राप्त किया जा सकता है। समीकरण ( 12 ) इन्ही परिस्थितियों में व्युत्पन्न ही गई हैं अतः इसे निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है।

Max का मान अधिकतम कार्य तथा Wrev उत्क्रमणीय कार्य हैं।

Max का मान प्राप्त करने के लिये P का मान V के तुल्य मान में प्रतिस्थापित करके समीकरण (14) का V1 तथा V2 की सीमाओं में समाकलन किया जाता है।

माना कि सिलेन्डर में एक आदर्श गैस के n मोल भरे हुये हैं, आदर्श गैस समीकरण (PV= nRT)

P = nRT /V

P का यह मान समीकरण ( 14 ) में प्रतिस्थापित करने पर

चित्र 1.5 में इस कार्य का आलेखी निरूपण दिखाया गया है। छायांकित भाग का क्षेत्रफल अधिकतम

प्रसार कार्य दर्शाया है।

सम्पीडन में अन्तिम आयतन का मान प्रारम्भिक आयतन से कम होता है अतः आयतन परिवर्तन ऋणात्मक होगा तथा गैस पर कार्य किया जायेगा। गैस पर किया जाने वाला यह कार्य न्यूनतम होगा। अतः समीकरण (15) के अनुसार

Wmin न्यूनतम कार्य है चित्र 1.5 में छायांकित भाग का क्षेत्रफल संपीडन में हुये न्यूनतम कार्य को भी दर्शाया हैं इस प्रकार किसी प्रक्रम में उत्क्रमणीय परिस्थिति में प्राप्त होने वाली अधिकतम ऊर्जा उस प्रक्रम को उत्क्रमित करने के लिये न्यूनतम कार्य होगा ।

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