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महिला आंदोलन से आप क्या समझते हैं | भारत में महिला आंदोलन की परिभाषा क्या है किसे कहते है

women movement in india in hindi महिला आंदोलन से आप क्या समझते हैं | भारत में महिला आंदोलन की परिभाषा क्या है किसे कहते है ? भारत 1990 2014 में महिलाओं के आंदोलन ?

राजनीति में महिलाएँ या महिलाओं द्वारा राजनीति
भाग 24.4 में आपने संक्षिप्त में महिलाओं की स्वतंत्र राजनीतिक पहचान अथवा पहलकारी के बारे में पढ़ा है। इस भाग में आप ऐसे दृष्टांतों से अवगत हो सकेंगे जहाँ इस प्रकार की पहलकारियाँ अधि क सुनिर्दिष्ट दिखाई दी।

तेलंगाना आंदोलन
भूमि व संबंधित पारिस्थितिक-राजनीतिक अधिकारों हेतु तेलंगाना आंदोलन में महिला-भागीदारी महत्त्वपूर्ण थी। यद्यपि इसका नेतृत्व पुरुषों के पास था, यदि महिलाओं से सशक्त व सतत प्रेरणा न मिलती तो यह कब का समाप्त हो गया होता। यह ब्रिटिश राज (1941) के लिए उसके अन्यायों के विरुद्ध शुरू हुआ, और उनकी अपनी सरकार (1952 तक) के तले भी अन्यायों की निरंतरता के विरुद्ध जारी रहा।

 बोध गया आंदोलन
भूमि, यानी आजीविका, अथवा महिलाओं ‘‘द्वारा‘‘ आर्थिक अधिकारों हेतु एक अन्य महत्त्वपूर्ण आंदोलन था- उन कृषक स्त्रियों द्वारा ‘पट्टे‘ का बलात् अधिग्रहण, जो बोधगया (बिहार) में अथवा उसके आसपास से एकत्रित हुई थीं। मद्यपान व अन्य दुर्व्यसनों के कारण पुरुष भूमि में पर्याप्त श्रम व संसाधन नहीं लगा रहे थे। अनापेक्षित सफलता महिलाओं द्वारा सभी संयुक्त प्रयासों के लिए एक उत्कृष्ट प्रेरणा बन गई। लेकिन, यहाँ सफलता अद्भुत और विशिष्ट थीय अन्य अधिकांश मामलों में सफलता उनके भाग्य में नहीं थी, और बिहार सामाजिक अन्याय व महिला-उत्पीड़न में शीर्षस्थ राज्यों में एक अभी तक बना हुआ है।

दलित महिला आंदोलन
यह कहना गलत न होगा कि दलित महिलाएँ सर्वप्रथम महाराष्ट्र में एक स्वयं-शिक्षित दम्पत्ति, फुले, द्वारा संगठित की गईं। इनको (फुले दम्पत्ति) 19वीं सदी में महिला-अधिकारों हेतु आंदोलन के संस्थापकों में से एक भी कहा जा सकता है। वर्तमान में, जनवादी महिला समिति इस आंदोलन की प्रबलतम समर्थक है। दलित महिलाओं ने मुख्यतः दो कारणों से स्वयं को, अपने पुरुषों व अन्य महिलाओं, दोनों से अलग रहकर संगठित करने की आवश्यकता महसूस की: (प) दलित पुरुष, तथापि स्वयं उत्पीड़ित हों, अपनी ही स्त्रियों को उत्पीड़ित हों, अपनी ही स्त्रियों को उत्पीड़ित करने से बाज नहीं आतेय और (पप) गैर-दलित महिलाएँ, हालाँकि निष्कपट हैं, उस दोहरे दमन को नहीं .. समझ पाती हैं जो एक दलित महिला स्थिर रूप से झेलती है।

आदिवासी महिला आंदोलन
नागालैण्ड की उत्तरी कतार पहाड़ियों में, गुडियालो, प्यार से जिसे ‘रानी‘ बुलाते हैं, नागरिक अवज्ञा आंदोलन में अपनी भमिका के लिए प्रसिद्ध हो गई। अपने चचेरे/ गमेरे भाई जादो नांग द्वारा प्रेरणा पाकर जादोनांग मणिपुर में ग्रामवासियों को संघटित करने में सक्रिय था। वह मात्र 13 वर्ष की अल्पायु में ही इसमें शामिल हो गई। जादोनांग मणिपुर में ग्रामवासियों को संघटित करने में सक्रिय था। 1931-32 में, अपने इस भाई, जिसे ‘राज‘ द्वारा फाँसी दे दी गई थी, के नेतृत्व वाले शासन का अधिकार अपने हाथ में लेकर गुडियालो ने एक ‘महसूल इनकारी‘ अभियान शुरू किया। इन ग्रामवासियों ने दुलाई पर अनिवार्य उपग्रहणों का भुगतान रोक दिया और बलात् श्रग के रूप में काम करने से इनकार करना शुरू कर दिया।
यह इस प्रकार के अनेक देशी व स्वैच्छिक जन-आंदोलनों में से एक है जिसको मुख्यधाराश् राष्ट्रवादी राजनीति द्वारा प्रबल रूप से हतोत्साहित व अस्वीकृत किया जाता था। यह प्रवृत्ति और निर्णय लेने की अभिवृत्ति कि दूसरे या दूसरों के लिए क्या अच्छा है और क्या आवश्यक है, ही पितृतंत्र और पूँजीबाद (और. वास्तव में, साम्राज्यवाद) का आधार है, तथा स्वतंत्रता के बाद आज भी जारी है। यही कारण है कि भारत के आजादी हासिल करने के आधे से भी अधिक सदी गुजरने के बाद भी आदिवासी, दलित व महिलाएँ अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। वर्तमान में, पर्यावरणीय निम्नीकरण के विरुद्ध लड़ाई मुख्यतः आदिवासियों अथवा प्रकृति के पुत्र व पुत्रियों द्वारा लड़ी जाती है, क्योंकि प्रकृति की लूट का अर्थ है उनकी आजीविका व संस्कृति को लूटना। स्वाधीन भारत की मुख्यधारा सरकार को यह अहसास नहीं है कि हमारा देश, एक बार फिर, विश्व बाजार शक्तियों द्वारा उपनिवेश बनाया जा रहा है।

बोध प्रश्न
4 नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए रिक्त स्थान का प्रयोग करें ।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इकाई के अन्त में दिए गए आदर्श उत्तरों से करें।
1) किसी दलित महिला के सामने आने वाली बड़ी ही खास समस्या क्या है?

बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 4
1) दलित महिलाएँ भेदभाव की दोहरी समस्याएँ झेलती हैं: वे उन सामान्य समस्याओं का सामना करती हैं जो सभी जातियों से सम्बंध रखने वाली महिलाएँ झेलती हैं, और वे समस्याएँ भी जो दलित महिलाओं द्वारा उनकी जाति की सामाजिक स्थिति के कारण झेली जाती हैं।

महिलाएँ
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
19वीं और 20वीं सदी-पूर्वार्ध में महिलाओं हेतु सुधार
‘‘‘सती‘‘ के विरुद्ध
विधवा-पुनर्विवाह
वैश्याओं का पुनर्वास
आर्य समाज
बाल-विवाह निषेध
महिलाओं हेतु शिक्षा और पहचान के साथ उभरती महिलाएँ
साहित्य में महिलाएँ और महिलाओं द्वारा साहित्य
अधिकारों हेतु महिलाएँ
महिलाओं हेतु महिलाएँ
राष्ट्रवादी संघर्ष में महिलाएँ
समानता हेतु महिलाएँ
महिलाओं की स्वतंत्र राजनीतिक पहचान
राजनीति में महिलाओं के प्रति भेदभाव
राजनीति में महिलाओं की पहल
महिला ‘‘आतंकवादी‘‘
महिला एकता अथवा संयुक्त संचलन के सामने मुख्य मुद्दे
सम्प्रदाय और जातिवाद
दमन से दैनिक मुठभेड़
प) मद्य के विरुद्ध
पप) दहेज के विरुद्ध
पपप) यौन दुष्प्रयोग के विरुद्ध
पर्यावरण और जीवंतता
राजनीति में महिलाएँ या महिलाओं ‘द्वारा‘ राजनीति
तेलंगाना आंदोलन
बोध गया आंदोलन
दलित महिला आंदोलन
आदिवासी महिला आंदोलन
साहित्य, रंगमंच व अन्य अभिव्यक्ति-विधाओं के माध्यम से संचलन
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें व लेख
बोध प्रश्नों के उत्तर

 उद्देश्य
इस इकाई में दिया गया है – भारत में विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में महिलाओं की भूमिका और योगदान । इस इकाई को पढ़ लेने के बाद, आप जान सकेंगे:
ऽ भारत में महिला आंदोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि,
ऽ महिला एकता के सामने मुख्य मुद्दे, और
ऽ राजनीति में महिलाओं की भूमिका।

प्रस्तावना
भारत के सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में महिलाओं की भूमिका को समझना आसान होगा यदि हम इस अध्ययन को निम्नलिखित श्रेणियों में बाँट दें।

प्रथमतः, हम 19वीं और 20वीं शताब्दियों, यानी पूर्व- तथा पश्च-औपनिवेशिक युग में महिलाओं की भूमिका का एक विशालदर्शी अवलोकन करने का प्रयास करेंगे।

तत्पश्चात्, हम इन आंदोलनों की जाँच दो विस्तृत दृष्टिकोणों से करेंगे, नामतः (प) महिलाओं “हेतु‘‘ और (पप) महिलाओं ‘‘कउ‘‘ ।
प) सुधारों और राष्ट्रवादी संघर्ष के काल को महिलाओं ‘‘हतु‘‘ के रूप में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है क्योंकि उन्नति के लिए सभी हितों और अवसरों के लिए संघर्ष और प्राप्ति उन समाज-सुधारकों द्वारा ही की गई जो, अपरिहार्य रूप से, पुरुष थे। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में महिलाओं की व्यग्र और वास्तविक भागीदारी थी, लेकिन नेतृत्व पुरुष हाथों में ही था । अभी तक, यह काल महिलाओं हेतु “स्वतंत्रता के आरंभ‘‘ के रूप में बहुत ही महत्वपूर्ण है।
पप) स्वतंत्रोत्तर काल में महिलाओं ने अपनी निजी स्वतंत्रता पर ध्यान केन्द्रित किया। इस आंदोलन की नींव अंग्रेजी राज-विरोधी दिनों में ही डाली जा चुकी थी जब महिलाओं ने अपनी पहचान को साहित्य के माध्यम से और अपनी गतिविधियों को ‘‘आतंकवादियों‘‘ के रूप में खोजना प्रारंभ कर दिया था। वे धीरे-धीरे संसार के महिला आंदोलन का हिस्सा बन गईं और उनके अपने ही देश में सामाजिक व राजनीतिक आंदोलनों में उनकी भूमिका उत्तरोत्तर उदग्र होनी प्रारंभ हो गई।

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