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भागवत गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किसने किया , 1785 में संस्कृत से अंग्रेजी में भगवत गीता का अनुवाद करने वाले पहले व्यक्ति कौन थे
who translated bhagavad gita into english for the first time in hindi भागवत गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किसने किया , 1785 में संस्कृत से अंग्रेजी में भगवत गीता का अनुवाद करने वाले पहले व्यक्ति कौन थे ?
उत्तर : ईस्ट इंडिया कंपनी के एक व्यापारी चार्ल्स विल्किन्सन ने भागवत गीता का अनुवाद किया | इन्होने इसका अनुवाद संस्कृत भाषा से अंग्रेजी भाषा में किया था |
आधुनिक भारतीय साहित्य और भाषाओं का विकास
19वीं शताब्दी भारतीय साहित्य के इतिहास का रचनात्मक युग था। यह नया उत्साह कई बातों के कारण पैदा हुआ था। इनमें प्रमुख बात थी भारत पर पश्चिम से संपर्क का प्रभाव।
18वीं शताब्दी के अमित 25 वर्षों में कुछ अंग्रेजों ने जैसे चार्ल्स विल्किन्स. गिलक्रिस्ट, ग्लैडविन और हालहैड जैसे प्रमुख हालहैड ने हिंदुओं और मुसलमानों के कानून का प्रसिद्ध संकलन ‘गेन्त संहिता‘ प्रकाशित की और 1778 ई. में उन्होंने बंगला इस भाषा का व्याकरण छापा। भारतीय के इन्हीं अग्रणी अध्ययनकर्ताओं ने भारत के साहित्य में गद्य की कमी को समझा।
इस क्षेत्र में क्रिश्चियन मिशनरियों ने महत्वपूर्ण योग देना शुरू किया। 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में सेरामपुर के मिशनरी अपनी धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशनों से बंगला भाषा के विकास को प्रोत्साहन दे रहे थे। बाइबिल का बंगला में अनुवाद किया गया। 19वीं शताब्दी के दो दशकों में में प्राचीन गाथाओं और कहानियों, इतिहास और दर्शन आदि की बहुत सी गद्यात्मक पुस्तके प्रकाशित हुई। उस समय के संदर्भ में कथोपकथन लिपिमाला, राजा प्रतापादित्य चरित्र, बत्तीसी सिंहासन, हितोपदेश, राजा बली और प्रबोधचंद्रिका जैसी कृतियां उल्लेखनीय थीं।
लेकिन वास्तविक प्रोत्साहन और प्रेरणा तब मिली जब अंग्रेजी भाषा के जरिए पाश्चात्य शिक्षा का तेजी से प्रसार हुआ। बंगला की एशियाटिक सोसाइटी, कलाकत्ता स्कूल बुक सोसाइटी, मद्रास स्कूल बुक सोसाइटी, बंबई स्कूल बुक सोसाइटी, कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी सोसाइटी फार जनरल नालेज, तत्वबोधिनी सभा, बंबई की स्टूडेंट्स लिट्रेरी एंड साइंटिफिक सोसाइटी, बेथ्यून सोसाइटी, तथा कलकत्ता, बंबई और मद्रास की मेडिकल सोसाइटियों जैसे संगठनों ने जागृति, अध्ययन और साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिकाएं अदा की।
संस्कृति भाषा का आधुनिक साहित्य
पाश्चात्य जगत के लिए संस्कृत की खोज में एशियाटिक सोसाइटी ने महत्त्वपूर्ण योगदान किया। इसकी स्थापना सर विलियम जोन्ज ने 1784 में की थी। ठीक इसी समय ईस्ट इंडिया कंपनी के एक व्यापारी चार्ल्स विल्किन्सन ने भागवत गीता का अनुवाद किया, जो लंदन में 1785 ई. में छपा। 1787 ई. में विल्किन्सन ने हितोपदेश का अनुवाद प्रकाशित किया। विलियम जोन्स का उन्होंने कालिदास के माहन संस्कृत नाटक अभिज्ञान शाकुंतल, जयदेव के गीतगोविन्द और मनु की मनु-संहिता का अनुवाद किया। हेनरी टामस कोलबुक ने संस्कृत व्याकरण और वेदों पर कार्य किया और उन्होंने 19वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में अपनी कृतियां प्रकाशित की। 1813 ई. में होरेस हेमैन विल्सन ने मेघदूत का अनुवाद प्रकाशित किया। उन्हीं की देखरेख में 18 पुराणों का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। उनका मत था कि ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों को भारत को जानने के लिए संस्कृत का ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने लिखा, श्हिंदुओं के साहित्य की कुछ जानकारी के बिना मानव समाज के इतिहास को पूरी तरह नहीं समझा जा सकता। अंततः हेलीबरी कालेज में एक विषय के रूप में संस्कृत शुरू की गई। इस कालेज में अंग्रेज नागरिक अधिकारियों को भारतीय सेवा के लिए प्रशिक्षित किया जाता था।
जिन नामों का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है उनके अलावा भी कई विशिष्ट और विख्यात पश्चिमी विद्वान ऐसे थे जिन्होंने विश्व को संस्कृत साहित्य का परिचय देकर इसकी महान सेवा की और जिन्हें संस्कृत साहित्य के इतिहास में सदा याद रखा जाएगा। ये विद्वान थे जेम्ज प्रिन्सेप, सेमुअल डविस, फ्रांसिस विल्फोर्ड, जान बेन्ट्रली, रूबेन बरों डल्य एच. मिल, जी. एच. हाजसन, डब्यू. येट्स और डब्ल्यू. सी. टेलर। 1834 ई. में डब्लयू. सी. टेलर ने लिखा, ‘संस्कृत भाषा भी का अध्ययन लगभग हमारे ही समय के शुरू हुआ, और यह भाषा उन सभी विषयों में सबसे आगे है जिन पर दार्शनिक, इतिहासकार और बौद्धिक सौंदर्य के प्रशंसक को ध्यान देना चाहिएय इस भाषा का गौरव इसकी नवीनता के कारण नहीं बल्कि उन बहत सारे विचारों के महत्व के कारण हैं जो बरबस हमें अपनी ओर आकर्षित करते हैं।‘ केवल अंगेज विद्धान ही नहीं बल्कि जर्मन, फ्रेंच और रूसी विद्वान भी बहुत गहरी दिलचस्पी के साथ संस्कृत के अध्ययन केला विद्वानों में प्रमुख थे फ्रेडिच ‘लेगल, जिन्होंने ‘आन दि लैंगुएज एंड विजडम आफ दि इंडियन‘ नामक अपनी पुस्तक 1808 ई. में प्रकाशित की। उनके भाई आगस्टस विलहैल्म वान ‘लेगल, 1818 ई. में बोन में भारत विद्या के प्रोफेसर बने उन्होंने भागवत गीता तथा रामायण पर कार्य किया। लगभग उन्हीं दिनों (1816 में) फ्रांज बाप ने अपनी प्रसिद्ध परता काजुगेशनल सिस्टम आफ दि संस्कृत लैंगुएजश् प्रकाशित की। उनका संस्कृत, अँड, ग्रीक, लेटिन, लिथवानि जर्मन और स्लेवोनिक भाषाओं का तलनात्मक व्यापकरण, भाषा विज्ञान का महान कृति था। बाप का नल-दमयंती और महाभारत की कुछ चुनी हुई कथाएं भी मूल्यवानयोदान थीं। 1838 ई. में एफ. रोसिन ने ऋग्वेद का एक भाग प्रकाशित किया। इस बीच प्रसिद्ध फ्रांसीसी प्राच्य विद्या विशेषज्ञ यूजीन बरनोफ ने संस्कृत अध्ययन का एक बड़ा। कार्यक्रम शुरू किया, जिसमें वेद और पुराणों के साहित्य पर विशेष बल दिया गया था। 1840 ई. में पेरिस में उनका भाग अनुवाद छपा। उनके जिर्मन विद्यार्थी रूडाल्फ राथ ने 1846 ई. में विद्वत्तापूर्ण पुस्तक छापी जिसका नाम था ‘आन दि लिटरेचर एंड हिस्ट्र आफ वेदाज‘। एफ. मैक्समूलर ने जर्मन जाति का, बड़ प्रशसा भरे शब्दों में महानता का परिचय दिया।
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