हिंदी माध्यम नोट्स
भारत की राजधानी सबसे पहले कहां थी , दिल्ली भारत की राजधानी कब बनी थी , what was capital of india before delhi in hindi
what was capital of india before delhi in hindi भारत की राजधानी सबसे पहले कहां थी , दिल्ली भारत की राजधानी कब बनी थी ?
दिल्ली (28°36‘ उत्तर, 77°13‘ पूर्व)
भारत की राजधानी दिल्ली, जो यमुना के तट पर बसा हुआ एक विशाल नगर है, 5000 वर्षों का इतिहास अपने अंदर समेटे हुए है। दिल्ली का इतिहास पांडवों द्वारा प्राचीन काल में इंद्रप्रस्थ की स्थापना से प्रारंभ होता है। इसके बाद विभिन्न शासक यहां विभिन्न कालों में शासन करते रहे। इन विभिन्न शासकों ने यहां विभिन्न शासक नगरों की स्थापना की। इंद्रप्रस्थ, लालकोट, किला रायपिथौरा, सीरी, जहॉपनाह, तुगलकाबाद, फिरोजाबाद, दीनपनाह, शाहजहांनाबाद इत्यादि। इन सभी को एकीकृत एवं सम्मिलित रूप से दिल्ली कहा गया। दिल्ली प्रारंभ से ही शासकों की प्रतिष्ठा का प्रश्न एवं शक्ति का केंद्र बिन्दु रहा है।
दिल्ली का वह हिस्सा, जो वास्तव में दिल्ली का मुख्य भाग निर्मित करता है, की स्थापना 11वीं शताब्दी में तोमर शासकों ने की थी। बाद में यह चैहान शासकों के अधीन आ गया। इसके बाद दिल्ली, दिल्ली सल्तनत के शासकों के अधीन आ गया। इल्तुतमिश ने राजधानी दिल्ली में स्थानांतरित की। यद्यपि इसके पश्चात पूरे मध्यकाल में कई भारतीय शासकों ने कई बार राजधानी को दिल्ली से स्थानांतरित किया। मु. बिन तुगलक ने दिल्ली से दौलताबाद एवं अकबर ने दिल्ली से आगरा स्थानांतरित की। परंतु दिल्ली का महत्व सदैव बना रहा तथा शासक अपनी राजधानी को वापस दिल्ली लाने पर विवश हो गए।
अंग्रेजों ने जब 1911 में भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित किया तब भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की समस्त गतिविधियों का केंद्र दिल्ली ही बन गया। यहीं से भारत के राष्ट्रवादी नेताओं ने स्वराज्य प्राप्ति का लक्ष्य अपने सामने रखकर अपना संघर्ष चलाया। आजाद हिंद फौज द्वारा दिए गए दिल्ली चलो के नारे को आज भी सभी राजनीतिक दल दिल्ली में अखिल भारतीय स्तर की रैलियां एवं सभाएं आयोजित करते समय यदाकदा प्रयुक्त करते हैं।
15 अगस्त 1947, को तिरंगा झंडा फहराए जाने के साथ ही दिल्ली ने भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया।
दिल्ली में अनेक ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध इमारते हैं। जैसे-पुराना किला, कुतुबमीनार (यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित), लाल किला, जामा मस्जिद, जंतर-मंतर, हुमायूं का मकबरा (यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित) एवं इंडिया गेट इत्यादि।
राजघाट यहीं यमना नदी के तट पर स्थित है। यह स्थान महात्मा गांधी की समाधि के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थान आज भी पूरे देश के लिए सम्मान एवं प्रेरणा का प्रतीक है, क्योंकि यहां उस व्यक्ति की समाधि है, जिसने भारतवासियों को परतंत्रता की बेड़ियों के मुक्त कराने के लिए सत्य एवं अहिंसा का मार्ग अपनाया तथा देश सेवा के लिए अपना पूरे जीवन का बलिदान कर दिया। इस समाधि में एक ज्वाला निरंतर प्रज्जवलित होती रहती है। समाधि स्थल में बड़े अक्षरों में श्हे रामश् लिखा हुआ है। ये वही शब्द हैं, जो महात्मा गांधी के मुख से अपने प्राणों की आहुति देते समय निकले थे।
महात्मा गांधी की समाधि के अतिरिक्त यहां कई अन्य नेताओं की समाधियां हैं। जैसे-शांतिवन-जवाहरलाल नेहरू की समाधि; किसान घाट-लाल बहादुर शास्त्री की समाधि एवं शक्ति स्थल-इंदिरा गांधी की समाधि।
देवगढ़ (24.52° उत्तर, 78.23° पूर्व)
देवगढ़ झांसी के समीप उत्तर प्रदेश में स्थित है तथा भगवान विष्णु के दशावतार मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। पत्थरों से निर्मित यह मंदिर गुप्तकालीन है। यह मंदिर शिखर या नागर शैली का पहला उदाहरण है। इसकी गणना भारत के सर्वश्रेष्ठ मंदिरों में की जाती है।
इसमें एक मीनार है जो कि धीरे-धीरे पीछे की ओर वर्गाकार पवित्र स्थल से ऊपर उठती है, जबकि इससे पूर्व समय में निचले तथा सपाट छतों वाले मंदिर हुआ करते थे। तीन दीवारों पर उत्कृष्ट कोटि की मूर्तियां हैं तथा एक उत्कृष्टता से सजाया गया प्रवेश द्वार है। मंदिर की दक्षिणी दीवार पर लक्ष्मी तथा भगवान विष्णु की मूर्तियां कलात्मक महत्व की हैं।
गुप्तोतर काल का एक मंदिर, बेतवा नदी के तट पर स्थित ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी का कुरैय्या बीर मंदिर स्थापत्य का उत्कृष्ट कलात्मक नमूना है। मंदिर पूर्वकाल के लकड़ी की परंपरागत विशिष्टताओं को दर्शाता है।
पास ही में पहाड़ी के शिखर पर स्थित दुर्ग में लगभग 30 से अधिक जैन मंदिर हैं, जो कि नवीं तथा दसवीं शताब्दी से संबंधित हैं।
देसलपुर/गुंथली (23°44‘ उत्तर, 70°41‘ पूर्व)
देसलपुर अथवा गुंथल नामक पुरातात्वविक स्थल सिंधु घाटी सभ्यता का एक भाग है, जो गुजरात के कच्छ जिले में नखतराना तालुक में स्थित है। यह भुज से 25 किमी. दूर तथा भामु-चेला के उत्तरी तटों, जो कि पहले ध्रूड़ नदी के निकट कटाव क्षेत्र में था, पर है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने 1963 से देसलपुर में उत्खनन आरम्भ किया। इस प्राचीन नगर के विस्तृत क्षेत्र का 3000 वर्षों से भी अधिक समय तक नदी द्वारा अपदरन होता रहा एवं यह कच्छ के रन से जुड़ गया। यहां निचले उत्खनन स्तरों पर भूरे रंग के पतले मृदभांड, जिन्हें भली प्रकार चिन्हित व नील हरित रंग की धारियों द्वारा चित्रित किया गया है, प्राप्त हुए हैं। ये सामान्यतः हड़प्पा मृदभांड की विशेषता है। इसी प्रकार के मृदभांड मोहनजोदड़ो में मिले हैं, जिन्हें ‘चमकीले मृदभांडश् भी कहा जाता है। लिपि वाली तीन मुहरें भी प्राप्त हुई हैं, प्रत्येक मुहर भिन्न पदार्थ की है, एक मुहर शैलखड़ी, दूसरी तांबे तथा तीसरी मिट्टी की बनी है। दो बहुरंगी बर्तन यहां मिले हैं, जिसमें से एक सफेद, बैंगनी तथा काले डिजाइनों द्वारा सज्जित है तथा दूसरा गहरे काले रंग द्वारा चित्रित है। अन्य कलात्मक वस्तुएं भी यहां मिली हैं, जिसमें मिट्टी के बर्तन, मूल्यवान पाषाण मनके, तांबे के तीर व चकमक ब्लेड सम्मिलित हैं।
यहां एक भट्टा भी मिला है। देसलपुर से मिली वस्तुओं से दो सांस्कतिक कालों की पहचान हई है-प्रागैतिहासिक काल तथा हड़प्पा सभ्यता। हड़प्पा काल में देसलपुर एक दुर्गीकृत शहर था। घरों के साथ एक रक्षात्मक दीवार बनाई गई थी। इस प्रकार की रचना एक सामान्य रक्षात्मक उपाय न होकर घरों को बाढ़ से बचाने हेतु थी।
धमनेर धमनेर राजस्थान में कोटा एवं उज्जैन के मध्य स्थित है। यह स्थान बौद्ध गुफाओं के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें चैत्य, भिक्षु आवास एवं उपासना स्थल बने हुए हैं। यहां बुद्ध के विभिन्न रूपों को सुंदरता से दर्शाया गया है। यद्यपि गुफाओं का निर्माण सुनियोजित ढंग से नहीं किया गया है। केवल एक ही गुफा ऐसी है, जिसे देख कर लगता है कि इसका निर्माण पूर्व योजनानुसार हुआ है। यहां पर चैत्य को मठवासीय कक्ष के बीच में निर्मित किया गया है, सामान्य विहारों की तरह नहीं, जहां पर चैत्य गुफा मेहराबदार छोर की ओर होती है।
धार (22.6° उत्तर, 75.3° पूर्व)
प्राचीन काल में ‘धार नगरी‘ एवं मध्य काल में ‘पीरन धारश् के नाम से प्रसिद्ध धार दोनों ही समय राजधानी नगर रहा है। वर्तमान समय में यह मध्य प्रदेश का जिला नगर है। परमारों ने 9वीं से 13वीं शताब्दी के मध्य मालवा के एक बड़े क्षेत्र में लगभग 400 वर्षों तक शासन किया। वाक्पत्ति मुंज एवं भोजदेव इस वंश के सबसे प्रतापी शासक थे। भोज ने ही अपनी राजधानी को उज्जैन से धार स्थानांतरित किया तथा यहां एक संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना करवाई, जिसे श्भोजशालाश् के नाम से जाना जाता था। भोज के शासनकाल में धार नगरी कला, संस्कृति एवं शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गई।
1305 में धार अलाउद्दीन खिलजी के प्रभावाधीन आ गया तथा 1401 तक दिल्ली सल्तनत का ही हिस्सा बना रहा। 1401 में दिलावर खान घुर, एक गवर्नर, ने स्वयं की स्वतंत्रता घोषित कर मालवा में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की तथा धार को अपनी राजधानी बनाया। यद्यपि आगे चलकर सम्पूर्ण मालवा मुगलों के अधीन आ गया। अकबर के प्रशासनिक संगठन में धार, मालवा सूबे के मांडू सरकार में एक मुख्य महाल या नगर था। अकबर अपने दक्षिण अभियान के समय एक सप्ताह धार में रुका था।
बालाजी पेशवा ने धार का नियंत्रण आनंद राव पवार को सौंप दिया तथा 1948 तक धार, इनके उत्तराधिकारियों के अधीन बना रहा। इस समयावधि में 1857 के विद्रोह के समय मात्र तीन वर्षों तक ही मराठों के प्रभुत्व से बाहर रहा। धार 1857 के विद्रोह का एक प्रमुख केंद्र था। विद्रोह के दमन के उपरांत अंग्रेजों ने इस पर अधिकार कर लिया किंतु बाद में पुनः इसे मराठों को सौंप दिया।
धौली (20°11‘ उत्तर, 85°50‘ पूर्व)
धौली ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से 8 किमी. दूर दाया नदी के तट पर स्थित है। यह स्थान तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में लड़े गए प्रसिद्ध कलिंग युद्ध की भयावहता का साक्षी है। धौली में ही मौर्य शासक अशोक ने युद्ध की विभीषिका को देखा तथा युद्ध की विनाशलीला से उसका मन द्रवित हो गया। इसके उपरांत ही उसने भेरी घोष के स्थान पर धम्मघोष की नीति को अपनाने का निश्चय किया। इस प्रकार बौद्ध धर्म के एक महान संरक्षक का आविर्भाव हुआ।
धौली अपने अशोककालीन शिला राजाज्ञाओं तथा उभरी हुई नक्काशी में चित्रित एक हाथी द्वारा अभिषेक जैसे शिलालेख एवं शैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। अशोक के 14 शिलालेखों में 11 इसी क्षेत्र में पाए गए हैं। यहां से अशोक के दो शिलालेख प्राप्त हुए हैं उनमें वह कलिंग के लोगों को संबोधित करता है।
बौद्ध धर्म की दृष्टि से धौली का विश्वस्तरीय महत्व है। यहां एक ‘शांति स्तूप‘ है तथा एक विशाल मठ भी है, जो ‘सधरम विहारश् के नाम से प्रसिद्ध है।
धौली में लघु गुहा आवास, मध्यकालीन हिन्दू मंदिर एवं एक शिव मंदिर ‘धवलेश्वर‘ भी पाया गया है। इन सभी कारणों से धौली का ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान है।
धौलावीरा (23°55‘ उत्तर, 70°13‘ पूर्व)
धौलावीरा, पश्चिमी भारत में गुजरात राज्य के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में खादिरबेट में एक पुरातात्विक स्थल है। इसका नाम यहां से एक किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित गांव के नाम पर पड़ा है। इसे स्थानीय रूप से कोटडा टिम्बा नाम से भी जाना जाता है। इस स्थल में सिंधु घाटी सभ्यता हड़प्पा कालीन शहर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस स्थल को सर्वप्रथम भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के महानिदेशक जे.पी. जोशी द्वारा 1967-68 में खोजा गया तथा आर.एस. बिष्ट के नेतृत्व में 1989 में इसका उत्खनन शुरू किया गया। यह आठ मुख्य हड़प्पाकालीन स्थलों में से पांचवां बड़ा स्थल है। उत्खनन उपरांत सिद्ध हो गया कि यह सैंधव सभ्यता का सबसे प्राचीन, सर्वाधिक सुव्यवस्थित, सुंदर एवं सबसे बड़ा स्थल था। धौलावीरा में सिंधु सभ्यता के निवासी लगभग 5000 वर्ष पूर्व से रहते आ रहे थे।
धौलावीरा तीन भागों में विभाजित था-दुर्ग, मध्यम नगर एवं निचला नगर।
धौलावीरा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसकी जल प्रबंधन व्यवस्था थी। इसमें एक विशाल तालाब एवं कई छाटे-छोटे जलाशय थे। सबसे बड़े तालाब का माप 80.4 मी. x 12 मी. x 7.5 मी. यहां की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता एक आम स्थान है, जिसकी माप 238 x 48 मीटर है। संभवतः यह या तो कब्रिस्तान या विशाल सम्मेलन स्थल रहा होगा।
धौलावीरा के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों में पालिशदार श्वेत पाषाण खण्डों की प्राप्ति भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। संभवतः इनका उपयोग स्तंभों के रूप में हुआ था। इनसे ज्ञात होता है कि सैंधववासी पत्थर पर पॉलिश करने की कला से परिचित थे तथा यह कहीं बाहर से यहां नहीं आई थी। इसके अलावा सैंधव लिपि के 10 ऐसे अक्षर भी यहां से प्राप्त हुए हैं। प्रत्येक अक्षर क्रिस्टल से बने टुकड़े पर उत्कीर्ण है जो आकार में काफी बड़े हैं तथा विश्व की प्राचीन अक्षर माला में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। सैंधव सभ्यता के संदर्भ में यह एक अद्भुत खोज है।
शवाधान की विभिन्न विधियों के ज्ञात होने से अनुमान है कि यहां विभिन्न प्रजातीय समूहों के लोग वास करते थे।
दीव (20.71° उत्तर, 70.98° पूर्व)
भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर में स्थित दीव केंद्र-शासित प्रदेश दमन एवं दीव का एक प्रमुख बंदरगाह है।
दीव अपने किले के लिए प्रसिद्ध है, जिसका निर्माण 1535 में छः वर्षों की मेहनत के उपरांत किया गया था। यह किला गुजरात के शासक बहादुरशाह एवं पुर्तगालियों के मध्य संपन्न हुई उस मैत्री का परिणाम है, जिसमें इस प्रकार के एक दुर्ग के निर्माण का प्रस्ताव था। मुगल शासक हुमायूं ने जब गुजरात पर आक्रमण किया तो उसके उपरांत ही इस किले के निर्माण पर विचार प्रारंभ हो गया था।
किले में बनी गहरी सुरंगें, पांच टावर, विभिन्न युद्धों के अवशेष, पत्थर की गैलरियों एवं विशाल, भव्य खिड़कियां तथा ग्रेनाइट का कार्य इत्यादि एक भव्य एवं ऐतिहासिक समय की यादें ताजा कर देती हैं।
पुर्तगालियों ने छलपूर्वक बहादुरशाह की हत्या कर दी तथा दीव पर अधिकार कर लिया। पुर्तगालियों का यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बन गया। दमन के साथ ही दीव मालवा से लाए गए अफीम का प्रमुख निर्यातक स्थल बन गया।
दीव पर अधिकार को लेकर पहले मुगल एवं पुर्तगालियों तथा बाद में पुर्तगालियों एवं अंग्रेजों के मध्य लंबा संघर्ष हुआ।
दीव सेंट पालचर्च (1601-10), जिसमें अत्यलंकृत अग्रभित्ति तथा लकड़ी से बने फलक लगे हुए हैं, के लिए भी प्रसिद्ध है। यह चर्च अत्यंत खूबसूरत है। इसमें दीव अपने खूबसूरत तटों के लिए भी प्रसिद्ध है, जिनमें-चक्रतीर्थ एवं नागाओ घोघला प्रसिद्ध हैं। पुर्तगालियों द्वारा 1535 में निर्मित पानीकोटा की गढ़ी भी यहीं स्थित है।
द्वारका (22.23° उत्तर, 68.97° पूर्व)
ऐतिहासिक महत्व की प्राचीन नगरी द्वारका एक छोटी नगरी है, जो गुजरात के जामनगर जिले सौराष्ट्र प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी सिरे पर स्थित है। द्वारका का नामकरण संस्कृत भाषा के शब्द ‘द्वार‘ से हुआ, जिसका अर्थ है-प्रवेश द्वार। प्राचीन काल में यह भारत का प्रवेश द्वार था। भारतीय व्यापारी यहां से मिस्र, अरब देशों एवं मेसोपोटामिया के साथ सामुद्रिक व्यापार संपन्न करते थे।
द्वारका का सर्वप्रथम उल्लेख भारत तथा रोमन साम्राज्य के बीच व्यापार के समुद्रीय भूगोल की रचना ‘पेरिप्लस ऑफ द इरीथ्रियन सी‘, (80-115 ईस्वी) में है। पेरिप्लस इसे बराको की खाड़ी कहता है। इसका यह उल्लेख भृगुकच्छ के विवरण के साथ प्राप्त होता है। महाभारत द्वारका से संबंधित है।
मध्यकालीन समय में शंकराचार्य ने यहां एक प्रसिद्ध पीठ-एक महान हिंदू धर्म के केंद्र की स्थापना की थी, जो आज भी प्रसिद्ध है।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…