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तरंग की परिभाषा क्या है (what is wave in hindi) , प्रकार , उदाहरण , प्रगामी तरंग , अनुप्रस्थ , अनुदैर्ध्य तरंग

By   August 16, 2018

(what is wave in hindi) तरंग की परिभाषा क्या है , प्रकार , उदाहरण , प्रगामी तरंग , अनुप्रस्थ , अनुदैर्ध्य तरंग तरंगे किसे कहते है ?

परिभाषा :  जब ऊर्जा का संचरण दोलन , कम्पन्न या उतार चढाव के रूप में होता है और ऊर्जा एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित हो जाती है इसे ही तरंग कहते है।

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तरंग एक विक्षोभ या disturbance है जिसमे माध्यम के कण तो वास्तविकता में गति नहीं करते है लेकिन ऊर्जा का स्थानान्तरण एक स्थान से दूसरे स्थान तक हो जाता है।
जब तरंग किसी माध्यम में गति करती है तो उनमें माध्यम में कुछ दोलन उत्पन्न हो जाते है और इन्ही दोलनों या कम्पन्न के कारण ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है लेकिन वास्तविकता में माध्यम के कण गति नहीं करते है।
उदाहरण : रेडियो तरंग , यान्त्रिक तरंगे , ध्वनि तरंग आदि।

तरंगों के प्रकार (types of waves)

तरंगे चार आधार पर वर्गीकृत की जा सकती है –
1. माध्यम के आधार पर
2. ऊर्जा संचरण के आधार पर
3. विमीय आधार पर
4. कणों के आधार पर
अब इन सभी आधारों पर हम तरंगो के प्रकारों को हम विस्तार से अध्ययन करेंगे।
1. माध्यम के आधार पर 
माध्यम के आधार पर तरंगो को दो भागों में बाँटा गया है –
(अ) यांत्रिक तरंग : जब किसी भौतिक माध्यम में विक्षोभ उत्पन्न होता है लेकिन उसका स्वरूप नहीं बदलता है और विक्षोभ माध्यम में बिना स्वरूप परिवर्तन के आगे स्थानान्तरित होता है तो इस प्रकार के विक्षोभ या तरंग को यांत्रिक तरंग कहते है।  उदाहरण – स्प्रिंग तरंग आदि।
(ब) विद्युत चुम्बकीय तरंग : ये तरंग किसी किसी माध्यम के ही स्थानांतरित होती है , अर्थात वे तरंग जिनको स्थानान्तरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता न हो तो इस प्रकार की तरंग को विद्युत चुम्बकीय तरंगे कहते है। उदाहरण – रेडियो तरंग आदि
2. ऊर्जा संचरण के आधार पर 
(अ) प्रगामी तरंग : ये तरंगे जो माध्यम में एक नियत वेग से ही आगे की तरफ बढती है , अर्थात इन तरंगो का वेग नियत रहता है। इन तरंगो में सभी कणों का आयाम समान होता है।   उदाहरण – जल की सतह पर उत्पन्न तरंग।
(ब) अप्रगामी तरंगे : जब दो तरंग जिनका अनुप्रस्थ और अनुदैर्ध्य बराबर हो और दोनों तरंगे आपस में विपरीत दिशा में गति करती है तो इन दोनों तरंगो के अध्यारोपण से एक स्थिर तरंग बनती हुई प्रतीत होती है , इस स्थिर प्रतीत तरंग को ही अप्रगामी तरंग कहते है।
उदाहरण – बांसुरी और गिटार की तरंगे।
3. विमीय आधार पर 
(अ) एक विमीय तरंग : जब तरंग किसी दिशा या विमा में गति करती है या एक सरल रेखा के रूप में गति करती है तो इस प्रकार की तरंगो को एक विमीय तरंग कहते है। उदाहरण – सीधी बंधी हुई रस्सी में उत्पन्न तरंग।
(ब) द्विविमीय तरंग : जब कोई तरंग दो विमाओं में गतिशील हो या दूसरे शब्दों में कह सकते है की तरंग किसी तल में गति करती है तो उन तरंगो को द्वि विमीय तरंग कहते है। उदाहरण : जल की सतह पर उत्पन्न तरंग आदि।
(स) त्रिविमीय तरंग : जब कोई तरंग तीनों विमाओं में गतिशील रहती है अर्थात स्वतंत्र आकाश में तीन दिशाओ में गति करती है तो इस प्रकार की तरंगो को त्रि विमीय तरंग कहते है।  उदाहरण – रेडियो तरंग।
4. कणों के आधार पर 
(अ) अनुप्रस्थ तरंग : जब तरंग के कण इसकी संचरण की दिशा के लम्बवत कम्पन्न करते है तो इस प्रकार की तरंगो को अनुप्रस्थ तरंग कहते है।  उदाहरण – प्रकाश तरंग आदि।
(ब) अनुदैर्ध्य तरंग : ऐसी तरंग जिसमे माध्यम के कण तरंग संचरण की दिशा में कम्पन्न करते है , अनुदैर्ध्य तरंग कहलाती है।  उदाहरण – स्प्रिंग में उत्पन्न तरंग।

तरंग : किसी भी माध्यम में उत्पन्न वह विक्षोप जो अपना बिना रूप बदले माध्यम में एक निश्चित वेग से आगे बढती है , तरंग कहलाती है।

तरंग गति : तरंग गति ऊर्जा संचरण की वह विधि है जिसमे बिना माध्यम के स्थानान्तरण के ऊर्जा का एक स्थान से दूसरे स्थान तक संचरण होता है , तरंग गति कहलाती है।

तरंग गति की विशेषताएँ :

1. माध्यम के कण अपना स्थान नहीं छोड़ते बल्की अपनी साम्यावस्था के इधर उधर कम्पन्न करते है।

2. माध्यम स्वयं गति नहीं करता।

3. माध्यम में ऊर्जा और वेग का स्थानान्तरण होता है।

4. माध्यम के भिन्न भिन्न कणों की कला स्तब्ध रूप से परिवर्तित होती है।

तरंग संचरण के लिए माध्यम में आवश्यक गुण

1. माध्यम में जडत्व का गुण होना चाहिए।
2. माध्यम में प्रत्यास्थता का गुण होना चाहिए।
3. माध्यम का प्रतिरोध कम होना चाहिए।
4. माध्यम में जब कमी हलचल उत्पन्न होती है तो माध्यम के कण कम्पन्न करने प्रारंभ कर देते है।
5. माध्यम के कण अपने निकटवर्ती कणों को ऊर्जा या वेग स्थान्तरित करते है तथा स्वयं गति नहीं करते।
6. माध्यम के कणों का विस्थापन क्षण भर के लिए होता है।
7. माध्यम के कणों की गति सरल आवर्त गति होती है।
तरंगों के प्रकार :
1. माध्यम की आवश्यकता के आधार पर :
(i) यांत्रिक प्रत्यास्थ तरंगे : वे तरंगे जिनके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है , यान्त्रिक या प्रत्यास्थ तरंग कहलाती है जैसे ध्वनि तरंगे।
ये तरंग दो प्रकार की होती है –
(a) अनुप्रस्थ तरंगे : वे तरंगे जिसमे माध्यम के कण तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत कम्पन्न करते है , अनुप्रस्थ तरंगे कहलाती है। ये तरंगे श्रृंग तथा गर्त के रूप में आगे की ओर बढती है।
श्रृंग : धनात्मक दिशा में माध्यम के कणों के अधिकतम विस्थापन को श्रृंग कहते है।
गर्त : ऋणात्मक दिशा में माध्यम के कणों के अधिकतम विस्थापन को गर्त कहते है।
2. अनुदैधर्य तरंगे : वे तरंगे जिसमे माध्यम के कण तरंग संचरण की दिशा में कम्पन्न करते है , अनुदैधर्य तरंगे कहलाती है।
ये तरंगे संपीडन व विरलन के रूप में आगे की ओर बढती है।
संपीडन : जब माध्यम के कण एक दूसरे के बहुत पास पास आ जाते है तो स्थिति को संपीडन कहते है।
स्थिति में माध्यम का आयतन न्यूनतम व घनत्व और दाब अधिकतम होता है।
P = m/V
P = F/A
विरलन : स्थिति में माध्यम के कण एक दूसरे से दूर दूर चले जाते है तो स्थिति को विरलन कहते है।
स्थिति में आयतन अधिकतम तथा दाब व घनत्व का मान कम हो जाता है।

तरंगे

तरंगों के द्वारा ऊर्जा का एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानान्तरण होता है। तरंगों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है-

1.  यांत्रिक तरंगें- वे तरंगें, जो किसी माध्यम (ठोस, द्रव एवं गैस) में संचरित होती है, यांत्रिक तरंगें कहलाती है। इन तरंगों के किसी माध्यम में संचरण के लिए यह आवश्यक है कि माध्यम में प्रत्यास्थ्ता व जड़त्व के गुण मौजूद है।

यांत्रिक तरंगों के प्रकार- यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है

1. अनुप्रस्थ तरंगें।

2. अनुदैर्ध्य तरंगें।

1. अनुप्रस्थ तरंगेंः जब किसी माध्यम में तरंग गति की दिशा माध्यम के कणो के कम्पन करने की दिशा के लम्बवत होती है, तो इस प्रकार की तरंगों को अनुप्रस्थ तरंगें कहते है। अनुप्रस्थ तरंगें केवल ठोस माध्यम में एवं द्रव के ऊपरी सतह पर उत्पन्न की जा सकती है। द्रवो के भीतर एवं गैसों में अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न नहीं की जा सकती हैं। अनुप्रस्थ तरंगें शीर्ष एवं गर्त के रूप में संचरित होती है।

2. अनदैर्ध्य तरंगें– जब किसी माध्यम में तरंग गति की दिशा माध्यम के कणों की कम्पन करने की दिशा के अनुदिश या समान्तर होती है, तो ऐसी तरंगों को अनुदैर्ध्य तरंगें कहते हैं। अनुदैर्ध्य तरंगें सभी माध्यम में उत्पन्न की जा सकती है। ये तरंगें संपीडन और विरलन के रूप में संचरित होती है। संपीडन वाले स्थान पर माध्यम का दाब एवं घनत्व अधिक होता है, जबकि विरलन वाले स्थान पर माध्यम का दाब एवं घनत्व कम होता है। वायु में उत्पन्न तरंगें, भूकम्प तरंगें, स्प्रिंग में उत्पन्न तरंगें आदि सभी अनुदैर्ध्य तरंगें होती है।

2.  अयांत्रिक तरंगें या विद्युत-चुम्बकीय तरंगें-यांत्रिक तरंगों के अतिरिक्त अन्य प्रकार की तरंगें भी होती है, जिनके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नही होती तथा वे तरंगें निर्वात में भी संचरित हो सकती है। इन्हें अयांत्रिक या विद्युत चुम्बकीय तरंगें कहते हैं, जैसे- प्रकाश तरंगें, रेडियों तरंगे, ग्-तरंगें आदि।