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भारहीनता की परिभाषा , उदाहरण , लिफ्ट में भारहीनता , चन्द्रमा पर वायुमण्डल की अनुपस्थिति का कारण weightlessness
weightlessness in hindi , भारहीनता की परिभाषा , उदाहरण , लिफ्ट में भारहीनता , चन्द्रमा पर वायुमण्डल की अनुपस्थिति का कारण weightlessness :-
गुरुत्वीय क्षेत्र : किसी वस्तु के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमे किसी अन्य वस्तु को लाने पर वह आकर्षण बल अनुभव करती है तो उसे गुरुत्वीय क्षेत्र कहते है।
अर्थात किसी M द्रव्यमान की वस्तु के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमे किसी अन्य M द्रव्यमान की वस्तु को लाने पर यदि वह आकर्षण बल अनुभव करती है तो उसे गुरुत्वीय क्षेत्र कहते है।
गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा : अनंत से किसी वस्तु को पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र के अन्दर स्थित किसी बिंदु तक लाने में जितना कार्य किया जाता है , वह कार्य उस बिंदु पर गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहलाता है।
माना M द्रव्यमान की वस्तु को P बिंदु तक लाया जाता है। अत: किये गए कार्य का मान ज्ञात करने के लिए अनन्त से P बिंदु के बीच की दूरी को अल्पांशो में विभक्त कर लिया जाता है।
अत:
M द्रव्यमान को A से B तक लाने में किया गया कार्य –
कार्य = बल x विस्थापन
dw = F x dx समीकरण-1
F = GMm/x2 समीकरण-2
समीकरण-2 का मान समीकरण-1 में रखने पर –
dw = (GMm/x2) dx समीकरण-3
समीकरण-3 का समाकलन करने पर –
∫ dw = ∞∫r (GMm/x2) dx
w = GMm ∞∫r (1/x2) dx
w = GMm ∞∫r (x-2) dx
w = GMm [ (x-2+1/-2+1) ]∞ r
w = GMm [ (x-1/-1) ]∞ r
w = GMm [ (-1/x) ]∞ r
w = GMm [ (-1/r + 1/∞) ]
w = GMm [ (-1/r + 0) ]
w = -GMm/r
चूँकि U = W = -GMm/r
(i) अन्नत पर गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा का मान शून्य होता है।
(ii) स्थितिज ऊर्जा का मान सदैव ऋणात्मक होता है।
पलायन वेग : वह न्यूनतम वेग जिससे किसी वस्तु को ऊपर की ओर फेंकने पर गुरुत्वीय क्षेत्र से बाहर निकलकर अन्नत पर चला जाता है अर्थात वापस लौटकर नहीं आती है तो इस न्यूनतम वेग को पलायन वेग कहते है।
पलायन वेग को Ve से लिखते है।
पृथ्वी की सतह पर कुल ऊर्जा –
E = गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा
E = mVc2/2 – GMm/R
अन्नत पर कुल ऊर्जा –
E’ = 0
ऊर्जा संरक्षण के सिद्धांत से –
E = E’
mVc2/2 – GMm/R = 0
mVc2/2 = GMm/R
Vc2/2 = GM/R
Vc2 = 2GM/R
Vc = √(2GM/R) समीकरण-1
g व G में सम्बन्ध से –
g = GM/R2
GM = gR2 समीकरण-2
GM का मान समीकरण-1 में रखने पर –
Vc = √(2gR2/R)
Vc = √(2gR)
पृथ्वी की सतह पर पलायन वेग –
Ve = √(2gRe)
g = 9.8 m/sec2
Re = 6400 KM = 64 x 105 m
Ve = √(2 x 9.8 x 64 x 105 )
Ve = 11.2 KM/sec
चन्द्रमा पर पलायन वेग –
Vmoon = √(2gRmoon)
g = g/6 = 9.8/6 m/sec2
Rm = 1.74 x 106 m
Vmoon = √(2 x 9.8/6 x 1.74 x 106)
Vmoon = 2.88 x 103 KM/sec
गृह : वे आकाशीय पिण्ड जो सूर्य के चारों ओर लगातार स्थायी कक्षाओ में चक्कर लगाते है , गृह कहलाते है।
उपग्रह : वे आकाशीय पिंड जो गृह के चारों ओर लगातार चक्कर लगाते है , उपगृह कहलाते है।
उपग्रह दो प्रकार के होते है –
- प्राकृतिक उपग्रह: वे उपग्रह जो ग्रहों के चारों ओर चक्कर लगाते है , प्राकृतिक उपग्रह कहलाते है।
उदाहरण : चन्द्रमा पृथ्वी का एक प्राकृतिक उपग्रह है।
- कृत्रिम उपग्रह: मानव द्वारा निर्मित वे उपग्रह जो पृथ्वी के चारों ओर लगातार स्थायी कक्षाओ में चक्कर लगाते रहते है , कृत्रिम उपग्रह कहते है।
जैसे : इनसेट A
कृत्रिम उपग्रह दो प्रकार के होते है –
(i) भू स्थायी उपग्रह
(ii) ध्रुवीय उपग्रह
(i) भू स्थायी उपग्रह : वे उपग्रह जो पृथ्वी से देखने पर स्थिर दिखाई देते है वो स्थाई उपग्रह कहलाते है। इन उपग्रहों का आवर्त काल पृथ्वी के आवर्तकाल के समान होता है अर्थात इसका आवर्त काल 24 घंटे होता है।
इन उपग्रहों को पृथ्वी की सतह से 36000 किलोमीटर की दूरी स्थापित किया जाता है।
इन उपग्रहों की कक्षा को पार्किंग कक्षा कहा जाता है।
भू स्थाई उपग्रहों का उपयोग :
- वातावरण के विभिन्न क्षेत्रो का अध्ययन करने में।
- मौसम सम्बंधित पूर्व जानकारी प्राप्त करने में।
- उल्का पिण्डो का अध्ययन करने में।
- दूर संचार क्षेत्र में।
(ii) ध्रुवीय उपग्रह : वे उपग्रह जिनकी कक्षा का तल पृथ्वी के ध्रुवों के पास होकर गुजरता है , ध्रुविय उपग्रह कहलाता है।
ध्रुवीय उपग्रहों का आवर्तकाल कुछ घंटो का होता है।
ध्रुवीय उपग्रहों का आवर्तकाल पृथ्वी की सतह से उनकी कक्षा की ऊँचाई पर निर्भर करता है।
ध्रुवीय उपग्रह को उनकी कक्षा में स्थापित करने के लिए ध्रुवीय उपग्रह प्रचालन मान (PSLV) का उपयोग करते है।
उपग्रह का आवर्तकाल –
आवर्त्तकाल = उपग्रह द्वारा एक चक्र लगाने में तय की गयी दूरी / उपग्रह का कक्षीय वेग
T = 2πr/V0 समीकरण-1
उपग्रह का कक्षीय वेग –
V0 = √GM/r समीकरण-2
समीकरण-2 का मान समीकरण-1 में रखने पर –
T = 2πr/(√GM/r)
T = 2πr√r/√GM
T = 2πr3/2/ √GM समीकरण-3
g व G में सम्बन्ध से –
g = GM/R2
GM = gR2 समीकरण-4
समी-4 का मान समी-3 में रखने पर –
T = 2πr3/2/ √gr 2
T = 2π √r/g
उपग्रह की कुल ऊर्जा : उपग्रह की कुल ऊर्जा व उपग्रह की स्थितिज ऊर्जा के बराबर होती है।
उपग्रह की गतिज ऊर्जा उसके कक्षीय वेग के कारण होती है जिसका मान 1/2MV02 होता है।
उपग्रह की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा गुरुत्वीय क्षेत्र के कारण होती है जिसका मान – GMm/r होता है।
कुल ऊर्जा = गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा
E = K + U
E = 1/2mV02 – GMm/r
उपग्रह का कक्षीय वेग –
V0 = √GM/r
कक्षीय वेग V0 का मान रखने पर –
E = 1/2m(√GM/r)2 – GMm/r
E = mGM/2r – GMm/r
E = (mGM- 2GMm)/2r
E = -GMm/2r
उपग्रह की बंधन ऊर्जा : किसी उपग्रह को उसकी कक्षा से बाहर निकालने के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है उसे उपग्रह की बंधन ऊर्जा कहते है जिसका मान GMm/2r होता है।
चन्द्रमा पर वायुमण्डल की अनुपस्थिति का कारण : चन्द्रमा पर वायुमंडल की अनुपस्थिति का कारण पलायन वेग की सहायता से समझाया जा सकता है।
चन्द्रमा पर अणुओं का पलायन वेग 2.38 x 10-3 KM/sec2 होता है लेकिन चन्द्रमा पर उपस्थित अणुओं का वेग 2.5 x 10-3 Km/sec2 होता है जो कि पलायन वेग से अधिक होता है अत: चन्द्रमा पर उपस्थित सभी अणु पलायन कर सकते है जिनके कारण चन्द्रमा का वायुमंडल नहीं पाया जाता है।
भारहीनता : किसी व्यक्ति के द्वारा स्वयं के भार बल को शून्य महसूस करने की स्थिति भारहीनता कहलाती है।
प्रतिक्रिया बल अनुपस्थित होने के कारण भारहीनता की स्थिति उत्पन्न होती है।
किसी झूले की रस्सी अचानक टूट जाने पर झूले में बैठा व्यक्ति भारहीन महसूस करता है।
लिफ्ट के अचानक नीचे उतरने पर व्यक्ति भारहीनता महसूस करता है।
उपग्रह में बैठा व्यक्ति भी भारहीनता को महसूस करता है।
केप्लर का नियम : ग्रह सूर्य के चारों ओर लगातार दीर्घ वृताकार कक्षाओ में चक्कर लगाते रहते है। सूर्य उस कक्षा के किसी एक सिरे पर स्थित होता है।
केपलर का दूसरा नियम : ग्रहों के द्वारा समान समय अंतराल में समान क्षेत्रफल पार किया जाता है अर्थात ग्रहों की क्षेत्रीय चाल नियत होती है।
केप्लर का तीसरा नियम : ग्रहों के आवर्त काल का वेग सूर्य व ग्रहों के बीच की औसत दूरी के घन के समानुपाती होता है।
आवृत काल = ग्रह द्वारा एक चक्र लगाने में तय की गयी दूरी/कक्षीय वेग
T = 2πr/V0 समीकरण-1
कक्षीय वेग V0 = √GM/r समीकरण-2
समीकरण-1 व समीकरण-2 से –
T = 2πr/√GM/r
T = 2πr3/2/ √GM समीकरण-3
T ∝ r3/2
T2 ∝ r3
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