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मजदूरी की परिभाषा क्या है | मजदूरी किसे कहते है अर्थ मतलब wages meaning in hindi definition
wages meaning in hindi definition मजदूरी की परिभाषा क्या है | मजदूरी किसे कहते है अर्थ मतलब ?
परिभाषा : वह पूंजी जिसके बदले कोई व्यक्ति निश्चित समय में या प्रतिदिन कार्य के बदले प्राप्त करता है उसे मजदूरी वेतन कहते है | काम करने के लिए प्राप्त होने वाली नियमित धन राशि को मजदूरी कहा जाता है |
उद्देश्य
यह इकाई अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के लिए मजदूरी की प्रवृत्तियों की विवेचना करता है। इस इकाई को पढ़ने के बाद आपः
ऽ जान सकेंगे कि क्या औसत औद्योगिक मजदूरी में वृद्धि हो रही है अथवा नहीं;
ऽ ज्ञान प्राप्त करेंगे कि उदारीकरण के पश्चात् वेतन अर्जित करने वालों की तुलना में औद्योगिक श्रमिकों की औसत मजदूरी में वृद्धि हुई है अथवा कमी; और
ऽ सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों के मजदूरी में अन्तर का पता कर सकेंगे।
प्रस्तावना
भारत की अर्थव्यवस्था श्रम-अधिशेष अर्थव्यवस्था है और विश्व की अधिकांश निर्धन जनसंख्या यहाँ निवास करती है। हमारे नीति निर्माताओं का पहले विश्वास था कि रोजगार का सृजन करके निर्धनता को मिटाया जा सकता है, और इसलिए, उन्होंने रोजगार सृजन पर अधिक बल दिया। किंतु यह देखा गया कि रोजगार अकेले निर्धनता को दूर नहीं कर सकता, क्योंकि बड़ी संख्या में गरीबों को लाभप्रद रोजगारों से भी अत्यन्त कम मजदूरी मिल रही थी। इसलिए मजदूरी के स्तर का महत्त्व है और इस इकाई में हम औद्योगिक क्षेत्र में भारतीय श्रमिकों की मजदूरी और आय का अध्ययन करेंगे।
आप पूछ सकते हैं कि मजदूरी इतनी कम क्यों है और इस संबंध में क्या किया जा सकता है। मानक श्रमिक माँग और पूर्ति वक्र का उपयोग करके, हम यह तर्क दे सकते हैं कि मजदूरी का निर्धारण संतुलन में होता है। मजदूरी का स्तर (उच्च अथवा न्यून) मुख्य रूप से दो बातों पर निर्भर करता हैः श्रमिक का अवसर लागत (अर्थात् एक श्रमिक जो वैकल्पिक कार्य कर सकता है), और श्रमिकों की सीमान्त उत्पादकता (अर्थात्, एक श्रमिक अतिरिक्त एक घंटा काम करके कितना निर्गत इत्पादित कर सकता है)।
पहले, श्रमिक का अवसर लागत लेते हैं। कल्पना कीजिए, गाँव में एक गरीब आदमी रोजगार की खोज में निकटवर्ती शहर जाने पर विचार करता है जिससे वह 2000 रु. मासिक मजदूरी कमा सकता है। यदि उसकी वर्तमान आय कम है और इसमें वृद्धि होने की आशा नहीं है तो वह गाँव छोड़ देगा। इसलिए निकटवर्ती शहर में उसके श्रम की पूर्ति की अवसर लागत 2000 रु. (उसकी यात्रा से जुड़ी लागतों को छोड़कर) है। अब यह समझना कठिन नहीं है कि यदि इस गाँव में कृषि की दशा खराब है (वर्षा का अभाव, अनुर्वर भूमि, पूरे वर्ष में सिर्फ एक फसल), तो 2000 रु. प्रतिमाह गाँव छोड़ने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन होगा। दूसरी ओर, यदि कृषि में समृद्धि होती तो संभवतया श्रमिक वहीं रहते। यही तर्क आप अन्य अनेक संदर्भो में यह समझने के लिए प्रयोग कर सकते हैं कि विभिन्न प्रदेशों में और विभिन्न प्रकार के श्रमिकों के लिए मजदूरी में भिन्नता क्यों है। अब उत्पादकता पर विचार कीजिए। श्रमिकों की उत्पादकता भिन्न-भिन्न होती है। अनेक मामलों में यह स्पष्ट है। रेलवे स्टेशनों पर जवान और स्वस्थ कुली द्वारा अधिक कमाने की संभावना होती है क्योंकि उन्हें अधिक काम मिलता है। अनेक पेशों में जैसे कृषि कार्य, मालों की ढुलाई, आयरन फाउण्ड्री इत्यादि में शारीरिक शक्ति उत्पादकता का स्पष्ट निर्धारक होता है। शारीरिक शक्ति के बाद कौशल का स्थान आता है जैसे सोनार, नाई, बढ़ई इत्यादि का कौशल जिन्हें सामान्यतया परिवार के सदस्यों से ही वर्षों के प्रशिक्षण पश्चात् सीखा जाता है। किंतु आधुनिक उद्योगों में उत्पादकता का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत शिक्षा है, जो प्रौद्योगिकी, व्यवसाय, लेखा, प्रबन्धन इत्यादि के बारे में ज्ञान देता है। उत्पादकता की माप अनेक तरीकों से की जा सकती है। किंतु हम इस बुनियादी तथ्य पर सहमत हो सकते हैं कि श्रमिक जो अन्य श्रमिकों की तुलना में एक अतिरिक्त घंटा काम करके अधिक बेहतर अथवा अधिक उत्पादन करने में सक्षम है, के अधिक आय अर्जित करने की संभावना होती है।
इसलिए, यहाँ मुख्य तर्क यह दिया गया है कि दो तथ्यों अवसर लागत और सीमान्त उत्पादकता में से दोनों अथवा एक मजदूरी के उच्च अथवा न्यून स्तरों की व्याख्या कर सकता है। निःसंदेह, अनेक अन्य कारक भी हैं जो मजदूरी को प्रभावित कर सकते हैं जैसे उच्च मजदूरी लागू करने की सरकार की नीति, और ट्रेड यूनियनों की भूमिका । विशेष रूप से सर्वत्र सरकार आधार स्तर मजदूरी, जिसे न्यूनतम मजदूरी कहा जाता है, से नीचे मजदूरी को नहीं गिरने देती है। यद्यपि कि इस तरह के हस्तक्षेप से कुछ प्रदेशों अथवा कुछ उद्योगों में बेरोजगारी पैदा हो सकती है. नियोजित श्रमिकों के लिए उच्च जीवन स्तर की दृष्टि से लाभ को रोजगार की हानि की क्षतिपूर्ति के लिए पर्याप्त माना जाता है।
यद्यपि कि भारत में श्रम प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, और अधिकांश श्रमिक अपनी जाति के अनुरूप परम्परागत कौशल से भी सम्पन्न है। आधुनिक औद्योगिक समाज में इन कौशलों का सीमित बाजार है, जहाँ कारखानों और आधुनिक व्यवसायों के लिए उपयुक्त कौशलों के हस्तांतरण का मुख्य वाहन औपचारिक शिक्षा है। चूंकि अधिकांश श्रमिकों को अत्यन्त ही कम शिक्षा प्राप्त है, उनके कौशल का स्तर भी कम है, जिसका अर्थ यह हुआ कि वे समाज के अधिक शिक्षित वर्ग की तुलना में कम उत्पादक होंगे। इसलिए, हम कह सकते हैं कि भारत में गरीब लोग दोनों ही प्रकार से अभिशप्त हैं – उनके श्रम का अवसर लागत और उत्पादकता दोनों कम हैं। यही मुख्य कारण है जिससे मजदूरी कम है और रोजगार मिलने पर भी अनेक लोग निर्धन हैं।
यह बताया जा चुका है कि ठीक से समझने के लिए अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों-कृषि, उद्योग इत्यादि को देखना महत्त्वपूर्ण होगा। इस इकाई में, हम मुख्य रूप से संगठित उद्योग पर विचार करेंगे। पहले हम विनिर्माण क्षेत्र पर विचार करेंगे और फिर हम सार्वजनिक क्षेत्र को लेंगे और दोनों मामलों में हम वास्तविक मजदूरी में रुझान तथा संबंधित विषयों पर ध्यान केन्द्रित करेंगे। उत्पादकता, अवसर लागत और ट्रेड यूनियन से जुड़े सवाल कुछ अधिक गंभीर हैं जिस पर हम संक्षेप में विचार करेंगे।
मजदूरी और रोजगार के संबंध में अनेक स्रोतों से आँकड़े प्राप्त होते हैंः
(प) पहला और सबसे प्रमुख स्रोत भारतीय वार्षिक सर्वेक्षण (Annual Survey of India) है, जो संपूर्ण विनिर्माण क्षेत्र के लिए संयंत्र स्तर पर रोजगार, मजदूरी और उत्पादन सांख्यिकी एकत्र करता है। इसलिए इस स्रोत से अलग-अलग उद्योगों के लिए समुच्चय आँकड़े उपलब्ध होते हैं। (पप) श्रम मंत्रालय के प्रकाशनों में भी इन आँकड़ों को पुनः प्रकाशित किया जाता है। (पपप) विनिर्माण क्षेत्र के अंतर्गत, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (च्ैम्) का अलग-अलग सर्वेक्षण किया जाता है और उनकी मजदूरी और नियोजन आँकड़ा सार्वजनिक उपक्रम सर्वेक्षणों में प्रकाशित किया जाता है। (पअ) चयनित विनिर्माण खनन और बागान उद्योगों में श्रम ब्यूरो द्वारा किया गया पेशागत मजदूरी सर्वेक्षण (Occupational Wage Surveys) है। इस सर्वेक्षण की एक कमी यह है कि ये सर्वेक्षण नियमित अंतराल पर नहीं किए गए हैं। इसके बावजूद भी शोधकर्ताओं के लिए यह कई मायने में अत्यन्त ही उपयोगी है। (अ) मजदूरी और रोजगार आँकड़ों का एक अन्य स्रोत राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन है, जो पाँच वर्ष के अंतराल पर मजदूरी, रोजगार और शिक्षा के संबंध में पारिवारिक सर्वेक्षण करता है। (अप) अंत में, प्रत्येक दस वर्ष पर होने वाले जनगणना प्रतिवेदन भी हैं जिसमें पूरी अर्थव्यवस्था से संबंधित मजदूरी आँकड़ा होता है।
इस प्रयोजन के लिए हम मुख्य रूप से ए एस आई और पी एस ई आँकड़ों का उपयोग करेंगे।
बोध प्रश्न 1
1) मजदूरी के दो मुख्य निर्धारकों की चर्चा कीजिए?
2) श्रमिक माँग और पूर्ति वक्र बनाइए और निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए?
क) श्रमिक के अवसर लागत में वृद्धि होने से श्रमिक पूर्ति वक्र ऊपर की ओर बढ़ेगा।
ख) श्रमिक के अवसर लागत में वृद्धि से संतुलन मजदूरी कम होगा।
ग) श्रमिक की सीमान्त उत्पादकता में सुधार होने से सन्तुलन मजदूरी घटेगा।
घ) श्रमिक की सीमान्त उत्पादकता में सुधार होने से रोजगार में वृद्धि होगी।
बोध प्रश्न 1 उत्तर
1) दो मुख्य निर्धारक श्रम के अवसर लागत और सीमान्त उत्पादकता हैं। अधिक जानकारी के लिए भाग 34.1 तथा शब्दावली पढ़िए।
2) (क) हाँ (ख) नहीं (ग) नहीं (घ) हाँ।
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