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कुलीन सिद्धांत किसे कहते है ? विलफ्रेडो परेटो के कुलीन वर्ग का सिद्धांत क्या है vilfredo pareto theory of elites in hindi
vilfredo pareto theory of elites in hindi कुलीन सिद्धांत किसे कहते है ? विलफ्रेडो परेटो के कुलीन वर्ग का सिद्धांत क्या है ?
कुलीन सिद्धांत
कुलीन वर्ग: समाज का वह स्तर जो धन तथा सम्पत्ति के सभी लाभों को प्राप्त करता है।
विल्फ्रेडो पैरेटो कुलीन सिद्धांतवादियों में से एक ने अपने अध्ययन में तर्क दिया है कि व्यक्तिगत रूप से लोग कुछ स्थितियों को प्राप्त करते हैं उसमें प्रतिभा और योग्यता ही मुख्य कारण होते हैं। उन्होंने कहा है कि स्वाभाविक योग्यताओं में स्वाभाविक ह्रास होता है या फिर समय के अंतराल में निम्न स्तर के लोग अपनी उन्हीं योग्यताओं को प्रदर्शित कर सकते हैं। इस तरह से कुलीन के व्यक्तिगत स्तर में परिवर्तन होता है। पैरेटो का कहना है कि ‘इतिहास कुलीन वंशों का कब्रिस्तान है।‘ यह कुलीनों की गतिशीलता का प्रसिद्ध सिद्धांत है।
पैरेटो के सिद्धांत में गतिशीलता अथवा संचरण दो प्रकार के हैं। प्रथम, प्रतिभाशाली व्यक्ति जो निम्न स्तर से आता है और उच्च स्तर में प्रवेश करता है। दूसरे, बहुत बार समय में जब ऊँचे समूहों की योग्यता पर प्रश्न-चिह्न लगाया जाता है। इसका अर्थ है कि प्रायः निम्न स्तर की ओर से उच्च वर्गों को चुनौती दी जाती है और उनकी श्रेष्ठता को नकार दिया जाता है। दूसरे शब्दों में इसे यूँ भी कहा जा सकता है कि व्यक्तिगत और सामूहिक गतिशीलता संभव होती है। मैक्स क्लुकमैन ने इसे श्बार-बार परिवर्तनश् का नाम दिया है जिसे अफ्रीकी सरकार के परिवर्तनों में देखा जा सकता है। अतः ऐसा हो सकता है कि इस प्रकार के परिवर्तन दी गई व्यवस्था के अनुरूप न हो लेकिन व्यवस्था में परिवर्तन कर देते हैं अर्थात् स्थिति की संरचना में स्व-परिवर्तन हो जाता है। मॉरिस डुवेरजर ने इसे ‘सामाजिक व्यवस्था में‘ और ‘सामाजिक व्यवस्था से परे‘ संघर्ष के रूप में माना है।
सामाजिक वातावरण में परिवर्तन
सोरोकिन ने सभी घटकों को तर्कसंगत माना है। लेकिन सामाजिक वातावरण में होने वाले परिवर्तन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। अप्रत्यक्ष रूप से यह सच है कि ये जनसांख्यिकीय घटक (जैसे चिकित्सा में प्रगति के कारण जीवन-काल में वृद्धि होना) तथा व्यक्तिगत प्रतिभाओं (उदाहरण के लिए, शैक्षिक अवसरों के विस्तार से प्रतिभा खोज की संभावना) को प्रभावित कर सकते हैं।
गतिशीलता के लिए सबसे प्रमुख घटक हैं सामाजिक परिवर्तन । परिवर्तन अनेक प्रकार के होते हैंः आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, वैधानिक, प्रौद्योगिकीय तथा अन्य प्रकार के परिवर्तन सामाजिक गतिशीलता पर प्रभाव डालते हैं। यह परिवर्तन की व्यापक प्रक्रिया है जो न केवल गतिशीलता पर प्रभाव डालती है बल्कि समाज के अन्य पक्षों पर भी समान रूप से अपना प्रभाव डालती है। सामाजिक वैज्ञानिकों के अनुसार सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण आर्थिक घटकों में से एक है-औद्योगीकरण।
औद्योगीकरण एवं गतिशीलता
गतिशीलता पर अनेक सिद्धांत बनाए गए हैं जिनमें सामाजिक गतिशीलता के साथ औद्योगीकरण के संबंधों को जोड़ा गया है। इस क्षेत्र में लिपसेट तथा बेन्डिक्स के एक महत्वपूर्ण तर्क के अनुसार पूर्व-औद्योगिक गतिशीलता दरों में औद्योगीकरण ने गतिशीलता में अत्यधिक वृद्धि की है। एक बार तो सभी समाज औद्योगीकरण के एक विशेष स्तर तक अवश्य पहुंचे हैं। इस तरह से देखने में आया है कि सामाजिक गतिशीलता की उनकी वृद्धि दर एकसमान है। इसी संदर्भ में केर तथा अन्य लोगों द्वारा प्रतिपादित कुछ भिन्न लेकिन संबंधित सिद्धांत है- ‘समरूप सिद्धांत‘। इनका कहना है कि सभी औद्योगिक समाज गतिशीलता के एक सामान्य ढाँचे की ओर अग्रसर होते हैं जिसमें अन्य घटकों के साथ-साथ समग्र स्तरीकरण का रूप भी समान होता है।
आइए इस संबंध में सबसे पहले लिपसेट तथा बेन्डिक्स के सिद्धांत पर चर्चा करें। इसमें यूरोप एवं अमेरिका के अनेक देशों के बीच तुलनात्मक अध्ययन किया गया है जो बहुत प्रसिद्ध है। उन्होंने दो मुख्य परिकल्पनाओं को जाँच के लिए हमारे समक्ष रखा है। उनका पहला सिद्धांत है कि एक बार तो सभी समाजों ने औद्योगीकरण के खास स्तर को प्राप्त किया है तथा उनमें गतिशीलता की दर पूर्व-औद्योगीकरण से काफी अधिक थी। उनकी दूसरी आम धारणा यह है कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने यूरोपीय देशों की तुलना में गतिशीलता के लिए अधिक अवसर प्रदान किए हैं। उनके आँकड़े स्वयं बताते हैं कि उनका प्रथम सिद्धांत मानने योग्य है किंतु दूसरी परिकल्पना स्वीकार्य नहीं है। लिपसेट तथा बैन्डिक्स ने औद्योगिक समाज में गतिशीलता के घटकों पाँच प्रमुख तत्वों में विभाजित किया है, जो इस प्रकार हैं-
प) उपलब्ध रिक्तियों की संख्या में परिवर्तन
पपप) प्रजनन क्षमता की विभिन्न दरें
पपप) व्यवसायों के अनुसार स्थितियों में परिवर्तन
पअ) विरासत में प्राप्त स्थितियों की संख्या में परिवर्तन
अ) संभावित अवसरों से संबंधित कानूनी प्रतिबंधों में परिवर्तन।
इनमें से कुछ विभिन्न प्रजनन दरों जैसे घटकों पर पहले ही चर्चा की जा चुकी है। अब हम शेष घटकों पर चर्चा करेंगे।
उपलब्ध रिक्त स्थान
यह तो सभी लोग मानते हैं कि औद्योगीकरण कृषि से व्यावसायिक संरचना में तथा इसके बाद सेवा क्षेत्र में संचरण हुआ है। उद्योग में संचरण होते ही समाज में अचानक तीव्र गति से आर्थिक गतिविधियों का जन्म हुआ और समाज में उपलब्ध पद या स्थितियाँ जो मौजूद थी, उनकी संख्या में आशतीत वृद्धि हुई। इसके अनेक दस्तावेज मौजूद हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से लोगों का नगरों और शहरों की ओर अत्यधिक प्रव्रजन हुआ क्योंकि गाँवों के लोग फैक्ट्रियों में रोजगार ढूँढने के लिए शहरों की ओर निकल पड़े जो सामाजिक गतिशीलता का एक रूप है। इसमें भौगोलिक पहलू तो है ही, साथ ही उर्ध्व स्तर भी एक महत्वपूर्ण पक्ष है। प्रायः यह तो स्पष्ट ही है कि ग्रामीण लोगों को शहर में रोजगार मिलने से उनके पद, स्थिति और प्रतिष्ठा में अवश्य ही वृद्धि होगी जिससे उनका स्तर ऊँचा होगा और समाज की गतिशीलता ऊंचे स्तर की ओर बढ़ेगी। यहाँ पर दूसरे उदाहरण भी प्रस्तुत किए जा सकते हैं। इससे अनेक सफेदपोश स्थितियों का जन्म हुआ जैसे कि कंप्यूटर व्यवसाय में। इससे उपलब्ध रिक्तियों अथवा पदों की संख्या में वृद्धि हुई है। इस तरह से हम कह सकते हैं कि औद्योगीकरण एक महत्वपूर्ण घटक है जिसके कारण सामाजिक गतिशीलता में न केवल तीव्रता आई बल्कि इसमें वृद्धि भी हुई है।
कानूनी प्रतिबंध
राजनैतिक और कानूनी ढाँचे में परिवर्तन भी सामाजिक गतिशीलता का महत्वपूर्ण साधन बन सकते हैं। भारत में जाति प्रथा के कारण लोगों में पारंपरिक कार्यों का बंटवारा किया हुआ था। तथा कुछ कार्य जैसे पढ़ना-पढ़ाना निम्न वर्ग के लोगों के लिए कानूनी या पारंपरिक रूप से प्रतिबंधित थे। राजनैतिक व्यवस्था का लोकतंत्रीकरण होने से कानून के तहत सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों की संकल्पना से सामाजिक गतिशीलता में जो रुकावटें थीं, उन्हें कानून के द्वारा समाप्त कर दिया गया। इन प्रावधानों के साथ ही सब नागरिकों को समान मताधिकार और पंचायती राज की व्यवस्था इत्यादि की स्थापना करके राजनैतिक क्षेत्र में सभी नागरिकों के लिए समान रूप से प्रगति एवं विकास के द्वार खोल दिए गए जो अब प्रतिबंधित थे। आनंद चक्रवर्ती ने राजस्थान में देवीसर गाँव का अध्ययन किया है जिसमें उन्होंने दर्शाया है कि किस तरह से राजनैतिक क्षेत्र में परिवर्तन हुआ और सामाजिक गतिशीलता के लिए किस प्रकार से उसका उपयोग हुआ। दूसरे उदाहरण में बेले ने उड़ीसा के एक गाँव का अध्ययन किया है जिसमें बताया गया है कि राजनैतिक शक्ति प्राप्त करने के लिए किस-किस तरह के परिहासपूर्ण हथकंडे अपनाए गए। उपर्युक्त दोनों उदाहरणों से – सिद्ध होता है कि पुराने समाजों के जातिगत प्रतिबंधों को कानून द्वारा निरस्त करने से निश्चित रूप से सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई। इस तथ्य के संबंध में कहा जा सकता है कि औद्योगीकरण और उसके लिए कुशल व्यक्तियों की माँग का अभी तक पता नहीं था। यह पारंपरिक विशेषज्ञता के आधार पर हैसियत प्राप्त करने से भिन्न परिस्थिति थी। इससे वंशानुगत स्थितियों की संख्या में गिरावट आई तथा उपलब्धता के आधार पर भरी जाने वाली स्थितियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई। इसमें सबसे बड़ी भूमिका शिक्षा व्यवस्था की रही। इस अध्याय में शिक्षा पर चर्चा नहीं की जाएगी क्योंकि शिक्षा के स्तरीकरण से संबंधों की चर्चा हम अपने पाठ्यक्रमों में पहले कर चुके हैं। परंतु यहाँ यह कहना अत्यंत आवश्यक है कि यह गैर-पारंपरिक स्थितियों में वृद्धि से सीधे संबंधित है।
बोध प्रश्न 1
1) ‘कुलीन सिद्धांत‘ के बारे में पाँच पंक्तियाँ लिखिए।
2) सामाजिक वातावरण के महत्व को पाँच पंक्तियों में स्पष्ट कीजिए।
3) समरूप परिकल्पना का आशय है –
सही उत्तर पर टिक () का निशान लगाइए)
प) निम्न गतिशीलता दर
पप) उच्च गतिशीलता दर
पपप) गतिशीलता दरों में परिवर्तन का न होना।
पअ) गतिशीलता दरों में वृद्धि होना।
रेल समाज और राष्ट्र राज्य को जोड़ती है। इसमें यात्रा के लिए
विभिन्न प्रकार के डिब्बे और श्रेणियाँ होती है।
साभारः बी.किरणमई
बोध प्रश्न 1 उत्तर
1) पैरेटो के अनुसार प्रतिभा और योग्यता किसी स्थिति या पद को प्राप्त करने के लिए प्रमुख कारण या तत्व है। पैरेटो ने तर्क दिया है कि यह एक स्वाभाविक श्रेष्ठता है जिससे कुलीन-तंत्र की उत्पत्ति होती है। इसमें यह भी हो सकता है कि कोई कुलीन व्यक्ति इस व्यवस्था के योग्य न होने पर अपनी विशिष्टता भी खो सकते हैं और यह भी संभव है कि किसी व्यक्ति में निम्न स्तर का होते हुए भी वह योग्यताएँ मौजूद हो सकती हैं और कुलीन स्तर में परिवर्तन हो सकता है।
2) सोरोकिन का विचार है कि सामाजिक वातावरण में परिवर्तन से जनसांख्यिकीय संबंधी घटकों तथा व्यक्तियों की प्रतिभा में परिवर्तन होता है जैसे कि जीवन-काल में परिवर्तन का होना। अतः यह कहा जा सकता है कि सामाजिक वातावरण में परिवर्तन होना एक प्रमुख घटक है जिसके कारण सामाजिक गतिशीलता होती है। विभिन्न प्रकार के परिवर्तन जैसे कि आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, कानूनी, प्रौद्योगिकी यह सब गतिशीलता को विशेष रूप से प्रभावित करते हैं।
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