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विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कब और किसने की , vijayanagar was founded by in hindi
when and who was vijayanagar was founded by in hindi विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कब और किसने की ?
विजयनगर (15.33° उत्तर, 76.46° पूर्व)
विजयनगर तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में कर्नाटक में स्थित था। दो सगे भाइयों हरिहर एवं बुक्का ने विजयनगर में स्वतंत्र शासन की स्थापना की थी। विजयनगर के प्रथम शासक हरिहर प्रथम ने 1336 ई. में सर्वप्रथम विजयनगर नामक नगर की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाया। धीरे-धीरे विजयनगर दक्षिण भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया तथा वैभव एवं समृद्धि के शिखर पर पहुंच गया। इस साम्राज्य के सबसे महान शासक कृष्ण देव राय के समय विजयनगर साम्राज्य का अत्यधिक विकास हुआ तथा यह शिक्षा, कला, संस्कृति एवं व्यापार का एक प्रमुख केंद्र बन गया। निकोली कोण्टी तथा अब्दुल रज्जाक नामक विदेशी यात्रियों ने विजयनगर की यात्रा की तथा इसे एक समृद्ध एवं वैभवशाली नगर बताया। विजयनगर में स्थापत्य के कई सुंदर नमूने थे। यहां के शासकों ने विशाल महलों एवं सुंदर मंदिरों का निर्माण करवाया। महानवमी उत्सव यहां का सबसे प्रमुख उत्सव था। 1565 में तालीकोटा के युद्ध के उपरांत बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर एवं बीदर की संयुक्त सेनाओं ने विजयनगर को तहस-नहस कर दिया।
वर्तमान हम्पी नामक स्थल की पहचान विजयनगर के रूप में की जाती है।
वलभी (21.88° उत्तर, 71.87° पूर्व)
वलभी (जिसे वलवी के नाम से भी जाना जाता है) गुजरात राज्य में स्थित है। जैनों की द्वितीय सभा यहीं आयोजित की गई थी, जिसकी अध्यक्षता देवर्धिगनी श्रमण ने की थी। इस सभा में 12 उपांगों का संकलन किया गया था।
गुप्त साम्राज्य के पतनोपरांत वलभी के मैत्रेयक प्रसिद्ध शासक हुए तथा वलभी शिक्षा के एक प्रसिद्ध केंद्र के रूप में विकसित हुआ । मैत्रेयकों के हर्षवर्धन के साथ वैवाहिक संबंध थे। यद्यपि वलभी के मैत्रेयक संभवतः अंत तक पश्चिमी चालुक्यों के प्रति निष्ठावान बने रहे।
कालांतर में वलभी गुजरात के सोलंकी शासकों के राज्य का हिस्सा बन गया।
वेंगी (16.77° उत्तर, 81.10° पूर्व)
वेंगी छठी शताब्दी ईस्वी में पूर्वी चालुक्यों की राजधानी थी। पुलकेशियन द्वितीय के भाई विष्णुवर्धन ने वेंगी में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी।
पूर्वी चालुक्यों से पहले, हम प्रयाग प्रशस्ति में वेंगी का उल्लेख पाते हैं, जिसमें कहा गया है कि समुद्रगुप्त ने वेंगी के शासक को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया था।
पल्लव अभिलेखों में कहा गया है कि वे वेंगी के मूल निवासी थे तथा इस प्रकार वेंगी पर अधिकार को लेकर पूर्वी चालुक्यों से सदैव उनका संघर्ष चलता रहा।
चोल वंश के राजेंद्र द्वितीय या क्लोत्तुंग वेंगी के पूर्वी चालुक्यों का उत्तराधिकारी था तथा कालांतर में चोलों ने वेंगी में नियंत्रण स्थापित किया। यद्यपि वे ज्यादा समय तक इस पर अपना अधिकार बनाए नहीं रख सके तथा वेंगी पांड्यों के नियंत्रण में चला गया।
विक्रमशिला (25°19‘ उत्तर, 87°17‘ पूर्व)
विक्रमशिला गंगा नदी के तट पर बिहार के भागलपुर जिले में स्थित है। इसकी पहचान अंतीचक कहे जाने वाले स्थल के रूप में की गई है। विक्रमशिला अपने विश्वविद्यालय के कारण 8वीं-12वीं शताब्दी तक अर्थात 400 वर्षों तक प्रसिद्ध रहा। इस विश्वविद्यालय की स्थापना बंगाल के पाल शासक धर्मपाल ने की थी। इस विश्वविद्यालय में व्याकरण, तर्क, खगोल, भौतिकी, वेदों एवं दर्शन जैसे विविध विषयों की शिक्षा दी जाती थी।
पुरातात्विक उत्खनन से यहां इस विशाल विश्वविद्यालय के अवशेष पाए गए हैं। इस मठ में लगभग 208 छोटे कक्ष थे। इस विश्वविद्यालय की औसत क्षमता लगभग 1000 छात्रों की थी।
विक्रमशिला बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र था। इस शाखा को बंगाल के पाल शासकों ने भरपूर संरक्षण दिया। इस विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध शिक्षक दीपांकर को तिब्बत के शासक ने अपने यहां आमंत्रित किया था। इसके उपरांत दीपांकर ने तिब्बत की यात्रा की तथा वहां वज्रयान मत का व्यापक प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने कई बौद्ध ग्रंथों का तिब्बती भाषा में अनुवाद भी किया।
बख्तियार खिलजी के आक्रमण में विक्रमशिला विश्वविद्यालय पूरी तरह नष्ट हो गया था। एक तिब्बती भिक्षु धर्मस्वामी ने 1206 ई. में जब यहां की यात्रा की थी, तो उन्होंने पूरी तरह इसे विनष्ट अवस्था में पाया था।
विलिनाम/विझीनजाम (08°22‘ उत्तर, 76°59‘ पूर्व)
विलिनाम अथवा विझीनजाम को आठवीं या नौवीं शताब्दी में अय राजवंश की राजधानी के रूप में पहचाना गया है। यह तिरुवनंतपुरम के पास स्थित एक बन्दरगाह था। यह क्षेत्र कुलशेखर वंश एवं चोल वंश के बीच कई युद्धों का साक्षी था। महान चोल नरेश राजराजा ने पांड्या नरेश अमारा भुजंग को कैद कर विलिनाम बंदरगाह पर कब्जा कर लिया था। डा. अजीत कुमार तथा डा. रॉबर्ट हार्डिंग द्वारा विलिनाम में हाल ही में किए गए उत्खननों में जो पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं, वे यहां से होने वाले समृद्ध अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यापार पर प्रकाश डालते हैं। प्राचीन यूनान से संबद्ध बर्तन के टूटे हुए टुकड़ों की खोज से संकेत मिलता है कि विलिनाम का रोमन काल के दौरान लाल सागर के तटीय क्षेत्रों के साथ समुद्री व्यापार था। ग्रीक-रोमन अभिलेखों में विलिनाम की पहचान बालिता या ब्लिंका के रूप में की गई है।
वारंगल (18.0° उत्तर, 79.58° पूर्व)
वारंगल आंध्र प्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र में स्थित है। यह नगर एक वैभवशाली नगर था तथा 12वीं एवं 13वीं शताब्दी में यह काकतीय शासकों की राजधानी था। 13वीं शताब्दी में भारत की यात्रा करने वाले यात्री मार्काेपोलो के विवरण में वारंगल का उल्लेख एक महत्वपूर्ण नगर के रूप में प्राप्त होता है। इससे पहले इसका उल्लेख ओरुगल या एकशिला के रूप में प्राप्त होता है। वारंगल में 13वीं शताब्दी के काकतीय शासक गणपति देव एवं उसकी पुत्री रुद्रमा ने एक प्रसिद्ध किले का निर्माण कराया।
अलाउद्दीन खिलजी के अधीन मुस्लिम सेनाओं ने दक्षिण में अभियान किया तथा वारंगल के प्रताप रुद्रदेव ने मुस्लिम आधिपत्य स्वीकार कर लिया। यहीं अलाउद्दीन खिलजी को विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा प्राप्त हुआ था। बाद में मु. बिन तुगलक ने वारंगल पर अधिकार कर लिया तथा इसका नाम बदलकर सल्तानपर रख दिया। फिर यह बहमनी साम्राज्य का हिस्सा बना, बाद में यह गोलकोंडा के अधीन चला गया एवं अंत में इस पर हैदराबाद के निजाम ने अधिकार कर लिया।
एक काकतीय शासक ने 1273 में यहां एक विशाल पाखाल झील बनवायी थी, जो वारंगल नगर से लगभग 50 किमी. की दूरी पर स्थित है। वारंगल रामप्पा एवं घानपुर मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है।
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