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मूल्यपरक उन्मुखता (value orientation in hindi mening definition) भूमिका की परिभाषा किसे कहते है
(value orientation in hindi mening definition) मूल्यपरक उन्मुखता या मूल्य अभिविन्यास भूमिका की परिभाषा किसे कहते है ?
सामाजिक प्रणाली के संगठन की आधारभूत इकाई
सामाजिक प्रणाली में क्रिया (action) के संगठन की एक प्रणाली है, जिसे भूमिका (role) कहते हैं। यह सामाजिक प्रणाली की आधारभूत अवधारणात्मक इकाई है और इसमें एकल व्यक्ति के समग्र क्रियाकलापों की व्यवस्था भी सम्मिलित होती है। यह उस एकल व्यक्ति की क्रिया प्रणाली और सामाजिक प्रणाली के बीच विभाजक बिंदु भी है। पार्सन्स के अनुसार, भूमिका का मुख्य तत्व भूमिका की अपेक्षा (role expectation)है। इसमें एक पात्र दूसरे व्यक्ति के बीच परस्परता की भी अपेक्षा होती है और यह श्रेणीबद्ध अभिप्रेरणात्मक (motivational) और मूल्यपरक उन्मुखताओं से नियंत्रित होती है।
जैसा कि पूर्व उल्लेख किया जा चुका है, अभिप्रेरणात्मक उन्मुखता (motivational orientation) उस स्थिति की ओर संकेत करते हैं जिसमें कोई क्रिया एकल पात्र या व्यक्ति की आवश्यकताओं या अभिप्रेरणाओं, बाहरी उपस्थितियों और योजनाओं को ध्यान में रखकर होती है। मूल्यपरक उन्मुखता (value orientation) का अर्थ क्रिया के मूल्य, सौन्दर्य बोध, नैतिकता आदि पक्षों से है। सामाजिक प्रणाली की क्रियात्मक इकाइयों के संगठन में अभिप्रेरणाओं और मूल्यों, दोनों का समावेश होता है। जो इसे पहले (यानि अभिप्रेरणा के संदर्भ में) व्यक्तित्व प्रणाली से और बाद में (यानि मूल्यों के संदर्भ में) सांस्कृतिक प्रणाली से जोड़ते हैं।
अभिप्रेरणात्मक उन्मुखता (motivational orientation)
अभिप्रेरणात्मक उन्मुखता के तीन क्षेत्र हैं। ये हैं – बोधपरक (cognitive), भावप्रवण (cathectic) और मूल्यांकन-परक (evaluative) उन्मुखता।
प) बोधपरक उन्मुखता पात्रों (व्यक्तियों) को अपने वातावरण को या वस्तु को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार मानसिक वस्तु के रूप में देखने में सहायता करती है। उनका (यानि पात्रों का) अपने प्रेक्षण की विषय-वस्तु की वस्तुनिष्ठता को समझने का प्रयास होता है।
पप) भावप्रवण उन्मुखता में पात्रों की अपनी विषय-वस्तु के प्रति भावप्रवण अभिवृत्ति शामिल होती है।
पपप) मूल्यांकनपरक उन्मुखता पात्रों को सर्वाधिक सक्षमता से अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपने प्रयासों को संगठित करने में मदद करती है। इस विषय में एक गृहिणी का उदाहरण लीजिए, जो बाजार में सब्जी खरीदने जाती है। बोधपरक उन्मुखता से उसे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार सब्जियों की गुणवत्ता को समझने में मदद मिलती है और उनकी कीमतों के संदर्भ में आवश्यकता को समझने में मदद मिलती है। भावप्रवण उन्मुखता से वह निर्धारित करती है कि उसे कौन सी सब्जी अधिक पसंद है और उसके बाद मूल्यांकनपरक उन्मुखता से वह ऐसी सब्जी का चयन करे जिससे सबसे अधिक संतोष मिले, देखिए चित्र 27.11
चित्र 27.1ः अभिप्रेरणात्मक दृष्टिकोण
मूल्यपरक उन्मुखता (value orientation)
मूल्यपरक उन्मुखता के तीन भाग हैंः बोधपरक (cognitive), विवेचनात्मक (appreciative), और नैतिक (moral)। बोधपरक उन्मुखताः इस का संबंध निर्णय की वैधता से है । विवेचनात्मक उन्मुखताः इससे पात्रों के लिए यह संभव होता है कि वे वस्तुओं के प्रति संवेगात्मक अनुक्रिया, इसकी उपयुक्तता या संगति के बारे में निर्णय ले सकें। नैतिक उन्मुखताः यह वस्तुओं के प्रति पात्र या व्यक्ति की मूल्य-प्रतिबद्धता बताती है।
बाजार में सब्जी खरीदने वाली गृहिणी का उदाहरण गृहिणी की केवल अभिप्रेरणात्मक उन्मुखता को दिखाता है। मूल्यपरक उन्मुखता के क्षेत्र में समाज की मूल्य व्यवस्था और सांस्कृतिक विन्यास आते हैं। पात्र व्यक्तिगत रूप से सांस्कृतिक विन्यास के संदर्भ में क्रिया करते हैं। उदाहरणतः परिवार में बेटे की भूमिका और प्रस्थिति समाज में निर्धारित कुछ प्रतिमानों से निर्देशित होती है। पितृसत्तात्मक परिवार में बेटे की प्रस्थिति मातृसत्तापरक परिवार से भिन्न है। उसका व्यवहार उसके समाज के प्रतिमानों से निर्देशित होता है। अभिप्रेरणात्मक उन्मुखता में व्यक्ति की केवल अभिप्रेरणाएं और मनोवैज्ञानिक पहलू ही शामिल होते हैं, जबकि मूल्यपरक उन्मुखता से पूर्ण सांस्कृतिक प्रणाली जुड़ी होती है। व्यक्ति के व्यवहार में मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक, दोनों पहलू परस्पर एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। पार्सन्स के अनुसार, अभिप्रेरणात्मक उन्मुखता और मूल्यपरक उन्मुखता के दो स्तर हैं, जो भूमिका और भूमिका अपेक्षाओं के व्यवहारपरक और सांस्कृतिक पहलुओं को निर्धारित करते हैं।
सामाजिक प्रणाली में भूमिका अपेक्षाएं मूल्यांकन के विन्यास का काम करती हैं। प्रत्येक व्यक्ति जो समाज में किसी भूमिका को अदा करता है उसकी दो तरह की क्षमता होती है। क्योंकि भूमिका का यह अभिप्राय है कि व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ परस्पर क्रिया होती है। पार्सन्स के अनुसार, इससे भूमिका दो प्रकारों में विभाजित हो जाती है। पहली, उन्मुखता की भूमिका है, जहां पात्र “अहं‘‘ के रूप में दूसरे पात्र (दूसरे व्यक्ति) के साथ वस्तु की तरह अंतःक्रिया होती है। दूसरी वस्तु की भूमिका है जहां पात्र दूसरे व्यक्ति के अभिविन्यास की वस्तु होता है।
सामाजिक प्रणाली में भूमिकाओं का संस्थागत होना
सामाजिक प्रणाली में भूमिकाएं संस्थागत हो जाती हैं। भूमिकाओं के संस्थागत होने का अर्थ किसी विशिष्ट भूमिका की अपेक्षाओं से है, इसके मूल्यों और अभिप्रेरणात्मक उन्मुखताओं को समाज की संस्कृति में एकीकृत कर लिया जाता है। समाज अपने सदस्यों से भूमिका-अपेक्षाओं की दृष्टि से समान मानक निर्धारित करता है और जब सदस्य अपनी भूमिकाओं की उन्मुखताओं को उनके अदा करने के लिए समाज के समान मानकों को आत्मसात् कर लेता है तो यह कहा जाता है कि भूमिकाएं संस्थागत हो गई हैं।
समाज में इन भूमिकाओं को समाज द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार या संस्थागत विन्यास के अनुरूप निष्पादित किए जाने के लिए हर समाज कुछ प्रतिबंध लागू करता है। ये प्रतिबंध यथा-स्थिति पुरस्कार या दंड (rewards or punishments) के रूप में होते हैं और यह व्यक्ति की भूमिका पर निर्भर है कि उसकी भूमिका समाज द्वारा निर्धारित मानकों या मूल्यों के अनुसार है या इन मूल्यों का उल्लंघन करती है।
सामाजिक प्रणाली के रूप में सामूहिकता (collectivity)
पार्सन्स की सामूहिकता की धारणा एक सामाजिक प्रणाली के रूप में भूमिका की अवधारणा से जुड़ी है। सामूहिकता की धारणा को सामाजिक प्रणाली की सीमा के द्वारा ही पहचाना जा सकता है। इससे ही यह निर्धारित होता है कि सामूहिकता की सदस्यता के दायरे में किन सदस्यों को रखा जाए और किन सदस्यों को न रखा जाए। सभी सामूहिकताओं की अपनी सदस्यता की सीमाएं होती हैं (जैसे-नातेदारी, योग्यता, कौशल या धार्मिक विश्वास आदि)। यहां सीमा से हमारा मतलब उन सीमाओं से है, जिनकी दृष्टि से सामाजिक प्रणाली एक अलग सत्ता या इकाई के रूप में कार्य करती है। सामाजिक प्रणाली के उदारहण के रूप में नातेदारी व्यवस्था में इसके सदस्य, उनकी भूमिकाएं और प्रस्थिति हैं, ये दोनों उस समाज में पाई जाने वाली सांस्कृतिक अभिरचना से निर्धारित होती हैं। सामूहिकता की सीमा एक स्थिति से दूसरी स्थिति में अलग-अलग होती है। श्रेणी के समान सामूहिकता केवल समाज के सदस्यों का समूह नहीं है। किसी श्रेणी का निर्धारण आयु, लिंग या शिक्षा जैसी समान बातों के आधार पर होता है। सामूहिकता केवल उन व्यक्तियों की बहुलता में नहीं है जो परिस्थितिवश समान रूप से एक दूसरे पर निर्भर हैं यानी बाजार जैसी भौतिक स्थिति में।
सामूहिकता उपर्युक्त दोनों प्रकार के सामाजिक समुच्चयों से भिन्न है क्योंकि इसकी बहुलता की विशेषता इसके सदस्यों की एकात्मकता (solidarity) है, जैसाकि नातेदारी के समूह में या किसी संघ में पाया जाता है। यह एकात्मकता समान मूल्यों के संस्थागत होने से पैदा होती है। जैसे किन्हीं निकट संबंधियों में सहयोग की भावना के रूप में या समान धार्मिक आचरणों या विश्वासों को मानने वाले लोगों के रूप में।
सामूहिकताओं के कुछ आंतरिक उप-विभाजन उप-सामूहिकताओं के रूप में हो सकते हैं जहां सदस्यता का क्षेत्र परस्पर व्यापी हो सकता है। सामूहिकताएं और उप-सामूहिकताएं ये दोनों सामाजिक प्रणाली के रूप हैं। पार्सन्स के अनुसार समाज एक पूर्ण सामाजिक प्रणाली है जो आत्मपोषी है या आत्मनिर्भर है और वह किसी बाहरी सामाजिक प्रणाली पर आश्रित नहीं है। लेकिन सामाजिक प्रणाली और समाज में अंतर आपेक्षित और विश्लेषण पर आधारित है।
अब तक आपने सामाजिक प्रणाली की अवधारणात्मक इकाई के बारे में पढ़ा है, जिसके अंतर्गत भूमिकाएं, भूमिकाओं का संस्थागत होना और सामाजिक प्रणाली के रूप में सामूहिकता शामिल है। सामाजिक प्रणाली के रूप में सामूहिकता में व्यक्तियों को उपलब्ध अपनी पसंद की क्रियाओं की व्याख्या के लिए पार्सन्स ने विन्यास प्रकारांतरों (चंजजमतद अंतपंइसमे) की अवधारणाओं का विकास किया। इन अवधारणाओं के बारे में अगले भाग में चर्चा होगी। अभी तक पढ़ी पाठ्य सामग्री को बेहतर रूप से आत्मसात करने हेतु बोध प्रश्न 1 को पूरा करें।
बोध प्रश्न 1
प) पार्सन्स द्वारा दी गई सामाजिक क्रिया के उपयोगितावादी, प्रत्यक्षवादी और आदर्शवादी आधारों में अंतर कीजिए। उत्तर आठ पंक्तियों में लिखिए।
पप) भूमिका के संस्थागत होने से आप क्या समझते हैं? इस विषय में छः पंक्तियों में विचार कीजिए।
पपप) निम्नलिखित वाक्यों में दिये रिक्त स्थान भरिए।
क) ………….. प्रणाली आर्थिक हितों पर आधारित संविदात्मक परम्परता का उदाहरण है।
ख) पार्सन्स के अनुसार ……….. में क्रिया नहीं घटित होती।
ग) क्रिया व्यवस्था की तीन संगठन प्रणालियां हैं, जिनका पार्सन्स ने सामाजिक प्रणाली, व्यक्तित्व प्रणाली और ……………… प्रणाली के रूप में वर्णन किया है।
घ) अभिप्रेरणात्मक उन्मुखता का क्षेत्र बोधपरक …………. और मूल्यांकनपरक है।
ड) ………….. के तीन भाग हैं, बोधपरक, विवेचनात्मक और नैतिक उन्मुखता।
बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) पार्सन्स के अनुसार सामाजिक क्रिया का उपयोगितावादी दृष्टिकोण अत्यधिक व्यक्तिवादी है। ये व्यक्तिगत स्तर पर तर्कसंगत परिकलन को महत्व देते हैं। प्रत्यक्षवादियों के विचार में सामाजिक पात्र जिस स्थिति में क्रिया करते हैं यानि जिन स्थितियों में वे अपनी भूमिकाएं निष्पादित करते हैं उनके बारे में वे सब कुछ जानते हैं। इसलिए उनकी दृष्टि से पात्र के पास क्रिया करने का एक ही तरीका है और वही सही तरीका है। इस दृष्टिकोण के अनुसार क्रियाओं या मूल्यों में परिवर्तन का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। और अंत में, आदर्शवादियों के अनुसार सामाजिक क्रिया प्रयोजन सामाजिक भावना और सामाजिक विचारों अर्थात् लोकतंत्र या समाजवाद की प्राप्ति है। वे मूल्यों और आदर्शों को जरूरत से ज्यादा महत्व देते है।
पप) सामाजिक भूमिकाओं का संस्थागत होना तब होता है जब उस भूमिका से, उसके मूल्यों से और अभिप्ररणात्मक अभिविन्यासों से जो अपेक्षाएं हैं वे समाज की संस्कृति में एकरूप हो जाती है। समाज अपने सदस्यों की भूमिका-अपेक्षाओं के बारे में कुछ सामान्य मानक निर्धारित करता है और जब पात्र (जो सामाजिक भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं) समाज के इन सामान्य मानकों को आत्मसात् कर लेते हैं तो यह कह सकते हैं कि उनकी भूमिकाएं संस्थागत हो गई हैं।
पप) क) बाजार
ख) अलगाव
ग) सांस्कृतिक
घ) भावप्रवण
ड) मूल्यपरक उन्मुखता
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