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Valence bond theory (VBT) की कमियां drawbacks in hindi
VBT (Valence bond theory) की कमियां :
- यह सिद्धांत पूर्व अनुमानों पर आधारित है
- इस सिद्धांत में धातु आयन की प्रकृति पर अधिक ध्यान दिया जाता है जब की लिगेंड की प्रकृति पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता
- यह संकुल यौगिकों के रंग तथा स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं करता
- यह सिद्धांत संकुल यौगिकों के उष्मागतिकी स्थायित्व के बारे में नहीं बताता
- उपसहसंयोजन संख्या 4 वाले योगीको की ज्यामिति को स्पष्ट नहीं किया जा सकता
- प्रबल क्षेत्र लिगेंड तथा दुर्बल क्षेत्र लिगेंड के बारे में नहीं बताया गया
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत (Crystal field theory)(CFT)
इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु निम्न है
- इस सिद्धांत में धातु को आयन तथा लिगेंड को बिंदु आवेश माना गया है
- धातू व लिगेंड के मध्य वैद्युत समांगी या आयनिक बंध होता है
- विलगित धातु आयन में पांच d कक्षक dxy , dyz , dzx, dx2-y2, dz2 समान उर्जा के होते हैं इन्हें संभ्रंश कक्षक कहते हैं, इनमें से dxy , dyz , dzx की पालियों अक्ष के मध्य होते हैं इन्हें t2g कक्षक कहते हैं , जबकि की dx2-y2, dz2 पालिया अक्ष पर होती हैं इन्हें egकक्षक कहते हैं | , लिगेंड के पास में आने से पांच d कक्षक की समभ्रंशता समाप्त हो जाती है अर्थार्थ d कक्षक दो भागों में विभक्त हो जाते हैं इसे क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहते हैं , क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन (Crystal field spilit) तथा उसके प्रभाव के अध्ययन को CFT कहते हैं |
अष्टफलकीय संकुल यौगिकों में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन (Crystal area lamination in octetal package compounds):
केंद्रीय धातु परमाणु में समान ऊर्जा के पांच d कक्षको को समभ्रंश कक्षक कहते हैं , लिगेंड के पास में आने से यह दो भागों में विभक्त हो जाते हैं इसे क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहते हैं , 5 d कक्षको में से 3 कक्षको की ऊर्जा कम हो जाती है अर्थार्थ t2g कक्षको की ऊर्जा कम हो जाती है जबकि दो eg d कक्षको की ऊर्जा अधिक हो जाती है |
t2g व eg कक्षको के मध्य ऊर्जा के अंतर को क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा Crystal area spilit energy (CFSE) कहते हैं , पानी निम्न कारक पर निर्भर करता है
- धातु आयन की प्रकृति
- संकुल यौगिक की ज्यामिति
- लिगेंड की प्रकृति
- धातु आयन पर आवेश
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