JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

वैदिक काल किसे कहा जाता है ? vaidik kal in hindi notes वैदिक कालीन राजनीतिक और आर्थिक स्थिति की विशेषताएं बताइए

वैदिक कालीन राजनीतिक और आर्थिक स्थिति की विशेषताएं बताइए क्या है वैदिक काल किसे कहा जाता है ? vaidik kal in hindi notes

वैदिक काल

सिन्धु सभ्यता के शहरों एवं प्रशासनिक व्यवस्था के पतनोपरांत भारत में एक बार पुनः ग्रामीण सभ्यता का उद्भव हुआ। यह संभवतः द्वितीय सहस्राब्दी ईसा पूर्व का मध्य काल था, जब घुमन्तु पशुपालक लोग, जो इंडो-आर्यन (भारोपीय भाषाओं का एक समूह) भाषा बोलते थे, इंडो-इरानियन सीमा क्षेत्र से पहाड़ी दरों से गुजरकर, छोटे-छोटे समूहों में भारतीय भूमि में आए तथा उत्तर-पश्चिमी भारत में बस गए। इस कालावधि के संबंध में जानकारियों का मुख्य स्रोत ऋग्वेद है, जिसमें तत्कालीन समय के श्लोकों को संकलित किया गया है। चारों वेदों ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद में सर्वप्राचीन ऋग्वेद संभवतः 1500-1000 ईसा पूर्व के काल की स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है। ‘वेद‘ शब्द संस्कृत भाषा से उद्धृत है, जिसका अर्थ है-ज्ञान। इन वेदों में श्लोकों एवं प्रार्थनाओं को व्यवस्थित रूप से संकलित किया गया है। इन श्लोकों का अध्ययन, मनन एवं मौखिक रूप से ऋषियों द्वारा अपने शिष्यों को स्थानांतरण किया जाता था। इस समय ये श्लोक संकलित नहीं किए गए थे। ऋगवैदिक काल को पूर्व वैदिक काल के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर वैदिक काल की अवधि 1000-600 ईसा पूर्व है। यह वह समय था, जब अन्य तीन वेदों की रचना की गई।
ऋगवेद के अनुसार, प्रारंभिक आर्य, जिस क्षेत्र में आकर बसे, उसे सप्त सैंधव कहा गया। यह सात नदियों वाला क्षेत्र था, जिसमें सिन्धु, झेलम, चेनाब, रावी, व्यास, सतलज एवं सरस्वती प्रवाहमान थीं। तत्कालीन आर्य बस्तियां वर्तमान के पूर्वी अफगानिस्तान, पाकिस्तान, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों तक सिमटी हुई थीं। पूर्व वैदिक काल में पशुओं का पालन एवं उनका पोषण करना लोगों का मुख्य व्यवसाय था यद्यपि ये लोग स्थानांतरित कृषि से भी परिचित थे। गेहं एवं जौ इस समय की मुख्य फसलें थीं। बाह्य एवं आंतरिक व्यापार भी होता था। देश में वस्तु-विनिमय प्रथा विद्यमान थी तथा विनिमय की मापक इकाई गायें थीं। परिवार, छोटी एवं राजनीतिक इकाई थी, जिसमें परिवार । का सबसे वरिष्ठ पुरुष सदस्य, परिवार का मुखिया होता था। कई परिवारों से मिलकर ग्राम बनता था, जिसका प्रमुख ‘ग्रामणी‘ होता था। कई ग्रामों का समूह ‘विश‘ कहलाता था जिसका प्रमुख ‘विशपति‘ था। कई विश मिलकर ‘जन‘ का निर्माण करते थे जो ‘राजन‘ द्वारा शासित किया जाता था। इस समय कई जनजातीय जन थे, जो आपस में एक-दूसरे के साथ विवाद एवं टकराव में उलझे रहते थे। ‘पुरोहित‘, राजा का एक अत्यंत प्रमुख अधिकारी था। यह राजा का मुख्य परामर्शदात्रा एवं आध्यात्मिक पथ-प्रदर्शक था। वैदिक आर्य प्रकृति के विभिन्न रूपों यथा-पृथ्वी, अग्नि, सूर्य, विष्णु एवं इंद्र आदि की उपासना करते थे।
उत्तर वैदिक काल का क्षेत्र, ज्यादा विस्तृत था। इस काल की मुख्य विशेषता चित्रित धूसर मृदभाण्डों का प्रयोग था। इस काल में आर्यों ने अनेक छोटे-बड़े जनों को मिलाकर बड़े-बड़े राज्यों की स्थापना की। इस काल की समाप्ति से पूर्व ही आर्यों ने गंगा, यमुना, सदानीरा नदियों द्वारा सिंचित उपजाऊ मैदानों को पूर्णतया जीत लिया। आर्य सभ्यता का केंद्र मध्य देश था, जो सरस्वती से लेकर गंगा के दोआब तक विस्तृत था। सरस्वती नदी इसकी पूर्वी सीमा थी, जबकि अहिछत्र, अतरंजीखेड़ा, कुरुक्षेत्र, जखेड़ा एवं हस्तिनापुर चित्रित धूसर मृदभाण्ड संस्कृति के अन्य महत्वपूर्ण स्थल थे। आर्यों को लोहे का ज्ञान उत्तर वैदिक काल में ही हुआ किंतु वे इसका प्रयोग लोहे की शीर्ष वाली बाणों एवं भालों जैसे शस्त्रास्त्रों के निर्माण मात्र में ही करते थे। जौ एवं चावल की खेती की जाती थी। मिश्रित कृषि, जिसमें कृषि के साथ पशुओं को भी पाला जाता था, की परम्परा प्रारंभ हो चुकी थी। श्वर्णों में क्रमशः कठोरता आने लगी थी तथा वे ‘जाति‘ समूहों के रूप में परिणित होने लगे थे। परिवार का स्वामी ‘गृहपति‘ के नाम से जाना जाता था। पूर्व वैदिक काल में व्यवसाय पर आधारित, जो चतुर्वर्ण व्यवस्था थी, वह उत्तर-वैदिक काल में कठोर होने लगी तथा सामाजिक व्यवस्था के क्रम में इसने चार जाति समूह का रूप लेना प्रारंभ कर दिया था। उत्तरकालीन वैदिक समाज-चार मुख्य जाति समूहों-ब्राह्मण, राजन्य या क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रों में विभक्त हो गया था। इस काल में व्यवसाय क्रमशः वंशानुगत होते जा रहे थे। इस काल में आभूषण निर्माण, लुहारी, धातुकर्म, टोकरियों का निर्माण एवं कुम्हारगीरी इत्यादि प्रमुख व्यवसाय थे। पुराने जनजातीय संगठन अब जनजातीय गणराज्यों में परिणित होने लगे थे तथा भौगोलिक आधार पर राजनीतिक शक्तियों का निर्धारण होने लगा था। उत्तरवैदिक काल में धर्म एवं दर्शन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। ऋग्वैदिक देवताओं की महत्ता कम हो गई तथा नवीन देवता प्रतिष्ठापित हो गए। प्रजापति इस काल के सर्वप्रथम देवता थे। यज्ञीय विधान अत्यंत विस्तृत एवं जटिल हो गए थे। यद्यपि पूरे वैदिक काल में कहीं भी सिक्के, मुद्रा या लेखन के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते।

दक्षिण भारत में महापाषाणकालीन स्थल-भारतीय
प्रायद्वीप में लौह युग का आरम्भ

हल्लूर (कर्नाटक) में मिली वस्तुओं की कार्बन डेटिंग इंगित करती है कि प्रायद्वीपीय भारत में लौह का उपयोग 1100 ई.पू. के लगभग शुरू हुआ। दक्षिण भारत में लौह युग के सर्वाधिक प्रारंभिक चरण की प्राप्ति पिकलिहल व हल्लूर तथा संभवतः ब्रह्मगिरि की कब्रगाहों के उत्खनन से हुई है। कुछ स्थलों पर नवपाषाण-ताम्रपाषाण संस्कृति की सीमाएं लौह युग के साथ अतिव्याप्त होती हैं। उत्तरी दक्कन में, कुछ ताम्रपाषाण बस्तियां लौह युग में भी विद्यमान रही तथा यही स्थिति अन्य सभी स्थलों जैसे ब्रह्मगिरि, पिकलिहल, संगनकल्लु, मास्की, पैय्यमपल्ली आदि दक्षिणी दक्कन (सभी आधुनिक कर्नाटक में) में रही।
इतिहासकारों ने दक्षिण भारत के लौह युग के बारे में अधिकतर महापाषाणकालीन जानकारी कब्रों के उत्खननों से प्राप्त की है। अंग्रेजी में महापाषाण को ‘मेगालिथ‘ कहते हैं जो दो ग्रीक शब्दों ‘मेगास‘ तथा ‘लिथोस‘ से बना है। ‘मेगास‘ का अर्थ है बड़ा एवं लिथोस का अर्थ है पत्थर। मेगालिथ के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के स्मारक आते हैं जिनमें एक चीज सामान्य है-ये बड़े पत्थरों तथा बड़े शैल खण्डों, जो स्थूल रूप से एक दूसरे के ऊपर रखे होते हैं, के बने होते हैं। ये स्मारक विश्व के कई हिस्सों यथा यूरोप, एशिया, मध्य तथा दक्षिणी अफ्रीका में पाए गए हैं। भारत में ये सुदूर दक्षिण, दक्कन पठार, विंध्याचल व अरावली पर्वत श्रेणियां, तथा उत्तर-पश्चिम में मिले हैं। भारत के प्रमुख महापाषाण स्थलों में से कुछ हैं-महाराष्ट्र के नागपुर के निकट जूनापानी, कर्नाटक में मास्की तथा हिरेबेंकल, आंध्र प्रदेश में नागार्जुनकोंडा, तथा तमिलनाडु में अदिचनल्लुर।

 

छठी से चैथी शताब्दी ईसा पूर्व तक राज्यों का निर्माण,
शहरीकरण एवं धार्मिक आंदोलन

जीवन के पशुचारण से कृषि कार्य में स्थानांतरण से लोगों ने स्थायी रूप से रहना प्रारंभ कर दिया। ‘जनपद‘ जिसका शाब्दिक अर्थ है-वह स्थान जहां जन (या लोग) अपने पैर रखते हैं, लोगों के स्थायी निवास स्थल बन गए। जनपद से आगे राजनीतिक-भौगोलिक इकाई, जिन्हें ‘महाजनपद‘ की संज्ञा दी गई, इस काल में अस्तित्व में आए। ये विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र थे, जो शक्तिशाली राजाओं द्वारा शासित थे तथा इनमें कई गांव, शहर एवं नगर संगठित थे। कुछ महाजनपद कई जनपदों से मिलकर बने थे। उदाहरणार्थ-कोसल महाजनपद का निर्माण काशी एवं शाक्य जनपदों के विलीनीकरण से हुआ था। ग्राम इन महाजनपदों की आधारभूत राजनीतिक- भौगोलिक इकाई थे। हस्तकला के विशिष्टीकरण की तीव्र होती प्रक्रिया एवं व्यापार एवं वाणिज्य के प्रसार से विशुद्ध रूप से विस्तृत बाजार तंत्र के अस्तित्वमान होने के संकेत मिलते हैं। राजाओं एवं व्यापारियों के अतिरिक्त शहरी क्षेत्र में प्रभावशाली व्यक्तियों का एक अन्य बड़ा वर्ग भी था। इस काल में काशी (कासी), कोशल, मगध, अंग, वज्जी, मल्ल, चेदि, वत्स, कुरु, पांचाल, मत्स्य, सूरसेन, अस्सक, अवंति, गांधार एवं कंबोज प्रमख महाजनपद थे।
600-400 ई. पूर्व का काल अन्य दृष्टियों से भी महत्वपूर्ण है। इस काल में भारतीयों ने लेखन कला सीखी तथा इसके लिए उन्होंने ब्राह्मी लिपि का आविष्कार किया। लेखन कला के उद्भव एवं विकास से ज्ञान का व्यापक रूप से प्रसार हुआ। इस काल में क्षत्रिय समाज सबसे शक्तिशाली वर्ग के रूप में उभरा। शासक परिवार मुख्यतः इसी क्षत्रिय वर्ग से संबंधित होते थे तथा लिच्छवी, मल्ल, शाक्य तथा अन्य वंशों ने इनकी सभाओं में प्रवेश करने के अपने अधिकारों का ईष्र्यापूर्वक बचाव किया। काशी एवं कोसल के राजा भी क्षत्रिय ही थे। ब्राह्मणों के एकाधिकार को चुनौती देने के लिए क्षत्रियों एवं वैश्यों ने मिलकर नए धार्मिक सम्प्रदाय का गठन कर लिया था। कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था के उद्भव से वैदिक काल में प्रचलित पशुबलि की प्रथा पर रोक लगा दी गई। वैदिक ब्राह्मणवाद, सूदखोरी जैसी कई व्यापारिक गतिविधियों की निंदा के कारण, प्रगतिशील व्यापार एवं वाणिज्य के मार्ग की बाधा बन गया। बौद्ध एवं जैन धर्म इस काल के नए धार्मिक संप्रदाय थे, जो पशुबलि प्रथा के घोर विरोधी एवं व्यापार-वाणिज्य के समर्थक थे। इन धर्मों को सबसे अधिक वैश्यों का समर्थन मिला, जो मुख्यतया कृषक या व्यापारी थे। इन दोनों नए धार्मिक संप्रदायों ने लोगों के समक्ष एक सीधा-साधा आडंबररहित धर्म प्रस्तुत किया तथा ईश्वर भक्ति का अधिकार सभी को दिलाया। शीघ्र ही वे लोग जो ब्राह्मण धर्म के गूढ़ कर्मकांडवादी भक्ति प्रक्रिया से ऊब चुके थे, इन धर्मों की शरण में आ गए तथा इन्होंने अपना उद्दात समर्थन जैन एवं बौद्ध धर्म को प्रदान किया।
राजनीतिक परिदृश्य में भी छठी शताब्दी ईसा पूर्व में नए गणराज्यों के उदय से महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। मुख्यतः पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार या सिंधु बेसिन में स्थित इन गणराज्यों की सबसे मुख्य विशेषता इनकी साझा संस्कृति थी। इस काल में जो महत्वपूर्ण गणराज्य थे, उनमें सम्मिलित हैंः कपिलवस्तु (भगवान बुद्ध की जन्म स्थली) के शाक्य, बुली, कलाम, भग्ग, कोलिय, मल्ल, मोरिय, विदेह एवं लिच्छवी। यह काल राज्यों के विस्तार एवं निर्माण के प्रथम प्रयास का भी साक्षी है, जब बिम्बिसार के नेतृत्व में मगध ने अपनी साम्राज्य सीमाओं को विस्तृत करने की नीति अपनायी। प्रारंभ में मगध की राजधानी राजगृह थी। फिर हर्यक वंश के शासक उदायिन ने इसकी नई राजधानी पाटलिपुत्र को बनाया। हर्यक वंश के उपरांत मगध में शिशुनाग वंश प्रारंभ हुआ एवं शिशुनागों के पश्चात् मगध पर नंदों ने शासन किया। इस वंश के महापद्मनंद ने उत्तर भारत के एक विशाल भूभाग, मध्य भारत के कुछ क्षेत्रों तथा पूर्वी दिशा से कलिंग को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया तथा इस विशाल भू-क्षेत्र की जनता से सेना के निर्वाह हेतु अकूत भू-राजस्व एकत्रित किया। नंदों ने एक विशाल सेना एकत्रित की तथा वे पहले ऐसे शासक थे-जिन्होंने व्यापक पैमाने पर युद्धभूमि में हाथियों का उपयोग प्रारंभ किया।

Sbistudy

Recent Posts

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

2 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

4 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

6 days ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

6 days ago

elastic collision of two particles in hindi definition formula दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है

दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है elastic collision of two particles in hindi definition…

6 days ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now