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अप संस्कृति और पार्श्व संस्कृति किसे कहते है | अपसंस्कृति का अर्थ पार्श्व संस्कृति up culture in hindi
up culture in hindi अप संस्कृति और पार्श्व संस्कृति किसे कहते है | अपसंस्कृति का अर्थ पार्श्व संस्कृति क्या है ?
शब्दावली
सामाजिक स्तरीकरण: जहाँ पर लोगों को असमानता, आमदनी, सम्पत्ति, शक्ति, हैसियत आदि के आयामों से क्रमिक रूप से श्रेणी दी जाए।
अप-संस्कृति/पार्श्व संस्कृति: यह किसी सामाजिक वर्ग के मूल्यों, विचारधाराओं, व्यवहार का तरीका तथा जीवन-शैली जो भिन्न तो होते हैं लेकिन समाज की प्रमुख संस्कृति से जुड़े रहते हैं। यह समाज में अत्यधिक विभिन्नताओं के कारण उत्पन्न होती है।
सामाजिक व्यवस्था: जब समाज में सम्बद्धता और अंतर का वर्णन किया जाए।
वर्ग निर्भरताः एक ही वर्ग के सदस्यों के मूल्यों में समानता हो।
प्रस्तावना
आप ऐसे सामाजिक स्तरीकरण के बारे में पहले ही जान चुके हैं जिसकी व्यवस्था के अनुसार किसी समाज के सदस्यों को उच्चतर या निम्नतर स्तरों में रखा जाता है। स्थितियाँ या स्तर हमेशा स्थिर नहीं होते। व्यक्तियों या समूहों द्वारा निर्धारित स्तर से ऊपर या नीचे की तरफ संचलन की संभावना बनी रहती है। इस ऊपर या नीचे की तरफ संचलन को सोपानात्मक गतिशीलता कहा जाता है। इसे प्रायः ऊपर की तरफ या नीचे की तरफ वाली गतिशीलता कहा जाता है। गतिशीलता समस्तरीय (पार्श्व) भी हो सकती है। अर्थात् एक स्थिति से उसी सामाजिक वर्ग या स्थिति के साथ दूसरी सामाजिक स्थिति में जाना। इस पार्शि्वक गतिशीलता को समस्तरीय गतिशीलता के रूप में जाना जाता है।
सामाजिक गतिशीलता को प्रायः व्यावसायिक स्तरों के संदर्भ में आमदनी तथा उपभोग के नमूनों के आधार पर व्यक्तियों का समूहों का ऊपर या नीचे की तरफ गतिशील होना माना जाता है। पिछली इकाइयों में आपने सामाजिक गतिशीलता की विभिन्न सैद्धांतिक विचारधाराएँ, आयाम तथा घटक एवं शक्तियों के बारे में पढ़ा है। इस इकाई में हम सामाजिक गतिशीलता के एक अन्य पक्ष अर्थात् उसके परिणामों पर चर्चा करेंगे।
परिणामों से हमारा अभिप्राय सामाजिक गतिशीलता के प्रभावों से है। अब प्रश्न उठता है कि प्रभाव ‘किसपर‘? इसका प्रभाव न केवल व्यक्तियों या समूहों पर अपितु संपूर्ण समाज पर भी पड़ता है। इस इकाई में हम इसका अध्ययन करेंगे। इसलिए हम सामाजिक गतिशीलता के परिणामों का तीन कोणों से अध्ययन करेंगे। पहलाकृसामाजिक परिणाम। इसमें समग्र समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा। दूसराकृराजनीतिक परिणाम। इसमें किसी समाज के विभिन्न वर्गों और संघों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में चर्चा की जाएगी। अंतिम-सामाजिक-मनोवैज्ञानिक परिणाम। इसमें समाज में रहने वाले व्यक्ति के स्तर पर सामाजिक गतिशीलता के उस प्रभाव का वर्णन किया जाएगा जो शीघ्र गतिशीलता का अनुभव करता है।
सामाजिक गतिशीलता के परिणामों के अध्ययन की पृष्ठभूमि
सामाजिक गतिशीलता के परिणामों का उसके एक पक्ष के रूप में व्यवस्थित रूप से पहली बार पिटरीम ए. सोरोकिन द्वारा अध्ययन किया गया (सामाजिक और सांस्कृतिक गतिशीलता, 1927)। सोरोकिन ने गतिशीलता के प्रभावों को तीन आयामों से अध्ययन किया। ये हैं-समाज पर गतिशीलता का जनसांख्यिकीय प्रभाव, मानव व्यवहार एवं मनोवैज्ञानिक प्रभाव तथा समाज के संगठनों एवं उनकी प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला प्रभाव।
यद्यपि सोरोकिन ने अपने निष्कर्षों के समर्थन में विभिन्न समाजों से विशाल आँकड़े एकत्रित किए तो भी जिन तकनीकों के सहारे वह अपने निष्कर्षों पर पहुँचा वे पर्याप्त नहीं थे। अपने सामाजिक और सांस्कृतिक गतिशीलता के सिद्धांत को पुख्ता करने के लिए उन्होंने गतिशील और स्थिर समाजों के बीच विभाजन किया। इसके लिए सोरोकिन ने अतीत और समकालीन समाजों के बेहतरीन उदाहरणों का उल्लेख भी किया। बाद में अनेक समाजशास्त्रियों ने अनुसंधान की परिष्कृत तकनीकों और तरीकों के द्वारा कार्य किया तथा गतिशीलता के अध्ययन की गुणवत्ता में सुधार हुआ।
बॉक्स 32.01
एस.एम.लिपेट और बैंडिक्स (1953), एस.एम. लिपसेट तथा एच. जैटरबर्ग (1956) द्वारा अनुसंधान किए गए। उन्होंने राष्ट्रीय सीमाओं के परे विश्व के अनेक समकालीन समाजों का अध्ययन और विश्लेषण किया। मेलबिन एम.प्यूमिन (1957) ने एक बड़े समाज में गतिशीलता का अध्ययन किया। उन्होंने शीघ्रता से गतिशील होने वाले । समाज में व्याप्त कुछ व्यापक भ्रमों की अच्छी जानकारी प्रदान की। इससे उसके अच्छे भविष्य की संभावनाओं की आशा हुई। जबकि एम.जेनोविट्ज (1956) ने सामाजिक गतिशीलता के परिणामों के अपने अध्ययन को केवल अमेरिका तक ही सीमित रखा। जॉर्ज जिमेल की पुस्तक ‘द स्ट्रेंजर‘, ई.वी.स्टोन इक्विस्ट की पुस्तक ‘द मार्जिनल मैन‘ ने विघटित सामाजिक संरचना में एकल व्यक्ति की निराश जीवन-शैली का वर्णन किया।
रॉबर्ट माइकेल जैसे राजनीतिशास्त्र के विद्वानों ने प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व यूरोप के जनसाधारण के ऊपर या नीचे की तरफ गतिशील राजनीतिक व्यवहार (वोट डालना) का विस्तृत विश्लेषण किया। दूसरी ओर, जी. मोस्का तथा विल्फ्रेड पेरेटो जैसे श्रेष्ठ विद्वानों ने श्विशिष्ट वर्गों की गतिशीलताश् के अपने सिद्धांत में गतिशीलता को बढ़ावा देने वाले सामाजिक तत्वों एवं राजनीतिक शक्तियों का विस्तृत वर्णन किया। मोस्का ने अपनी शोध को व्यापक बनाया और सामाजिक गतिशीलता के परिणामस्वरूप मध्य वर्गकृएक नए वर्ग की उत्पत्ति को उसमें शामिल किया।
प्रत्येक समाज का निर्माण एक ऐसे विशिष्ट तरीके से हुआ है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति या समूह को विशेष कार्य मिले हुए हैं जो समाज को बनाने और उसे बनाए रखने के लिए कार्य करते हैं। प्रत्येक समाज के लिए उसमें रहने वाले व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले कार्य समाज के लिए महत्वपूर्ण होने के अनुसार ही उन व्यक्तियों को उच्च या निम्न स्थिति अथवा श्रेणी प्रदान कराते हैं। इसलिए किसी भी समाज में समय के किसी बिंदु पर कुछ कार्य उच्च हैसियत रखते हैं और उनसे जुड़े हुए व्यक्तियों को दूसरों की अपेक्षा कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हो जाते हैं। कार्य-निष्पादन के आधार पर व्यक्तियों और समूहों को समाज में उच्च या निम्न स्थितियाँ अथवा श्रेणियाँ प्रदान की जाती हैं। अर्थात् उस विशेष समाज में स्तरीकरण को वर्गों के (या भारतीय समाज में जातियों) के नाम से जाना जाता है। अतीत और वर्तमान के अनेक विचारकों के अनुसार श्रेष्ठता प्राप्ति के लिए (मार्क्स) दो विरोधी वर्ग-संघर्ष कर रहे होते हैं। इस स्थिति में अपने समाज में अधिकतम आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पुरस्कार पाने के लिए अपनी-अपनी नीतियों के साथ चार या इससे भी अधिक वर्ग हो सकते हैं (वेबर और अन्य)।
सारांश
इस इकाई में हमने सामाजिक गतिशीलता के होने वाले परिणामों का तीन परिप्रेक्ष्यों से विश्लेषण किया है। पहला-इसका समग्र समाज में विस्तार अर्थात् सामाजिक परिणाम, दूसरा-इसका समाज में विभिन्न वर्गों के राजनीतिक व्यवहार पर प्रभाव अर्थात् राजनीतिक परिणाम तथा तीसरा, इसका आधुनिक औद्योगिक समाज में किसी व्यक्ति पर प्रभाव अर्थात् सामाजिक-मनोवैज्ञानिक परिणाम ।
प्रथम भाग में सामाजिक परिणामों की चर्चा करते हुए आरंभ में हमने दो प्रमुख सबसे बड़े वर्गों श्रमिक वर्ग और मध्य वर्ग की वर्तमान स्थितियों एवं विशेषताओं का विश्लेषण करने का प्रयास किया है। विभिन्न विचारधाराओं की प्रवृत्ति सामाजिक वर्ग के रूप में उनके रूप को नगण्य मानने या मजबूत करने की रही है। इससे हम सामाजिक गतिशीलता दर के संदर्भ में वर्ग निर्भरता की प्रकृति की जाँच करते हैं अर्थात् उपर्युक्त समाज के खंडित वर्णन के संदर्भ में विभिन्न वर्गों के मध्य संचलन की मात्रा का वर्णन किया गया है। अंतिम भाग में हमने सामाजिक गतिशीलता के परिणामों के रूप में सामाजिक व्यवस्था के रूपों का वर्णन करने का प्रयास किया है। अनेक पारंपरिक और प्रभावशाली अध्ययनों ने विघटनकारी परिकल्पनाओं को प्रेरित किया जबकि पीटर एम.ब्लौ के अमेरिकन गतिशीलता के अध्ययन ने संस्कृतिसंक्रमण परिकल्पनाओं के निर्माण में सहयोग दिया। अंत में, नकारात्मक या विघटनकारी परिणामों को इंगलैंड में फ्रेंक पार्किन और अमेरिका में एच.एल.विलेंस्की और एच.एडवर्ड्स तथा सी.जे.रिचर्ड्सन द्वारा सामाजिक व्यवस्था के लिए किए अनुसंधानों द्वारा संतुलित किया गया।
सामाजिक गतिशीलता के राजनीतिक परिणामों में समाज के उच्चतम वर्ग उच्च वर्ग, शासक वर्ग (मोसका और पेरेटो) का विवरण दिया गया है। हमने वैयक्तिक तथा सामाजिक गतिशीलता का उनके राजनीतिक व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण किया है। राजनीतिक व्यवहार जो उनके मतदान के समय देखा जाता है। यह व्यावसायिक तथा । आमदनी के आधार पर गतिशीलता अर्थात् स्तर-विसंगति के निष्फल सामाजिक स्तर की महत्वाकांक्षा के आधार पर वाम या दक्षिणपंथी विस्तार में देखा जाता है। इस प्रकार, हम विशेष सामाजिक अधिकार के अनुरूप और प्राप्त आमदनी रैंक के बीच विसंगति की डिग्री, राजनीतिक अतिवाद की डिग्री की गणना करते हैं। प्रत्येक वर्ग एक-दूसरे के शक्ति आधारों को कम करने का प्रयास करता है।
लोकतांत्रिक रूप पर बल देते हुए आधुनिक औद्योगिक समाज अपने प्रत्येक सदस्य की आकांक्षाएँ पूरी नहीं कर पाता और इस प्रकार इसमें अस्थिरता अंतर्निहित है। यह आधुनिक समाजों की अस्थिरता ही है जो इसके सदस्यों में वैयक्तिक स्तर पर दिखाई देती है। इससे सामाजिक गतिशीलता के नकारात्मक सामाजिक-मनोवैज्ञानिक परिणामों को बढ़ावा मिलता है। इसके सकारात्मक पक्ष को उपयुक्त समाज सुधार आंदोलनों को आरंभ करने में देखा जा सकता है।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
रिचर्ड्सन, सी.जे. (1977), कंटम्प्रेरी सोशल मोबिलिटी, लंदन, रोटलेज एंड केगन पॉल।
बोटोमोर, टी.बी. (1964), श्रेष्ठ वर्ग और समाज, पेंगुइन बुक्स।
एक विस्तृत समाज में समकालीन गतिशीलता के कुछ अवांछित परिणाम, पत्रिका सामाजिक शक्तियाँ, अंक 36, अक्तूबर 1957, पृ.32-37 तक, प्युमिद्व मेलबिन (1957)।
इकाई 32 सामाजिक गतिशीलता के परिणाम
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
सामाजिक गतिशीलता के परिणामों के अध्ययन की पृष्ठभूमि
गतिशीलता के सामाजिक परिणाम
बूर्जुआवादी
श्रमिक वर्ग की विषमता
विस्तृत एवं पिघटित मध्य वर्ग
सामाजिक गतिशीलता तथा वर्ग-निर्भरता की दर
सामाजिक व्यवस्था का रूप
सामाजिक गतिशीलता का राजनीतिक परिणाम
सामाजिक गतिशीलता का सामाजिक-मनोवैज्ञानिक परिणाम
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर
उद्देश्य
इस इकाई में सामाजिक गतिशीलता के सामाजिक, राजनीतिक तथा सामाजिक-मनोवैज्ञानिक परिणामों का वर्णन किया गया है। इस इकाई का अध्ययन करने के बाद आप:
ऽ सामाजिक गतिशीलता का अर्थ समझ सकेंगे,
ऽ तीन बड़े वर्गों-निम्न वर्ग, मध्य वर्ग तथा उच्च वर्ग-के लिए सामाजिक गतिशीलता के परिणाम जान सकेंगे,
ऽ सामाजिक गतिशीलता के एक समग्र समाज के लिए परिणाम-सामाजिक व्यवस्था के रूप की चर्चा कर सकेंगे,
ऽ सामाजिक गतिशीलता का सामाजिक वर्गों या श्रेणियों पर प्रभाव-राजनीतिक परिणाम, और
ऽ एक आधुनिक औद्योगिक समाज में व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव-सामाजिक मनोवैज्ञानिक का अर्थ समझ सकेंगे।
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