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अपठित काव्यांश कक्षा हिंदी व्याकरण | unseen poem for class in hindi with questions and answers
unseen poem for class in hindi with questions and answers अपठित काव्यांश कक्षा हिंदी व्याकरण प्रश्न और उत्तर दीजिये |
निर्देश-(प्रश्न संख्या 45-48) काव्याशं को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
आज बरसों बाद उठी है इच्छा
हम कुछ कर दिखाएँ
एक अनोखा जश्न मनाएँ
अपना कोरा अस्तित्व जमाएँ
आज बरसों बाद सूखे पत्तों पर
बसंत ऋतु आई है
विचार रूपी कलियों पर
बहार खिल आई है
गहनता की फसल लहलहाई है
शायद इसी कारण
आज बरसों बाद
उठी है इच्छा हम कुछ कर दिखाएँ
अपना कोरा अस्तित्व जमाएँ।
45. कवि के मन में इच्छा उत्पन्न हुई है ……..।
(अ) कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य करने की
(ब) मन से बातें करने की
(स) खुशियाँ मनाने की
(द) अपनी पहचान बनाने की
उत्तर-(अ)
46. ‘सूखे पत्ते‘ प्रतीक हैं …………………………………………।
(अ) पतझड़ के (ब) अकाल के
(स) मन के सूनेपन के (द) शुष्कता के
उत्तर-(स)
47. किन कलियों पर बहार का आगमन हुआ है?
(अ) भाव रूपी कलियों पर (ब) विचारों की कलियों पर
(स) छोटी नई कलियों पर (द) शुष्क कलियों पर
उत्तर-(ब)
48. ‘गहनता की फसल‘ से कवि का क्या आशय है?
(अ) विचारों में परिपक्वता (ब) अपना अस्तित्व
(स) लहलहाती फसलें (द) विचारों की गंभीरता
उत्तर-(अ)
निर्देशः (प्रश्न संख्या 49-52) काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
ओह, समय पर उनमें कितनी फलियाँ फूटी
कितनी सारी फलियाँ, कितनी प्यारी फलियाँ,
यह, धरती कितना देती है
धरती माता
कतना देती है अपने प्यारे पुत्रों को
न समझ पाया था मैं उसके महत्व को,
बचपन में छिरू स्वार्थ लोभ वश पैसे बोकर
रत्न प्रसविनी है वसुधा, अब समझ सका हूँ
इसमें सच्ची समता के दाने बोने है,
इसमें जन की क्षमता के दाने बोने है,
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसलें
मानवता की-जीवन श्रम से हँसें दिशाएँ।
हम जैसा बोएँगे वैसा ही पाएँगे।
49. कवि किसका महत्व नहीं समझ पाया था?
उत्तर-(ब)
50. मानवता की सुनहली फसलें कब उगेंगी?
(अ) जब हम परिश्रम करेंगे
(ब) जब समता और क्षमता के बीज बोए जाएगें।
(स) जब चारों ओर शांति होगी
(द) जब धूल सोना उगलेगी
उत्तर-(ब)
51. कवि ने बचपन में किस भाव से पैसे बोए थे?
(अ) निरूस्वार्थ भाव से (ब) सोचविचार से
(स) स्वार्थ एवं लोभ से (द) मोह से
उत्तर-(स)
52. ‘‘धरती कितना देती है‘‘ का आशय है
(अ) बहुत कम देती है।
(ब) कितना देती है?
(स) बहुत अधिक देती है।
(द) कुछ देती ही कहाँ है?
उत्तर-(स)
निर्देश: निम्नलिखित अनुच्छेद को ध्यान से पढ़िए और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
गद्यांश: मनुष्य तभी तक मनुष्य है, जब तक वह प्रकृति से ऊपर उठने के लिए संघर्ष करता रहता है। यह प्रकृति दो प्रकार की है- अन्तः प्रकृति और बाह्य प्रकृति। बाह्य प्रकृति को अपने वश में कर लेना बड़ी अच्छी और गौरव की बात द्य पर अन्तः प्रकृति पर विजय पा लेना उससे भी अधिक गौरव की बात है। ग्रहों और तारों का नियमन करने वाले भौतिक नियमों का ज्ञान प्राप्त कर लेना गौरव-पूर्ण है, परन्तु मानव जाति के विचारों, भावों, वासनाओं और इच्छाओं का नियमन करने वाले नियमों को जान लेना उससे भी अधिक गौरवपूर्ण है। अतएव हमें अपनी अन्तः प्रकृति और अन्तर्वृत्तियों पर विजय पाने का ही निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए। दुनिया में होने वाले सभी युद्ध, विभाजन और वैमनस्य अन्तर्वृत्तियों के न जानने के ही परिणाम हैं।
53. दुनिया में होने वाले युद्ध, विभाजन और वैमनस्य का निम्नलिखित में से कौन सा प्रमुख कारण है?
(अ) मनुष्य का प्रकृति से ऊपर उठने के लिए संघर्ष।
(ब) अन्तः प्रकृति पर विजय प्राप्त करना।
(स) अन्तः प्रकृति एवं अन्तः वृत्तियों को न जानना।
(द) बाह्य प्रकृति को वश में कर लेना।
उत्तर-(स)
54. सर्वाधिक गौरव-पूर्ण क्या है?
(अ) बाह्य प्रकृति को जानना।
(ब) विचारों, भावों, वासनाओं और इच्छाओं का नियमन करने वाले नियमों को न जानना।
(स) अन्तः प्रकृति और अन्तः प्रवृत्तियों पर विजय पाने का निरन्तर प्रयास।
(द) प्रकृति से ऊपर उठने का निरन्तर संघर्ष
उत्तर-(स)
54. गद्यांश का उचित शीर्षक होगा
(अ) धन की लोलुपता (ब) धन की महत्ता।
(स) धन और मनुष्यता (द) मनुष्यता का महत्व
उत्तर-(स)
55. उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार संसार में किस तरह के मनुष्य की पूजा होती है?
(अ) जो धनार्जन एवं त्याग दोनों करता है
(ब) जो पैसों को कल्याणकारी कार्यों में लगाता है
(स) जो मानवता की सेवा में लगा रहता है
(द) जो सच्चे मनुष्यत्व के लिये कार्य करता है
उत्तर-(द)
उपर्युक्त गद्यांश में लेखक धन को ही सब कुछ नहीं मानता है, धन की पूजा बहुत ही कम जगहों पर देखने को द्य मिलती है, संसार का इतिहास उठाकर देखने पर विदित होता है कि अंत उसी मनुष्य की पूजा होती है जो सच्च मनुष्यत्व के लिए कार्य करता है।
56. धन की पूजा से क्या अभिप्राय है?
(अ) धन से ज्यादा मानवता प्रबल है
(ब) धन कमाने वाला अधिक नाम नहीं कर पाता है
(स) धन की पूजा व्यक्ति को स्वार्थी बनाती है
(द) धन कमाने की अपेक्षा सच्चा मनुष्य होना ज्यादा अच्छा है।
उत्तर- (द)
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