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संघ एवं उसका राज्य क्षेत्र नोट्स भाग 1, अनुच्छेद 14 (union and its territory notes in hindi)
(union and its territory notes in hindi) संघ एवं उसका राज्य क्षेत्र नोट्स भाग 1, अनुच्छेद 14 ?
संघ और उसका राज्य क्षेत्र MCQ ?
संघ और उसका राज्य क्षेत्र
भाग 1, अनुच्छेद 14
अनुच्छेट 1 में निर्धारित किया गया है कि भारत अर्थात इंडिया राज्यों का सघ होगा। भारत के राज्य क्षेत्र में (1) राज्यों के राज्य क्षेत्र, (11) संघ राज्य क्षेत्र, और (पद) ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र जो अर्जित किए जाएं, यथा भारत मे पांडिचेरी, कारिकल, माही और यनम (फ्रासीसी) और गोवा, दमण और दीव और दादरा तथा नागर हवेली (पुर्तगाली) जैसे फ्रासीसी तथा पुर्तगाली अधिकृत क्षेत्र समाविष्ट होंगे, जो भारत मे उनके विधितः अतरण के बाद 1962 में 14वे, 12वे और 10वें संविधान संशोधनों के द्वारा संघ में जोड़ दिए गए थे। ख्देखिए अमरसिंह बनाम राजस्थान राज्य, ए आई आर 1955 एस सी 504, मस्तान सिंह बनाम मुख्य आयुक्त, ए आई आर 1962 एस सी 797य और हरिवंश बनाम महाराष्ट्र राज्य (1971) 2 एस सी सी 54, ।
राज्यों तथा संघ-राज्य क्षेत्रों के नाम तथा प्रत्येक के अतर्गत आने वाले राज्य क्षेत्रों का वर्णन प्रथम अनुसूची में किया गया है। उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला किया है कि किसी समय विशेष पर ‘भारत का राज्य क्षेत्र‘ वह राज्य क्षेत्र है जो संविधान के अनुच्छेद 1 के अंतर्गत प्रथम अनुसूची में निर्दिष्ट किया गया है। (अमर सिंह बनाम राजस्थान राज्य, ए आई आर 1955 एस सी 504य मस्तान सिंह बनाम मुख्य आयुक्त, ए आई आर 1962 एस सी 797)।
संविधान सभा द्वारा अगीकृत तथा संविधान में समाविष्ट प्रथम अनुसूची में राज्यों तथा राज्य क्षेत्रों की चार श्रेणियों यानी भाग क, भाग ख और भाग ग के राज्यों और भाग घ के राज्य क्षेत्रों का वर्णन था। भाग क में भूतपूर्व ब्रिटिश भारत के प्रांत सम्मिलित थे। विधानमंडल सहित पांच देसी रियासतों को भाग ख में रखा गया था। भाग ग में पाच केंद्र शासित राज्य सम्मिलित थे। अदमान तथा निकोबार द्वीपों का उल्लेख भाग घ में किया गया था। संविधान लागू होने के बाद के वर्षों के दौरान भारत के मानचित्र में काफी परिवर्तन हो गए। आंध्र अधिनियम, 1953 द्वारा भाषाई आधार पर आंध्र के एक पृथक राज्य का सृजन किया गया। अंततः संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 के अधीन राज्यों के पुनर्गठन ने भाग क तथा भाग ख के राज्यों का अंतर समाप्त कर दिया। तत्पश्चात, अनेक नये राज्यों का निर्माण किया गया, जैसे हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और गोवा। इस समय अनुसूची में निम्नलिखित 25 राज्य तथा सात संघ राज्यक्षेत्र सम्मिलित हैं:
राज्य: (1) आंध्र प्रदेश, (2) अरुणाचल प्रदेश, (3) असम, (4) बिहार, (5) गोवा, (6) गुजरात, (7) हरियाणा, (8) हिमाचल प्रदेश, (9) जम्मू-कश्मीर, (10) कर्नाटक, (11) केरल, (12) महाराष्ट्र, (13) मध्य प्रदेश, (14) मणिपुर, (15) मेघालय, (16) मिजोरम, (17) नागालैंड, (18) उड़ीसा, (19) पंजाब, (20) राजस्थान, (21) सिक्किम, (22) तमिलनाडु, (23) त्रिपुरा, (24) उत्तर प्रदेश, (25) पश्चिमी बंगाल।
संघ राज्यक्षेत्र: (1) अंदमान और निकोबार द्वीप, (2) चंडीगढ़, (3) दादरा और नागर हवेली, (4) दमण और दीव, (5) दिल्ली (अब इसका नाम राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र है) (6) लक्षद्वीप, (7) पांडिचेरी।
देश के नाम के विषय में संविधान सभा में काफी विस्तार से चर्चा की गई थी। जहां ‘भारत‘ प्राचीन नाम था और वह देश की एकता तथा अखडता की चेतना की प्रथम अभिव्यक्ति को निरूपित करता था, वहा ‘इंडिया‘ आधुनिक नाम था जिससे देश विश्व भर मे जाना जाने लगा था। सयुक्त राष्ट्र के सदस्य के रूप में भी इसका नाम ‘इंडिया‘ था और सभी अतर्राष्ट्रीय समझौते इसी नाम से किए गए थे। अतः दोनो नामो के प्रबल पक्षधर थे। अंततः, भारत अर्थात ‘इंडिया‘ के नाम को एक शुभ समझौते के रूप मे स्वीकार कर लिया गया।
भारत एक ‘सघ‘ है, इस बात पर बल देने का प्रयोजन इस तथ्य को प्रकाश में लाना था कि यह संघटक इकाइयो के बीच सौदेबाजी या समझौते का परिणाम नहीं है बल्कि यह संविधान सभा की एक स्पष्ट घोषणा है जिसने अपनी शक्ति तथा प्राधिकार भारत की प्रभुत्व संपन्न जनता से प्राप्त किया था। इसलिए, कोई भी राज्य सघ से अलग नहीं हो सकता और न ही अपनी मर्जी से संविधान की प्रथम अनुसूची मे निर्धारित अपने राज्य क्षेत्र में परिवर्तन कर सकता है। डा. अबेडकर ने संविधान सभा में कहा था:
अमरीकियो को यह सिद्ध करने के लिए गृहयुद्ध छेडना पड़ा था कि राज्यो को अलग होने का कोई अधिकार नही है तथा उनका फेडरेशन अविनाशी है। प्रारूपण समिति का विचार था कि इसे अटकलबाजी या विवाद के लिए छोड़ देने की बजाय बेहतर यही है कि इसे आरभ मे ही स्पष्ट कर दिया जाए।
हमारा देश फेडरेशन है या नहीं-इस विषय में काफी विचार-विमर्श किया गया है।
(देखिए अध्याय 4 ‘संविधान की विशेषताए‘ के अतर्गत)।
अनुच्छेद 2 मे उपबध किया गया है कि ससद, विधि द्वारा, ऐसे निबधनो और शर्तो पर जो वह ठीक समझे, भारत सघ मे नये राज्यो का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी। 1974 तथा 1975 मे 35वे तथा 36वें संविधान संशोधनो द्वारा जिस नवीनतम राज्य को सघ में जोड़ा गया, वह था सिक्किम राज्य। ऐसा सिक्किम विधान सभा के अनुरोध पर और जनमत संग्रह के द्वारा सिक्किम के लोगों की स्वीकृति से किया गया था।
अनुच्छेद 3 के अधीन संसद को किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागो को मिलाकर अथवा किसी राज्य क्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नये राज्य का निर्माण करने की शक्ति प्राप्त है। वह किसी राज्य का क्षेत्र बढा या घटा सकती है और यहा तक कि किसी राज्य की सीमाओ में या उसके नाम में परिवर्तन भी कर सकती है। इस प्रकार किमी राज्य की राज्य क्षेत्रीय अखडता अथवा उसके अस्तित्व के बने रहने की कोई गारटी नहीं है। लेकिन, इसके साथ ही, यह निर्णय दिया गया है कि किसी राज्य के क्षेत्र को घटाने की ससद की शक्ति में भारतीय राज्य क्षेत्र को किसी विदेशी राज्य को समर्पित करने की शक्ति सम्मिलित नहीं है। (बरुबाडी के सबंध में सघ तथा बस्तियों का विनियम ए आई आर 1950 एस सी 815, 857)। अत कहा जा सकता है कि भारत नाशवान राज्यों का अविनाशी सघ है।
कितु, राज्यों को अनुच्छेद 3 के अतर्गत उनके राज्य क्षेत्रो में परिवर्तन के सबध मे अपनी बात कहने का अधिकार है। उनके इस अधिकार की रक्षा के लिए सविधान मे एक व्यावृत्ति-खड रखा गया है। पहली शर्त यह है कि इस प्रयोजन के लिए राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना, ससद के किसी भी सदन मे कोई विधेयक पेश नही किया जा सकता है। दूसरे, यदि विधेयक में शामिल प्रस्ताव किसी भी राज्य के क्षेत्र, उसकी सीमाओ या उसके नाम को प्रभावित करता हो तो वह विधेयक राष्ट्रपति द्वारा संबंधित राज्य के विधानमंडल के पास उस पर राय व्यक्त करने के लिए भेजा जाना चाहिए। इस प्रकार की राय राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट अवधि के अदर अदर व्यक्त की जानी चाहिए। बहरहाल, राज्य विधानमंडल द्वारा व्यक्त विचार राष्ट्रपति या संसद पर बाध्यकारी नहीं होते। (बाबूलाल बनाम बबई राज्य ए आई आर 1960 एस सी 51)। –
अनुच्छेद 4 में इस बात को स्पष्ट कर दिया गया है कि अनुच्छेद 2 और 3 के अधीन नये राज्यों की स्थापना या उनके प्रवेश और विद्यमान राज्यों के नामों, क्षेत्रों और उनकी सीमाओ आदि में परिवर्तन के लिए बनाई गई विधिया अनुच्छेद 368 के अधीन सविधान के सशोधन नहीं मानी जाएंगीय अर्थात इन्हें बिना किसी विशेष प्रक्रिया के तथा किसी भी अन्य साधारण विधान की तरह साधारण बहुमत द्वारा पारित किया जा सकता है।
हालांकि संविधान में नये राज्य क्षेत्रों के अर्जन, नये राज्यो के प्रवेश तथा निर्माण आदि का उपबंध किया गया है, कितु इसमे भारतीय राज्य क्षेत्र को अलग करने या अंतरित करने का कोई उपबंध नहीं है।
राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय की राय मांगे जाने पर, उच्चतम न्यायालय ने बेरुबाड़ी संघ ए आई आर 1960 एस सी 845 के सबंध में राय व्यक्त की कि संविधान सशोधन के बिना कोई राज्य क्षेत्र दूसरे को नहीं सौंपा जा सकता। इसलिए, बेरुबाडी राज्य क्षेत्र के भाग को पाकिस्तान को अंतरित करने के लिए संविधान (नवां सशोधन) अधिनियम पारित किया गया था।
पिछले चार दशकों से अधिक अवधि के दौरान जिस आसानी के साथ भारत के मानचित्र को नया रूप दिया गया है, वह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि सविधान में एक अनूठी सुनम्यता तथा लोच है और यह अनुच्छेद 2 और 3 तथा 4 की आवश्यकता तथा उनके औचित्य की पुष्टि करता है। दूसरी ओर, भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की बुद्धिमत्ता अथवा अबुद्धिमत्ता के सबध मे कड़े विचार व्यक्ति किए गए। इसके अलावा राज्यों का और पुनर्गठन करने की मागों का एक कभी न खत्म होने वाला सिलसिला बन गया है और कुछ लोग इस पक्ष मे है कि राज्य छोटे आकार के तथा और अधिक सख्या में होने चाहिए।
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