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पराश्रव्य तरंगें क्या होती है | पराश्रव्य तरंगें किसे कहते हैं , अनुप्रयोग , गुण , उपयोग ultrasound in hindi
ultrasound in hindi , पराश्रव्य तरंगें क्या होती है | पराश्रव्य तरंगें किसे कहते हैं , अनुप्रयोग , गुण , उपयोग ?
ध्वनि
साधारणतया हमारे कानों को जो सुनाई देता है वह ध्वनि है। ध्वनि सदैव कम्पन से ही उत्पन्न होती है। अर्थात बिना कम्पन के ध्वनि उत्पन्न नहीं की जा सकती। किसी माध्यम में किसी ध्वनि-स्त्रोत द्वारा विक्षोभ उत्पन्न करने पर इसमें अनुप्रस्थ या अनुदैर्ध्य तरंग उत्पन्न हो जाती है जो हमारे कानों को सुनाई देती है, जिन्हें हम ध्वनि कहते है।
ध्वनि तरंगें
ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य तरंगें होती है। इसकी उत्पत्ति वस्तुओं में कम्पन होने से होती है, लेकिन सब प्रकार का कम्पन ध्वनि उत्पन्न नहीं करता। जिन तरंगों की आवृत्ति लगभग 20 कम्पन प्रति सेकण्ड से 20,000 कम्पन प्रति सेकण्ड की बीच होती है, उनकी अनुभूति हमे अपने कानों द्वारा होती है और उन्हें हम सुन सकते है। जिन यांत्रिक तरंगों की आवृत्ति इस सीमा से कम या अधिक होती है उसके लिए हमारे कान सुग्राही नहीं है और हमें उनसे ध्वनि की अनुभूमि नही होती है। अतः ध्वनि शब्द का प्रयोग केवल उन्ही तरंगों के लिए किया जाता है, जिनकी अनुभूति हमें अपने कानों द्वारा होती है। भिन्न-भिन्न मनुष्यों के लिए ध्वनि तरंगों की आवृत्ति परिसर अलग-अलग हो सकती हैं।
ध्वनि तरंगों का आवृत्ति परिसर
अव श्रव्य तरंग- 20 भ््र से नीचे की आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों को अव श्रव्य तरंगें कहते है। इसे मनुष्य के कान सुन नही सकते है। इस प्रकार की तरंगों को बहुत बड़े आकार के स्त्रोंतो से उत्पन्न किया जा सकता है।
श्रव्य तरंगें- 20 भ््र से 20,000 भ््र के बीच की आवृत्ति वाली तरंगों को श्रव्य तरंगें कहते है। इन तरंगों को मनुष्य के कान सुन सकते है।
पराश्रव्य तरंगें– 20,000 भ््र से ऊपर की तरंगों को पराश्रव्य तरंगें कहते हैं। मनुष्य के कान इसे नही सुन सकते है। परन्तु कुछ जानवर जैसे- कुत्ता, बिल्ली, चमगादड़ आदि इसे सुन सकते है। इन तरंगों को गाल्टन की सीटी के द्वारा तथा दाब-वैद्युत प्रभाव की विधि द्वारा क्वार्ट्स के क्रिस्टल के कम्पनों से उत्पन्न करते है। इन तरंगों की आवृत्ति बहुत ऊँची होने के कारण इसमें बहुत अधिक ऊर्जा होती है। साथ इनकी तरंगदैर्ध्य छोटी होने के कारण इन्हें एक पतले किरण-पुंज क रूप में बहुत दूर तक भेजा जा सकता है।
पराश्रव्य तरंगों के उपयोग
– संकेत भेजने मे।
– समुद्र की गहराई का पता लगाने में।
– कीमती कपड़ों, वायुयान तथा घड़ियों के पुर्जो को साफ करे में।
– कल-कारखानों की चिमनियों में कालिख हटाने में।
– दुध के अन्दर के हानिकारक जीवाणओं को नष्ट करने में।
– गठिया रोग के उपचार एवं मस्तिष्क क ट्यूमर का पता लगाने में, आदि।
ध्वनि की चाल- विभिन्न माध्यमों म ध्वनि की चाल भिन्न-भिन्न होती हैं। किसी माध्यम में ध्वनि की चाल मुख्यतः माध्यम की प्रत्यास्थात तथा घनत्व पर निर्भर करती है।
ध्वनि के लक्षण
ध्वनि के मुख्यतः तीन लक्षण होते है-
1. तीव्रता।
2 . तारत्व।
3 . गुणता।
1. तीव्रता– तीव्रता ध्वनि का वह लक्षण है, जिससे ध्वनि धीमी/मन्द अथवा तीव्र/प्रबल सुनाई देती है। ध्वनि की तीव्रता एक भौतिक राशि है, जिसे शुद्धता से नापा जा सकता है। माध्यम के किसी बन्दु पर ध्वनि की तीव्रता, उस बिन्दु पर एकांक क्षेत्रफल से प्रति सेकण्ड तल के लम्बवत् वाली ऊर्जा के बराबर होती है। इसका ैप् मात्रक माइक्रोवाट/मी. (= 10-6 जूल/सेकण्ड मी.) तथा प्रयोगात्मक मात्रक बेल है। बेल के दसवें भाग को डेसीबेल कहते हैं। ध्वनि की तीव्रता (प) ध्वनि स्त्रोत की शक्ति पर (पप) श्रोता तथा स्त्रोत के बीच दूरी पर तथा (पपप) छत, फर्श और दीवारों पर होने वाले परावर्तनों पर निर्भर करती है। यदि ध्वनि स्त्रोत को बिन्दु माना जाए तथा अवशोषण और परावर्तनो को नगण्य मान लिया जाय, तो ध्वनि की तीव्रता स्त्रोत से दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होती है। इसके अतिरिक्त, ध्वनि की तीव्रता आयाम के वर्ग के अनुक्रमानुपाती, आवृत्ति वर्ग के अनुक्रमानुपाती तथा माध्यम के घनत्व क अनुक्रमानुपाती होती है। बड़े आकार की वस्तु से उत्पन्न ध्वनि का आयाम बड़ा होता है। इसके कारण बड़े आकार की वस्तु से उत्पन्न ध्वनि की तीव्रता अधिक होती है। यही कारण है कि स्वरित्र द्विभुज की ध्वनि हमें घण्टे की ध्वनि से धीमी सुनाई पड़ती हैं। वायु यदि ध्वनि की चाल की दिशा में बह रही हैं, तो ध्वनि की चाल एवं तीव्रता दोनों बढ़ जाती है।
ध्वनि तीव्रता (कठ में) ध्वनि के स्त्रोत तीव्रता (कठ में)
साधारण बातचीत 30-40 मोटर साइकिल 110
जोर से बातचीत 50-60 साइरन 110-120
ट्रक, ट्रैक्टर 90-100 जेट विमान 140-150
आरकेस्ट्रा 100 मशीनगन 170
विद्युत मोटर 110 मिसाइल 180
विश्व स्वास्थ्य संगठन ॅण्भ्ण्व्ण् के अनुसार 45 डेसीबल ध्वनि मानव के लिए सर्वोत्तम होती है। ॅण्भ्ण्व्ण् ने 75 डेसीबल से ऊपर की ध्वनि को मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना है। यों तो एक साधारण मानव ज्यादा-से-ज्यादा 130 डेसीबल तक ) तीव्रता वाली ध्वनि सुन सकता है, लेकिन 85 डेसीबल से अधिक ध्वनि में व्यक्ति बहरा हो सकता है और 150 डेसीबल की ध्वनि तो व्यक्ति को पागल बना सकता है।
2. तारत्व- तारत्व, ध्वनि का वह लक्षण है, जिसके कारण ध्वनि को मोटा या तीक्ष्ण कहा जाता है। तारत्व आवृत्ति पर निर्भर करता है। जैसे-जैसे ध्वनि की आवृत्ति बढ़ती है, वैसे-वैसे ध्वनि का तारत्व बढ़ता जाता है तथा ध्वनि तीक्ष्ण अथवा पतली होती जाती है। बच्चों एवं स्त्रियों की पतली आवाज तारत्व अधिक होने के कारण ही होती है। पुरूषो की मोटी आवाज तारत्व कम होने के कारण होती है। चिड़ियों की आवाज, सोनीमीटर के पतले तने हुए पतले तार से निकलने वाली ध्वनि, मच्छरों की भनभनाहट, अधिक तारत्व की ध्वनियों के उदाहरण है। ध्वनि के तारत्व का ध्वनि की तीव्रता से कोई संबंध नहीं होती है। अधिक प्रबल ध्वनि का तारत्व कम अथवा अधिक कुद भी हो सकता है। जैसे-शेर की दहाड़ एक तीव्र (प्रबल) ध्वनि हैं, लेकिन इसका तारत्व बहुत ही कम होता है, जबकि मच्छर की भनभनाहट एक धीमी ध्वनि है लेकिन इसका तारत्व शेर की दहाड़ से अधिक होता है।
3. गुणता– ध्वनि का वह लक्षण जिसके कारण समान तीव्रता तथा समान तारत्व की ध्वनियों में अन्तर प्रतीत होता है, गुणता कहलाता है। गुणता अधिस्वर पर निर्भर करता है। समान तीव्रता तथा समान तारत्व की ध्वनियों में अन्तर प्रतीत होने का कारण यह है कि ध्वनियों में मूल स्वरक के साथ-साथ विभिन्न संख्या में संनादी उपस्थित रहते है। कोई स्वर एक ही आवृत्ति का नही होता है। उसमें ऐसे भी स्वरक मिले होते हैं, जिनकी आवृत्तियाँ विभिन्न होती हैं। जिस आवृत्ति के स्वरक की प्रधानता रहती है, उसे मूल स्वरक कहते हैं। बाकी स्वरकों को संनादी स्वरक कहते है, इनकी आवृत्तियाँ मूल स्वरक की दुगुनी, तिगुनी आदि होती हैं। इन संनादी स्वरकों की मात्रा की विभिन्नता के कारण स्वर का रूप बदल जाता है। इनकी संख्या तथा आपेक्षिक तीव्रता विभिन्न ध्वनियों में भिन्न-भिन्न होती है। अतः ध्वनि की गुणता संनादी स्वरों की संख्या, क्रम तथा आपेक्षिक तीव्रता पर निर्भर करती है। गुणता के भिन्नता के कारण ही हम अपने परिचितों की आवाज सुनकर पहचान लेते है। इसी की भिन्नता के कारण कारण हम दो वाद्ययंत्रों से उत्पन्न समान तीव्रता एवं समान आवृत्ति की ध्वनियों को स्पष्ट रूप से पहचान लेते है।
यदि एक बन्द आर्गन पाइप तथा एक खुले आर्गन पाइप से समान आवृत्ति का मूल स्वरक उत्पन्न हो रहा हो, तो भी दोनों से उत्पन्न ध्वनियों की गुणता भिन्न-भिन्न होती है, क्योंकि बन्द पाइप से निकलने वाली ध्वनि में केवल विषम संनादी उपस्थित होते हैं, जबकि खुले पाइप से निकलने वाली ध्वनि मे सम तथा विषम दोनों संनादी उपस्थित रहते है। मूल स्वरक से अधिक आवृत्ति वाले संनादियों को अधिस्वरक कहते हैं।
स्वर अन्तराल- जब कोई वाद्ययंत्र केवल एक ही आवृत्ति की ध्वनि उत्पन्न करता है, तो उसे स्वर कहते है। एक साथ दो स्वरों को बजाने पर उनका प्रभाव उनकी आवृत्तियों के अन्तर पर निर्भर नहीं करता, अपितु उनके अनुपात पर निर्भर करता है। दो स्वरों की आवृत्तियों के अनुपात को स्वर अन्तराल कहते हैं।
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