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Categories: sociology

श्रम विभाजन के प्रकार types of division of labour by emile durkheim in hindi श्रमिक विभाजन

types of division of labour by emile durkheim in hindi श्रम विभाजन के प्रकार श्रमिक विभाजन ?

 श्रम विभाजन के प्रकार्य
जैसा कि आपने पहले पढ़ा है दर्खाइम ने समाजों का निम्नलिखित वर्गीकरण किया।
I) “यांत्रिक एकात्मता” पर आधारित समाज
II) “सावयवी एकात्मता‘‘ पर आधारित समाज

I) यांत्रिक एकात्मता
जैसा कि आपको मालूम है, यांत्रिक एकात्मता से अभिप्राय है समरूपता अथवा एक जैसा होने की एकात्मता । ऐसी अनेक समरूपताएं तथा घनिष्ठ सामाजिक रिश्ते होते हैं जो व्यक्ति को उसके समाज से बांधे रहते हैं। सामूहिक चेतना अत्यंत सुदृढ़ होती है। सामूहिक चेतना से हमारा अभिप्राय उन समान विश्वासों तथा भावनाओं से है जिनके आधार पर समाज के लोगों के आपसी संबंध परिभाषित होते हैं। सामूहिक चेतना की शक्ति इस प्रकार के समाजों को एकजुट रखती है और व्यक्तियों को दृढ़ विश्वासों और मूल्यों के माध्यम से जोड़े रखती है। इन मूल्यों को उपेक्षा या उल्लंघन को बहुत गंभीर माना जाता है। दोषी लोगों को कठोर दण्ड मिलता है। यहां यह बताना आवश्यक है कि यांत्रिक एकात्मता पर आधारित समाज में एकरूपता अथवा समरूपता की एकात्मता है। व्यक्तिगत भिन्नताएं बहुत कम होती हैं तथा श्रम का विभाजन अपेक्षाकृत सरल स्तर का होता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इस प्रकार के समाजों में व्यक्तिगत चेतना सामूहिक चेतना में विलीन हो जाती है।

II) सावयवी एकात्मता
सावयवी एकात्मता से दर्खाइम का तात्पर्य है भिन्नताओं एवं भिन्नताओं की पूरकता पर आधारित एकात्मता। एक कारखाने का उदाहरण लें। वहां कामगार तथा प्रबंधक के कार्य, आय, सामाजिक प्रस्थिति आदि में काफी अंतर है। किन्तु साथ ही वे एक-दूसरे के पूरक हैं। श्रमिकों के बिना प्रबंधक का होना व्यर्थ है और श्रमिकों को संगठित होने के लिए प्रबंधकों की आवश्यकता है। उनका अस्तित्व ही एक दूसरे पर निर्भर है।

सावयवी एकात्मता पर आधारित समाज औद्योगीकरण के विकास से प्रभावित और परिवर्तित होते हैं। इसलिए श्रम विभाजन इस प्रकार के समाजों का उल्लेखनीय पक्ष है। सावयवी एकात्मता पर आधारित समाज वे समाज होते हैं, जिनमें विषमता, भिन्नता तथा विविधता होती है। विषमरूपी समाज में बढ़ती हुई ये जटिलता विभिन्न तरह के व्यक्तित्व में संबंधों तथा समस्याओं में प्रतिबिंबित होती है। ऐसे समाजों में व्यक्तिगत चेतना विशिष्ट हो जाती है और सामूहिक चेतना दुर्बल होने लगती है। व्यक्तिवाद का महत्व उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है। यांत्रिक एकात्मता में सामाजिक प्रतिमान का जो बंधन व्यक्तियों पर रहता है, वह ऐसे समाजों में ढीला पड़ जाता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा स्वायत्तता का सावयविक एकात्मता पर आधारित समाज में उतना ही महत्व होता है, जितना सामाजिक एकात्मता का महत्व यांत्रिक एकात्मता पर आधारित समाजों में होता है।

क्या इसका अर्थ यह है कि आधुनिक समाज में एकीकरण की कोई आवश्यकता नहीं है? दर्खाइम का कहना है कि श्रम विभाजन ऐसी प्रक्रिया है, जो समाज को एकजुट रखने में सहायक होगी। किन्तु यह कैसे होगा? जैसे कि हमने पहले देखा है, श्रम विभाजन का अर्थ कुछ खास कामों को मिल-जुलकर करना है। दूसरे शब्दों में इसे सहयोग कहा जा सकता है। काम में अधिक विभाजन के साथ साथ दो मुख्य परिणाम सामने आते हैं। एक ओर तो प्रत्येक व्यक्ति अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ है जिससे अपने विशेष क्षेत्र में नई पहल तथा सृजन का समावेश संभव है। दूसरी ओर, व्यक्ति की समाज पर अधिकाधिक निर्भरता होती जाती है। सहयोग तथा पूरकता इस प्रकार के समाजों के अनिवार्य तत्व होते हैं। दर्खाइम के अनुसार, इस प्रक्रिया से उत्पन्न सावयविक एकात्मता यांत्रिक एकात्मता की तुलना में उच्च स्तर की होती है। इससे यह संभव होता है कि व्यक्ति अपनी पहल और स्वंतत्रता से काम लें और साथ ही एक-दूसरे से तथा समाज से जुड़े रहें। इस प्रकार जो प्रक्रिया व्यक्तिवाद तथा सामाजिक एकता दोनों के विकास में सहायक है, वह है श्रम विभाजन । इस अवधारणा के तात्पर्य को पूरी तरह से समझने हेतु सोचिए और करिए 1 को पूरा करें।

सोचिए और करिए 1
घर-परिवार में श्रम का विभाजन कैसे होता है? निम्नलिखित मुद्दों पर लगभग दो पृष्ठ की टिप्पणी लिखिए। प) कार्य का स्वरूप और विभाजन पप) घर-परिवार को सुचारू रूप से चलाने के लिए श्रम-विभाजन किस हद तक सहायक अथवा बाधक सिद्ध होता है। यदि संभव हो तो अध्ययन केन्द्र के अन्य विद्यार्थियों की टिप्पणियों से अपनी टिप्पणी का मिलान कीजिए।

आइए, अब हम दर्खाइम द्वारा बताए गए श्रम विभाजन के कारणों का विवेचन करें।

श्रम विभाजनः दर्खाइम और मार्क्स
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
सामाजिक-आर्थिक परिवेश और श्रम विभाजन से तात्पर्य
सामाजिक-आर्थिक परिवेश
श्रम विभाजन से तात्पर्य
श्रम विभाजन और आर्थिक प्रगति
श्रम विभाजन पर दर्खाइम के विचार
श्रम विभाजन के प्रकार्य
श्रम विभाजन के कारण
श्रम विभाजन के असामान्य रूप
श्रम विभाजन पर मार्क्स के विचार
सामाजिक श्रम विभाजन तथा औद्योगिक श्रम विभाजन
औद्योगिक श्रम विभाजन के परिणाम
मार्क्स द्वारा समस्या का हलः क्रांति और बदलाव
दर्खाइम तथा मार्क्स के विचारों की तुलना
श्रम विभाजन के कारण
श्रम विभाजन के परिणाम
श्रम विभाजन के संबंधित समस्याओं के समाधान
समाज के बारे में दर्खाइम का ‘‘प्रकार्यात्मक‘‘ मॉडल और मार्क्स का “संघर्ष‘‘ मॉडल
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आपके लिए संभव होगा ।
ऽ दर्खाइम की पुस्तक डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी में व्यक्त श्रम विभाजन के विचारों का विवेचन करना
ऽ श्रम विभाजन पर कार्ल मार्क्स के विचार प्रस्तुत करना
ऽ श्रम विभाजन पर दर्खाइम और मार्क्स के विचारों की तुलना करना।

प्रस्तावना
इस इकाई में हमने “श्रम विभाजन‘‘ पर एमिल दर्खाइम तथा मार्क्स के विचारों में समानताओं और विषमताओं का अध्ययन किया है।

प्रारम्भ में, भाग 20.2 में उस सामाजिक-आर्थिक परिवेश की संक्षेप में चर्चा ही जायेगी जिसमें इन दोनों चिंतकों ने अपने विचार व्यक्त किए। इसके पश्चात् ष्श्रम विभाजनष् की अवधारणा की व्याख्या की जाएगी।

भाग 20.3 में हमने श्रम विभाजन के संबंध में एमिल दर्खाइम के विचारों को समझने का प्रयास किया है। ये विचार उस ने पी एच डी. डिग्री के लिए प्रस्तुत अपने शोध प्रबंध “द डिवीजन ऑफ लेबर सोसाइटी‘‘ (1893) में प्रस्तुत किये थे।

भाग 20.4 में इस विषय पर कार्ल मार्क्स के दृष्टिकोण का विवेचन किया जाएगा।
अंतिम भाग 20.5 में इन दोनों विचारकों के दृष्टिकोणों की तुलना की जाएगी।

 सामाजिक-आर्थिक परिवेश और ‘‘श्रम विभाजन” से तात्पर्य
इन उप-भागों में प्रारम्भ में हमने दर्खाइम तथा मार्क्स के समय की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था की जानकारी दी है। इससे उनके विचारों को अच्छी तरह समझने में सहायता मिलेगी। इसके बाद हमने यह जानने का प्रयास किया है कि ‘‘श्रम विभाजन‘‘ से तात्पर्य क्या है और इसमें क्या-क्या बातें शामिल है? श्रम विभाजन क्यों होता है? इस भाग में हमने इन्हीं पक्षों की चर्चा की है।

 सामाजिक-आर्थिक परिवेश
दर्खाइम तथा मार्क्स के जीवन-काल में यूरोप में “औद्योगिक क्रांति‘‘ चल रही थी। इस पाठ्यक्रम में आपने पहले ही पढ़ा है कि औद्योगिक क्रांति के दौरान उत्पादन की तकनीकों में परिवर्तन हुए। छोटे स्तर पर घरेलू और कुटीर उत्पादन के स्थान पर कारखानों में व्यापक उत्पादन होने लगा।

यह परिवर्तन आर्थिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहा। शहरों और उनकी जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई और इसके साथ ही गरीबी, अपराध वृद्धि तथा अन्य समस्याएं सामने आईं। सामाजिक स्थिरता और व्यवस्था पर भी आँच आने लगी। परम्परागत सामंतवादी समाज व्यवस्था डगमगा उठी और आधुनिक औद्योगिक समाज का जन्म हुआ। इस बदलते हुए समाज को समझने के प्रयास दर्खाइम और मार्क्स द्वारा किये गये। हमें यह देखना है कि किस प्रकार श्रम विभाजन की प्रक्रिया के प्रति उन्होंने भिन्न दृष्टिकोण अपनाये। यह प्रक्रिया औद्योगीकरण के कारण दिनों-दिन महत्वपूर्ण होती जा रही थी।

आइए, अब हम यह समझने की कोशिश करें कि श्रम विभाजन से तात्पर्य क्या है।

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