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तुहफत उल मुवाहिदीन किसके द्वारा लिखा गया था , भाषा tuhfat ul muwahhidin written by in hindi
पढेंगे कि तुहफत उल मुवाहिदीन किसके द्वारा लिखा गया था , भाषा tuhfat ul muwahhidin written by in hindi ?
प्रश्न: राजा राममोहन राय के सामाजिक, धार्मिक एवं शिक्षा के संबंध में विचारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर: धार्मिक दृष्टिकोण: धार्मिक क्षेत्र में रूढ़िवादी प्रथाओं का विरोध एवं एकेश्वरवाद का समर्थन किया।
1. एकेश्वरवाद का समर्थन: उपनिषदों के ‘अद्वैतवाद‘ एवं कुरान के तौहीद (एक ईश्वर) पर आधारित। समर्थन में ग्रंथ लिखा – तुहफत-उल-मुवाहिदीन (फारसी)
2. सार्वभौम धर्म एवं नैतिकता पर बल: इसकी सामाजिक उपयोगिता एवं महत्व पर विचार।
3. धर्म के प्रति तार्किक एवं बौद्धिक दृष्टिकोण: रहस्यात्मक एवं पारलौकिक अवधारणा नहीं।
4. धार्मिक सहिष्णुता का समर्थन किया।
5. परम्परागत हिन्दू धर्म के सुधार पर बल: मूर्ति-पूजा, बलि-प्रथा, अवतारवाद, कर्मकाण्ड, आडम्बर, मिथ्याचार आदि का विरोध।
राय ने धर्म को एक आध्यात्मिक व दार्शनिक अवधारणा के रूप में स्वीकारा है। इसके तहत विभिन्न सिद्धान्त प्रतिपादित कर हिन्दू समाज में पुनर्जागरण की उस धारा को जन्म दिया जिसने हिन्दू समाज के सभी पक्षों को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया।
सामाजिक दृष्टिकोण: राजा राममोहन राय का सामाजिक दृष्टिकोण आधुनिक एवं प्रतिक्रियावादी था।
1. परम्परावाद एवं अनुदारवाद का विरोध।
2. जाति प्रथा एवं सामाजिक अन्याय का विरोध।
3. राममोहन राय ने नारी की सामाजिक स्थिति के सम्बन्ध में जो विचार रखे उनका आधार शास्त्रीय था।
(i) सामाजिक जीवन में स्त्री की शक्ति एवं गौरव में विश्वास, आधार शास्त्रीय-वैदिक व अन्य धर्मशास्त्र।
(ii) स्त्रियों के दुरावस्था के कारण और निवारण के कारण – सती-प्रथा, पर्दा-प्रथा, पति की सम्पत्ति में अधिकार का अभाव, स्त्री शिक्षा का अभाव, बाल विवाह, बहु विवाह, विधवा विवाह नहीं। बड़े भाई जगमोहन राय की मृत्यु 1811 में होने पर उनकी भाभी को ही सती करवा दिया। विधवा को सम्पत्ति में अधिकार तथा महिला शिक्षा पर – विशेष जोर दिया। नारद, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, बृहस्पति आदि स्मृतियों के प्रमाणों के आधार का सर्मथन।
‘‘हिन्दू उत्तराधिकार कानून के अनुसार स्त्रियों के अधिकार और इनके आधुनिक अतिक्रमण से संबंधित टिप्पणियाँ।‘‘ नामक निबंध लिखा जो 1822 में प्रकाशित हुआ।
सामाजिक आधुनिकीकरण का समर्थन: भारतीय समाज का पुनर्गठन – धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक-न्याय, व्यक्ति की स्वतंत्रता, आधुनिक शिक्षा पद्धति, सामाजिक, आर्थिक सुधार आदि यह उपयोगितावादी दृष्टिकोण था। परम्पराओं, अबुद्धिवाद एवं अन्ध-विश्वासों से जकड़े समाज में जागृति लाने के लिए प्राचीन शास्त्रों की आधुनिक व्याख्या की एवं यूरोपीय समाज की लाभपूर्ण प्रवृत्तियों को अपनाने पर जोर दिया।
शिक्षा सम्बन्धी विचार: शिक्षा के संबंध में उनका उपयोगितावादी एवं आधुनिक दृष्टिकोण था।
1. शिक्षा के उद्देश्य-उपयोगितावादी दृष्टिकोण रू भारतीय समाज को मध्ययुगीन अन्धकार से निकालकर आधुनिक युग में ले जाना ताकि भारत विश्व के विकसित एवं समृद्ध राष्ट्रों की श्रेणी में आ सकें। शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर सर्वाधिक जोर।
2. राष्ट्रीय उद्देश्यों की प्राप्ति का उपयोगी साधन के रूप में
(i) मध्ययुगीन शिक्षा-पद्धति का विरोध (अनुदारवादी, संकीर्ण तथा परम्परावादी थी)
(ii) भारतीय दर्शन एवं संस्कृति के अध्ययन का महत्व एकेश्वरवादी – 1825 वेदान्त कॉलेज प्राचीन शास्त्रों का बंगला में अनुवाद।
(iii) पाश्चात्य शिक्षा-पद्धति एवं पाठ्यक्रम का पूर्ण समर्थन, सामाजिक विज्ञानों, प्राकृतिक दर्शन, प्राकृतिक विज्ञानों के सम्मेलन पर जोर। अंग्रेजी भाषा एवं पाश्चात्य शिक्षा पद्धति पर जोर। 1823 में लार्ड एमहर्स्ट को पत्र लिखा –
‘‘भारतीये के अज्ञान के अंधकार में रखने के लिए‘‘
पाश्चात्य शिक्षा एवं साहित्य के विकास के लिए प्रयास: अंग्रेजी स्कूल कलकत्ता (1817), हिंदू कॉलेज (1822) ईसाई मिशनरियों को अंग्रेजी स्कूल खोलने का प्रोत्साहन।
(पअ) सार्वजनिक और निःशुल्क शिक्षा तथा बालिका शिक्षा के कट्टर समर्थन थे।
प्रश्न: राजा राममोहन राय के आर्थिक एवं राजनीतिक विचार प्रासंगिक थे। विवेचना कीजिए।
उत्तर: आर्थिक विचार: आर्थिक विचारों के संदर्भ में राजा राममोहनराय जर्मी बेंथम के उपयोगितावादी दर्शन से प्रभावित थे उन्होंने आर्थिक संबंध में निम्नलिखित विचार दिए।
1. निजी सम्पत्ति एवं स्वामित्व का समर्थन – प्राचीन भारतीय परम्परा एवं विधियों के आधार पर।
2. काश्तकारों के शोषण को रोकने का सुझाव।
3. सरकारी खर्चों को घटाने का समर्थन।
4. भारत की आर्थिक उन्नति का समर्थन।
ऽ यूरोपीय उद्योगपतियों व पूँजीपतियों को भारत में बसने का समर्थन।
ऽ स्वतंत्र व्यापार की नीति का समर्थन।
ऽ उद्योगों की स्थापना की माँग।
राजनीतिक विचार: आधुनिक भारत के इतिहास में राममोहन राय को प्रथम राजनीतिक विचारक होने का गौरव प्राप्त है। वह पहला व्यक्ति था जिसने आधुनिक अर्थ में भारत को एक राष्ट्र माना और राजनीति पर विचार प्रस्तुत किये। पाश्चात्य व्यक्तिवादी विचारधारा का समर्थन किया लेकिन अन्धानुकरण नहीं। प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिन्तन की मान्यता के अनुसार प्रजा के सामान्य कल्याण व हित के लिए राज्य को उसके सामाजिक आर्थिक जीवन में हस्तक्षेप का अधिकार होना चाहिए।
1. व्यक्ति की स्वतंत्रता पर विचार: प्राकृतिक अधिकार एवं उन पर आधारित स्वतंत्रताओं में गहरी आस्था, जीवन, सम्पत्ति के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर दिया।
2. राज्य के कार्य क्षेत्र के बारे में विचार: उपयोगितावादी एवं नैतिक आधार पर राज्य का समर्थन किया। राज्य एवं व्यक्ति के हित परस्पर अनुपूरक सामाजिक, आर्थिक सुधार, शिक्षा प्रसार आदि के लिए कानून बनाने का अधिकार रखता है।
3. सभी राष्ट्रों की स्वतंत्रता का समर्थन: विशिष्ट कारणों से भारत में ब्रिटिश शासन के अस्थायी रूप से समर्थन लेकिन समाजिक रूप से सभी राष्ट्रों की पूर्ण स्वतंत्रता का समर्थन किया।
4. निरंकुश शासन का विरोध तथा लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक शासन का समर्थन किया।
5. प्रेस व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन: इसके द्वारा सामान्य जनता को शिक्षित एवं जागरूक बनाना चाहते थे। शासन में उत्तरदायित्व की भावना में वृद्धि लाना चाहते थे।
6. प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार सम्बन्धी विचार
ऽ जमींदारी व्यवस्था में सुधार-काश्तकारों का शोषण नहीं।
ऽ लगान वृद्धि की बजाय विलासिता कर पर जोर;
ऽ प्रशासनिक व्यय में कमी।
ऽ प्रशासनिक में प्रमुख एवं उत्तरदायित्वपूर्ण पदों पर योग्य भारतीयों की नियुक्ति का समर्थन किया।
ऽ नागरिक सेवाओं में भर्ती की न्यूनतम आयु 22 वर्ष पर जोर।
ऽ स्थायी सेना की संख्या में कमी पर जोर दिया।
विधि एवं न्याय: ‘भारत की राजस्व एवं न्याय व्यवस्था की व्याख्या।‘ नामक अपनी पुस्तक में राजाराममोहन राय ने निम्नलिखित विचार रखें-
(प) भारत के लिए कानून निर्माण का कार्य ब्रिटिश संसद करे।
(पप) शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का समर्थन।
(पपप) विधि के दो स्त्रोत – लोगों की इच्छा व संप्रभु के आदेश।
(पअ) दीवानी एवं फौजदारी कानूनों का सहिंताकरण।
(अ) ज्यूरी व्यवस्था का समर्थन।
(अप) धर्म निरपेक्षता का समर्थन।
(अपप) ब्रिटिश शासन के प्रति झुकाव।
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