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तुगलकाबाद का किला किसने बनवाया था | tughlaqabad fort was built by whom in hindi ruler name

tughlaqabad fort was built by whom in hindi ruler name तुगलकाबाद का किला किसने बनवाया था ?
तुगलक वास्तुकला (Tughlaq Architecture)
तुगलक वंश के शासकों ने खिलजी कालीन इमारतों की भव्यता एवं सुन्दरता के स्थान पर इमारतों की सादगी एवं विशालता पर अधिक जोर दिया। उनके स्थापत्य में समकालीन राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक समस्याओं की झलक मिलती है। पूर्ववर्ती शासकों
के विरुद्ध तुगलक शासकों ने सादंगी एवं मितव्ययिता की नीति अपनाई। खिलजी सुल्तानों के आडंबर और दिखावे की प्रतिक्रिया और खस्ता माली हालत के चलते निर्माण के लिए अच्छे सामान के बदले मलबानुमा सामान ज्यादा प्रयोग में लाया गया। उस समय की इमारतों से यह बात भी स्पष्ट होती है कि मंगोलों के आक्रमण के भय के कारण तुगलक युग के पहले चरण में इनका निर्माण जल्दबाजी में हुआ और पुरानी विशेषताओं जैसे संगमरमर और बलुआ पत्थर का मिला-जुला प्रयोग एवं मेहराब की सजावट में छोटे-छोटे कंगूरों का प्रयोग हुआ। हालाँकि खिलजी युग जैसा आनुपातिक और सौंदर्यात्मक सौष्ठव त्याग दिया गया। युगीन इमारतों में ढलान (अरबी इमारतों की तरह), अच्छी नक्काशी का अभाव, आठ भुजाओं वाले आधार पर बनी संगमरमर की सफेद गुंबद की विशेषताएं देखी जा सकती हैं। तुगलक युग के दूसरे चरण में इमारतें ज्यादा संख्या में लेकिन स्तरहीन ही रहीं। इस चरण में सादेपन की जगह आड़े तिरछे छज्जे झरोखों, छतरियों और मंडपों ने ले ली। सजावट का मुख्य काम मेहराब पर हुये प्लास्टर पर हुआ। एक नई बात यह भी सामने आई कि मस्जिदों का आधार पारंपरिक होने के बजाए श्क्रॉसश् आकार यानी समकोण बनाती दो कतारों वाला होने लगा और पश्चिमी दीवार को तीन मुख्य प्रवेशद्वार आपस में जोड़ने लगे। तुगलक काल के दूसरे दौर में बाहर की ओर उभरे विशाल प्रवेशद्वार, गुंबदों वाली छतें और ढलवां दीवारें मुख्य विशेषताएँ बनकर उभरीं। फिरोज के कार्यकाल में दो प्रकार की मस्जिदें बनी, पहली ऐसी जिनमें बीच में प्रांगण और उसके तीन बारजे (Cloisters), पश्चिम की ओर प्रवेश द्वार और इबादतखाना बनाया गया। इन्हें एकांगना मस्जिद कहा गया। दूसरी प्रकार की मस्जिदें चतुरांगना कहलाईं जिनमें अंदर की ओर चार आंगन और बीच में दालान एवं किनारों पर चैकोर एवं स्वतंत्र छतरी जैसे छत वाले इबादतखाने बनाये गये। इस काल की प्रमुख इमारतें निम्नलिखित हैं-

तुगलकाबाद का किला (Tughlaqabad Fort)े
गयासुद्दीन तुगलक (1321-25) ने किलेबंदी वाले तुगलकाबाद नगर का निर्माण करवाया था जो दिल्ली का तीसरा नगर था। पहाड़ियों पर खड़ी भूरे अनगढ़ पत्थरों की टूटी दीवारों वाले तुगलकाबाद को वास्तुशिल्प की दृष्टि से एक दुर्ग के रूप में स्थापित किया गया था। यह ऊँचे-नीचे सतह वाला आयताकार किला दो भागों में बंटा है। दक्षिणी दीवारों के साथ-साथ नगर दुर्ग और महल इसका एक भाग है और इसके उत्तर में बसा नगर दूसरा भाग है। इस किले की दीवारें तुगलक काल की अन्य दीवारों की तरह ढलवां या सलामी हैं। इस किले की नींव और दीवारें बहुत मोटी हैं और अनगढ़ पत्थरों से बनी हैं। गयासुद्दीन के उत्तराधिकारी मुहम्मद बिन तुगलक (1325-51.) ने तुगलकाबाद के दक्षिण में स्थित पहाड़ी पर ‘आदिलाबाद‘ का एक छोटा-सा किला बनवाया था जिसके साथ यह निर्माण की मुख्य विशेषताओं को साझा करता है। इस दुर्ग को ‘छप्पन कोट‘ के नाम से भी जाना जाता है। तुगलकाबाद नगर में प्रवेश के लिए 52 द्वार बनाये गये थे। राजमहल के निर्माण में टाइलों का उपयोग किया गया था। सम्भवतः मंगोलों के आक्रमण के भय से इसका निर्माण जल्दबाजी में किया गया जिससे उसमें विशिष्ट शैली तथा कला का अभाव सर्वत्र दिखाई देता है।

गयासुद्दीन का मकबरा (Tomb of Ghiyasuddin)
तुगलकाबाद किले के मुख्य प्रवेश द्वार के पारस गयासुद्दीन तुगलक का मकबरा है। इसका अग्रभाग लाल बलुआ पत्थरों से बना है जिसे संगमरमर द्वारा उभारा गया है। अनियमित पंचभुज आकार वाला यह मकवरा ऊँची दीवारों से घिरा है। मूल रूप में यह एक कृत्रिम जलाशय में खड़ा था और एक पक्के नदी पथ द्वारा तुगलकाबाद से जुड़ा हुआ था। (इसकी भी दीवारें चैड़ी हैं और भीतर की भीतर की ओर झुकी हैं।)

जहाँपनाह नगर (Jahanpanah Nagar)
मुहम्मद तुगलक ने इस नगर की स्थापना रायपिथौरा एवं सीरी को मिला कर करवाई थी। नगर के चारों तरफ 12 गज मोटी दीवार सुरक्षा के दृष्टिकोण से बनाई गई थी। इस नगर के अवशेषों में सिंचाई की सुविधा के लिए सतपुला, सेना की गतिविधियाँ देखने के लिए बिजाई मंडल इमारत आदि प्रमुख हैं।

कोटला फिरोजशाह (Kotla Firoz Shah)
फिरोजाबाद, फिरोजशाह तुगलक द्वारा निर्मित दिल्ली का पाँचवां नगर है जिसे कोटला फिरोजशाह भी कहते हैं। इसके घेरे की बड़ी-बड़ी ऊँची दीवारें हैं जो यमुना नदी के साथ-साथ सटी हुई हैं। इसमें पश्चिम में स्थित गढ़ के मुख्य द्वार से प्रवेश होता है। इसमें महल, स्तंभ लगा हॉल, मस्जिद, टावर और बावड़ी (कुआँ) बने हुए हैं। इनमें दो इमारतें जामा मस्जिद, और मौर्य सम्राट अशोक की लाट है। जामा मस्जिद का एक बड़ा आंगन है और संपूर्ण संरचना कोठरियों की श्रृंखलाओं पर बनी एक पिरामिडनुमा इमारत है जिसकी प्रत्येक मंजिल का भाग कम होता चला जाता है। इसकी सबसे ऊपरी मंजिल पर पत्थर की रेलिंग के बीच अशोक स्तंभ लगाया गया है। अशोक का दूसरा स्तम्भ ‘कुश्क-ए-शिकार‘ महल के सामने गड़ा है। कुश्क-ए-शिकार फिरोज शाह द्वारा बनवाया गया महल है और इसका प्रयोग बतौर शिकारगाह होता था। इस महल में अब दो इमारतें चैबुर्जी मस्जिद और पीर गैब ही शेष हैं।
इसके अलावा इस युग में दिल्ली में फिरोजशाह का मकबरा, बूली भटियारी का महल, दरगाह हजरत रोशनचिराग; दिल्ली, सलाउद्दीन का मकबरा, निजामुद्दीन औलिया की दरगाह, अमीर खुसरों का मकबरा, कबीरुद्दीन का मकबरा या लाल गुंबद (रकाबवाला गुम्बद्), चिड़ियाघर आदि इमारतें बनवाईं गईं। इसके अलावा फिरोज शाह तुगलक के वजीर ख़ान-ए-जहाँ तेलंगानी का उसके पुत्र द्वारा बनवाया गया अष्टकोणीय मकबरा भी बहुत प्रसिद्ध है। कुछ मस्जिदें जैसे खिड़की मस्जिद, काली मस्जिद, बेगमपुरी मस्जिद, कला मस्जिद, संचार मस्जिद आदि और फिरोजशाह के बेटे फतह खां का मकबरा (कदम शरीफ) बनवाईं गईं। इनके अलावा दिल्ली में वजीराबाद में यमुना नदी के तट पर किसी फकीर का मकबरा भी इसी काल का है। यहाँ एक पुल भी है जिसे शाहआलम पुल भी कहा जाता है। मंगोल हमलावर तैमूर लंग ने बागपत व लोनी की तरफ से यमुना पार करने के बाद इसी जगह डेरा डाला (1398-99) एवं यहीं से दिल्ली में प्रवेश किया और कत्लेआम करवाया। तैमूर को कोटला में बनी मस्जिद का स्थापत्य बहुत पसंद आया और वह इसका डिजायन अपने साथ समरकंद ले गया और वहाँ ऐसी ही मस्जिद तामीर करवाई।

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