JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: indian

trent council 1545 in hindi , ट्रेंट काउंसिल क्या थी , इटली में ट्रेंट कौंसिल से आप क्या समझते हैं ?

जाने trent council 1545 in hindi , ट्रेंट काउंसिल क्या थी , इटली में ट्रेंट कौंसिल से आप क्या समझते हैं ?

प्रश्न: ट्रेंट कॉन्सिल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: इटली में ट्रेंट नामक स्थान पर 1545 में कैथोलिक चर्च की एक परिषद बुलाई गयी। जिसमें कैथोलिक चर्च में सुधार लाने के लिए निर्णय लिए, जो निम्न थे –
1. भविष्य में चर्च का कोई पद बेचा नहीं जायेगा।
2. धर्माधिकारी कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वाह करें।
3. पादरियों को प्रशिक्षित किया जायेगा।
4. आवश्यकतानुसार जनभाषा में उपदेश देना।
5. पादरियों को सादा व कठोर जीवन बिताना होगा।
पोप कैथोलिक चर्च का प्रधान है, धर्म ग्रंथों की व्याख्या का अधिकार केवल चर्च के पास है।

प्रश्न: लूथरवाद एवं काल्विनवाद दोनों में समानताओं के साथ अंतर भी मौजूद थे। विवेचना कीजिए।
उत्तर: लूथर और काल्विन-एक तुलना: दोनों ने करीब-करीब एक ही समय कैथोलिक चर्च का विरोध कर पृथक्-पृथक् सम्प्रदाय खड़े किये। दोनों ने ईसा मसीह और बाईबिल को पूर्णतः स्वीकार किया लेकिन पोप की सत्ता को नकारा। दोनों ने विशेषकर मध्यमवर्ग को प्रभावित किया। दोनों ने आडम्बर का विरोध किया।
लूथर एवं काल्विन की विचारधाराओं में अंतर
1. लूथर चर्च को बिना पूरी तरह नकारे थोड़े परिवर्तनों से संतुष्ट था जबकि काल्विन अधिक परिवर्तन का पक्षपाती था।
2. लूथर राज्य और धर्म के बीच स्पष्ट रेखा नहीं खींच सका। काल्विन ने स्पष्ट विभाजन किया।
3. लूथर चमत्कारों का पक्षधर था, काल्विन ने इन्हें नकार दिया।
4. लूथर आस्था को मुक्ति का उपाय मानता था, काल्विन नियतिवाद को।
5. लूथर ने अनुयायियों के आचार-विचार पर विशेष ध्यान नहीं दिया जबकि काल्विन कठोर अनुशासन का पक्षधर था।

कला जगत के शिलास्तम्भ
‘मुसाफिर’, जिनमें एक मनहूस, दाढ़ी वाले राहगीर का चित्र खींचा गया है, बड़ी ही सजीवता से आंके गए खतरनाक रास्तों में मानव के संघर्ष और घोर श्रम का दिग्दर्शन कराया गया है। गांधीजी की डांड़ी यात्रा की विशाल मूर्तियां इनकी विशाल रचनाएं हैं जो दिल्ली में प्रस्थापित है।
रायचैधरी की बहुमुखी प्रतिभा अनेक रूपों और विभिन्न धाराओं में विकसित हुई है। इनकी कला की अपनी गिजी शैली और खूबी हैं, फिर भी, सभी शैलियां और कला परंपराएं उनमें समाहित हो गई हैं। रायचैधरी का महत्व पाश्चात्य एवं पूर्व की कला तकनीकी एवं दृष्टिकोणों के सामंजस्य तक ही सीमित नहीं है, अपितु मद्रास स्कूल के रूप में अपनी गिजी कला-शैली प्रस्थापित कर कला के क्षेत्र में इन्होंने युगांतर उपस्थित कर दिया है।
पुलिन बिहारी दत्त कलकत्ता में देवी प्रसाद रायचैधरी और प्रमोद कुमार चटर्जी के समकालीन थे और उन्हीं की भांति अवनींद्रनाथ ठाकुर के शिष्य भी, पर एकांत अनुभूति और रागात्मक संस्पर्श में सभी से निराले थे। तत्कालीन गवर्नर लार्ड रोगाल्ड शे, जो सौंदर्य-प्रेमी और कला-मर्मज्ञ था, इनके बनाये चित्रों को देखकर इतना मुग्ध हुआ कि इस किशोर कलाकार से मिलने को आतुर हो उठा और स्वयं मिलकर पीठ ठोकने तथा चित्रों के सृजन के लिए दाद देने का लोभ संवरण न कर सका। ‘सन्यासी के वेश में बुद्ध’, ‘सिद्धार्थ और यशोधरा’, ‘अशोक’, ‘उत्सव का दिन’ आदि उनके कुछ सुप्रसिद्ध चित्र नव्य बंगाल कला शैली और परंपरा का निर्वाह करते हुए धुंधले रंग, सुकोमल रेखाओं और हल्के ब्रुश से अवनींद्र ठाकुर से प्रेरित होकर आंके गए हैं। ‘मीरा’ इनकी एक ऐसी ही असाधारण कृति है। कृष्ण-प्रेम में विह्वल ‘मीरा’ के भाव-बिम्ब का बड़ा ही अपूर्व गत्यात्मक चित्रण है। अपने इष्ट बालक कृष्ण की मूर्ति के समक्ष उसकी नृत्य भंगिमा और ‘मेरे तो गिरिधिर गोपाल दूसरो न कोई’ की अविभाज्य अनुभूति चित्र की घनीभूत एकप्राणता में रम गई.सी प्रतीत होती है। ‘बुद्ध का रंगीन चित्र, भी बड़ा ही मार्मिक और प्रभावशाली है। ‘आजादी का गीत’ और ‘चिंतनरत वृद्धा’ में भावव्यंजना सुंदर है। उन्होंने न केवल ड्राइंग बनाने की शिक्षा दी हैं, अपितु भारतीय जीवन में सच्चे अर्थों में वास्तविक सौंदर्य को खोजने की प्रवृति भी जागृत की है।
मुकुल चंद्र की सृजन-प्रतिभा विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर और कलागुरु अवनीन्द्रनाथ ठाकुर-इन दो महान कलाचार्यों की छाया तले पनपी थी। जब मुकुल शांतिनिकेतन में थे तो विश्वकवि के साथ इन्हें जापान और अमेरिका जागे का सुअवसर मिला था। सेन फ्रांसिस्को, शिकागो और न्यूयार्क में इनके चित्रों की प्रदर्शनियां हुईं। अमेरिका के प्रवास में ‘एचिंग’ ने इन्हें विशेष प्रभावित किया और शीघ्र ही इसमें इन्होंने दक्षता भी प्राप्त कर ली। भारतीय कला-परंपरा में एचिंग बिल्कुल नई चीज थी। मुकुल चंद्र ही कदाचित पहले कलाकार थे जिन्होंने इस दिशा में बड़े ही प्रभावशाली ढंग से कार्य किया। मुकुल की एचिंग कलाकृतियों में इन सभी गुणों का समावेश है। ‘अजंता की राह पर’, ‘चांदनी रात में गंगा’ और ‘पवित्र वृक्ष’ आदि आदर्श कला-कृतियां हैं। इनके चित्र ‘विक्टोरिया ए.ड एलबर्ट म्यूजियम’ और ‘प्रिंस आॅफ वेल्स म्यूजियम’ को सुशोभित कर रहे हैं। इन्होंने गांधी जी से लेकर अन्य राष्ट्रीय महान नेताओं के पोट्रेट भी चित्रित किये हैं।
जीवन के अपराह्न में रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने स्वयं कहा था ‘‘अब तक मैं अपनी भावनाओं को साहित्य तथा संगीत में व्यक्त करने का अभ्यस्त रहा हूं, पर मेरी आत्मा की अभिव्यक्ति के तरीके अपूर्ण रहै, अतएव मैं भावनाओं के प्रकटीकरण के लिए चित्रित रेखाओं का सहारा लेने की दिशा में आगे बढ़ रहा हूं।’’ महाकवि ने अपनी सतरंगी कल्पनाओं की कूची के वैभव से अपने जीवन-काल में सैकड़ों-हजारों चित्र सृजे। छोटे-बड़े, सादे-रंगीन उन्होंने सैकड़ों चित्र बना डाले। फूल, पत्ती, पौधे, पशु और मानवाकृतियां उनके अपने मन की स्फूर्ति से स्फुरित होकर स्वतंत्र सत्ता बन कर प्रकट हुई। नन्दलाल बोस ने इनकी कला की अभ्यर्थना में कहा था ‘‘उनकी चित्रकला में व्यंजना की नई प्रणाली है।’’
आधुनिक भारतीय कलाकारों में जैमिनी राय का नाम अग्रगण्य है। युद्ध के दिनों में तो अंग्रेज और अमेरिकी सैनिक, (जो कलकत्ता में नियुक्त किये जाते थे), दल के दल बना कर इनके स्टूडियो में आते थे और इनके बनाये चित्रों को खरीदने में दिल खोल कर व्यय करते थे। उन्होंने विदेशी कला का अनुकरण करने की अपेक्षा भारतीय कला-पद्धति को अपनाना ही उचित समझा। इन्होंने अपनी एक व्यक्तिगत विशिष्ट शैली का आविष्कार किया। जैमिनी राय के चित्रों में एक प्रकार की अनौपचारिकता है जो कला को लीक से हटकर एक नई दिशा की ओर उत्प्रेरित करती है।
भारतीय नारी-कलाकारों में अमृता शेरगिल का नाम विशेष महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने अल्पकाल में ही आधुनिक कलाकारों में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया था। बुडापेस्ट में अमृता ने जन्म लिया था। उनके पिता खास पंजाब के रहने वाले थे, किंतु माता हंगरी की थीं। बाल्यावस्था में चित्रकला की ओर उनकी विशेष अभिरुचि थी। अमृता शेरगिल ने अपने चित्रों में पहाड़ी दृश्यों का बहुत सुंदर चित्रण किया है। ‘नव-युवतियां’, ‘कहानी-वक्ता’, ‘नारी’ आदि चित्रों में भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति के सफल समन्वय की अद्वितीय झांकी मिलती है। ‘तीन बहनें’, ‘पनिहारिन’ ‘वधू-शृंगार’ आदि चित्रों में उनके जीवन का निगूढ़ सौंदर्य सन्निहित है। उनका ‘प्रोफेशनल माॅडल’ एक अमर चित्र है, जिसमें मार्मिक भावों की सुंदर अभिव्यंजना हुई है। अमृता शेरगिल की कला पर अजंता की चित्रकला का विशेष प्रभाव है। 5 दिसंबर, 1941 में लाहौर में अमृता शेरगिल का देहावसान हुआ। अपनी 29 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने इतनी ख्याति प्राप्त कर ली थी कि वे विश्व-प्रख्यात कलाकार मानी जागे लगी थीं।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now