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अमृतसर की संधि कब और किसके मध्य हुई , पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए , treaty of amritsar 1809 in hindi

treaty of amritsar 1809 in hindi अमृतसर की संधि कब और किसके मध्य हुई , पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ?

प्रश्न: अमृतसर की संधि
उत्तर: महाराजा रणजीतसिंह एवं अंग्रेज मेटकाफ के मध्य 25 अप्रैल, 1809 में हुई इस संधि से महाराजा ने सतलज के पूर्व व दक्षिण के दावे त्याग दिए तथा कम्पनी व महाराजा आपस में मित्र रहेंगे। महाराजा का प्रभाव सतलज के उत्तर-पश्चिम में रहेगा तथा सतलज के वामतट के समीपवर्ती प्रदेशों का अतिक्रमण नहीं करेगा। धाराओं के उल्लंघन पर संधि निष्प्रभावी हो जाएगी।
महत्व
– महाराजा को पश्चिम में प्रसार की छूट (मुल्तान 1818, कश्मीर-1819, पेशावर-1834 का विलय)
– कम्पनी के लिए महाराजा की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश।
– कम्पनी के साम्राज्य की ओर महाराजा का प्रसार अवरूद्ध।

प्रश्न: 1858 से 1935 के बीच देशी राज्यों के ब्रिटिश साथ संबंधों की प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: लॉर्ड कैनिंग
देशी राज्यों के प्रति कैनिंग की सोच राजद्रोह रूपी तूफान को कम करने वाले एक यंत्र के रूप में थी। इसके अनुसार भारतीय राजाओं के सहयोग से भारत में अंग्रेजी राज्य का अस्तित्व कायम रह सकता है। सामंती एवं कुलीन तंत्रा का अपने लिए सहायता समूह के रूप में निर्माण किया जा सकता है।
1869 में आगरा और लाहौर में दरबारों का आयोजन तथा नरेशों को खुश करने के लिए पदवी व उपहार देने की ना। का अनसरण किया गया। आज्ञाकारी राजाओं को उपहार और विरोध करने वालों को दण्ड देने की नीति का प्रतिपालन किया गया। पटियाला, ग्वालियर, जिंद, भरतपुर, उदयपुर, मल्हार, बंगाल आदि क्षेत्रों को अनेक सुविधाएं प्रदान की गई, लेकिन कोटा व धार के साथ सजा देने का संबंध स्थापित किया गया।
लॉर्ड लिटन (1876-1880)
भारतीय शिक्षित बाबूओं के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए भारतीय देशी राज्यों के नरेशों एवं कुलीन वर्गों से समझौते की अनिवार्यता पर बल दिया। 1877 को महारानी को भारत की साम्राज्ञी बनाने के लिए आयोजित दरबार में नरेशों को भा निमंत्रण एवं उनका सम्मान पदातियों एवं तोपों की सलामी देकर किया गया। इस दिखावे, निमंत्रण, सम्मान एवं थोड़ी बहुत स्वायत्तता देने के पीछे लिटन का उद्देश्य-नरेशों से प्राप्त होने वाले वित्तीय एवं सैनिक अंशदान में वृद्धि करना था। 1885 में लॉर्ड लिटन की योजना के अनुसार Imperial Service Troops के रूप में भारतीय सैनिक टुकड़ियों की भर्ती पूर्णतरू राज्यों के खर्चे पर की गई।
लॉर्ड कर्जन (1899-1905)
कर्जन के समय राज्यों के अंदरूनी मामलों में ब्रिटिश हस्तक्षेप की पराकाष्ठा थी। राज्यों को अपने प्रशासन के स्तर को सधारने के लिए दबाव डाला गया। राजनैतिक अधिकारियों से राजाओं के कार्यों की रिपोर्ट मांगी गई। तद्नुसार उन पर कार्यवाही भी की जाती थी। यह नीति ष्संरक्षण एवं अनाधिकार निरीक्षण नीतिष् के नाम से जानी जाती है। इसके परिणामस्वरूप कर्जन के काल में लगभग पन्द्रह नरेशों को या तो गद्दी छोड़नी पड़ी या सत्ता के अधिकार से वंचित रहना पड़ा। नरेशों की शिक्षा को नियंत्रित करने के लिए देशी राज्यों में अनेक स्कूल एवं कॉलेज खोले गए। नरेशों के प्रति कर्जन की व्यक्तिगत राय हीनता से मुक्त थी। कर्जन का मुख्य उद्देश्य उन सभी तत्वों को संगठित करना था जिनके सहयोग से कांग्रेस का विरोध किया जा सके। क्योंकि उसका दृढ़ विश्वास था कि देशी राज्यों के हित ब्रिटिश राज्यों के हित से मिल जाएंगे तो राष्ट्रवादियों एवं लोकतांत्रिक शक्ति से जूझा जा सकता था। कर्जन की यह बहुत बड़ी भूल थी।
लॉर्ड मिन्टो (1907-1913)
राज्यों के प्रति अहस्तक्षेप की नीति की शुरुआत ताकि बंगाल विभाजन के बाद उठी राष्ट्रवादी लहर को प्रति संतुलित किया जा सके और इस लहर को प्रति-संतुलित करने के लिए देशी राज्यों की स्वायत्तता पर ध्यान देना आवश्यक था। इसलिए कर्जन की आक्रामक व तानाशाही नीति का परित्याग कर दिया गया इससे प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सर्वोच्च सत्ता एवं नरेशों के बीच मैत्री हो गई।
मिंटो की अहस्तक्षेप नीति के परिणाम
राज्यों द्वारा पूर्ण आंतरिक स्वतंत्रता के दावे किए जाने लगे जो सर्वोच्च सत्ता के विशेषाधिकारों के विरुद्ध थे। राज्यों में विकास कार्य अवरूद्ध एवं जनता की प्रतिक्रिया सामने आई। 1921 में उदयपुर में गंभीर कृषि संकट एवं किसानों द्वारा बिचैलियों के विरुद्ध आन्दोलन की शुरूआत हुई (बिजौलिया आंदोलन) अलवर में मेव जाति के किसानों द्वारा अत्याचार के विरुद्ध विद्रोह। अनेक राज्यों के भीतर प्रतिनिधि संस्थाओं के विकास से नरेशों के अस्तित्व को खतरा पैदा होने लगा। देशी भाषाओं में समाचार पत्रों के माध्यम से देशी राजाओं के राज्यों के कुशासन, अराजकता एवं विलासिता का पर्दाफाश हुआ। 1927 में भारत सरकार एवं देशी राज्यों के बीच संबंधों की स्पष्ट रूप से जांच करने के लिए. बटलर समिति का गठन किया गया तथा उसकी मुख्य सिफारिशों के अनुसार – ब्रिटिश सरकार एवं देशी राज्यों के बीच संबंध को स्पष्ट रूप से. घोषित किया गया। ब्रिटिश क्राउन को सर्वशक्तिमान बनाया गया। इन राज्यों में अशांति या अराजकता की स्थिति में ब्रिटिश सर्वोच्च शासन के द्वारा स्वविवेक के इस्तेमाल पर जोर डाला गया, जिससे नरेशों को धक्का लगा। दूसरी ओर राज्यों में प्रतिनिधि संस्थाओं के आंदोलन से नरेश भयभीत थे। उत्तरदायी नरेशों ने सर्वोच्चता की शक्ति एवं लोकतंत्र दोनों से बचने के लिए अखिल भारतीय संघ बनाने के प्रस्ताव का समर्थन किया।
अधीनस्थ एकीकरण की नीति के परिणाम
1. देशी राज्यों के राजनीतिक अस्तित्व को मानकर उनके मिथ्या गौरव की पुष्टि, लेकिन उनको सम्प्रभुत्ता विहीन बना दिया गया।
2. नरेशों को संरक्षण की गारंटी देकर ब्रिटिश सरकार ने दोहरा लाभ उठाया। एक तो उन्हें पूर्णतः अपना आज्ञाकारी बना लिया तथा दूसरी ओर दमनकारी शासकों के विद्रोह से जनता के कल्याण का पोषक होने का दावा किया।
3. अंग्रेजों ने देशी राज्यों के सहयोग से शोषण के उद्देश्य से ब्रिटिश भारत के आर्थिक एकीकरण की प्रक्रिया परी की जैसे रेल, डाक तार व्यवस्थाओं को देशी राज्यों तक फैलाकर उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य का अभिन्न अंग बना लिया।
4. ब्रिटिश राज्यों में न्याय, प्रशासन, राजस्व आदि क्षेत्रों में ब्रिटिश सिद्धांत को लागू किया गया।
5. नरेशों को खश करने के लिए अहस्तक्षेप व दरबार आयोजन की नीतियां अवश्य चलायी गयी लेकिन इसके लिए वे एक विशेष सीमा से आगे जाने को तैयार नहीं थे। क्योंकि अंग्रेजों के लिए अब सम्पूर्ण महाद्वीप की संयुक्त शक्ति से भी कोई खतरा नहीं था, और नरेशों से उनकी आपसी ईर्ष्या एवं मिथ्याभिमान के कारण ऐसी किसी एकता की सदर भविष्य में भी कोई कल्पना नहीं की जा सकती थी।
इस प्रकार देशी नरेशों को उनकी वास्तविक शक्ति से वंचित कर अग्रेजों ने उन्हें राजत्व की उपहास्पद विडम्बना में बदल दिया। अब उनकी स्थिति एक बिना इंजन की रेलगाड़ी के समान थी, जो भारी-भरकम उपाधियों के बावजूद भी शक्तिविहीन थी।

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