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परमवेग का सिद्धांत (साम्य परिकल्पना) क्या है संक्रमण अवस्था TRANSITION STATE OR ABSOLUTE RATE THEORY (EQUILIBRIUM HYPOTHESIS) in hindi
TRANSITION STATE OR ABSOLUTE RATE THEORY (EQUILIBRIUM HYPOTHESIS) in hindi संक्रमण अवस्था या परमवेग का सिद्धान्त (साम्य परिकल्पना) क्या है या किसे कहते हैं अर्थ समझाइये ?
संक्रमण अवस्था या परमवेग का सिद्धान्त (साम्य परिकल्पना) [TRANSITION STATE OR ABSOLUTE RATE THEORY (EQUILIBRIUM HYPOTHESIS))
अभिक्रियाओं की क्रियाविधि ज्ञात करने में यह सिद्धान्त अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह आधुनिक सिद्धान्त सर्वप्रथम सन् 1915 में मासलिन (Marcellin) द्वारा दिया गया और बाद में 1935 में आइरिंग (Eyring) तथा पोलैनी (Polanyi) द्वारा विकसित किया गया। इस सिद्धान्त के मूल अभिगृहीत निम्न हैं :
- क्रियाकारक अणुओं को उत्पाद में परिवर्तित होने से पहले एक सक्रियित संकुल बनाना आवश्यक
(2) क्रियाकारक एवं सक्रियित संकल के मध्य एक साम्य स्थापित रहता है।
(3) जब क्रियाकारी अण परस्पर उपयक्त दिशा में टकराते हैं तब सक्रिायत संकुल के निर्माण की सम्भावना बनती है।
(4) सक्रियित संकल में परमाणुओं के मध्य दरी अधिक होती है और उनमें दुबल बन्ध रहते हैं। वस्तन किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में कम-से-कम एक बन्ध टूटता है और एक नया बन्ध बनता है। सक्रियित सकुल अथवा संक्रमण अवस्था Transition states में टूटने वाला बन्ध पूर्णतः टूटा हुआ नहीं होता वरन टूटने की प्रक्रिया में होता है जबकि नया बनने वाला बन्ध पूर्णतः बना हुआ नहीं होता वरन् बनने की प्रक्रिया में होता है, अतः दोनों ही बन्ध दुर्बल अवस्था में होते हैं।
(5) सक्रियित संकुल की ऊर्जा उच्चतम होती है, अर्थात् यही वह ऊर्जा अवरोध है जिसे पार करके कोई क्रियाकारक उत्पाद में परिवर्तित होता है। उदाहरणार्थ, हाइड्रोजन अणु व क्लोरीन परमाणु के मध्य निम्न क्रिया होती है :
H2 + Cl – HCI + H
इस क्रिया को सम्पन्न होने में निम्न पद होते हैं :
(1) H2 अणु व CI परमाणु उपयुक्त दिशा में एक-दूसरे के निकट आएं।
(2) H– H बन्ध दुर्बल होने लगे और H—H परमाण एक-दूसरे से दूर जाने लगे।
(3).संकुल की ऊर्जा उच्चतम होने के कारण उसकी आयु अत्यन्त कम होती है। अतः सक्रियित संकुल बनते ही H-H के मध्य का बन्ध टूट जाता है और H-CI के मध्य का बन्ध बन जाता है।
H-H+C1 H—-H—-CI → H+H Cl
(क्रियाकारक) [सक्रियित संकुल या (उत्पाद)
संक्रमण अवस्था]
एक सक्रियित संकल या संक्रमण अवस्था को सामान्यतया ” अथवा ‘ द्वारा व्यक्त किया जाता है। एक सामान्य अभिक्रिया को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है:
A+ B — AB’ → c+D
क्रियाकारक सक्रिवित संकुल उत्पाद
अभिक्रिया का वेग सक्रियित संकुल की सान्द्रता और उसके उत्पाद में विघटन की आवत्ति पर निर्भर करता है।
अर्थात अभिक्रिया का वेग = [सक्रियित संकुल] x सक्रियित संकुल के विघटन की आवृत्ति
अथवा d[A]/dt = [AB] x (सक्रियित संकुल के विघटन की आवृत्ति) ………….(71)
सक्रियित संकल की सान्द्रता निम्न समीकरण से ज्ञात की जा सकती है. K = [AB’]/ [A][B] अथवा [AB’] =K’ [A][B] |
[जहां K = सक्रियित संकल बनाने का साम्य स्थिरांका ]……………..(72)
सक्रियित संकुल के विघटन की आवृत्ति को अग्र समीकरण द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
V = Kt/h ……………..(73)
[जहां k = बोल्ट्जमैन स्थिरांक. T = परम ताप और 1 = प्लांक नियताका समीकरण (71), (72) व (73) से,
d[A]/dt = K[A][B] Kt/h………… …(74)
अभिक्रिया के लिए प्रायोगिक वेग नियम निम्न प्रकार का प्राप्त होता है।
dA/dt = [A][B] ………………(75)
[जहां k = वेग स्थिरांक] समीकरण (74) व (75) से,k [A][B] = K'[A][B]RT/Nh (k = R/N)
K = k Kt/h ……………….(76)
समीकरण (76) परम अभिक्रिया वेग सिद्धान्त (absolute reaction rate theory) का सामान्य व्यंजक है जिसे किसी भी अभिक्रिया पर लागू किया जा सकता है।
‘दृढ़ गोले’ मॉडल के आधार पर सरल संघदन सिद्धान्त या सघट्टवाद (SIMPLE COLLISION THEORY BASED ON “HARD SPHERE” MODEL)
अभिक्रियाआ के वेग क्रियाकारको की प्रकति. सान्द्रता, ताप, आदि पर किसी प्रकार निभर करतह, इसकी व्याख्या संघद्रवाद या टक्करों के मिटान द्वारा की जा सकती है। यह सिद्धान्त इस अवधारणा पर आधारित है कि जब तक क्रियाकारकों के अणू परस्पर उपयक्त दिशा में न टकराएं तब तक अभिक्रिया सम्पन्न । नहीं हो सकती जैसा कि चित्र 7.21 में दर्शाया गया है।
अणुआ का उपयुक्त दिशा में टक्कर होने पर भी अभिक्रिया तब तक सम्पन्न नहीं होती जब तक कि अणुओं की इतनी ऊर्जा न हो जाए कि वे सक्रियित संकुल बना सकें।।
यही कारण है कि तीन या इससे अधिक अभिकारकों वाली अभिक्रियाएं अत्यन्त कठिनाई से सम्पन्न हो पाती हैं। अभिक्रिया वेग के मात्रात्मक सम्बन्ध को ज्ञात करने के लिए हम निम्न अभिक्रिया के बारे में कल्पना करते हैं :
I2(g) + Br2(g)— 2lBr(g)
माना कि अभिक्रिया मिश्रण में चार अणु Br2 के व चार ही अणु I के हैं। उनके परस्पर टक्करों की सम्भावना को निम्न चित्र 7.23 द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है : चित्र 7.23 से स्पष्ट है कि प्रत्येक Br2 अणु के लिए चार I, अणुओं के साथ टक्कर की सम्भावना है जबकि प्रत्येक I, अण के लिए चार Br2 अणुओं के साथ टक्कर की सम्भावना है। इस प्रकार कुल सम्भावित टक्करों की संख्या 4×4 = 16 होगी। इसी प्रकार यदि दोनों के आठ-आठ अण होते तो कल सम्भावित टक्करों की संख्या 8×8 = 64 हो जाती है।
यह आहीनियस की समीकरण (56) जैसी ही है जहां Z = A है। इस प्रकार टक्करा क सिद्धान्त आहीनियस सिद्धान्त और अभिक्रिया वेगों पर ताप के प्रभाव को आसानी से समझाया जा सकता है। संघवाद को सामाए एव सशोधित संघट्टवाद (Limitations of Collision Theory and Modified Collision Theory)
कई अभिक्रियाओं में पाया गया कि संघट्टवाद के आधार पर गणना द्वारा ज्ञात किया गया k का मान। प्रायोगिक मानों से काफी भिन्न होता है। इसका कारण यह है कि संघट्टवाद में हम यह मानते है कि अभिक्रिया की सम्पूर्ण ऊजा अभिकारको की स्थानान्तरीय ऊर्जा है लेकिन यह तभी सम्भव है यदि अणुओं का व्यवहार। दृढ़ गोलो क जसा हो। H2, l2 जैसे सरल अणु तो इस प्रकार का व्यवहार कर जाते है लेकिन जटिल अणुआ। की स्थानान्तरीय ऊजा के साथ-साथ कम्पन एवं घूर्णन ऊर्जा भी होती है, अतः सही परिणाम प्राप्त करने का लिए हमें इन ऊर्जाओं को भी ध्यान में रखना होगा। इसका ध्यान रखते हुए संघट्टवाद की समाकरण (69) में संशोधन करके निम्न समीकरण दी गई: k=pZ.e-E/RT जहां p = प्रायिकता गुणांक (probability factor) या त्रिविम गुणांक (steric factor) है जो अणु की त्रिविमीय ज्यामिति या उसकी सक्रियण की एण्ट्रॉपी से सम्बन्धित होता है। इस समीकरण के आधार पर परिकलित मान प्रायोगिक मानों से बहुत मेल खाते हैं। अतः इस समीकरण को संशोधित संघट्टवाद की समीकरण कहते हैं।
संघट्टवाद व परम अभिक्रिया वेग सिद्धान्त की तुलना –
संघवाद एव परम अभिक्रिया वेग सिद्धान्त की तुलना की जाए तो हम पाते हैं कि परम अभिक्रिया वेग का सिद्धान्त, संघट्टवाद या टक्करों के सिद्धान्त की तलना में अधिक श्रेष्ठ है। इसके निम्न कारण है। (1) टक्करो का सिद्धान्त बड़े एवं जटिल अणुओं की अभिक्रियाओं की गतिकी के अध्ययन में अधिक उपयुक्त नहीं होता।
(2) टक्करों का सिद्धान्त गैसीय अभिक्रियाओं में तो सही परिणाम दे देता है, लेकिन द्रव तथा विलयन । अवस्था में इस सिद्धान्त के द्वारा अभिक्रियाओं का अध्ययन अधिक उपयुक्त नहीं होता।
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