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ट्रांजिस्टर के प्रवर्धक के रूप में , ट्रांजिस्टर दोलित्र के रूप में कार्य विधि , परिपथ चित्र transistor as an amplifier in hindi
transistor as an amplifier in hindi ट्रांजिस्टर के प्रवर्धक के रूप में , ट्रांजिस्टर दोलित्र के रूप में कार्य विधि , परिपथ चित्र ?
प्रश्न 1 : प्रवर्धन किसे कहते है ट्रांजिस्टर के प्रवर्धक के रूप में कार्य करने की विधि को परिपथ चित्र बनाकर समझाइये। वोल्टता प्रवर्धन शक्ति प्रवर्धन का सूत्र ज्ञात कीजिए तथा निर्गत तथा निवेशी वोल्टता में कलान्तर लिखिए?
उत्तर : प्रवर्धन (Amplification):- निवेशी सिग्नल के आयाम में वृद्वि करने को प्रर्वान कहते है। एक npn ट्रांजिस्टर को प्रवर्धक के रूप में कार्य करने के लिए परिपथ में जोड़ा गया है। इससे निवेशी सिग्नल Vi और बैटरी Vbb के श्रेणीक्रम में आरोपित करते है। बैअरी Vbb का मान सक्रिय क्षेत्र के मध्य में रखना चाहिए और ट्रांजिस्टर ऐसा लेना चाहिए जिसका सक्रिय क्षेत्र बड़ा होता है यानि की ट्रांजिस्टर सक्रिय क्षेत्र में कार्य करें।
जब निवेशी सिग्नल वोल्टता Vi के ज्यावक्रीय है आरोपित करते हैं तो आधार धारा में परिवर्तन होता है उसी के अनुरूप संग्राहक धारा में अधिक परिवर्तन होने से निर्गत वोल्टता में भी ज्यावक्रीय अधिक परिवर्तन होगा।
माना कि प्रारम्भ में निवेशी सिग्नल वोल्टता Vi का माल शून्य हो तो
Vbb = IbRb + Vbe
प्रश्न 2 : ट्रांजिस्टर दोलित्र के रूप में कार्य करने की विधि को परिपथ चित्र बनाकर समझाइये।
उत्तर : एक NPN ट्राजिस्टर को दोलित्र के रूप में कार्य करने के लिए परिपथ में जोड़ा गया है टैक परिपथ को (L.C परिपथ) निर्गत में जोड़ा गया है जबकि निवेश में प्रेरक कुण्डलजी T2 को जोड़ा गया है। प्रेरक कुण्डली T1 , T2 , T3 को एक ही कोड पर लपेटा गया है।
जब स्विच S को आॅन करते हैं तो संग्राहक द्वारा शून्य से बढ़ती है प्रेरक T1 से चुम्बकीय क्षेत्र में वृद्वि होने से चुम्बकीय फ्लक्स में वृद्वि होती है जिससे प्रेरक कुण्डली T2 के चुम्बकीय फ्लक्स में वृद्वि होती है। जिससे प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है तो उत्सर्जक आधार संधि को अग्रबायस प्रदान करता है जिससे संग्राहक धारा में वृद्वि होती है जिससे T1 के चुम्बकीय क्षेत्र में वृद्वि होने से चुम्बकीय फ्लक्स में वृद्वि होती है और प्रेरक T2 में भी चुम्बकीय फ्लक्स में वृद्वि होने से अग्रबायस में और वृद्वि होती है और यह क्रिया तब तक चलती है जब तक धारा सतृप्त अवस्था में न पहुॅच जाए। अब चुम्बकीय फ्लक्स में वृद्वि रूक जाती है जिससे T2 के द्वारा अग्रबायस नहीं लगता है और संग्राक धारा में कमी आती है जिससे T1 के चुम्बकीय फ्लक्स में कमी होती है और उसी के अनुरूप T2 में भी चुम्बकीय फ्लक्स में कमी होगी। जिससे उत्सर्जक आधर संधि को पश्च बायस लगने से संग्राहक धारा में कमी होगी और यह कमी शून्यतक होगी। अब प्रारम्भिक अवस्था में प्राप्त हो जाती है और पूर्ण की प्रक्रिय पुन‘ दोहराई जाती है इस प्रकार प्रत्यावृत्ति धारा प्राप्त होती है।
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