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टोटमवाद किसे कहते हैं परिभाषा क्या है | टोटमवाद की अवधारणा किसने दी totemism in hindi meaning
totemism in hindi meaning definition टोटमवाद किसे कहते हैं परिभाषा क्या है | टोटमवाद की अवधारणा किसने दी ?
टोटमवाद का अध्ययन
टोटमवाद से हमारा अर्थ है कि किस प्रकार मनुष्य अपना संबंध उस प्राकृतिक पदार्थ से जोड़ते हैं, जिसे वे अपना पूर्वज मानते हैं । कूपर (1979ः 74) के शब्दों में, जब समाज विशेष में एक समूह किसी प्राकृतिक प्रजाति अथवा पदार्थ से आनुष्ठानिक संबंध स्थापित कर लेता है तो उसे टोटमवाद कहते है। दर्खाइम की मान्यता है कि टोटमवाद एक जीवन शैली है, जिसमें प्रतीकवाद के माध्यम से सामूहिक भावनाओं की अभिव्यक्ति के साथ उसका आनुष्ठीकरण होता है। यह प्रतीकवाद समूह की एकता को बनाए रखने में सहायक होता है। किन्तु दर्खाइम ने इस महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर नहीं दिया कि प्राकृतिक वस्तुओं को ही टोटम के रूप में क्यों चुना जाता है?
रैडक्लिफ-ब्राउन ने इसी प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया है। ऑस्ट्रेलिया में अपने सर्वेक्षण कार्य के दौरान उसे ज्ञात हुआ कि न्यू साऊथ वेल्स की कुछ जनजातियां बहिर्जातीय विवाह (exogamous) करने वाली दो मोइटी (उवपमजपमे) में बंटी हुई हैं। इनके नाम दो पक्षियों के नाम पर रखे गए। ये हैं बाज तथा कौआ। बाज मोइटी के पुरुष कौआ मोइटी की औरतों से तथा कौआ मोइटी के पुरुष बाज मोइटी की औरतों से विवाह करते हैं। इसी प्रकार का दो हिस्सों में विभाजन ऑस्ट्रेलिया में अन्यत्र भी देखने में आया है। ऐसे उदाहरणों में भी इन हिस्सों के नाम पक्षियों के अथवा जानवरों के जोड़ों के नाम पर रखे जाते हैं। पक्षियों अथवा पशुओं के ये जोड़े उनकी पौराणिक कथाओं में एक-दूसरे के विरोधी के रूप में चित्रित किए गए हैं। किन्तु इस विरोध के बावजूद उनमें कुछ समानताएं तथा एकरूपताएं भी पाई जाती हैं। उदाहरण के लिए, बाज तथा कौआ दोनों मांस-भक्षी पक्षी हैं। मजे की बात यह है कि मोइटी के बीच भी भिन्नता तथा प्रतिस्पर्धा के संबंध एक साथ पाए जाते हैं। उनमें भी एक ही समय में पारस्परिक सहयोग एवं विरोध दिखाई देते हैं।
इस प्रकार, रैडक्लिफ-ब्राउन टोटमवाद को समूह की एकता बनाए रखने वाला प्रकार्यात्मक तत्व तो मानता ही है, परंतु साथ में टोटमवाद को वह एक ऐसा तत्व भी मानता है जिससे विभिन्न समूहों के बीच सामाजिक विरोध की अभिव्यक्ति भी होती है अर्थात् समाज की संरचना का भी पता लगता है। इस तरह वह टोटमवाद को प्रकार्य एवं संरचना दोनों का उदाहरण मानता है। इस उदाहरण में संरचनात्मक प्रकार्यवाद को इतने स्पष्ट रूप से दर्शाकर उसने भविष्य में किए जाने वाले शोधकार्यों के लिए एक आधारशिला तैयार की। अनेक संरचनावादी समाजशास्त्रियों ने सामाजिक प्रथाओं की रोचक व्याख्याएं प्रस्तुत करने के लिए रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा विकसित श्विरोधश् की अवधारणा का अपने अध्ययनों में प्रयोग किया। इस संदर्भ में लेवी-स्ट्रॉस के शोधकार्य का उदाहरण पेश किया जा सकता है।
आइए, अब हम रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा की गयी नातेदारी की व्यवस्था के अध्ययनों की समीक्षा करें।
आदिम समाजों में नातेदारी
रैडक्लिफ-ब्राउन नातेदारी व्यवस्था के अध्ययन का विशेषज्ञ माना जाता है। इस क्षेत्र में उसका काम दो कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
क) रैडक्लिफ-ब्राउन के समय से पहले नातेदारी का अध्ययन मूलतः अनुमानों तथा अटकलबाजियों पर आधारित था। जैसे कि आदिम जातियों में संभोग स्वच्छंदता के सिद्धांत से नातेदारी के विकास को समझना । रैडक्लिफ-ब्राउन ने समाज विशेष में नातेदारी की प्रणाली को उसकी समसामयिक प्रासंगिकता के संदर्भ में समझने का प्रयास किया।
ख) अधिकांश आदिम समाजों के संगठन का आधार नातेदारी प्रणाली है। अतः नातेदारी के सिद्धांतों को समझना अनिवार्य हो जाता है। इस पक्ष पर विशेष ध्यान देकर रैडक्लिफ-ब्राउन ने सामाजिक नृशास्त्र के अध्येताओं को एक नया रास्ता दिखाया। यह रास्ता था- नातेदारी प्रणाली को समसामयिक संदर्भ में समझने की कोशिश का और उसके सिद्धांतों की खोज करने का।
रैडक्लिफ-ब्राउन विभिन्न नातेदारों के बीच नाते-व्यवहार के रूप का अध्ययन तो करता ही है, साथ में वह नातों को बताने वाली शब्दावली का अध्ययन भी करता है। इसके अतिरिक्त उसने नातेदारी की शब्दावली में वर्गात्मक व्यवस्थाओं का विवेचन भी किया। ऐसी व्यवस्थाओं में परिवार के दायरे से बाहर के नातेदारों को भी परिवार के सदस्यों के साथ वर्गीकृत कर लिया जाता है। उदाहरणार्थ, मां की बहन यानि मौसी का रिश्ता यद्यपि पैतृक परिवार के दायरे में नहीं आता किन्तु उसे मां के रूप में वगीकृत किया जाता है। रैडक्लिफ-ब्राउन ने नातेदारी की शब्दावली की वर्गात्मक व्यवस्था के तीन बुनियादी सिद्धांतों की चर्चा की है। ये हैं ।
क) सहोदर समूह की एकताः इसमें भाई तथा बहन एक-दूसरे की प्रति आत्मीयता और एकात्मता (solidarity) महसूस करते हैं और बाहरी लोग उन्हें एक इकाई मानते हैं। मौसी को भी मां कहकर पुकारा जाता है और मामा ‘नर माता‘ (male mother) जैसा होता है।
ख) वंश परंपरा समूह की एकताः वंश परम्परा से अभिप्राय है एक महिला अथवा पुरुष पूर्वज से चली आई पीढ़ी दर पीढ़ी के वंशज। सहोदरों की भांति वंश पंरपरा (lineage) के सदस्यों में भी एकात्मता (solidarity) होती है और बाहरी लोग उन्हें एक इकाई मानकर चलते हैं।
ग) पीढ़ी सिद्धांतः ऐसा देखा गया है कि सभी नातेदारी व्यवस्थाओं में पहली पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के सदस्यों के बीच कुछ दूरी या तनाव आ जाता है। उदाहरण के लिए, जब मेरी मां मेरा लालन-पालन करती है तो वह मुझ पर अनुशासन और नियंत्रण भी रखेगी। किन्तु रैडक्लिफ-ब्राउन हमारा ध्यान खींचता है उस पक्ष की ओर जिसमे पहली और तीसरी पीढ़ी के सदस्यों (दादा-नाना और पोता-नाती) के बीच लाड़-प्यार के मधुर संबंध दिखाई देते हैं। अनेक समाजों में यह विश्वास प्रचलित है कि सामाजिक व्यवस्था में दादा का स्थान पोता लेता है। कई समाजों की नातेदारी की शब्दावली में (जैसे हवाई प्रणाली में — विस्तृत जानकारी के लिए शब्दावली देखिए) नातों के वर्गीकरण के लिए कुछ पीढ़ियों को मिलाने और कुछ को अलग करने के सिद्धांत को माना जाता है।
यद्यपि नातेदारी शब्दावली के अध्ययन से नातों के संचालन के तरीकों की बड़ी रोचक जानकारी मिलती है, किन्तु उसका अध्ययन करने के चक्कर में रैडक्लिफ-ब्राउन ने नातेदारी व्यवसथा से उपजने वाले सामाजिक संबंधों के अध्ययन की उपेक्षा बिल्कुल नहीं की। ये संबंध एकात्मता तथा विरोध के परिवेश में पनपते हैं। इसकी स्पष्ट झलक परिहास संबंधों में मिलती है, जिसमें रैडक्लिफ-ब्राउन ने गहरी रुचि दिखाई। ‘परिहास संबंध से हमारा अर्थ क्या है? यह नातेदारों के बीच एक मुक्त भाव वाला मैत्रीपूर्ण संबंध है, जिसमें एक-दूसरे से मजाक (प्रायः कामुक भी) करने और मैत्रीपूर्ण छींटा-कशी करने की छूट होती है। जुनोद (1912-13) ने मोजाम्बिक की थोंगा जनजाति के अध्ययन की रिपोर्ट में नाना-धेवते के बीच परिहासपूर्ण रिश्ते का उल्लेख किया है।
रैडक्लिफ-ब्राउन ने इस संबंध पर जुनोद की अनुमानपरक व्याख्या (conjectural explanation) का खंडन करते हुए, अपना ध्यान मामा और भांजे के रिश्ते पर केन्द्रित किया दिखिए रैडक्लिफ-ब्राउन की स्ट्रक्चर एण्ड फंक्शन इन प्रिमिटिव सोसाइटीज, 1971 और अगला अनुभाग 25.3.3 भी)। उसने परिहासपूर्ण संबंधों की व्याख्या सामाजिक दृष्टि से अलग समझे जाने वाले समूहों के सदस्यों की बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों के संदर्भ में करने पर बल दिया। उसके अनुसार परिहास-सबंधों के माध्यम से उन लोगों के बीच कोमल संबंध बने रहते हैं, जो एक प्रकार से तो परस्पर जुड़े हुए हैं, किन्तु साथ ही, दूसरे प्रकार के संबंधों के कारण पृथक भी है। उदाहरण के लिए, भिन्न वंश-परंपराओं के सदस्य सामाजिक दृष्टि से एक-दूसरे से अलग माने जाते हैं। किन्तु यदि उनके सदस्यों में परस्पर विवाह हो जाएं तो वे एक-दूसरे से जुड़ भी जाते हैं। इस प्रकार, इस तरह जुड़े समूहों के बीच यदि कुछ परिहास संबंध हो तो अलगाव की दूरी कम करने का एक रास्ता मिल जाता है। इसी संदर्भ में हमें एक और रास्ता दिखता है। वह है एक-दूसरे के बीच परिहार (avoidance) या दूरी रखने का, जिसमें परिहास की जगह अत्यधिक सम्मान दिया जाता है। रैडक्लिफ-ब्राउन के शब्दों में, “एक बार मैंने ऑस्ट्रेलिया के एक आदिम व्यक्ति से पूछा कि तुम अपनी सास से इतनी दूरी क्यों रखते हो तो उसका उत्तर था कि वह दुनिया में मेरी सबसे अच्छी मित्र है, जिसने मुझे मेरी पत्नी दी है। इस तरह दामाद तथा सास-ससुर के बीच आपसी सम्मान का संबंध एक प्रकार की मित्रता का ही द्योतक है। इसकी वजह से विरोधी हितों की टकराहट से पैदा होने वाले संघर्ष टल जाते हैं।‘‘
परिहास तथा परिहार संबंधों को समझने हेतु सोचिए और करिए 3 को पूरा करें।
सोचिए और करिए 3
अपने समाज में विद्यमान परिहास (joking) तथा परिहार (avoidance) संबंधों की सूची बनाइए।
संक्षेप में, कहा जा सकता है कि रैडक्लिफ-ब्राउन ने अनुमानपरक अवधारणाओं का खंडन किया। साथ में उसने नातेदारी के ताने-बानों में सामाजिक संबंधों की संरचना और समाज को जोड़े रखने तथा तनावों को संतुलित करने की उनकी प्रक्रिया पर ध्यान देकर नातेदारी के अध्ययन को नई दिशा प्रदान की। हमने अगले अनुभाग में कुछ आदिम समाजों में मामा और भांजे के संबंधों में रैडक्लिफ-ब्राउन की विशेष रुचि का संक्षेप में विवेचन किया है।
आदिम सेमाजों में मामा
पिछले अनुभागों में आपने देखा कि रैडक्लिफ-ब्राउन ने किस प्रकार प्रकार्य की अवधारणा से औपचारिक विलाप की प्रथा तथा टोटमवाद में विश्वास का विश्लेषण किया। यह भी देखा कि उसने नातेदारी की व्यवस्था का अध्ययन करने में सरंचनात्मक प्रकार्यवाद का प्रयोग कैसे किया। आइए, अब हम देखें कि उसने आदिम समाजों में मामा की भूमिका का विवेचन किस प्रकार किया है। यह रैडक्लिफ-ब्राउन की संरचनात्मक-प्रकार्यवाद की पद्धति का उदाहरण है। पूर्वी अफ्रीका की बथोंगा (Bathonga) जनजाति, दक्षिण अफ्रीका की नामा होतेन्तो (Nama Hottentots) जनजाति और टोंगा के फ्रेंडली द्वीपवासी जैसे अनेक आदिम जनसमूहों में मामा तथा भाँजे में अपेक्षाकृत अधिक हार्दिक तथा स्नेहपूर्ण संबंध पाया जाता है। भाँजा अपने मामा से अपनी बातें आसानी से मनवा लेता है और मामा अपने भाँजे का विशेष ध्यान रखता है तथा उसके बीमार पड़ने अथवा और किसी संकट में फँसने पर बड़े से बड़ा त्याग करता है। वह अपनी जायदाद का हिस्सा, कभी-कभी तो अपनी पत्नियों में से एक पत्नी तक को भाँजे के नाम कर देता है।
रैडक्लिफ-ब्राउन का कथन है (1971ः 17) “यह मानना गलत है कि समाज की प्रथाओं को उन अन्य प्रथाओं पर ध्यान दिए बिना समझा जा सकता है, जिनके साथ वे जुड़ी हुई हैं‘‘ उसने मामा और भाँजे के रिश्ते के साथ जुड़े एक अन्य स्नेहपूर्ण संबंध का उल्लेख किया है। उसका कहना है (1971ः 17) ‘‘अक्सर जहाँ एक ओर भाँजे-मामा का संबंध अनौपचारिक और स्वच्छंद होता है तो दूसरी ओर पिता की बहन यानि बुआ के प्रति विशेष सम्मान तथा आज्ञापालन का दायित्व होता है। बुआ/भतीजे या भतीजी का बड़ा पुनीत संबंध होता है। बुआ के कथन को कानून की तरह माना जाता है और उसके प्रति अनादर का भाव गहन अपराध की तरह माना जाता है‘‘।
रैडक्लिफ-ब्राउन का कहना है कि अधिकतर आदिम समाजों में नातेदारी ही व्यक्तियों के सामाजिक संबंधों का नियमन करती है। इन संबंधों के साथ-साथ आचरण के विभिन्न विन्यास जुड़े हुए हैं और ये निश्चित प्रकार के आचार-व्यवहार के अनुसार चलते हैं। यदि प्रत्येक संबंधी के प्रति अलग-अलग ढंग से आचरण किया जाएगा तो एक-दूसरे से व्यवहार करने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल हो जाएगी, विशेषकर उस स्थिति में जब संबंधियों की संख्या काफी अधिक हो। रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार, आदिम समाजों में इस समस्या का निदान करने के लिए वर्गीकरण की प्रणाली का सहारा लिया जाता है। अलग-अलग तरह के रिश्तेदारों की कुछ सीमित श्रेणियाँ बना ली जाती हैं। वर्गीकरण का सर्वाधिक प्रचलित मापदंड ‘भाइयों की समानता‘ का सिद्धांत है। इसका अर्थ है कि एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से जो संबंध है उसके भाई से भी वही संबंध माना जाएगा। यही बात एक स्त्री और उसकी बहन के बारे में भी कही जा सकती है। इस तर्क के आधार पर, पिता का भाई भी पिता-तुल्य माना जाता है और पिता के भाई के बेटे भाइयों की तरह होते हैं। इसी तरह, माँ की बहनें माँ-तुल्य मानी जाती है और उनके बच्चे भाई-बहन की तरह होते हैं।
नाते-रिश्तों की इस व्यवस्था में बुआ और मामा को कहां रखा जाए? जिन तीन समुदायों की ऊपर चर्चा की गई है, वे पितृसत्तात्मक (patriarchal) समुदाय है। उनमें पिता के प्रति सम्मान एवं भय का भाव रहता है तथा माता के प्रति प्रेम और स्नेह का भाव रहता है। इसी प्रवृत्ति के अनुरूप पिता की बहन के प्रति सम्मान और भक्ति का भाव तथा माता के भाई के प्रति स्नेह और प्यार का भाव रहता है। दूसरे शब्दों में बुआ एक प्रकार से ‘मादा पिता‘ (female father) तथा मामा ‘नर माता‘ (male mother) है। यह व्याख्या ‘भावनाओं का विस्तार‘ (extension of sentiments) के सिद्धांत पर आधारित है। इसका भाव यह है कि माता के प्रति व्यक्त की गई भावनाएँ उसके भाई के लिए भी है और यही बात पिता की बहन के लिए कही जा सकती है।
इस प्रकार के वर्गीकरण की व्याख्या करते हुए रैडक्लिफ-ब्राउन ने कहा है (1971ः 25) ‘आदिम समाज में व्यक्ति विशेष को उसके समूह के माध्यम से पहचानने की तीव्र प्रवृत्ति होती है। नातेदारी के संदर्भ में इसका परिणाम है कि मूलतः जो आचरण समूह के किसी एक विशिष्ट व्यक्ति के प्रति किया जाता है, वही समूचे समूह के प्रति किया जाने लगता है।‘‘ मौटे तौर पर कहा जा सकता है कि रैडक्लिफ-ब्राउन ने आदिम समाजों में मामा की भूमिका का अध्ययन आपस में जुड़े संस्थागत संबंधों के संदर्भ में किया है। यही उसकी संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक पद्धति का सार है।
बोध प्रश्न 3
प) कॉलम ‘क‘ में उल्लिखित बातों को कॉलम ‘ख‘ में उल्लिखित बातों से मिलाइएः
क ख
क) आनुष्ठानिक विलाप प) भाई की समानता
ख) बथोंगा पप) अण्डमान द्वीप समूह
ग) बुआ पपप) मादा पिता
घ) पिता का भाई पअ) पूर्वी अफ्रीका
बोध प्रश्न 3 उत्तर
प) क ख
अ) पप)
ब) पअ)
स) पपप)
द) प)
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