JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: इतिहास

ठुमरी किसे कहते है ? ठुमरी के प्रसिद्ध गायक कौन है के कितने घराने हैं नाम thumri in hindi definition meaning

thumri in hindi definition meaning singer ठुमरी किसे कहते है ? ठुमरी के प्रसिद्ध गायक कौन है के कितने घराने हैं नाम ?

ठुमरी
यह मिश्रित रागों पर आधारित है और इसे सामान्यतः अर्द्ध-शास्त्रीय भारतीय संगीत माना जाता है। रचना प्रकृति में प्रेम और भक्ति रस का भाव है। यह भक्ति आंदोलन से इतनी प्रेरित है कि पाठ सामान्यतः कृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम को दर्शाता है। रचना की भाषा सामान्यतः हिंदी या अवधी या ब्रज भाषा होती
रचनाएं सामान्यतः महिला के आवाज में गाई जाती हैं। यह अन्य रूपों की तुलना में अलग है क्योंकि ठुमरी में निहित कामुकता है। यह प्रदर्शन के दौरान गायक को सुधार करने के लिए अवसर प्रदान करती है और इसलिए राग के साथ इनके पास अधिक-से-अधिक लचीलापन होता है। दादरा, होरी, कजरी, सावन, झूला, और चैती जैसे हल्के-फुल्के रूपों के लिए भी ठुमरी नाम का प्रयोग किया जाता है। मुख्य रूप से ठुमरी दो प्रकार की होती हैं:
ऽ पूर्वी ठुमरीः इसे धीमी गति से गाया जाता है।
ऽ पंजाबी ठुमरीः इसे तेज गति एवं जीवंत तरीके से गाया जाता है।
ठुमरी के मुख्य घराने बनारस और लखनऊ में स्थित हैं और ठुमरी गायन के लिए सबसे कालातीत आवाज बेगम अख्तर की है जो गायन में अपनी कर्कश आवाज और असीम तान के लिए विख्यात हैं।

टप्पा शैली
इस शैली में लय बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि रचना तीव्र सूक्ष्म और जटिल होती हैं। इसका उद्भव उत्तर-पश्चिम भारत के ऊट सवारों के लोक गीतों से हुआ था लेकिन सम्राट मुहम्मद शाह के मुगल दरबार में लाए जाने पर इसने अर्द्ध-शास्त्रीय स्वरीय विशेषता के रूप में मान्यता प्राप्त की। इसमें महावरों का बहुत तीव्र और बड़ा ही घुमावदार उपयोग होता है। टप्पा ना केवल अभिजात वर्ग बल्कि विनम्र वाद्य यंत्र वाले वर्गों की पसंद की शैली भी होती हैं। 19वीं सदी के उत्तराद्ध तथा 20वीं सदी के प्रारम्भ में बैठकी शैली का विकास हुआ, जो की जमींदारी वर्ग के बैठक खानों (बैठक-सभा, खाना-हाल) और जलसा-घरों (मनोरंजन तथा मुजरे के लिए बना हाल) में विकसित हुई।
आज यह शैली प्राय विलुप्त हो रही है तथा इसका अनुसरण करने वाले बेहद कम है। इस शैली के कुछ प्रतिपादन मियां सोदी, ग्वालियर के पंडित लक्ष्मण राव और शन्नो खुराना हैं।

तराना शैली
इस शैली में लय बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी संरचना लघु एवं कई बार दोहराए जाने वाले रागों में निर्मित होती है। इसमें उच्च स्वर वाले विषम राग का प्रयोग होता है जिसे मुख्य राग पर लौटने से पहले एक बार प्रारंभ किया जाता है।
इसमें तीव्र गति से गाए जाने वाले कई शब्दों का प्रयोग होता है। यह लयबद्ध विषय बनाने पर केंद्रित होता है और इसलिए, गायक के लिए लयबद्ध हेरफेर में विशेष प्रशिक्षण और कौशल की आवश्यकता होती है। वर्तमान में, विश्व के सबसे तेज तराना गायक मेवाती घराने के पंडित रतन मोहन शर्मा है। 2011 में, हैदराबाद में पंडित मोतीराम संगीत समारोह में श्रोताओं ने उन्हें ‘तराना के बादशाह‘ (तराना के राजा) की पदवी दी।

धमर-होरी शैली
ध्रु्रपद ताल के अलावा यह शैली ध्रुपद के काफी समान है। यह बहुत ही संगठित शैली है और इसमें 14 तालों का चक्र होता है जिनका अनियमित रूप से उपयोग किया जाता है। रचनाएं प्रकृति में सामान्यतः भक्तिपरक होती हैं और भगवान कृष्ण से संबंधित होती हैं। कुछ अधिक लोकप्रिय गीत होली त्योहार से संबंधित हैं इसी कारणवश कई गानों में शृंगार रस देखने को मिलता है। यह शैली कलाकार को सुधार करने के लिए अधिक स्वतंत्रता प्रदान करती है।

गजल
यह एक काव्यात्मक रूप है जिससे एक ही बेहेर (उमजमत) साझा करने वाली प्रत्येक पंक्ति के साथ तुकबंदी वाले दाह और पद्य होते हैं। गजल को हानि या वियोग की पीड़ा और उस पीड़ा के होते हुए भी प्रेम की सुंदरता की काव्यात्मक अभिव्यक्ति के रूप में समझा जा सकता है। इसका उद्भव 10वीं सदी में ईरान में माना जाता है। गजल में सामान्यतः 12 अषार या दोहे से अधिक नहीं होते हैं।
12वीं सदी में गजल का दक्षिण एशिया में प्रसार सूफी रहस्यवादियों और नए इस्लामी सल्तनत के दरबारों के प्रभाव से हुआ, परंतु मुगल काल में यह अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गई। यह कहा जाता है कि अमीर खसरो गजल के पहले प्रतिपादकों में से एक थे। कई प्रमुख ऐतिहासिक गजल कवि या तो स्वयं को सूफी (जैसे रूमी या हाफिज) कहते थे, या सूफी विचारों के साथ सहानुभूति रखते थे।
गजल का एकमात्र विषय है-प्रेम, विशेषतः बिना शर्त के सर्वोच्च प्रेम। भारतीय उप-महाद्वीप के गजलों पर इस्लामी रहस्यवाद का प्रभाव है।

कर्नाटक संगीत
कर्नाटक शाखा उस संगीत का सृजन करती है जिसे पारंपरिक सप्तक में बनाया जाता है। संगीत कृति आधारित होता है और साहित्य या संगीतात्मक खण्ड के गीत की गुणवत्ता पर अधिक बल देता है। कृति निश्चित राग और नियत ताल या तालबद्ध चक्र में विकसित संगीतमय गीत होता है। कर्नाटक शैली में प्रत्येक रचना के कई भाग होते हैः
ऽ पल्लवीः रचना की पहली या दूसरी विषयगत पंक्ति ‘पल्लवी‘ के रूप में संदर्भित होती है। इस भाग को अक्सर प्रत्येक छंद में दोहराया जाता है। इसे ‘रागम थानम पल्लवी‘ नाम से जाना जाता है। यह कर्नाटक संगीत का सबसे अच्छा भाग माना जाता है। इसमें कलाकार के पास तात्कालिकता के लिए काफी अवसर होता है।
ऽ अनु पल्लवी: पल्लवी या पहली पंक्ति के बाद आने वाली दो पंक्तियां अनु पल्लवी कहलाती हैं। इन प्रारंभ में और कभी-कभी गीत के अंत में भी गाया जाता है, लेकिन प्रत्येक छंद या चरण के बाद से दोहराना आवश्यक नहीं है।
ऽ वर्णमः सामान्यतः यह वह रचना होती है जिसे गायन के प्रारंभ में गाया जाता है। इससे श्रोताओं को गायन के राग का पता चलता है। यह दो भागों से बना होता हैः पूर्वांग या प्रथम अद्र्वाश और उत्तरांग या द्वितीय अर्द्धाश।
ऽ रागमलिकाः यह सामान्यतः पल्लवी का समापन भाग होता है। यह भाग अत्यंत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि कलाकार के पास स्वतंत्र रूप से तात्कालिकता में लिप्त होने का अवसर होता है। लेकिन सभी कलाकारों को रचना के अंत में मूल विषय पर लौटना पड़ता है।
कर्नाटक संगीत के कई अन्य घटक भी हैं, उदाहरण के लिए मध्यम और तीव्र गति से ढोलकिया के साथ प्रदर्शित किए जाने वाला तात्कालिक अनुभाग स्वर-कल्पना। कर्नाटक संगीत सामान्यतः मृदंगम् के साथ गाया जाता है। मृदंगम् के साथ मुक्त लय में मधुर तात्कालिकता का खण्ड ‘थानम‘ कहलाता है। लेकिन वे खण्ड जिनमें मृदंगम् की आवश्यकता नहीं होती है उन्हें ‘रागम‘ कहा जाता हैं।
अंतर के बिंदू हिंदुस्तानी संगीत कर्नाटक संगीत
प्रभाव अरबी, फारसी और अफगान स्वदेशी।
स्वतंत्रता तात्कालिकता के लिए कलाकारों के पास अवसर, इसलिए विभिन्नता के लिए अवसर तात्कालिकता के लिए कोई स्वतंत्रता नहीं।
उप-शैलियां अनेक उप-शैलियां हैं, जिनसे ‘घरानों‘ का उद्भव हुआ है गायन की केवल एक विशेष निर्धारित शैली है।
वाद्य यंत्रों की आवश्यकता कंठ संगीत की भांति वाद्य यंत्रों की भी आवश्यकता होती है। कंठ संगीत पर ज्यादा बल दिया जाता है।
राग 6 प्रमुख राग 72 राग
समय समय समय का पालन करता है। समय का पालन नहीं करता है।
वाद्य यंत्र तबला, सारंगी, सितार और संतूर। वीणा, मृदंगम और मैंडोलिन।
भारत के भागों से संबंध उत्तर भारत
सामान्यतः दक्षिण भारत।

 

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

12 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

12 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now