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थायोफीन , बनाने की विधियाँ , थायोफिन की संरचना एवं एरोमैटिकता , गुण , बर्च अपचयन , डील्स एल्डर

(thiophene in hindi) थायोफीन : IUPAC नाम = थायोल

थायोफिन बनाने की विधियाँ :
1. एसिटिलीन व हाइड्रोजन सल्फाइड की अभिक्रिया से।
2. पॉल नॉर संश्लेषण।
3. हिन्सबर्ग अभिक्रिया द्वारा।
4. फ्यूरेन द्वारा।
5. 1,3 ब्यूटाडाईइन द्वारा : 1,3 ब्यूटाडाईइन को सल्फर के साथ गर्म करने पर थायोफिन बनती है।
6. ब्यूटेन द्वारा : n-ब्यूटेन की वाष्प को सल्फर के साथ गर्म करने पर थायोफिन बनती है।
7. सोडियम साक्सिनेट द्वारा : सोडियम साक्सिनेट को फोस्फोरस ट्राई सल्फाइड के साथ गर्म करने पर थायोफिन बनती है।

संरचना एवं एरोमैटिकता

थायोफिन की एरोमेटिकता को निम्न प्रकार समझा जा सकता है –
1. थायोफिन का अणुसूत्र C4H4S होता है।

2. यह चक्रीय तथा समतलीय होता है।
3. यह हकल के (4n + 2 )π e  नियम की पालना करता है , इसमें 6πe पाए जाते है।
4. यह योगात्मक अभिक्रिया के बजाय इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया दर्शाता है जो एरोमेटिक यौगिक का मुख्य गुण होता है।
5. थायोफिन अणु में चक्रीय अनुनाद पाया जाता है इसकी अनुनाद ऊर्जा उच्च होती है।
थायोफिन में अनुनाद को निम्न प्रकार दर्शाते है –

note : थायोफिन की उच्च अनुनादी संरचनाओं के कारण अर्थात इसमें अधिक अनुनाद होने के कारण इसमें एरोमेटिक गुण सर्वाधिक होता है , इस कारण यह पिरोल व फ्यूरेन की अपेक्षा अधिक स्थायी होता है।
रासायनिक गुण :
एरोमेटिक e स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया :
थायोफिन में अधिक चक्रीय अनुनाद के कारण इसकी अनुनाद ऊर्जा उच्च होती है।
इनके अनुनाद ऊर्जाओं के घटता क्रम निम्न होता है –
थायोफिन > पिरोल > फ्युरेन
अत: इसकी एरोमेटिकता का घटता क्रम –
थायोफिन > पिरोल > फयुरेन
एरोमेटिक एलेक्ट्रोफिलिक प्रतिस्थापन   1/एरोमेटिकता
अत: उपरोक्त तीनो की एरोमेटिक e स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया के प्रति क्रियाशीलता का घटता क्रम निम्न है –
पिरोल > फ्युरेन > थायोफिन
अभिविन्यास : थायोफिन में e स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया स्थिति 2 या 5 पर सम्पन्न होती है क्योंकि स्थिति 2 पर इलेक्ट्रॉन स्नेही के आक्रमण से बना मध्यवर्ती कार्बधनायन (σ संकुल ) अधिक स्थायी होता है।
बर्च अपचयन : थायोफिन का धातु अमोनिया के साथ मेथेनोल की उपस्थिति में अपचयन कराने पर 2,3 -डाई हाइड्रो थायोफिन एवं 2,5 डाई हाइड्रो थायोफिन बनता है इसे बर्च अपचयन कहते है।
थायोफिन का ऑक्सीकरण : थायोफिन का प्रबल ऑक्सी कारक MCPBA (मैटा क्लोरो पर बैंजोइक अम्ल ) द्वारा ऑक्सीकरण कराने पर थायोफिन सल्फोक्साइड व थायोफिन सल्फोन बनाते है जो आपस में (4+2) चक्रीय योगात्मक अभिक्रिया के फलस्वरूप डील्स एल्डर उत्पाद बनाते है।
डील्स एल्डर अभिक्रिया या चक्रीय योगात्मक अभिक्रिया  : थायोफिन में सबसे कम डाई इन के गुण होते है क्योंकि यह s सदस्यी एरोमेटिक विषम चक्रीय यौगिकों में सबसे अधिक एरोमेटिक होता है , इस कारण यह सामान्य परिस्थितियों में चक्रीय योगात्मक अभिक्रिया नहीं देता परन्तु विशेष परिस्थितियों जैसे उच्च ताप व उच्च दाब पर यह चक्रीय योगात्मक अभिक्रिया दर्शाते है।

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