JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: इतिहास

थेयम किस राज्य का लोकप्रिय नृत्य है , theyyam is a popular folk dance of which state in hindi

theyyam is a popular folk dance of which state in hindi थेयम किस राज्य का लोकप्रिय नृत्य है ?

थेय्यम
यह केरल में पूर्वजों की पूजा का एक रूप है। साथ ही इसमें नर्तक गांव की रक्षा करने वाले देवी.देवताओं का रूप भी धरते हैं। इनकी वेशभूषा काफी आकर्षक होती है।
अंकिआ नाट
असम के महान धार्मिक चिंतक एवं सुधारक महापुरुष शंकरदेव (1449-1568) ने वैष्णव धर्म के मूल्यों व आदर्शों को प्रचारित करने के लिए वैष्णव सत्रों का गठन किया। इसी उद्देश्य से उन्होंने एक नए नाट्य रूप अंकिया नाटक की सृष्टि की जिसे प्रदर्शन में भाओना कहा जाता है। वैष्णव मत को मानने वाले सत्रों में एक समुदाय के रूप में रहते हैं, और इस नाट्य की प्रस्तुति उनके धार्मिक जीवन का अंग है। अपनी सृजन क्षमता द्वारा शंकरदेव ने यह विशिष्ट नाट्य रूप विकसित किया जिसमें उन्होंने संस्कृत नाटक के कुछ संरचनात्मक तत्व और असम में प्रचलित लोकनाट्य रूपों ओझापाली, जात्रा और चर्चरी से कुछ तत्व लिए। संस्कृत नाटक की अवनति के पांच सौ साल बाद शंकरदेव ने एक ऐसे नाट्यरूप का सृजन किया जिसने देश के नाट्य इतिहास में एक लंबे अंतराल को भरा और जो अतीत तथा वर्तमान के बीच सेतु बना। गौरतलब है कि अपने नाटकों में शंकर देव ने ब्रुजबुलि का व्यवहार किया जो वैष्णवों के बीच विगत् 100 वर्षों से नाटक की भाषा के रूप में लोकप्रिय हो चुकी थी। ब्रुजबुलि असमिया, मैथिली एवं ब्रजभाषा का सम्मिश्रण है। अभिनेताओं द्वारा अर्द्धलयात्मक रूप में बोली जागे वाली यह बड़ी मधुर लगती है।
नाट्यकर्म के शास्त्रीय रूप एवं स्थानीय परंपराओं का सम्मिश्रण, अंकिआ नट ग्रामीण असम में खेला जागे वाला एकांकी नाटक है। इसे गांव के किसी बड़े हाॅल या खुले में बने प.डाल में खेला जाता है। पढ़े-लिखे और अनपढ़ समान रूप से इसका आनंद उठाते हैं। इसके विषय भी वैष्णव परंपरा से लिए जाते हैं। इसकी भाषा असमिया ब्रजुबुली होती है, जिसमें संस्कृत के श्लोक मिले होते हैं, भावाभिव्यक्ति के लिए गीत भी गाए जाते हैं। रंगे हुए मुखौटे प्रयोग में लाए जाते हैं। जिसका तात्पर्य यही होता है कि धार्मिक प्रभाव पड़े। शंकरदेव ने कई अंकियानाट लिखे हैं।
तेरूकुत्तु
तमिलनाडु में ग्रामीण मनोरंजन एवं संवाद का अनोखा रूप तेरूकुत्तु अपने में नृत्य, नाटक और संगीत सब कुछ समेटे हुए होता है। शाब्दिक रूप से यह ‘नुक्कड़ाटक’ है, जो खुले में खेला जाता है। तेरूकुत्तु तमिलनाडु का पारंपरिक नाट्य है और अकेला नाट्य रूप है जिसमें समूची महाभारत की 18 दिन में प्रस्तुति होती है। यह द्रौपदी पूजा से संबंधित है और द्रौपदी अम्मन (मां) के मंदिरों के सामने प्रस्तुत होती है। प्रदर्शन में समूचा ग्राम समुदाय भाग लेता है और दर्शकों एवं प्रस्तुति कर्ताओं की आत्मविस्मृति तथा अविष्टि से जुड़ी हुई आनुष्ठानिक प्रस्तुतियों में योग देता है। इसका नाट्यालेख समुदाय के सदस्यों द्वारा तैयार किया जाता है और उसे प्रदर्शकों के परिवारों में गुप्त रूप से हस्तलेख के रूप में रखा जाता है। नृत्य भरतनाट्यम से मिलता है परंतु उसकी अपेक्षा कहीं अधिक ओजस्वी होता है।
तेरूकुत्तु की वेशभूषा पारम्परिक होती है। अभिनेता रंगीन धारीदार और पूरी बांह की जैकेट (मिर्जई) पहनते हैं और स्त्री भूमिकाओं वाली रंग-बिरंगी साड़ियां पहनती हैं। हल्की लकड़ी के बने रंगीन कांच से जड़े एवं कागज के फूलों एवं रंगीन लटकनों से सजे अनेक आकृतियों और शैलियों के मुकुट एवं बाजूबंद वेशभाषा की विशिष्टता है। तार स्वर में गायन और ओजस्वी नृत्य द्वारा तेरूकुत्तु भी प्रस्तुति में बराबर एक ओजस्वी लय बनी रहती है। पग संचालन की प्रकृति यद्धु परक होती है तेरुकुुत्तु तमिलनाडु मंे अत्यतं लाके पिय्र है, इसका दर्जा शास्त्रीय संगीत और नृत्य के बाद आता है। इसका प्रदर्शन करने वाले अनेक दल पूरे राज्य में भ्रमण और प्रस्तुति करते रहते हैं।
प्रस्तुति के दौरान रोजागा की समस्याओं पर भी तार्किक रूप से विचार किया जाता है।
यक्षगान
वर्ष 1250 में आंध्रप्रदेश के पक्कूरिकी सोमनाथ रचित ‘बहूनाटक’ एक जनप्रिय गीति-नाट्य था, जो कालांतर में ‘यक्षगान’ के नाम से नृत्य-नाट्य के रूप में विकसित हुआ। आरंभ में केवल एक नर्तक या नर्तकी विभिन्न भूमिकाओं का अभिनय करते हुए नृत्य-गीत के साथ नाट्य के विषय की व्याख्या करते थे। बाद में अधिक पात्रों को शामिल किया गया। कहा जाता है कि कुचिपुड़ी गांव के भगवतुलु ब्राह्मण मेला ने इसका संस्कार कर ‘कुचिपुड़ी’ नृत्य की सृष्टि की थी। इस प्रसंग में उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में ‘ललिता’, गुजरात में ‘भवाई’, नेपाल में ‘गंधर्वगन’ तथा बंगाल में ‘जात्रा’ आदि भी आंध्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में प्रचलित यक्षगान के प्रारूप हैं। यक्षगान के तीन जनप्रिय नाटक हैं ओबया मंत्री रचित गुरुदाचलम, श्रीन्धा रचित ‘कृष्ण हीरामणि’ (15वीं सदी) एवं रुद्रकवि रचित ‘सुग्रीव विजयम’ (16वीं सदी)।
डाॅ. कोटा शिवराम कारंत ने इस प्राचीन कला को नया जीवन देने के लिए काफी प्रयास किए। इन्होंने अपनी शैली ‘यक्षरंग’ भी विकसित की। यह भी पुरुष नृत्य ही था। इसमें पांच या छह किस्म की भूमिकाएं होती हैं और हर नर्तक को एक के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। इसमें नृत्य की गति तेज रहती है। यक्षगान के दोनों महाकाव्यों पर आधारित नाटक अधिकांश युद्ध एवं आनुष्ठानिक युद्ध एवं मरण को निरूपित करते हैं। इसी से यक्षगान में युद्ध एवं मरणम वाले अनेक नाटकों की शृंखला है।
यक्षगान में भी मुखसज्जा अलंकारों एवं मुकुटों से युक्त बड़ी विशिष्ट और जटिल होती है। अभिनेता स्वयं नेपथ्यशाला में बैठकर अपनी सज्जा करते हैं। सिर पर संकेंद्री चक्करों से युक्त रस्सी से तह पर तह बनाते हुए बड़ी-बड़ी आकर्षक पगड़ियां बांधते हैं। पगड़ियों की आकृति और आकार भूमिका पर निर्भर करती है। यक्षगान में विस्तृत पूर्व रंग भी होता है जो नेपथ्यशाला में श्री गणेश की स्तुति से प्रारंभ होता है, फिर सभी अभिनेता मंच पर आते हैं जहां पूर्वरंग की कुछ और विधियां नृत्य और गान के रूप में संपन्न होती है। यक्षगान की प्रस्तुति में सबसे रोचक अंश अभिनेता की नृत्यपरक गतियां होती हैं।
यक्षगान के नृत्य का सार अभिनेता की गतियों की रीतिबद्धता में होता है। उसमें शैलीबद्ध गतियां विशिष्ट विभिन्न भूमिकाओं के लिए प्रवेश और प्रस्थान के अनेक रूप होते हैं। गर्व-भाव, वीरता एवं चुनौती इत्यादि को प्रकट करती हुई नृत्यपरक चाल होती है। इसके अतिरिक्त परम्परागत नृत्यपरक प्रारूप तथा यात्रा करने एवं युद्ध की चालें होती हैं।
बुर्रा कथा
आंध्र प्रदेश का अत्यंत लोकप्रिय गाथा-गीत बुर्रा कथा है जिसे व्यावसायिक गायक पूरे प्रदेश में गाते हैं। वे कथाओं का काफी नवीकरण करते हैं और समकालीन घटनाओं को ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं के समानांतर बना देते हैं। माना जाता है कि बुर्रा कथा का जन्म शैव मत एवं वैष्णव मत के संघर्ष के परिणामस्वरूप हुआ था, बाद में इसका विकास शैव मत के साथ हुआ और यह शैव-चरणों-जंगमों की पारिवारिक परंपरा बन गई। दूसरे आख्यानों की भांति बुर्रा कथा में भी पुराकथाओं, महाकाव्यों और ऐतिहासिक घटनाओं की कथाएं सुनाते हैं।
आंध्र प्रदेश में मौखिक आख्यानों की और भी शैलियां हैं, जैसे ओगुकथा, इसका नाम भी इसमें प्रयुक्त होने वाले प्रमुख ताल वाद्य के नाम पर है। लय के आवर्तनों की योजना में मौखिक आख्यानों के आंतरिक प्रारूपों और व्यवस्था को बना, रखना है। गाए जागे वाले आख्यानों की संगीत संरचना के निर्माण में सांगीतिक प्रारूपों के अनुसार पूरे वाचन में कुछ निश्चित बिंदुओं पर निरर्थक शब्दों और ध्वनि के प्रारूपों के जोड़ से संबंधित आलाप प्रणाली सबसे प्रचलित और परम्परागत तत्व है। कुछ रूपों में जैसे कुमाऊं प्रदेश के रोमांचक गाथा-गीत राजुला मालूशाही में पूरा लयबंध ध्वनि प्रारूपों में अंतरित कर लिया जाता है। दूसरों में आख्यान की सांगीतिक योजना के अनुसार केवल अंगभूत आवत्र्तन ही है।
लावनी
महाराष्ट्र की लावनी बड़ा ही लोकप्रिय प्रेम गीत है। यह थोड़े-थोड़े सांगीतिक अंतर के साथ गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी प्रचलित है। मराठी में शाहिर कहलाने वाले लोककवि इन लावनी गीतों के रचयिता होते हैं। इस गीत-शैली को महाराष्ट्र के हास्य व्यंग्य युक्त लोकनाट्य तमाशा में प्रयोग किया जाता है। महाराष्ट्र में लावनी का एक संगीत और नृत्य रूप भी विकसित हुआ है। लावनी को प्रस्तुत करने वाली स्त्रियों के व्यावसायिक दल होते हैं जो लावनी को नाटकीय ढंग से दर्शकों की ओर विलोमक दृष्टि डालते हुए छोटी-छोटी छलांगें लेती हुई प्रस्तुत करती हैं। स्त्रियों के लावनी दल अधिकतर ग्रामीण या अर्धग्रामीण इलाकों में लावनी प्रस्तुत करते हैं। नगरों में कारखानों में काम करने वाले उनके दर्शक होते हैं। मुंबई में एक नाट्यगृह है जहां का व्यवस्थापक इन लावनी दलों को तीन महीने के ठेके पर बुलाता है। उस नाट्यगृह में प्रमुखतः मजदूरों की बड़ी संख्या दर्शक होती है।
भांड पाथेर
कश्मीर में मुसलमानों का एक समुदाय जो अपने को भगत कहते हैं एक विशेष प्रकार का आशु नाटक प्रस्तुत करते हैं जिसे भांड पाथेर (संस्कृत पात्र से) कहा जाता है। इस नाट्य रूप में हास्य व्यंग्य के भावों से पूर्ण छोटे-छोटे प्रहसन खेले जाते हैं। हर प्रहसन में कोई सामाजिक पात्र लिया जाता है। शब्दों और व्यंगयोक्तियों का खेल होता है। पात्र कई भाषाओं का प्रयोग करते हैं। कुछ प्रहसनों में जैसे शिकारगाह में लकड़ी के मुखौटों का प्रयोग भी होता है। इस नाट्य रूप के सबसे बड़े प्रवर्तक सुजाग भारत ने पहली बार कई प्रहसन प्रकाशित भी किए हैं।
कृष्ण पारिजात
कर्नाटक के बीजापुर क्षेत्र के मुसलमान कृष्ण पारिजात नामक एक संगीत रूपक (आॅपेरा) प्रस्तुत करते हैं। इसकी कहानी यह है कि एक दिन कृष्ण स्वग्र से पारिजात पुष्प लाकर रुक्मिणी को दे देते हैं। इस पर उनकी छोटी पत्नी सत्यभामा अत्यंत रुष्ट हो जाती है, और जिद करती है कि उन्हें भी पारिजात पुष्प लाकर दिया जाए। कृष्ण युद्ध करके इंद्र के नन्दनवन से पारिजात पुष्प का पौधा ही ले आते हैं और उसे सत्यभामा को दे देते हैं, वे प्रसन्न हो जाती हैं। इस शैली में इसी पर इस नाट्य रूप का नाम भी पारिजात है। इसका संगीत प्रमुखतः हिंदुस्तानी संगीत है और उसे बेहद नाटकीयता से गाया जाता है। भागवत (वाचक) गाता है ‘यदा यदाहि धर्मस्य’ (गीता का प्रसिद्ध श्लोक) और उसी के साथ कृष्ण का प्रवेश होता है। यह कहानी कुचिपुड़ी नृत्य में (भामाकलापम) नाम से प्रस्तुत होती है और वेदान्तम् सत्यनारायण शर्मा-सत्यम्-इसमें सत्यभामा के पात्र के प्रसिद्ध प्रस्तुतकर्ता हैं।
कर्नाटक में वीर शैव संप्रदाय वाले ऊंचे स्वर वाले ढोलों की संगत में गाथा-गीत गाते हैं, जिसे वीरगासे कहा जाता है। गायन के साथ वे नृत्य भी करते हैं। ये शिवभक्त होते हैं।
महाराष्ट्र का पावड़ा वीर-रस प्रधान गाथा-गीत है। इस गाथा-गीत में महाराष्ट्र के वीर नायकों की गाथा का बखान किया जाता है। गायन के साथ वे डफ, तुनतुने,झांझ और ढोलकी जैसे विभिन्न वाद्य यंत्रों का प्रयोग करते हैं। उनके प्रदर्शन में अत्यधिक उत्साह होता है। उनके गीतों में 1857 के प्रथम स्वाधीनता संघर्ष जैसे विषयों पर भी गाथा-गीत सम्मिलित हैं।
आल्हा
गाथा-गीतों की शैली के गाए जागे वाले मौखिक वाचन जैसे आल्हा में पूरे पाठ में एक ही छंद का प्रयोग होता है, दूसरों में काव्य पाठ एवं संगीत की अंतर्वस्तु की विस्तृत माला प्रयुक्त की जाती है। छंदों की विविधता की एक क्रियात्मक भूमिका भी होती है। कुछ छंद कथा के वाचन अंग के लिए प्रयुक्त होते हैं तो कथा स्थान के विवरण के लिए छंद बदल दिए जाते हैं, इसके अतिरिक्त दो पात्रों के बीच की विवादपरक भूमिका के अवसर पर भी छंद परिवर्तन होता है। तमिलनाडु के मौखिक आख्यान ‘विलपट्टई’ में प्रमुख और सहायक गायक के बीच की पंक्तियों के लिए विभिन्न छंदों के पदों और गीतों के वाचन और गायन में विविध प्रारूपों को प्रमुख और सहायक गायक तथा समूचे संगीत वृंद के बीच बांट दिया जाता है। मौखिक आख्यानों की संगीत संरचना में लय का तत्व इतना महत्वपूर्ण होता है कि इसकी इतनी गिर्णायक भूमिका होती है कि ओडिशा के दशकथिया से लेकर तमिलनाडु के विलपट्टई तक के नाम उनके प्रमुख ताल वाद्य पर रखे गए हैं। दशकथिया में कथिया उस काष्ठ ताल वाद्य को कहते हैं जिसे प्रमुख आख्यानक बजाता है और विलपट्टई में विल उस धनुषाकार तार वाद्य को कहते हैं जिसको आख्यान का प्रमुख गायक दो लकड़ियों से बजाता है।
मौखिक वाचन रूपों में पाठ एवं कथा-वाचन की प्राचीन क्लासिकी परम्परा की अविच्छिन्नता के प्रसंग में यह बात भी ध्यान में रखने की है कि यही प्रदर्शन प्रणालियां आगे चलकर मूल प्रदर्शन रूप बन गईं सरल समुदाय आधारित एवं जटिल मंदिर आधारित।
उत्तर भारत के रामलीला और रासलीला तथा अत्यधिक विकसित स्वरूप जैसे कर्नाटक के यक्षगान और केरल के कथकलि में कथा-गायन का रूप बना रहा। गोवा के गाथा-गीत रूप रणमाल्यम् की प्रस्तुति में गाथा-गीत एवं नाटकीय ढांचों का विशिष्ट संयोजन देखने को मिलता है।
नरसिंह अवतार
नरसिंह और प्रध्ाद की विषय-वस्तु पारंपरिक नाट्य में अत्यंत लोकप्रिय है और कई नाट्यरूपों में प्रस्तुत होती है। इसकी लोकप्रियता का कारण है प्रध्ाद की भक्ति दृढ़ता एवं ईश्वर की अपने भक्तों की रक्षा की भावना है। इसकी प्रस्तुति ओडिशा के गंजाम जिले में एक नाट्य रूप प्रध्ाद नाटक में विशेष रूप से होती है। इस नाट्य रूप में और किसी कथानक के नाटक नहीं होते, इसी से एक पारंपरिक नाट्य का नाम ही प्रध्ाद नाटक है।
गीत-गोविंद
12वीं शताब्दी में जयदेव रचित ‘गीत-गोविंद’ से मंदिर प्रदर्शनों की परम्परा प्रारंभ होती है। इस काव्य रचना का विषय है दिव्य प्रेमी युगल राधा और कृष्ण का प्रेम, कृष्ण की दूसरी गोपियों से प्रेम क्रीड़ा और राधा-कृष्ण का पुनर्मिलन। शृंगारी विषय-वस्तु, काव्य बिम्बों से पूर्ण भक्ति रंजित, रागानुबद्ध गायन और नृत्य के लिए रचित गीतों से युक्त गीत-गोविंद मंदिर-नाटक की परम्परा आरंभ करने के लिए आदर्श रचना सिद्ध हुई। यह कृति जयदेव की काव्य प्रतिभा का प्रमाण तो है ही, इससे यह भी पता चलता है कि इसके पहले इसी प्रकार की अन्य काव्य कृतियां रहीं होंगी जिनका गायन और नृत्य होता रहा होगा। शास्त्रीय नृत्य की सभी शैलियों में इसकी नृत्य प्रस्तुतियां हुई हैं, लघुचित्रों के रूप में इसका चित्रण हुआ है, और केरल का 16वीं शताब्दी का कृष्णाट्टम इसी से प्रेरित है।
भर्तूहरि और लोरिक-चंदा
वाचन गायन की परम्परा में प्रत्येक प्रदेश में दोनों ऐसी कहानियां हैं जो साहित्य एवं मौखिक परम्परा का अंश हैं। छत्तीसगढ़ राज्य में राजा भर्तृहरि की कथा ऐसी ही है। इसका गायन विभिन्न संगीत शैलियों में अनेक प्रदेशों में किया जाता है। इसकी धुन बड़ी प्रभावी होती है। छत्तीसगढ़ में बहुत ही लोकप्रिय पारंपरिक कथा लोरिक चंदा की प्रेम कहानी है जो उत्तर प्रदेश और बिहार में भी प्रचलित है। यह कथा स्थानीय बोलियों में गायी जाती है और इसके कई रूप मिलते हैं।
ढोला-मारू
राजस्थान का लोकप्रिय पारम्परिक गाथा-गीत ढोला-मारू है जो पास के क्षेत्रों बुंदेलखंड और छत्तीसगढ़ में भी प्रचलित है। यह भी एक प्रेम कथा है। गायन शैली अलग-अलग प्रदेशों में बदल जाती है। सभी गायक भावाभिव्यक्ति के लिए सीमित मुद्राओं का प्रयोग करते हैं। पंजाब के प्रसिद्ध गाथा-गीत हीर-रांझा और सोहनी-महिवाल हैं।
धार्मिक और लौकिक संदर्भों के मौखिक आख्यान, उत्सवों की समय-सारणी और कृषि के समय चक्रों के अनुसार, मंदिरों के उत्सव, धार्मिक कृत्यों, पारिवारिक उत्सवों, मेलों और पर्वों के अंश रूप में विश्वासों, विचारों, मूल्यों और सामुदायिक हितों के संचार में समाज में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। हाल के वर्षों में ये जनसंचार माध्यमों द्वारा बहिष्कृत कर दिए गए हैं और उनकी भूमिका का महत्व कम हो गया है। उनके प्रदर्शन के स्थान और अवसर जनसंचार माध्यमों की मनोरंजन संस्कृति के दबाव से बदल गए हैं, और उन्हें मनोरंजन मेला संस्कृति के संदर्भ में रख दिया गया है।
पाली
असम के पाली में एक प्रमुख गायक के साथ गायकों का दल और वाद्यवृंद होता है। प्रमुख गायक महाकाव्यों और पुराणों की कथाओं का गान भी करता है और पाठ भी तथा गायन के बीच टिप्पणी करता है। संक्षिप्त नृत्य टुकड़े भी प्रस्तुत करता है। पाली में कभी-कभी कोई संस्कृत नाटक या काव्य तथा वाचन एवं टिप्पणी के लिए लिया जाता है।
इस प्रकार महाकाव्यात्मक परंपरा पर आधारित भारतीय संस्कृति में पाठ वाचन और कथा गायन के प्रमुख तत्वों के साथ बड़ा सशक्त प्रदर्शन का भाव है। गाए हुएएवं पाठ के रूप में वाचिक आख्यानों के अनेक रूप हैं। वारिलीवा, मणिपुर का एकल कथा-गायन रूप, ओडिशा एवं केरल के दस्ताना पुतली प्रदर्शन, गोवा का रणमाल्यम् गाथागीत, कुमांऊ प्रदेश का राजुला मालूशाही, गुजरात का आख्यान, मध्य प्रदेश का पांडवानी, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं तमिलनाडु की हरिकथा, हिंदी भाषी प्रदेशों का वाचिक महाकाव्य आल्हा और राजस्थान की चित्र-वाचन परंपरा जैसे पाबूजी की पड़, और महाराष्ट्र की चित्रकथी वाचिक आख्यानांे की विविधता अभिव्यक्त करते हैं।

Sbistudy

Recent Posts

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

3 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

5 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

7 days ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

7 days ago

elastic collision of two particles in hindi definition formula दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है

दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है elastic collision of two particles in hindi definition…

7 days ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now