JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: sociology

द रिलिजन ऑफ इंडिया कब प्रकाशित हुई the religion of india was published in which year in hindi

the religion of india was published in which year in hindi द रिलिजन ऑफ इंडिया कब प्रकाशित हुई यह किताब / पुस्तक किस बारे में है ? the religion of india book is written by पुस्तक के लेखक कौन है ?

उत्तर : द रिलिजन ऑफ इंडिया 1916 में प्रकाशित हुई और इसके लेखक मैक्स वेबर थे |

भारतीय धर्म
1916 में लिखी गई द रिलिजन ऑफ इंडिया नामक कृति में वेबर हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म का उल्लेख करता है। उसके अनुसार हिन्दू धर्म को जाति व्यवस्था के संबंध में देखना चाहिए। जाति व्यवस्था शुरू में काम-काज में विशेषज्ञता पर आधारित थी। लेकिन कालान्तर में यह वंशानुगत हो गई, ब्राह्मण जाति सबसे शक्तिशाली बनी। इस जाति के सदस्यों को ही शास्त्र पढ़ने का अधिकार था, अतःपांरपरिक विचारों का प्रचार इन्हीं के हाथों में केन्द्रित रहा। निम्न जातियाँ, खास कर के शूद्र अत्यंत शोषित थीं, चूकि उन्हें “अपवित्र‘‘ माना जाता था। इसलिये ये धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन से वंचित थीं। परिणामस्वरूप वे मोक्ष के लायक भी समझी नहीं जाती थीं। मोक्ष या मुक्ति ही हिन्दुओं का परम उद्देश्य माना जाता है। वेबर के अनुसार हिन्दू धर्म का मूल मंत्र “कर्म‘‘ की अवधारणा है। मनुष्य की परिस्थिति पिछले जन्म में किये गये अच्छे या बूरे कर्मों का फल है। यदि व्यक्ति इस जन्म में धर्मानुसार कर्म करे, तब अगले जन्म में इसका उचित, फल मिलेगा। ब्राह्मण का धर्म है शास्त्रों का अध्ययन करना, क्षत्रिय का धर्म है उसकी प्रजा और भूमि की रक्षा करना, वैश्य का धर्म व्यापार है और शूद्र से अन्य जातियों की सेवा अपेक्षित है। पिछले कर्मों से ही इस जन्म में व्यक्ति की जाति निर्धारित होती है, और अगले जन्म में ऊँची जाति में जन्म लेने के लिये धर्म का पालन अति आवश्यक है। लेकिन सबसे परम लक्ष्य मोक्ष ही है, जिससे जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है। मोक्ष ही जीवन की अनिश्चितता और दुरूख का अंतिम समाधान है।

भौतिक उन्नति वांछनीय है, किन्तु यह क्षणिक है। आध्यात्मिक उन्नति में स्थिरता है। आध्यात्मक पूँजी का मूल्य कभी कम नहीं होता। इसी के द्वारा जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिल सकती है। आध्यात्मिक लक्ष्यों की प्राप्ति से ही मोक्ष मिलता है। वेबर यह दिखाने का प्रयास करता है कि इसी आध्यात्मिक संयम वाली प्रकृति ने पूँजीवाद को नहीं पनपने दिया। यह उल्लेखनीय है कि मध्यकालीन भारतीय नगर उत्पादन के विख्यात केन्द्र माने जाते थे। तकनीकी काफी विकसित थी। भौतिक परिस्थितियाँ उपयुक्त थीं। परन्तु हिन्दू मान्यताओं के अनुरूप भौतिक क्षेत्र को विशेष महत्व नहीं दिया गया।

वेबर के अनुसार बौद्ध और जैन धर्म शान्तिप्रिय धर्म थे। इन्होंने हिन्दू धर्म की रूढ़ियों का विरोध किया। ये धर्म ध्यान (बवदजमउचसंजपवद) पर जोर देते थे। इनके अनुयायी सन्यासी या भिक्षुक थे, जिन्होंने लौकिक संसार को त्याग दिया था। सामान्य लोग भिक्षुक को दान देकर पुण्य प्राप्त कर सकते थे, परन्तु निर्वाण या मुक्ति पाने के लिये सांसारिकता को त्यागकर सन्यास लेना अनिवार्य था।

जाति व्यवस्था तथा हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के विश्वास एक दूसरे के पूरक थे, और पूँजीवाद के पनपने में बाधक सिद्ध हुए, हालांकि पूँजीवाद के फूलने-फलने के लिये मध्यकालीन भारतीय नगर केन्द्र थे। भारत एक परंपरागत देश बना रहा जिसकी सामाजिक व्यवस्था अत्यंत मजबूत थी (दखिये कॉलिन्स 1986ः 111-118)।

 चीनी धर्म
1916 में वेबर ने द रिलिजन ऑफ चाइना (चीनी धर्म) भी लिखी। चीन के पांरपरिक कन्फ्यूशियस धर्म का उल्लेख करते हुये उसने कहा कि यह धर्म भी प्रोटेस्टेंट धर्म की तरह “इहलौकिक आत्मसंयम‘‘ (जीपे ूवतसकसल ंेबमजपबपेउ) पर जोर देता है। किन्तु प्रोटेस्टेंट नीतियाँ विश्व के नियंत्रण और परिवर्तन पर जोर देती हैं जबकि दूसरी ओर कान्फ्यूशियस नीतियाँ संतुलन की परिकल्पना को अपनाती हैं। विश्व और ब्रह्मांड की व्यवस्था उपयुक्त अनुष्ठानों और कर्मकांडों द्वारा बनायी जाती है। बोलने-चालने के उचित ढंग को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता था। सत्ताधारी वर्ग (चीन का मंडारिन या पंडित वर्ग) बोलचाल के तरीकों और नीति नियमों का रक्षक था। सामाजिक व्यवस्था और संतुलन को बनाये रखने को इतना अधिक महत्व देने के परिणामस्वरूप विश्व को बदलने की प्रवृति (जो कि पूँजीवाद की मूल प्रवृति है) को प्रोत्साहन नहीं दिया गया। इस प्रकार कन्फ्यूशियस धर्म की प्रमुख नीतियाँ, संयम और संतुलन आदि पूँजीवाद की प्रवृति के विपरीत थीं।

 प्राचीन यहूदी धर्म
एंशिएंट जुडाइज्म नामक वेबर की महत्वपूर्ण कृति 1917 और 1919 के दौरान लिखी गई। पाश्चात्य समाज के परिवर्तनों को समझने के लिये यह कृति अत्यंत महत्वपूर्ण है।

यहूदी धर्म से ही इस्लाम और ईसाई धर्म का उद्गम हुआ। ये सभी धर्म विश्व के परिवर्तन पर जोर देते हैं। आपने खंड 4, इकाई 16 में पढ़ा है कि किस प्रकार यहूदी धर्म पृथ्वी पर ही स्वर्ग निर्माण करने का विचार सामने लाता है। इस विचार के परिणाम अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इससे दुनिया को नियंत्रित कर उसे बदलने को अनुयायी प्रेरित होते हैं। परिवेश पर नियंत्रण पाना ही आधुनिक पाश्चात्य सभ्यता का प्रमुख लक्षण है। यहूदी पैगम्बर नैतिक पैगम्बर थे, जिन्होंने अनुयाइयों को अपने आदेशों और संदेशों द्वारा एक जुट करने का प्रयास किया। वे फिलिस्तीन के असंतुष्ट, शोषित किसानों को यह सीख देते थे कि दैविक प्रकोप देश को नष्ट कर देगा। वे कहते थे कि ईश्वर शहरों में बसे ऐशो आराम की जिन्दगी बिताने वाले सत्ताधारी वर्ग से क्रुद्ध था। जब तक इस वर्ग का पतन नहीं होता और ईश्वर के मार्ग पर चलने वाला समाज स्थापित नहीं होता तब तक फिलिस्तीन में खुशहाली नहीं हो सकती। इस्लाम और ईसाई धर्म में भी नैतिक पैगम्बर होते हैं, जो एक विशिष्ट प्रकार की आचार-पद्धति का प्रचार करते हैं।

1920 में वेबर का देहान्त हो गया। ईसाई धर्म और इस्लाम पर वेबर के लेख अधूरे ही रह गये। वह विश्व के धर्म संबंधी अपने सारे शोधकार्य को मिलाकर पूँजीवाद के उदय और विकास से जुड़े इस प्रश्न का समाधान खोजना चाहता था, परन्तु इस स्वप्न को वह साकार नहीं कर सका।

आगे पढ़ने से पहले सोचिए और करिए 2 का पूरा करें।

सोचिए और करिए 2
उपरोक्त जानकारी को पढ़ने के बाद, धर्म पर वेबर के विचारों को ध्यान में रखते हुए पैगम्बर मुहम्मद और ईसा मसीह के बारे में जानकारी इकट्ठा करें। इसके आधार पर दो पृष्ठ का लेख लिखें। आपके लेख में जो महत्वपूर्ण बातें होनी चाहिए वे इस प्रकार हैं: (क) उनकी जीवन वृतान्त (ख) उनके उपदेश (ग) उनके उपदेशों का प्रभाव।

इस भाग को पढ़कर शायद आपको यह लग रहा हो कि यह खंड 4, इकाई 16 की पुनरावृ किन्तु इसका उद्देश्य वेबर के धर्म संबंधी अध्ययन के मुख्य विषय यानि धार्मिक विचारों और मनुष्य के क्रियाकलाप के बीच संबंध को उजागर करना है। याद रहे, वेबर ने कर्ता की सार्थकता के संदर्भ में मानवीय कार्यों की व्याख्या की है। प्राचीन भारत में एक अछत जाति व्यवस्था से विद्रोह क्यों नहीं कर सकता था इस प्रश्न के उत्तर में वेबर ने धार्मिक विश्वास पर आधारित उस व्यवस्था को दर्शाया, जिसमें व्यक्ति द्वारा विश्व को बदलने की रोक थी। इसी प्रकार पूर्वनियति और ईश्वरीय आह्वान की धारणाओं ने प्रोटेस्टेंट लोगों को मेहनत करने और पूँजी इकट्ठा करने के लिये प्रेरित किया। धर्म के संबंध में वेबर के विचारों से अनेक अमरीकी और भारतीय समाजशास्त्री प्रभावित हुए हैं।

वेबर की कृतियाँ पैगम्बरों की भूमिका को दर्शाती हैं। वेबर यह भी दिखाता है कि किस प्रकार धार्मिक विश्वास समाज के विशिष्ट वर्गों से संबंधित है। कन्फ्यूशियस धर्म सत्ताधारी मंडारिन वर्ग से जुड़ा था, हिन्दू धर्म जाति व्यवस्था को प्रोत्साहित करने वाले ब्रह्मणों से, और यहूदी धर्म शोषित, असंतुष्ट ग्रामीण लोगों से।

अगले भाग में, दर्खाइम और वेबर के विचारों की तुलना की जायेगी। लेकिन इससे पहले, बोध प्रश्न 3 के उत्तर दीजिए।

बोध प्रश्न 3
प) निम्नलिखित वाक्यों को रिक्त स्थानों की पूर्ति द्वारा पूरा करें।
क) वेबर के अनुसार, हिन्दू धर्म का प्रमुख विश्वास ……………….. है।
ख) हिन्दू धर्म का परम उद्देश्य ………………… की प्राप्ति है।
ग) …………….. की कन्फ्यूशियस कल्पना के कारण ही चीन में पूँजीवाद पनप नहीं सका।
घ) विश्व का ……………. और ……………. ही आधुनिक पाश्चात्य सभ्यता का प्रमुख लक्षण है।
ड.) वेबर ने मानवीय क्रिया की व्याख्या के संदर्भ में की है।

बोध प्रश्न 3 उत्तर
प) क) कर्म की धारणा
ख) मोक्ष
ग) संतुलन
घ) नियंत्रण, परिवर्तन
ड) कर्ता की सार्थकर्ता

मैक्स बेबर का योगदान
मैक्स वेबर द्वारा प्रस्तुत धर्म के समाजशास्त्रीय अध्ययन का आधार है व्यक्तियों को कर्ता के रूप में देखना, और कर्ता द्वारा अपने परिवेश संबंधित व्यक्तिपरक अर्थ को समझना। वेबर अपना अध्ययन धार्मिक नीतियों या मान्यताओं पर केन्द्रित करता है, और अन्य सामाजिक उप-व्यवस्थाओं (जैसे कि अर्थव्यवस्थाओं और राजनीति) के साथ इनका पारस्परिक संबंध भी देखता है। इस प्रकार, वेबर की पद्धति में इतिहास का महत्व स्पष्ट होता है। इस पाठ्यक्रम के खंड 4, इकाई 15 में आपने वेबर द्वारा प्रस्तुत धर्म और आर्थिकी के बीच अंतर्संबंध का विस्तृत अध्ययन किया। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, वेबर ने धर्म संबंधी विभिन्न कृतियाँ लिखीं, जिनमें द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म और प्राचीन भारतीय, चीनी और यहूदी धर्म के तुलनात्मक अध्ययन प्रमुख हैं, देखिए इस पुस्तक के अंत में दी गई संदर्भ ग्रंथ सूची। इस भाग में वेबर की धर्म संबंधित तुलनात्मक और ऐतिहासिक दृष्टि को स्पष्ट करने के लिये विश्व में विभिन्न धर्मों के बारे में उसके विचारों पर नजर डाली जायेगी।

इस इकाई में हमने प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म का विवेचन तो नहीं किया है, फिर भी यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण कृति है।

इस कृति के मुख्य विचारों के बारे में आपने पहले विस्तार से पढ़ा है। इस खंड की इकाई 21 में भी (जिसमें पूँजीवाद के संबंध में वेबर के विचार दिये जायेंगे) इस पर पुनः चर्चा होगी। फिर भी आपको यह सलाह दी जाती है कि आगे बढ़ने से पहले खंड 4 की इकाई 16 में प्रोटेस्टेंट नीतियों पर दी गई जानकारी पर एक सरसरी नजर डालें। आइए, अब वेबर द्वारा प्रस्तुत विश्व के विभिन्न धर्मों से संबंधित कुछ मुद्दों का संक्षेप में अध्ययन करें। सबसे पहले भारतीय धर्मों पर उसके विचारों के बारे में पढ़ें।

Sbistudy

Recent Posts

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

2 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

4 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

6 days ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

6 days ago

elastic collision of two particles in hindi definition formula दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है

दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है elastic collision of two particles in hindi definition…

6 days ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now